"इलाहाबाद क़िला" के अवतरणों में अंतर

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*इलाहाबाद क़िला [[उत्तर प्रदेश]] के [[इलाहाबाद]] शहर में स्थित है।  
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*[[गंगा नदी|गंगा]]-[[यमुना नदी|यमुना]] के पवित्र [[संगम इलाहाबाद|संगम]] के किनारे स्थित इस भव्य क़िले का निर्माण बादशाह [[अकबर]] ने 1583 ई. में करवाया था।
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|चित्र का नाम=इलाहाबाद का क़िला
*यह क़िला दोनों नदियों के संगम स्थल पर ख़ासतौर पर निर्मित किया गया था। इस क़िले में तीन बड़ी गैलरी हैं जहाँ पर ऊँची मीनारें हैं।
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|विवरण='इलाहाबाद का क़िला' प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत है, जो [[इलाहाबाद]] में [[गंगा]] और [[यमुना नदी]] के [[संगम (इलाहाबाद)|संगम]] स्थल पर स्थित है।
*आज यह क़िला सशस्त्र सेना के अधीन है तथा पर्यटकों को इसमें स्थित '''पातालपुरी मंदिर''' एवं अक्षय वट-वृक्ष तक जाने की अनुमति है।
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|राज्य=[[उत्तर प्रदेश]]
*भारतीय इतिहास के प्राचीन [[बौद्ध]] काल में [[प्रयाग]] की महत्ता का प्रमाण अशोक स्तंभ के ऊपर उत्कीर्ण अभिलेखों से भी मिलता है, जो आज भी प्राचीन इलाहाबाद क़िले के मुख्य द्वार के भीतर मौजूद है।
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'''इलाहाबाद क़िला''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Allahabad Fort'') [[उत्तर प्रदेश]] के [[इलाहाबाद]] शहर में स्थित है। अपने समय में सबसे उत्कृष्ट समझे जाने वाले इस क़िले का निर्माण 1583 ई. में किया गया था। यह [[मुग़ल]] [[अकबर|बादशाह अकबर]] के द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा क़िला है। अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाने वाला यह क़िला [[गंगा]] और [[यमुना]] के संगम पर स्थित है। इस क़िले का इस्तेमाल अब [[भारतीय सेना]] द्वारा किया जाता है। आम नागरिकों के लिए कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी हिस्सों में प्रवेश वजिर्त है। ऐसा कहा जाता है कि क़िले में अक्षय वट यानी अमर वृक्ष है। हालांकि यह वृक्ष क़िले के प्रतिबंधित क्षेत्र में है, जहाँ पहुंचने के लिए अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।
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==इतिहास==
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इलाहाबाद क़िले की स्थापना मुग़ल बादशाह अकबर ने की थी। हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। समकालीन लेखक [[अब्दुल कादिर बदायूंनी]] ने 'मुंतखवुल-तवारीख' में लिखा है कि- "क़िले की नींव सन 1583 में डाली गई थी। नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर न होने से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था।" वे लिखते हैं कि अनियमित नक्शे पर क़िले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है। क़िले का कुल क्षेत्रफल तीस हज़ार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत छह करोड़, 17 लाख, 20 हज़ार 214 रुपये आयी थी।
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==उद्देश्य तथा आधिपत्य==
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[[चित्र:Allahabad-Fort-1.jpg|thumb|250px|left|इलाहाबाद क़िला]]
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[[अकबर]] ने इस किले का निर्माण [[मुग़ल काल]] में पूर्वी भारत (वर्तमान में पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] और [[बिहार]]) से [[अफ़ग़ान]] विद्रोह को खत्म करने के लिए किया था। सन 1773 में [[अंग्रेज़]] इस किले में आए और सन 1765 में [[बंगाल (आज़ादी से पूर्व)|बंगाल]] के [[शुजाउद्दौला|नवाब शुजाउद्दौला]] के हाथ 50 लाख रुपये में बेच दिया। सन 1798 में नवाब शुजात अली और अंग्रेज़ों में एक संधि के बाद क़िला फिर अंग्रेज़ों के कब्जे में आ गया। आज़ादी के बाद [[भारत सरकार]] का क़िले पर अधिकार हुआ। क़िले में पारसी भाषा में एक [[शिलालेख]] भी है, जिसमें क़िले की नींव पड़ने का वर्ष 1583 ई. दिया है।
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====स्थापत्य====
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क़िले में एक 'जनाना महल' है, जिसे 'जहांगीर महल' भी कहते हैं। [[मुग़ल]] शासकों ने क़िले में बड़े फेरबदल कराये और फिर अंग्रेज़ों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफ़ी तोड़-फोड़ की। इससे क़िले को काफ़ी क्षति पहुंची।
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==संरक्षण कार्य==
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कई शासकों और अंग्रेज़ों को सुरक्षित रखने तथा आज भी देश की सेना को शरण देने वाले इस क़िले की अवस्था अब जर्जर हो गई है। इसकी दीवारों पर [[बरगद]], [[नीम]], [[पीपल]] आदि ने जड़ें जमा ली हैं। घास-फूंस और झाड़ियां भी फैल गई हैं। दीवारों पर निकले पेड़ पौराणिक अक्षय वट की जड़ों की उपज हैं। इनमें कुछ पेड़ ऐसे भी हैं, जो पक्षियों के कारण दरारों में जम गए हैं। जल्द इन पेड़ों को नहीं काटा गया तो ये क़िले की दीवारों के लिए खतरा बन जाएंगे। चूंकि क़िला इस समय [[भारतीय सेना]] के कब्जे में है, इसलिए उसकी इजाजत के बगैर पुरातत्त्व विभाग सौंदर्यीकरण या मरम्मत भी नहीं करा सकता है।
  
