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पत्र पेटिका या लेटरबॉक्स पत्र संचार विभाग का महत्वपूर्ण अंग है। इसके माध्यम से ही पत्र [[डाक|डाक विभाग]] को प्राप्त होते हैं। यह डाक विभाग तथा लोगों के बीच सेतु का कार्य करता है। आज़ादी के बाद से ही इन्होंने पूरे [[भारत]] में अपना स्थान बना लिया है। हर क्षेत्र और गाँव में इस तरह के लेटर बॉक्स देखे जा सकते हैं। यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनका इतिहास भी बहुत पुराना है। भारत में पहले हरकारे द्वारा चिट्ठियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती थी। हरकारों को दूर-दूर तक पत्र लेकर जाना पड़ता था। आज उनका स्थान [[डाकिया|डाकियों]] ने ले लिया है और चिट्ठी इन डाकियों को लेटर बॉक्स के माध्यम से मिलती हैं। आज के समय में संचार के आधुनिक माध्यम आने से शहरों में इनका प्रयोग कम हो गया है। अब लोग पत्र के स्थान पर मोबाइल के माध्यम से बात करना अधिक सुगम मानते हैं। परन्तु गाँव में जहाँ मोबाइल रखना संभव नहीं है, वहाँ इनका आज भी प्रयोग हो रहा है। <ref>{{cite web |url=http://www.meritnation.com/ask-answer/question/write-a-paragraph-on-post-box/hindi/2714451 |title=लेटरबॉक्स |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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'''पत्र पेटिका''' ([[अंग्रेज़ी]]: ''Letterbox'') अथवा 'लैटरबॉक्स' पत्र संचार विभाग का महत्वपूर्ण अंग है। इसके माध्यम से ही पत्र [[डाक|डाक विभाग]] को प्राप्त होते हैं। यह डाक विभाग तथा लोगों के बीच सेतु का कार्य करता है। आज़ादी के बाद से ही इन्होंने पूरे [[भारत]] में अपना स्थान बना लिया है। हर क्षेत्र और गाँव में इस तरह के लैटर बॉक्स देखे जा सकते हैं। यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनका इतिहास भी बहुत पुराना है। भारत में पहले हरकारे द्वारा चिट्ठियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती थी। हरकारों को दूर-दूर तक पत्र लेकर जाना पड़ता था। आज उनका स्थान [[डाकिया|डाकियों]] ने ले लिया है और चिट्ठी इन डाकियों को लैटर बॉक्स के माध्यम से मिलती हैं। आज के समय में संचार के आधुनिक माध्यम आने से शहरों में इनका प्रयोग कम हो गया है। अब लोग पत्र के स्थान पर मोबाइल के माध्यम से बात करना अधिक सुगम मानते हैं। परन्तु गाँव में जहाँ मोबाइल रखना संभव नहीं है, वहाँ इनका आज भी प्रयोग हो रहा है। <ref>{{cite web |url=http://www.meritnation.com/ask-answer/question/write-a-paragraph-on-post-box/hindi/2714451 |title=लैटरबॉक्स |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>[[चित्र:Letter box-2.jpg|thumb|left|पत्र पेटिका]]
 
