सिंहासन बत्तीसी बाईस

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सिंहासन बत्तीसी एक लोककथा संग्रह है। महाराजा विक्रमादित्य भारतीय लोककथाओं के एक बहुत ही चर्चित पात्र रहे हैं। प्राचीनकाल से ही उनके गुणों पर प्रकाश डालने वाली कथाओं की बहुत ही समृद्ध परम्परा रही है। सिंहासन बत्तीसी भी 32 कथाओं का संग्रह है जिसमें 32 पुतलियाँ विक्रमादित्य के विभिन्न गुणों का कथा के रूप में वर्णन करती हैं।

सिंहासन बत्तीसी बाईस

एक दिन राजा विक्रमादित्य ने अपने दीवान से पूछा कि आदमी बुद्धि अपने कर्म से पाता है या अपने माता-पिता से?
दीवान ने कहा: महाराज! पूर्वजन्म में जो जैसा कर्म करता है, विधाता वैसा ही उसके भागय में लिख देता है।
राजा ने कहा: यह तुमने क्या कहा? जन्म लेते ही लड़का माता-पिता से सीखता है।
दीवान बोला: नहीं महाराज! कर्म का लिखा ही होता है।
इस पर राजा ने क्या किया कि दूर बियावान में एक महल बनवाया और उसमें अपने दीवान के, ब्राह्मण के और कोतवाल के बेटे को जन्मते ही गूंगी, बहरी और अंधी दाइयां देकर उस महल में भिजवा दिया। बारह बरस बाद उन्हें बुलाया। सबसे पहले उसने अपने बेटा से पूछा, "तुम्हारे क्या हाल हैं?"
राजकुमार ने हंसकर कहा: आपके पुण्य से सब कुशल है।
राजा ने खुश होकर मंत्री की तरफ देखा।
मंत्री ने कहा: महाराज! यह सब कर्म का लिखा है।
फिर राजा ने दीवान के बेटे को बुलाया और उससे वही सवाल किया।
उसने कहा: महाराज! संसार में जो आता है, वह जाता भी है। सो कुशल कैसी?
सुनकर राजा चुप हो गया। थोड़ी देर बाद उसने कोतवाल के बेटे को बुलाया।
कुशल पूछने पर उसने कहा: महाराज! कुशल कैसे हो? चोर चोरी करते हैं, बदनाम हम होते हैं।
इसके बाद ब्राह्मण के बेटे की बारी आयी।
उसने कहा: महाराज! दिन-दिन उमर घटती जाती है। सो कुशल कैसी?
चारों की बातें सुनकर राजा समझ गया कि दीवान का कहना ठीक था। महल में कोई सिखाने वाला नहीं था। फिर भी वे चारों सीख गये तो इसमें पूर्वजन्म के कर्मों का ही हाथ रहा होगा। राजा ने दीवान को अपने सब सरदारों का सरदार बनाया और चारों लड़कों के विवाह करके उन्हें बहुत-सा धन दिया।
पुतली बोली: राजा होकर भी जो अपनी बात पर हठ न करे और सही बात को माने, वहीं सिंहासन पर पांव रखे।

अगले दिन तेईसवीं पुतली करुणवती ने राजा को रोका और अपनी कहानी सुनायी।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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