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सोनिया गाँधी

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सोनिया गांधी का जन्म 9 दिसंबर 1946 को इटली के लुसियाना में मैनो परिवार में हुआ था। सोनिया गाँधी एक भारतीय नेता है। श्रीमती सोनिया गांधी भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष हैं। वे रायबरेली, उत्तर प्रदेश की सांसद हैं और इसके साथ ही वे 14 वीं लोक सभा में यूपीए की भी प्रमुख है। वे संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन के समन्वय समिति की भी अध्यक्ष हैं। पति राजीव गाँधी की हत्या होने के बाद उन्होंने अपना क़दम राजनीति में रखा। राष्ट्रीय और अंतराष्ट्रीय राजनीतिक क्षितिज पर सोनिया गांधी ने महत्वपूर्ण स्थान प्राप्त किया हैं। सोनिया गाँधी भारत के प्रभावशाली राजनीतिक घराने की बहू हैं।

जीवन परिचय

सोनिया के पैदा होने पर लुजियाना के घरों में परंपरा के अनुसार गुलाबी रिबन बांधे गए। चर्च में सोनिया का नाम एडविजे एनटोनिया अलबिना मैनो रखा गया। लेकिन उनके पिता स्टीफैनो ने उन्हे सोनिया के नाम से पुकारा। रूसी नाम रखकर वो उन रूसी परिवारों का शुक्रिया अदा करना चाहते थे जिन्होंने द्वितीय विश्वयुद्ध के दौरान उनकी जान बचाई थी। सोनिया के पिता स्टीफैनो, मुसोलिनी की सेना में थे जो रूसी सेना से हार गई थी।

सोनिया जियावेनो के कॉन्वेन्ट स्कूल में गई लेकिन पढ़ाई उतनी ही की, जितनी जरुरत थी। यानी वो अच्छी स्टूडेन्ट नहीं थी लेकिन हंसमुख और दूसरों की मदद करने वाली थीं। कफ और अस्थमा की शिकायत की वजह से वो बोर्डिंग स्कूल में अकेले सोती थीं। आगे जाकर तूरीन में पढ़ाई के दौरान उनके मन में एयर होस्टेस बनने का अरमान भी जागा लेकिन वो सपना जल्द ही बदल गया। इसके बाद वो विदेशी भाषा की टीचर या संयुक्त राष्ट्र में अनुवादक भी बनना चाहती थीं। कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को भारतीयों ने भले ही बड़ी सहजता से स्वीकार कर लिया हो, पर दूसरे देशों के लिए उनकी सफलता आश्चर्य का विषय बनी हुई है। एक साधारण परिवार से दुनिया के सबसे बड़े लोकतंत्र के शीर्ष पर पहुंचने का उनका यह सफर लोगों में गहरी उत्सुकता जगाता रहा है। इसी को ध्यान में रखकर स्पैनिश लेखक और पत्रकार जेवियर मोरो ने उनके जीवन पर एक किताब लिखी है- 'एल सारी रोजो'(द रेड साड़ी)।

वैवाहिक जीवन

शुरूआती शिक्षा के पश्चात, उन्होंने विदेशी भाषा सिखाने वाले एक शैक्षिक संस्था में दाखिला लिया और अंग्रेजी, फ्रेंच व रूसी भाषाएं सीखीं। श्री राजीव गांधी से उनकी मुलाकात कैंब्रिज में हुई थी, जहां वे अंग्रेजी भाषा में आगे की पढ़ाई कर रही थीं। राजीव, उस वक्त कैंम्ब्रिज के ट्रिनिटी कॉलेज में पढ़ रहे थे। साल 1965 में दोनो की मुलाकात एक ग्रीक रेस्त्रां में हुई। उसके बाद सोनिया गांधी भारत आ गई। राजीव गांधी के साथ इनका विवाह 1968 में नयी दिल्ली में सम्पन्न हुआ। राजीव गांधी पायलट थे और उनकी दिलचस्पी राजनीति में नहीं थी। सोनिया गांधी ने अपने वैवाहिक जीवन का अधिकांश समय अपने परिवार की देखभाल करते हुए बिताया। अपनी सास इंदिरा गांधी के सहयोगी के रूप में भी अपनी जिम्मेदारियों को इन्होंने बखूबी निभाया। इनकी दो संतान हैं - बेटा राहुल और बेटी प्रियंका।