==इतिहास==
 
==इतिहास==
भारत देश में डाक खाने की शुरुआत पहली बार तब हुई जब इन्हें 1856-57 में [[ब्रिटेन]] से लाया गया था। [[कोलकाता]] में आज भी तमाम पुराने लेटर बॉक्स देखने को मिल जाते हैं। पुराने शहर में आज भी विक्टोरिया के ताज के आकार वाले लेटर बॉक्स लगे हुए हैं। इसके बाद [[कमल]] के आकार के लेटर बॉक्स ने भी चर्चा बटोरी थी जिन्हें लोकप्रिय डिज़ाइनर 'जे. डब्ल्यू. पेनफोल्ड' ने तैयार किया था। इन्हें 'पेनफोल्ड लेटर बॉक्स' के नाम से भी जाना जाता है। 1866-79 के बीच सभी बक्सों को पहली बार [[लाल रंग]] से रंगा गया था। इसके बाद लाल रंग के लेटर बॉक्स खासे लोकप्रिय हुए थे। भारत में लेटर बॉक्स का इतिहास काफी पुराना है। दुनिया के कई देशों ने इस रंग को अपनाया। आज़ादी के बाद [[भारतीय डाक सेवा]] ने स्थानीय स्तर पर बने साधारण लेटर बक्सों को अपनाया। ये सभी समय और आवश्यकता के हिसाब से बदलते गए। सबसे अधिक लोकप्रिय सिलेंडर के आकार के गोल लेटर बॉक्स रहे जिन्हें अमूमन हर शहर में देखा जा सकता है। इस तरह के बक्सों को डिज़ाइन करने का श्रेय शेफील्ड के 'थॉमस सुटी एंड संस' को जाता है जिन्होंने 1840 में ऐसे 50 बक्से बनाए थे। भारत ने इस डिज़ाइन को काफी बाद में अपनाया। इस तरह के सभी लेटर बॉक्स सुटी की डिज़ाइन की भारतीय नकल हैं जिन्हें स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया। इस तरह से लेटर बॉक्स का विकास होता चला गया जिसके बाद भारत की संचार व्यवस्था में तेजी से विकास हुआ। गाँव-गाँव शहर-शहर में सड़कों पर हर जगह लेटर बॉक्स लगाये गये। <ref>{{cite web |url=http://www.bharatbolega.com/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A5%87/ |title=मैं जवान होना चाहता हूं: लेटर बॉक्स |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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भारत देश में डाक खाने की शुरुआत पहली बार तब हुई जब इन्हें 1856-57 में [[ब्रिटेन]] से लाया गया था। [[कोलकाता]] में आज भी तमाम पुराने लैटर बॉक्स देखने को मिल जाते हैं। पुराने शहर में आज भी विक्टोरिया के ताज के आकार वाले लैटर बॉक्स लगे हुए हैं। इसके बाद [[कमल]] के आकार के लैटर बॉक्स ने भी चर्चा बटोरी थी जिन्हें लोकप्रिय डिज़ाइनर 'जे. डब्ल्यू. पेनफोल्ड' ने तैयार किया था। इन्हें 'पेनफोल्ड लैटर बॉक्स' के नाम से भी जाना जाता है। 1866-79 के बीच सभी बक्सों को पहली बार [[लाल रंग]] से रंगा गया था। इसके बाद लाल रंग के लैटर बॉक्स खासे लोकप्रिय हुए थे। भारत में लैटर बॉक्स का इतिहास काफी पुराना है। दुनिया के कई देशों ने इस [[रंग]] को अपनाया। आज़ादी के बाद [[भारतीय डाक सेवा]] ने स्थानीय स्तर पर बने साधारण लैटर बक्सों को अपनाया। ये सभी समय और आवश्यकता के हिसाब से बदलते गए। सबसे अधिक लोकप्रिय सिलेंडर के आकार के गोल लैटर बॉक्स रहे जिन्हें अमूमन हर शहर में देखा जा सकता है। इस तरह के बक्सों को डिज़ाइन करने का श्रेय शेफील्ड के 'थॉमस सुटी एंड संस' को जाता है जिन्होंने 1840 में ऐसे 50 बक्से बनाए थे। भारत ने इस डिज़ाइन को काफी बाद में अपनाया। इस तरह के सभी लैटर बॉक्स सुटी की डिज़ाइन की भारतीय नकल हैं जिन्हें स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया। इस तरह से लैटर बॉक्स का विकास होता चला गया जिसके बाद भारत की संचार व्यवस्था में तेजी से विकास हुआ। गाँव-गाँव शहर-शहर में सड़कों पर हर जगह लैटर बॉक्स लगाये गये। <ref>{{cite web |url=http://www.bharatbolega.com/%E0%A4%AE%E0%A5%88%E0%A4%82-%E0%A4%9C%E0%A4%B5%E0%A4%BE%E0%A4%A8-%E0%A4%B9%E0%A5%8B%E0%A4%A8%E0%A4%BE-%E0%A4%9A%E0%A4%BE%E0%A4%B9%E0%A4%A4%E0%A4%BE-%E0%A4%B9%E0%A5%82%E0%A4%82-%E0%A4%B2%E0%A5%87/ |title=मैं जवान होना चाहता हूं: लैटर बॉक्स |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
 