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इलाहाबाद क़िला
इलाहाबाद का क़िला
विवरण 'इलाहाबाद का क़िला' प्रसिद्ध ऐतिहासिक इमारत है, जो इलाहाबाद में गंगा और यमुना नदी के संगम स्थल पर स्थित है।
राज्य उत्तर प्रदेश
ज़िला इलाहाबाद
निर्माता मुग़ल बादशाह अकबर
निर्माण काल 1583 ई.
प्रसिद्धि ऐतिहासिक इमारत
रेलवे स्टेशन इलाहाबाद
Map-icon.gif इलाहाबाद संग्रहालय, इलाहाबाद का इतिहास, इलाहाबाद पर्यटन, इलाहाबाद विश्वविद्यालय, इलाहाबाद उच्च न्यायालय
अन्य जानकारी अकबर ने इस किले का निर्माण मुग़ल काल में पूर्वी भारत (वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार) से अफ़ग़ान विद्रोह को खत्म करने के लिए किया था।

इलाहाबाद क़िला (अंग्रेज़ी: Allahabad Fort) उत्तर प्रदेश के इलाहाबाद शहर में स्थित है। अपने समय में सबसे उत्कृष्ट समझे जाने वाले इस क़िले का निर्माण 1583 ई. में किया गया था। यह मुग़ल बादशाह अकबर के द्वारा बनाया गया सबसे बड़ा क़िला है। अपनी विशिष्ट बनावट, निर्माण और शिल्पकारिता के लिए जाना जाने वाला यह क़िला गंगा और यमुना के संगम पर स्थित है। इस क़िले का इस्तेमाल अब भारतीय सेना द्वारा किया जाता है। आम नागरिकों के लिए कुछ हिस्सों को छोड़कर बाकी हिस्सों में प्रवेश वजिर्त है। ऐसा कहा जाता है कि क़िले में अक्षय वट यानी अमर वृक्ष है। हालांकि यह वृक्ष क़िले के प्रतिबंधित क्षेत्र में है, जहाँ पहुंचने के लिए अधिकारियों से विशेष अनुमति लेनी पड़ती है।

इतिहास

इलाहाबाद क़िले की स्थापना मुग़ल बादशाह अकबर ने की थी। हालांकि इस पर इतिहासकारों में मतभेद हैं। समकालीन लेखक अब्दुल कादिर बदायूंनी ने 'मुंतखवुल-तवारीख' में लिखा है कि- "क़िले की नींव सन 1583 में डाली गई थी। नदी की कटान से यहां की भौगोलिक स्थिति स्थिर न होने से इसका नक्शा अनियमित ढंग से तैयार किया गया था।" वे लिखते हैं कि अनियमित नक्शे पर क़िले का निर्माण कराना ही इसकी विशेषता है। क़िले का कुल क्षेत्रफल तीस हज़ार वर्ग फुट है। इसके निर्माण में कुल लागत छह करोड़, 17 लाख, 20 हज़ार 214 रुपये आयी थी।

उद्देश्य तथा आधिपत्य

इलाहाबाद क़िला

अकबर ने इस किले का निर्माण मुग़ल काल में पूर्वी भारत (वर्तमान में पूर्वी उत्तर प्रदेश और बिहार) से अफ़ग़ान विद्रोह को खत्म करने के लिए किया था। सन 1773 में अंग्रेज़ इस किले में आए और सन 1765 में बंगाल के नवाब शुजाउद्दौला के हाथ 50 लाख रुपये में बेच दिया। सन 1798 में नवाब शुजात अली और अंग्रेज़ों में एक संधि के बाद क़िला फिर अंग्रेज़ों के कब्जे में आ गया। आज़ादी के बाद भारत सरकार का क़िले पर अधिकार हुआ। क़िले में पारसी भाषा में एक शिलालेख भी है, जिसमें क़िले की नींव पड़ने का वर्ष 1583 ई. दिया है।

स्थापत्य

क़िले में एक 'जनाना महल' है, जिसे 'जहांगीर महल' भी कहते हैं। मुग़ल शासकों ने क़िले में बड़े फेरबदल कराये और फिर अंग्रेज़ों ने भी इसे अपने माकूल बनाने के लिए काफ़ी तोड़-फोड़ की। इससे क़िले को काफ़ी क्षति पहुंची।

संरक्षण कार्य

कई शासकों और अंग्रेज़ों को सुरक्षित रखने तथा आज भी देश की सेना को शरण देने वाले इस क़िले की अवस्था अब जर्जर हो गई है। इसकी दीवारों पर बरगद, नीम, पीपल आदि ने जड़ें जमा ली हैं। घास-फूंस और झाड़ियां भी फैल गई हैं। दीवारों पर निकले पेड़ पौराणिक अक्षय वट की जड़ों की उपज हैं। इनमें कुछ पेड़ ऐसे भी हैं, जो पक्षियों के कारण दरारों में जम गए हैं। जल्द इन पेड़ों को नहीं काटा गया तो ये क़िले की दीवारों के लिए खतरा बन जाएंगे। चूंकि क़िला इस समय भारतीय सेना के कब्जे में है, इसलिए उसकी इजाजत के बगैर पुरातत्त्व विभाग सौंदर्यीकरण या मरम्मत भी नहीं करा सकता है।


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वीथिका

टीका टिप्पणी और संदर्भ

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