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*चतुर्थी तिथि के स्वामी [[गणेश]] हैं। यह तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है और इस तिथि का विशेष नाम ‘खला’ है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।
 
*चतुर्थी तिथि के स्वामी [[गणेश]] हैं। यह तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है और इस तिथि का विशेष नाम ‘खला’ है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।
 
* यह तिथि [[पौष]] मास में शून्य होती है।  
 
* यह तिथि [[पौष]] मास में शून्य होती है।  
*यदि चतुर्थी  गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी  सिद्धिदा अर्थात सफलतादायक होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है।
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*यदि चतुर्थी  गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी  सिद्धिदा अर्थात् सफलतादायक होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है।
 
* चतुर्थी  तिथि की दिशा नैऋत्य है।  
 
* चतुर्थी  तिथि की दिशा नैऋत्य है।  
 
*शुक्ल पक्ष में शिव पूजन अशुभ, किन्तु कृष्ण पक्ष में शिव पूजन  शुभ है।
 
*शुक्ल पक्ष में शिव पूजन अशुभ, किन्तु कृष्ण पक्ष में शिव पूजन  शुभ है।
*चतुर्थी चन्द्रमा यह चौथी कला है, जिसका अमृत कृष्ण पक्ष में जल के देवता वरूण पीते हैं तथा शुक्ल पक्ष में वापस कर देते हैं।
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*चतुर्थी चन्द्रमा यह चौथी कला है, जिसका अमृत कृष्ण पक्ष में जल के देवता वरुण पीते हैं तथा शुक्ल पक्ष में वापस कर देते हैं।
 
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07:51, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

  • सूर्य और चन्द्र का अन्तर 37° से 48° तक होता है, उस समय शुक्ल पक्ष की चतुर्थी और 117° से 228° तक अन्तर होने पर कृष्ण पक्ष की चतुर्थी होती है।
  • चतुर्थी को पालि भाषा में ‘चतुत्थी’, अर्धमागधी प्राकृत में ‘चउत्थी’ तथा अपभ्रंश होकर ‘चौथी’ कहलाती है। हिन्दी में इसका स्वरूप घिस कर केवल ‘चौथ’ या ‘चौइथ’ रह जाता है।
  • चतुर्थी तिथि के स्वामी गणेश हैं। यह तिथि 'रिक्ता संज्ञक' कहलाती है और इस तिथि का विशेष नाम ‘खला’ है। अतः इसमें शुभ कार्य वर्जित रहते हैं।
  • यह तिथि पौष मास में शून्य होती है।
  • यदि चतुर्थी गुरुवार को हो तो मृत्युदा होती है और शनिवार की चतुर्थी सिद्धिदा अर्थात् सफलतादायक होती है और चतुर्थी के 'रिक्ता' होने का दोष उस विशेष स्थिति में लगभग समाप्त हो जाता है।
  • चतुर्थी तिथि की दिशा नैऋत्य है।
  • शुक्ल पक्ष में शिव पूजन अशुभ, किन्तु कृष्ण पक्ष में शिव पूजन शुभ है।
  • चतुर्थी चन्द्रमा यह चौथी कला है, जिसका अमृत कृष्ण पक्ष में जल के देवता वरुण पीते हैं तथा शुक्ल पक्ष में वापस कर देते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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