==पत्र वितरण व्यवस्था==
 
==पत्र वितरण व्यवस्था==
डाक विभाग पत्र पेटिका में डाले गए पत्रों की निकास एक दिन में कई बार करता है। यहाँ से पत्र लेकर उन्हें अलग-अलग किया जाता है तथा उन्हें उनके क्षेत्र के अनुसार भेज दिया जाता है और प्राप्त पत्रों को डाक विभाग डाकिये के द्वारा वितरित कराता है। यदि लेटर बॉक्स न हो, तो पत्र डाक विभाग तक पहुँच ही न पाएँ।  
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डाक विभाग पत्र पेटिका में डाले गए पत्रों की निकासी एक दिन में कई बार करता है। यहाँ से पत्र लेकर उन्हें अलग-अलग किया जाता है तथा उन्हें उनके क्षेत्र के अनुसार भेज दिया जाता है और प्राप्त पत्रों को डाक विभाग डाकिये के द्वारा वितरित कराता है। यदि लैटर बॉक्स न हो, तो पत्र डाक विभाग तक पहुँच ही न पाएँ।  
 
==वर्तमान में==
 
==वर्तमान में==
आज यह अपनी पहचान खो रहा है। परन्तु एक समय था जब इसे अपने क्षेत्र में लगाने के लिए लोग एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते थे। लेकिन आज यह बदहवाली का जीवन जी रहा है। देश में इंफॉरमेशन टेक्नालॉजी आने से मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ गया है। लेकिन ग़रीब तबके के लिए आज भी संदेश पत्रों को भेजने का माध्यम [[पोस्ट आफिस]] के वह लेटर बाक्स हैं जो अब धरोहर के रूप में डाक घरों के बाहर लेटर डालने वाले उन पाठकों का इंतजार कर रहे हैं जो कभी बड़े चाव से इन लेटर बाक्सों में पत्र डालकर अपनी स्मृतियां ताजा किया करते थे। लेकिन कहीं न कहीं इन डाक बाक्सों की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगने लगा है। एक ज़माना था जब लोग ऐसे पत्रों के माध्यम से शादी कार्ड, लोक पत्र, ग्रीटिंग कार्ड, जमीन संबंधी काग़जात, तथा इनामी प्रतियोगिताओं में पूछे जाने वाले सवालों के जबाव के लिए पत्रों का ही उपयोग करते थे।
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आज यह अपनी पहचान खो रहा है। परन्तु एक समय था जब इसे अपने क्षेत्र में लगाने के लिए लोग एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते थे। लेकिन आज यह बदहवाली का जीवन जी रहा है। देश में इंफॉरमेशन टेक्नालॉजी आने से मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ गया है। लेकिन ग़रीब तबके के लिए आज भी संदेश पत्रों को भेजने का माध्यम [[पोस्ट आफिस]] के वह लैटर बाक्स हैं जो अब धरोहर के रूप में डाक घरों के बाहर लैटर डालने वाले उन पाठकों का इंतजार कर रहे हैं जो कभी बड़े चाव से इन लैटर बाक्सों में पत्र डालकर अपनी स्मृतियां ताजा किया करते थे। लेकिन कहीं न कहीं इन डाक बाक्सों की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगने लगा है। एक ज़माना था जब लोग ऐसे पत्रों के माध्यम से शादी कार्ड, लोक पत्र, ग्रीटिंग कार्ड, जमीन संबंधी काग़जात, तथा इनामी प्रतियोगिताओं में पूछे जाने वाले सवालों के जबाव के लिए पत्रों का ही उपयोग करते थे।
 