पति के साथ योगदान

सोनि्या गाँधी के पति राजीव गांधी को राजनीति में कोई रूचि नहीं थी और वो एक एयरलाइन पायलेट की नौकरी करते थे। इमरजेन्सी के उपरान्त जब इन्दिरा गांधी को सत्ता छोड़नी पड़ी थी तब कुछ समय के लिए राजीव गांधी परिवार के साथ विदेश में रहने चले गए थे। परंतु 1980 में अपने छोटे भाई संजय गांधी की एक हवाई जहाज़ दुर्घटना में असामयिक मृत्यु के बाद माता इन्दिरा गांधी को सहयोग देने के लिए 1982 में राजीव गांधी ने राजनीति में प्रवेश लिया। शुरुआत में सोनिया राजनीतिक गतिविधियों से बचती रही थीं और पूरी तरह एक ग्रहिणी की भूमिका में ढल चुकी थीं। भारतीय सार्वजनिक जीवन में उनकी मौजूदगी उनकी सास तथा पूर्व प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी की हत्या और उनके पति के प्रधानमंत्री निर्वाचित होने के बाद बढी। प्रधानमंत्री की पत्नी होने के नाते सोनिया उनकी सरकारी मेजबान की भूमिका अदा करतीं और उनके साथ अलगअलग देशो की यात्रा पर जातीं। वह अपने पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी से जुड़े मामलों को भी समयसमय पर देखती रहीं। उत्तर प्रदेश के विकास कार्यों पर उन्होंने पूरा ध्यान दिया, खासतौर पर स्वास्थ्य संबंधी कैंप एवं जन कल्याण कार्यों को उन्होंने अपनी भागीदारी से बहुत बढ़ावा दिया। साल 1984 में उनके पति के प्रधानमंत्रित्व काल में भारतीय सेना द्वारा बोफ़ोर्स तोप की खरीदारी में लिए गये किकबैक (कमीशन - घूस) का मुद्दा उछला जिसका मुख्य पात्र इटली का एक नागरिक, ओटावियो क्वाटोराची था जो कि सोनिया गांधी का मित्र था। अगले चुनाव में कांग्रेस की हार हुई और राजीव गांधी को प्रधानमंत्री पद से हटना पड़ा।

अगले चुनावों में कांग्रेस के जीतने और राजीव गांधी के पुन: प्रधानमंत्री बनने की पूरी संभावना थी परंतु 21 मई , 1991 को तमिल आतंकवादियों ने राजीव गांधी की एक बम विस्फ़ोट में हत्या कर दी थी।

संस्था अध्यक्ष

ई 1991 में अपने पति की हत्या के बाद उन्होंने राजीव गाँधी फाउंडेशन और इसकी सहयोगी संस्था 'राजीव गांधी इन्स्टीट्यूट फ़ॉर कन्टेम्प्रेरी स्टडीज' की स्थापना की। इन संस्थाओं के अध्यक्ष के रूप में उन्होंने अपने पति की वैचारिक विरासत को आगे बढ़ाने में सक्रिय योगदान किया। साथ ही वे और भी अन्य गैर सरकारी संस्थाओं की अध्यक्ष हैं।

