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*मनुस्मृति<ref>मनुस्मृति (2.21</ref> के अनुसार मध्यदेश (बीच के देश) की सीमा उत्तर में [[हिमालय]], दक्षिण में [[विन्ध्याचल पर्वत|विन्ध्याचल]], पश्चिम में विनशन ([[राजस्थान]] की मरुभूमि में सरस्वती के लुप्त होने का स्थान) तथा पूर्व में [[गंगा]]- [[यमुना]] के संगम स्थल प्रयाग तक विस्तृत है।  
 
*वास्तव में यह मध्यदेश आर्यावर्त का मध्य भाग है।  
 
*वास्तव में यह मध्यदेश आर्यावर्त का मध्य भाग है।  
 
*'मध्यदेश' शब्द वैदिक संहिताओं में नहीं मिलता है, परन्तु [[ऐतरेय ब्राह्मण]] में इसकी झलक मिलती है।  
 
*'मध्यदेश' शब्द वैदिक संहिताओं में नहीं मिलता है, परन्तु [[ऐतरेय ब्राह्मण]] में इसकी झलक मिलती है।  

12:42, 27 जुलाई 2011 का अवतरण

  • मनुस्मृति[1] के अनुसार मध्यदेश (बीच के देश) की सीमा उत्तर में हिमालय, दक्षिण में विन्ध्याचल, पश्चिम में विनशन (राजस्थान की मरुभूमि में सरस्वती के लुप्त होने का स्थान) तथा पूर्व में गंगा- यमुना के संगम स्थल प्रयाग तक विस्तृत है।
  • वास्तव में यह मध्यदेश आर्यावर्त का मध्य भाग है।
  • 'मध्यदेश' शब्द वैदिक संहिताओं में नहीं मिलता है, परन्तु ऐतरेय ब्राह्मण में इसकी झलक मिलती है।
  • इसमें कुरु, पंचाल, वत्स तथा उशीनगर देश के लोग बसते थे।
  • आगे चलकर अन्तिम दो वंशों का लोप हो गया और मध्यदेश मुख्यत: कुरु-पचांलों का देश बन गया।
  • बौद्ध साहित्य के अनुसार मध्यदेश पश्चिम में स्थूण (थानेश्वर) से लेकर पूर्व में जंगल (राजमहल की पहाड़ियों) तक विस्तृत था।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मनुस्मृति (2.21