==डाकिया डाक लाया==
 
==डाकिया डाक लाया==
आज पत्रों का पहले जैसा उपयोग नहीं रहा है। जिस तरह से आज मोबाइल की रिंगटोन सुनकर लोग तत्काल उसे अटैंड करने की कोशिश करते है। ऐसा ही एक ज़माना [[डाकिए]] का था जब घर के बाहर '''डाकिया डाक लाया''' का स्वर सुनाई दे जाता है। तब नवविवाहिता से लेकर घर के बुजुर्ग तक में डाकिया द्वारा लाए गए पत्र को प्राप्त करने के लिए होड़ सी मच जाया करती थी। आज डाकिया संदेश पत्रों को चुपचाप घर की दहलीज पर डालकर चला जाए तो भी कई दिनों तक उस संदेश का ध्यान ही नहीं रहता है। आज डाकिया डाक लाया जैसा [[गीत]] मोबाइल की रिंग टोन बनकर रह गया है। एक ज़माने में गांव वाले पोस्टमैन की राह संदेश के लिए देखा करते थे। आज पोस्ट मैन ही लोगों की राह देखता है। आज के बदलते संचार क्रांति के इस युग में अब गांव के लोग भी फोन और मोबाइल ही पसंद करते हैं इसका महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि पत्रों को पढऩे या लिखने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है।<ref>{{cite web |url=http://www.navabharat.com/heritage-reduced-to-just-the-letter-box.html |title=सिर्फ धरोहर बनकर रह गए लेटर बॉक्स |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
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आज पत्रों का पहले जैसा उपयोग नहीं रहा है। जिस तरह से आज मोबाइल की रिंगटोन सुनकर लोग तत्काल उसे अटैंड करने की कोशिश करते है। ऐसा ही एक ज़माना [[डाकिए]] का था जब घर के बाहर '''डाकिया डाक लाया''' का स्वर सुनाई दे जाता है। तब नवविवाहिता से लेकर घर के बुजुर्ग तक में डाकिया द्वारा लाए गए पत्र को प्राप्त करने के लिए होड़ सी मच जाया करती थी। आज डाकिया संदेश पत्रों को चुपचाप घर की दहलीज पर डालकर चला जाए तो भी कई दिनों तक उस संदेश का ध्यान ही नहीं रहता है। आज डाकिया डाक लाया जैसा [[गीत]] मोबाइल की रिंग टोन बनकर रह गया है। एक ज़माने में गांव वाले पोस्टमैन की राह संदेश के लिए देखा करते थे। आज पोस्ट मैन ही लोगों की राह देखता है। आज के बदलते संचार क्रांति के इस युग में अब गांव के लोग भी फोन और मोबाइल ही पसंद करते हैं इसका महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि पत्रों को पढ़ने या लिखने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है।<ref>{{cite web |url=http://www.navabharat.com/heritage-reduced-to-just-the-letter-box.html |title=सिर्फ धरोहर बनकर रह गए लैटर बॉक्स |accessmonthday=29 दिसम्बर |accessyear=2013 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher= |language=हिंदी}}</ref>
  
  
 
   
 
   
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
==टीका टिप्पणी और संदर्भ==
 
<references/>
 
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==बाहरी कड़ियाँ==
 
==बाहरी कड़ियाँ==
 
 
==संबंधित लेख==
 
==संबंधित लेख==
 
{{भारतीय डाक सेवा}}
 
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13:25, 29 दिसम्बर 2013 का अवतरण