सोनिया गांधी का राजनीतिक जीवन

पति की हत्या होने के पश्चात कोंग्रेस के वरिष्ट नेताओं ने सोनिया से पूछे बिना सोनिया गाँधी कांग्रेस का अध्यक्ष बनाये जाने की घोषणा कर दी परंतु सोनिया ने इसे स्वीकार नहीं किया और राजीति और राजनीतिज्ञों के प्रति अपनी नफ़रत और अविश्वास को इन शब्दों में व्यक्त किया कि 'मैं अपने बच्चों को भीख मांगते देख लूँगी, परंतु मैं राजनीति में कदम नहीं रखूँगी।' काफ़ी समय तक राजनीति में कदम न रख कर उन्होंने अपने बेटे और बेटी का पालन पोषण करने पर अपना ध्यान केंद्रित किया। उधर पी वी नरसिंहाराव के कमज़ोर प्रधानमंत्रित्व काल के कारण 1996 का आम चुनाव भी हार गई और उसके बाद सीताराम केसरी के कांग्रेस के कमज़ोर अध्यक्ष होने से कांग्रेस का समर्थन कम होता जा रहा था जिससे कांग्रेस के नेताओं ने फिर से नेहरु-गांधी परिवार के किसी सदस्य की आवश्यकता अनुभव करी। 1997 में कोलकाता में कांग्रेस के सम्मेलन में आखिरकार वह कांग्रेस की प्राथमिक सदस्य के रूप में शामिल हो गईं। उनके दबाव में सोनिया गांधी ने 1997 में कोलकाता के प्लेनरी सेशन में कांग्रेस की प्राथमिक सदस्यता ग्रहण करी और उसके 62 दिनों के अंदर 1998 में वो कांग्रेस की अध्यक्ष चुनी गयीं। उन्होने सरकार बनाने की नाकामयाब कोशिश भी की। राजनीति में कदम रखने के बाद उनका विदेश में जन्म हुए होने का मुद्दा उठाया गया । उनकी कमज़ोर हिन्दी को भी मुद्दा बनाया गया। उन पर परिवारवाद का भी आरोप लगा लेकिन कोंग्रेसियों ने उनका साथ नहीं छोडा और इन मुद्दों को नकारते रहे।


अपने राजनीतिक जीवन की शुरुआत में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी को सबसे ज्यादा मदद पूर्व केंद्रीय मंत्री दिवंगत माधवराव सिंधिया से मिली थी। सोनिया गांधी अक्टूबर 1999 में बेल्लारी, कर्नाटक से और साथ ही अपने दिवंगत पति के निर्वाचन क्षेत्र अमेठी, उत्तर प्रदेश से लोकसभा के लिए चुनाव लड़ीं और करीब तीन लाख वोटों की विशाल बढत से विजयी हुईं। 1999 में 13 वीं लोक सभा में वे विपक्ष की नेता चुनी गयी। 2003 में तत्कालिक प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी की एन डी ए सरकार के विरुद्ध वो सबके विरोध के बावज़ूद अकेले ही एक अविश्वास प्रस्ताव लाईं जो कि पराजित हो गया परंतु इससे एन डी ए सरकार की विरोधी के रुप में सोनिया गांधी की व्यक्तिगत छवि अच्छी तरह स्थापित हो गई जिसका लाभ उन्हें 2004 के आम चुनावों में मिला।

वामपंथी दलों ने भारतीय जनता पार्टी को सत्ता से बाहर रखने के लिये कोंग्रेस और सहयोगी दलों की सरकार का समर्थन करने का फ़ैसला किया जिससे कांग्रेस और उनके सहयोगी दलों का स्पष्ट बहुमत पूरा हुआ। 2004 के चुनाव से पूर्व आम राय ये बनाई गई थी कि अटल बिहारी वाजपयी ही प्रधान मंत्री बनेंगे पर सोनिया ने देश भर में घूमकर खूब प्रचार किया और सब को चौंका देने वाले नतीजों में कोंग्रेस को अनपेक्षित 200 से ज़्यादा सीटें मिली। 2004 के आम चुनाव में उन्होंने कांग्रेस पार्टी के चुनाव अभियान का सफलतापूर्वक नेतृत्व किया, जिसके परिणाम-स्वरूप कांग्रेस पार्टी सबसे बड़े दल के रूप में उभर कर आयी और कांग्रेस के नेतृत्व में संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (UPA) की गठबंधन सरकार बनी। इस चुनाव में श्रीमती सोनिया गांधी उत्तर प्रदेश के रायबरेली क्षेत्र से सांसद चुनी गयीं।

