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[[चित्र:Toy-Train-Darjeeling-1.jpg|thumb|250px|left|टॉय ट्रेन, [[दार्जिलिंग]]<br />Toy Train, Darjeeling]] | [[चित्र:Toy-Train-Darjeeling-1.jpg|thumb|250px|left|टॉय ट्रेन, [[दार्जिलिंग]]<br />Toy Train, Darjeeling]] | ||
− | *ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से गुज़रने वाली ये ट्रेनें बहुत हवादार होती है। इस में मौजूद खिड़कियों से जब आप बाहर की ओर झांक कर देखेंगे, तो लगेगा मानो कोई | + | *ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से गुज़रने वाली ये ट्रेनें बहुत हवादार होती है। इस में मौजूद खिड़कियों से जब आप बाहर की ओर झांक कर देखेंगे, तो लगेगा मानो कोई फ़िल्म चल रही हो। |
*अंधेरी गुफाओं से होकर जब ये ट्रेनें गुज़रती है, तो बेहद रोमांचक और थोड़ा डरावना भी लगता है। | *अंधेरी गुफाओं से होकर जब ये ट्रेनें गुज़रती है, तो बेहद रोमांचक और थोड़ा डरावना भी लगता है। | ||
*टॉय ट्रेनें एक-दो नहीं, बल्कि अनेक गुफाओं से गुज़रती है। | *टॉय ट्रेनें एक-दो नहीं, बल्कि अनेक गुफाओं से गुज़रती है। |
10:36, 28 जुलाई 2011 का अवतरण
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- दार्जिलिंग शहर की एक पहचान और भी है। वह है विश्व धरोहरों की सूची में शामिल टॉय ट्रेन यानी खिलौना गाड़ी।
- टॉय ट्रेन दार्जिलिंग के पर्यटकों के आकर्षण का बड़ा केंद्र है और छोटी लाइन की पटरियों पर यह दार्जिलिंग से न्यूजलपाईगुड़ी तक का सफ़र करती है।
- टाइगर हिल का मुख्य आनंद टॉय ट्रेन पर चढ़ाई करने में है। आपको हर सुबह पर्यटक इस पर चढ़ाई करते हुए मिल जाएंगे।
- यह ट्रेन दिखने में बिल्कुल खिलौना की तरह ही ख़ूबसूरत होते है। इसलिए इन्हे टॉय ट्रेन कहा जाता है।
- हालांकि टॉय ट्रेन की रफ़्तार बहुत धीमी होती है पर इस पर सवारी करने का आनन्द ही अनोखा है।
- ऊँचे-ऊँचे पहाड़ों से गुज़रने वाली ये ट्रेनें बहुत हवादार होती है। इस में मौजूद खिड़कियों से जब आप बाहर की ओर झांक कर देखेंगे, तो लगेगा मानो कोई फ़िल्म चल रही हो।
- अंधेरी गुफाओं से होकर जब ये ट्रेनें गुज़रती है, तो बेहद रोमांचक और थोड़ा डरावना भी लगता है।
- टॉय ट्रेनें एक-दो नहीं, बल्कि अनेक गुफाओं से गुज़रती है।
टॉय ट्रेन का सफ़र
दार्जिलिंग, कर्सियांग, सिलीगुड़ी से विष्व की सबसे छोटी रेल लाइन 'टॉय ट्रेन' से जुड़ी है। टॉय ट्रेन 7408 फीट की ऊँचाई पर स्थित धूम स्टेषन से दार्जिलिंग स्टेशन पहुँचने से पहले विष्व प्रसिद्ध बतासिया लूप से बर्फ़ ढ़की पर्वतमाला कंचनजंगा का मनोरम दृश्य दिखाती हुई नीचे उतरती है। शायद इस रेल के सफ़र का रोमांचक एहसास पाने के बाद प्रसिद्ध अंग्रेजी साहित्यकार तथा लेखक मार्क टवेन ने 1896 में लिखे अपने पुस्तक में उद्गार इस तरह व्यक्त किए थे कि यह यात्रा इतनी रोमांचक, उत्तेजना पूर्ण और मुग्ध करनेवाली है कि इसे आठ घंटे के बजाये हफ्तेभर कर दिया जाना चाहिए। यहाँ सभी क्षेत्रों में यातायात की अच्छी सुविधा भी है। बस और टैक्सियों से सिलीगुडी से दार्जिलिंग, और सिलीगुडी से कालेम्पोंग का सफ़र दोनों ही लगभग तीन-तीन घंटों का है जो अत्यंत मनमोहक और आनंददायक सिद्ध होता है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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