पत्र पेटिका
पत्र पेटिका
विवरण पत्र पेटिका पत्र संचार विभाग का महत्वपूर्ण अंग है। इसके माध्यम से ही पत्र डाक विभाग को प्राप्त होते हैं। यह डाक विभाग तथा लोगों के बीच सेतु का कार्य करता है।
इतिहास भारत में डाक खाने की शुरुआत पहली बार तब हुई जब इन्हें 1856-57 में ब्रिटेन से लाया गया था।
रंगरूप एवं आकार सबसे अधिक लोकप्रिय सिलेंडर के आकार के गोल लैटरबॉक्स रहे जिन्हें अमूमन हर शहर में देखा जा सकता है। इस तरह के बक्सों को डिज़ाइन करने का श्रेय शेफील्ड के 'थॉमस सुटी एंड संस' को जाता है जिन्होंने 1840 में ऐसे 50 बक्से बनाए थे। 1866-79 के बीच सभी बक्सों को पहली बार लाल रंग से रंगा गया था। भारत ने इस डिज़ाइन को काफी बाद में अपनाया।
संबंधित लेख भारतीय डाक, डाक संचार, डाक टिकट, डाकघर, तार, पोस्टकार्ड
अन्य जानकारी एक ज़माना था जब लोग ऐसे पत्रों के माध्यम से शादी कार्ड, लोक पत्र, ग्रीटिंग कार्ड, जमीन संबंधी काग़जात, तथा इनामी प्रतियोगिताओं में पूछे जाने वाले सवालों के जबाव के लिए पत्रों का ही उपयोग करते थे।

पत्र पेटिका (अंग्रेज़ी: Letterbox) अथवा 'लैटरबॉक्स' पत्र संचार विभाग का महत्वपूर्ण अंग है। इसके माध्यम से ही पत्र डाक विभाग को प्राप्त होते हैं। यह डाक विभाग तथा लोगों के बीच सेतु का कार्य करता है। आज़ादी के बाद से ही इन्होंने पूरे भारत में अपना स्थान बना लिया है। हर क्षेत्र और गाँव में इस तरह के लैटर बॉक्स देखे जा सकते हैं। यह भारत में ही नहीं बल्कि पूरे विश्व में महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहे हैं। इनका इतिहास भी बहुत पुराना है। भारत में पहले हरकारे द्वारा चिट्ठियाँ एक स्थान से दूसरे स्थान पर भेजी जाती थी। हरकारों को दूर-दूर तक पत्र लेकर जाना पड़ता था। आज उनका स्थान डाकियों ने ले लिया है और चिट्ठी इन डाकियों को लैटर बॉक्स के माध्यम से मिलती हैं। आज के समय में संचार के आधुनिक माध्यम आने से शहरों में इनका प्रयोग कम हो गया है। अब लोग पत्र के स्थान पर मोबाइल के माध्यम से बात करना अधिक सुगम मानते हैं। परन्तु गाँव में जहाँ मोबाइल रखना संभव नहीं है, वहाँ इनका आज भी प्रयोग हो रहा है। [1]

पत्र पेटिका

इतिहास

भारत देश में डाक खाने की शुरुआत पहली बार तब हुई जब इन्हें 1856-57 में ब्रिटेन से लाया गया था। कोलकाता में आज भी तमाम पुराने लैटर बॉक्स देखने को मिल जाते हैं। पुराने शहर में आज भी विक्टोरिया के ताज के आकार वाले लैटर बॉक्स लगे हुए हैं। इसके बाद कमल के आकार के लैटर बॉक्स ने भी चर्चा बटोरी थी जिन्हें लोकप्रिय डिज़ाइनर 'जे. डब्ल्यू. पेनफोल्ड' ने तैयार किया था। इन्हें 'पेनफोल्ड लैटर बॉक्स' के नाम से भी जाना जाता है। 1866-79 के बीच सभी बक्सों को पहली बार लाल रंग से रंगा गया था। इसके बाद लाल रंग के लैटर बॉक्स खासे लोकप्रिय हुए थे। भारत में लैटर बॉक्स का इतिहास काफी पुराना है। दुनिया के कई देशों ने इस रंग को अपनाया। आज़ादी के बाद भारतीय डाक सेवा ने स्थानीय स्तर पर बने साधारण लैटर बक्सों को अपनाया। ये सभी समय और आवश्यकता के हिसाब से बदलते गए। सबसे अधिक लोकप्रिय सिलेंडर के आकार के गोल लैटर बॉक्स रहे जिन्हें अमूमन हर शहर में देखा जा सकता है। इस तरह के बक्सों को डिज़ाइन करने का श्रेय शेफील्ड के 'थॉमस सुटी एंड संस' को जाता है जिन्होंने 1840 में ऐसे 50 बक्से बनाए थे। भारत ने इस डिज़ाइन को काफी बाद में अपनाया। इस तरह के सभी लैटर बॉक्स सुटी की डिज़ाइन की भारतीय नकल हैं जिन्हें स्थानीय स्तर पर तैयार किया गया। इस तरह से लैटर बॉक्स का विकास होता चला गया जिसके बाद भारत की संचार व्यवस्था में तेजी से विकास हुआ। गाँव-गाँव शहर-शहर में सड़कों पर हर जगह लैटर बॉक्स लगाये गये। [2]

