श्रीमद्भागवत महापुराण दशम स्कन्ध अध्याय 36 श्लोक 13-26

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दशम स्कन्ध: षट्त्रिंशोऽध्यायः (36) (पूर्वार्ध)

श्रीमद्भागवत महापुराण: दशम स्कन्ध: षट्त्रिंशोऽध्यायः श्लोक 13-26 का हिन्दी अनुवाद

भगवान ने जब देखा कि वह अब मुझ पर प्रहार करना ही चाहता है, तब उन्होंने उनके सींग पकड़ लिये और उसे लात मारकर ज़मीन पर गिरा दिया और फिर पैरों से दबाकर इस प्रकार उसका कचूमर निकाला, जैसे कोई गीला कपड़ा निचोड़ रहा हो। इसके बाद उसी का सींग उखाड़कर उसको खूब पीटा, जिससे वह पड़ा ही रहा गया । परीक्षित्! इस प्रकार वह दैत्य मुँह से खून उगलता और गोबर-मूत करता हुआ पैर पटकने लगा। उसकी आँखें उलट गयीं और उसने बड़े कष्ट के साथ प्राण छोड़े। अब देवता लोग भगवान पर फूल बरसा-बरसाकर उनकी स्तुति करने लगे । जब भगवान श्रीकृष्ण ने इस प्रकार बैल के रूप में आने-वाले अरिष्टासुर को मार डाला, तब सभी गोप उनकी प्रशंसा करने लगे। उन्होंने बलरामजी के साथ गोष्ठ में प्रवेश किया और उन्हें देख-देखकर गोपियों के नयन-मन आनन्द से भर गये ।

परीक्षित्! भगवान की लीला अत्यन्त अद्भुत है। इधर जब उन्होंने अरिष्टासुर को मार डाला, तब भगवन्मय नारद, जो लोगों को शीघ्र-से-शीघ्र भगवान का दर्शन कराते रहते हैं, कंस के पास पहुँच। उन्होंने उससे कहा— ‘कंस! जो कन्या तुम्हारे हाथ से छूटकर आकाश में चली गयी, वह तो यशोदा की पुत्री थी। और व्रज में जो श्रीकृष्ण हैं, वे देवकी के पुत्र हैं। वहाँ जो बलरामजी हैं, वे रोहिणी के पुत्र हैं। वसुदेव ने तुमसे डरकर अपने मित्र नन्द के पास उन दोनों को रख दिया है। उन्होंने ही तुम्हारे अनुचर दैत्यों का वध किया है।’ यह बात सुनते ही कंस की एक-एक इन्द्रिय क्रोध के मारे काँप उठी । उसने वसुदेवजी को मार डालने के तुरंत तीखी तलवार उठा ली, परन्तु नारदजी ने रोक दिया। जब कंस को यह मालूम हो गया कि वसुदेव के लड़के ही हमारी मृत्यु के कारण हैं, तब उसने देवकी और वसुदेव दोनों ही पति-पत्नी को हथकड़ी और बेड़ी से जकड़कर फिर जेल में डाल दिया। जब देवर्षि नारद चले गये, तब कंस ने केशी को बुलाया और कहा—‘तुम व्रज में जाकर बलराम और कृष्ण को मार डालो।’ वह चला गया। इसके बाद कंस ने मुष्टिक, चाणूर, शल, तोशल आदि पहलवानों, मन्त्रियों और महावतों को बुलाकर कहा—‘वीरवर चाणूर और मुष्टिक! तुम लोग ध्यानपूर्वक मेरी बात सुनो । वसुदेव के दो पुत्र बलराम और कृष्ण नन्द के व्रज में रहते हैं। उन्हीं के हाथ से मेरी मृत्यु बतलायी जाती है । अतः जब वे यहाँ आवें, तब तुमलोग उन्हें कुश्ती लड़ने-लड़ाने के बहाने मार डालना। अब तुम लोग भाँति-भाँति के मंच बनाओ और उन्हें अखाड़े के चारों ओर गोल-गोल सजा दो। उन पर बैठकर नगरवासी और देश की दूसरी प्रजा इस स्वच्छंद दंगल को देखें । महावत्! तुम बड़े चतुर हो। देखो भाई! तुम दंगल के घेरे के फाटक पर ही अपने कुवलयापीड हाथी को रखना और जब मेरे शत्रु उधर से निकलें, तब उसी के द्वारा उन्हें मरवा डालना । इसी चतुर्दशी को विधिपूर्वक धनुषयज्ञ प्रारम्भ कर दो और उसकी सफलता के लिये वरदानी भूतनाथ भैरव को बहुत-से पवित्र पशुओं की बलि चढाओ ।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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