छान्दोग्य उपनिषद अध्याय-1 खण्ड-5

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  • इस खण्ड में 'उद्गीथ' और 'प्रणव' को एक रूप ही माना गया है।
  • सूर्य ही उद्गीथ है, प्रणव है।
  • यह सतत गतिशील रहकर 'ॐ' का उच्चारण करता रहता है।
  • आगे कहा गया है कि मुख्य प्राण के रूप में ही उद्गीथ की उपासना करनी चाहिए।


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