महालया

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अश्विन के महीने में पितृ पक्ष यानी पितरों को समर्पित 16 दिन की लंबी अवधि होती है। इस अवधि या पितृ पक्ष का अंतिम दिन महालया के नाम से जाना जाता है। यह दिन अमावस्या को मनाया जाता है, जो कृष्ण पक्ष के अंत का प्रतीक है। हिंदुओं का मानना ​है कि हर साल इसी दिन देवी दुर्गा धरती पर आती हैं। धार्मिक रूप से महालया का दिन अत्यंत महत्वपूर्ण होता है। इस दिन से ही 10 दिवसीय वार्षिक दुर्गा पूजा उत्सव की शुरुआत होती है। महालया को सर्वपितृ अमावस्या के नाम से भी जाना जाता है।

अनुष्ठान

पितृ पक्ष का अंतिम दिन पितरों को समर्पित होता है। इस दिन लोग तर्पण करते हैं, जिसमें पूर्वजों या पितरों की आत्मा की शांति के निमित्त जरूरी कार्य किये जाते हैं। पश्चिम बंगाल में महालया का विशेष महत्व है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं और अपने घरों में देवी दुर्गा के स्वागत की पूरी तैयारी करते हैं। महालया पर कहीं-कहीं लोग महिषासुरमर्दिनी की रचना भी सुनते या पढ़ते हैं।[1]

महत्व

पूर्वजों को श्रद्धांजलि देने के अलावा यह दिन सत्य और साहस की शक्ति और बुराई पर अच्छाई की जीत को उजागर करने के लिए मनाया जाता है। हिंदू पौराणिक कथाओं के अनुसार यह माना जाता है कि देवी दुर्गा सभी सर्वोच्च देवताओं की शक्तियों द्वारा महिषासुर नाम के एक राक्षस को मारने के लिए अवतरित हुई थीं।

गरुड़पुराण, वायुपुराण,अग्निपुराण आदि शास्त्रों के अनुसार- महालया जो पितृ पक्ष का अंतिम दिन है, जो लोग पितृ पक्ष के 14 दिनों तक श्राद्ध, तर्पण आदि नहीं कर पाते हैं, वे महालया के दिन ही पिंडदान करते हैं। जिन्हें पितृ के मृत्यु की तिथि याद नहीं है, वे सभी इस दिन उनका श्राद्ध आदि सम्पन्न करते हैं। इस तरह अज्ञात तिथि वालों का श्राद्ध, तर्पण इसी महालया के दिन ही किया जाता है। महालया शब्द का आक्षरिक अर्थ आनन्दनिकेतन है। अति प्राचीन काल से मान्यता है कि आश्विन कृष्ण पक्ष प्रतिपदा से आश्विन कृष्ण पंचदशी अर्थात् अमावस्या तक प्रेतलोक से पितृपुरुष के आत्मा मत्युलोक अर्थात् धरती में आते हैं। अपने प्रियजनों के माया में और महालया के दिन पितृ लोगों आना सम्पूर्ण होता है।

इतिहास

पौराणिक मान्‍यताओं के अनुसार ब्रह्मा, विष्णु और महेश ने अत्‍याचारी राक्षस महिषासुर के संहार के लिए मां दुर्गा का सृजन किया। महिषासुर को वरदान मिला हुआ था कि कोई देवता या मनुष्‍य उसका वध नहीं कर पाएगा। ऐसा वरदान पाकर महिषासुर राक्षसों का राजा बन गया और उसने देवताओं पर आक्रमण कर दिया। देवता युद्ध हार गए और देवलोकर पर महिषासुर का राज हो गया। महिषासुर से रक्षा करने के लिए सभी देवताओं ने भगवान विष्णु के साथ आदि शक्ति की आराधना की। इस दौरान सभी देवताओं के शरीर से एक दिव्य रोशनी निकली, जिसने देवी दुर्गा का रूप धारण कर लिया। शस्‍त्रों से सुसज्जित मां दुर्गा ने महिषासुर से नौ दिनों तक भीषण युद्ध करने के बाद 10वें दिन उसका वध कर दिया। दरसअल, महालया मां दुर्गा के धरती पर आगमन का द्योतक है। मां दुर्गा को शक्ति की देवी माना जाता है।[1]

पूजा विधि

पितृ पक्ष का अंतिम दिन परिवार के मृत सदस्यों यानी पितरों को समर्पित होता है। इस दिन लोग तर्पण करते हैं, जो कि एक अनुष्ठान होता है जिसमें पूर्वजों को भोग चढ़ाया जाता है। साथ ही गंगा या किसी अन्य पवित्र नदी में डुबकी लगाई जाती है। पश्चिम बंगाल के लोगों के लिए महालया का विशेष महत्व है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठ जाते हैं और अपने-अपने घरों में देवी दुर्गा के स्वागत की तैयारियों में जुट जाते हैं। इस खास दिन लोग ‘महिषासुरमर्दिनी’ पाठ को भी सुनते हैं।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 कब है महालया? डेट, शुभ मुहूर्त, परंपरा, महत्व (हिंदी) prabhatkhabar.com। अभिगमन तिथि: 20 सितंबर, 2021।

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