परंतु अपनी हार पर ख़ीजे हुए एन डी ए के नेताओं ने सोनिया गांधी के विदेशी मूल पर आक्षेप लगाए और कुछ सुषमा स्वाराज और उमा भारती जैसी जानी मानी नेताओं ने ऐसी घोषणा कर दी कि यदि सोनिया गांधी प्रधानमंत्री बनीं तो वो अपना सिर मुँडवा लेंगीं और भूमि पर ही सोयेंगीं। कांग्रेस पार्टी ने सर्वसम्मति से संसद में उनको अपना नेता चुना और जनता की अपेक्षा थी कि वे प्रधानमंत्री पद की शपथ लेंगी परंतु उन्होंने इस पद के लेने से इंकार किया और यह घोषित किया कि वे प्रधान मंत्री नहीं बनना चाहती। 18 मई को उन्होने मनमोहन सिंह को अपना उम्मीदवार बताया और पार्टी को उनका समर्थन करने की गुज़ारिश की । इसका खूब विरोध हुआ और उनसे इस फ़ैसले को बदलने की गुज़ारिश की गई पर उन्होने कहा कि प्रधान मंत्री बनना उनका लक्ष्य कभी नहीं था। सब नेताओं ने मनमोहन सिंह का समर्थन किया और वे प्रधान मंत्री बने पर सोनिया को दल का तथा गठबंधन का अध्यक्ष चुना गया।

राष्ट्रीय सुझाव समिति का अध्यक्ष होने के कारण सोनिया गांधी पर लाभ के पद पर होने के साथ लोकसभा का सदस्य होने का आक्षेप लगा जिसके फलस्वरूप 23 मार्च 2006 को उन्होंने राष्ट्रीय सुझाव समिति के अध्यक्ष के पद और लोकसभा का सदस्यता दोनों से त्यागपत्र दे दिया। मई 2006 में वे रायबरेली, उत्तरप्रदेश से पुन: सांसद चुनी गई और उन्होंने अपने समीपस्थ प्रतिद्वंदी को चार लाख से अधिक वोटों से हराया।

आर्थिक मुद्दे

मई, 2006 तक वे राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्ष रहीं। राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने समय समय पर सरकार को महत्वपूर्ण सामाजिक आर्थिक मुद्दों पर सुझाव दिये। परिषद के सुझावों पर आधारित जो योजनाएं व नीतियां कार्यरूप में सामने आयीं, उनमें राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना, सूचना का अधिकार, राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य योजना, मिड डे मील स्कीम, जवाहरलाल नेहरू शहरी नवीकरण मिशन और राष्ट्रीय पुनर्वास नीति शामिल हैं। महात्मा गांधी की वर्षगांठ के दिन 2 अक्टूबर 2007 को सोनिया गांधी ने संयुक्त राष्ट्र संघ को संबोधित किया। आज, श्रीमती गांधी हिंदुस्तान की सियासत में सबसे ताकतवर शख्सियतों में से एक हैं जिन्हे फोर्ब्स पत्रिका ने दुनिया की तीन सबसे ताकतवर महिलाओं में शुमार किया है। वे साल 2007 और 2008 के लिए टाईम मैगजीन की लिस्ट में दुनिया के 100 ताकतवर शख्सियतों में भी जगह बना चुकी हैं।

जनकल्याणकारी योजनाएँ

राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष के तौर पर उनकी पहल पर सरकार ने कई जनकल्याणकारी योजनाओं को लागू किया। उन्हें पर्यावरण के मुद्दों, कमजोर युवकों और महिला सशक्तिकरण और बच्चों के कल्याण के लिए चलाई जा रही योजनाओं में खासी दिलचस्पी है। इनमें से कुछ अहम हैं-

  • राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार योजना
  • सूचना का अधिकार
  • राष्ट्रीय ग्रामीण स्वास्थ्य मिशन
  • दोपहर का भोजन
  • जवाहरलाल अरबन रिन्यूएल मिशन
  • राष्ट्रीय पुनर्वास नीति आदि।

शौक

उन्होने अपने पति पर दो किताब-राजीव और राजीव्स वर्ल्ड भी लिखी हैं। इसके अलावा दो भाग में समाहित पुस्तक - 'फ़्रीडम्स डॉटर' एवं 'टू एलोन, टू टुगेदर' का सम्पादन किया है। जिनमें पंडित जवाहरलाल नेहरू और इंदिरा गांधी के बीच, 1922 से 1964 के दौरान हुए पत्राचार का संकलन किया गया है। इसके आलावा श्रीमती गांधी को हिंदुस्तानी, शास्त्रीय और आदिवासी कला का भी शौक है। वे हथकरघा, हस्तकला, भारतीय समकालीन साहित्य, पारंपरिक और आदिवासी कला, और लोकगीतों में भी दिलचस्पी रखती हैं। उन्होने तैलचित्रों के संरक्षण विषय में बकायदा नेशनल म्यूजियम से डिप्लोमा भी हासिल किया है।

कांग्रेस अध्यक्ष

सोनिया गांधी देश की सबसे पुराने राजनीतिक दल कांग्रेस के सबसे लंबे समय तक रहने वाली कांग्रेस अध्यक्ष बन गयी है। इस मामले में इन्होंने नेहरू-गांधी परिवार के सारे रिकॉर्ड को तोड़ दिया है। वर्ष 1885 ईस्वी में कांग्रेस की स्थापना मुंबई में हुई। इसके पहले अध्यक्ष बने डब्ल्यू सी बनर्जी। इस पार्टी के 1885 ईस्वी में स्थापना के बाद के 125 वर्षों के इतिहास में 35 साल नेहरू-गांधी परिवार के लोग अध्यक्ष रहे। इसमें मोतीलाल नेहरू 2 साल, जवाहरलाल नेहरू 6 साल,इंदिरा गांधी 8 साल,राजीव गांधी 7 साल जबकि सोनिया गांधी 12 साल कांग्रेस के अध्यक्ष के पद पर रहे। अब सोनिया गांधी पुन: और 4 साल के लिए कांग्रेस की अध्यक्ष चुन ली गयी हैं। अपने पूरे राजनीतिक जीवन में कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी ने त्याग और सेवा की प्राचीन भारतीय परंपरा का उदाहरण प्रस्तुत किया है। उन्होने सत्ता के लिए राजनीति की परंपरा को तोड़कर एक नया मिसाल कायम की है। श्रीमती गांधी दरअसल पंडित नेहरु, इंदिरा गांधी और राजीव गांधी के उन्ही कामों को आगे बढ़ा रही हैं जिसका मकसद हिंदुस्तान को एक आधुनिक, ताकतवर और गतिशील देश बनाना है।

अविचलित साहसी

सोनिया जी ने अपने भीतर तक भारत जिया है। वे भारत की सभ्यता, संस्कृति, कला, विश्वास, रीति-रिवाज में बसी हुई हैं। वे भारत के महान स्वतंत्रता सेनानियों के परिवार की बहू हैं, उन्होंने पं. मोतीलाल नेहरू, श्रीमती इन्दिरा गांधी व अपने भारत रत्न पति स्व. राजीव गांधी के आदर्शों, परम्पराओं को बड़ी शिद्दत से महसूस किया है। वे भारत आयीं तो देश श्रीमती इन्दिरा गांधी के नेतृत्व में दुनिया के विकासवाद में अपने होने का एहसास करा रहा था। सारी दुनिया ने इस महिला की पद के प्रति निर्लिप्त भावना को देखा है, एक अविचलित साहसी की तरह वर्षों शोक में डूबी उनकी भारतीयता का आदर्श देखा हैं, किन्तु भारत की जनता ने, कांग्रसजनों ने, कांग्रेस को पुनः जागृत करने का उनसे अनुरोध किया, काफी दबाव और सोच-विचार के बाद वे भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस की अध्यक्ष बनीं।


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