पत्र वितरण व्यवस्था

डाक विभाग पत्र पेटिका में डाले गए पत्रों की निकासी एक दिन में कई बार करता है। यहाँ से पत्र लेकर उन्हें अलग-अलग किया जाता है तथा उन्हें उनके क्षेत्र के अनुसार भेज दिया जाता है और प्राप्त पत्रों को डाक विभाग डाकिये के द्वारा वितरित कराता है। यदि लैटर बॉक्स न हो, तो पत्र डाक विभाग तक पहुँच ही न पाएँ।

वर्तमान में

विशेष प्रकार का लैटरबॉक्स

आज यह अपनी पहचान खो रहा है। परन्तु एक समय था जब इसे अपने क्षेत्र में लगाने के लिए लोग एड़ी-चोटी का ज़ोर लगा देते थे। लेकिन आज यह बदहवाली का जीवन जी रहा है। देश में इंफॉरमेशन टेक्नालॉजी आने से मोबाइल इंटरनेट का इस्तेमाल बढ़ गया है। लेकिन ग़रीब तबके के लिए आज भी संदेश पत्रों को भेजने का माध्यम पोस्ट आफिस के वह लैटर बाक्स हैं जो अब धरोहर के रूप में डाक घरों के बाहर लैटर डालने वाले उन पाठकों का इंतजार कर रहे हैं जो कभी बड़े चाव से इन लैटर बाक्सों में पत्र डालकर अपनी स्मृतियां ताजा किया करते थे। लेकिन कहीं न कहीं इन डाक बाक्सों की उपयोगिता पर प्रश्न चिन्ह लगने लगा है। एक ज़माना था जब लोग ऐसे पत्रों के माध्यम से शादी कार्ड, लोक पत्र, ग्रीटिंग कार्ड, जमीन संबंधी काग़जात, तथा इनामी प्रतियोगिताओं में पूछे जाने वाले सवालों के जबाव के लिए पत्रों का ही उपयोग करते थे।

डाकिया डाक लाया

आज पत्रों का पहले जैसा उपयोग नहीं रहा है। जिस तरह से आज मोबाइल की रिंगटोन सुनकर लोग तत्काल उसे अटैंड करने की कोशिश करते है। ऐसा ही एक ज़माना डाकिए का था जब घर के बाहर डाकिया डाक लाया का स्वर सुनाई दे जाता है। तब नवविवाहिता से लेकर घर के बुजुर्ग तक में डाकिया द्वारा लाए गए पत्र को प्राप्त करने के लिए होड़ सी मच जाया करती थी। आज डाकिया संदेश पत्रों को चुपचाप घर की दहलीज पर डालकर चला जाए तो भी कई दिनों तक उस संदेश का ध्यान ही नहीं रहता है। आज डाकिया डाक लाया जैसा गीत मोबाइल की रिंग टोन बनकर रह गया है। एक ज़माने में गांव वाले पोस्टमैन की राह संदेश के लिए देखा करते थे। आज पोस्ट मैन ही लोगों की राह देखता है। आज के बदलते संचार क्रांति के इस युग में अब गांव के लोग भी फोन और मोबाइल ही पसंद करते हैं इसका महत्वपूर्ण कारण यह भी है कि पत्रों को पढ़ने या लिखने के लिए पढ़ा लिखा होना जरूरी नहीं है।[3]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. लैटरबॉक्स (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2013।
  2. मैं जवान होना चाहता हूं: लैटर बॉक्स (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2013।
  3. सिर्फ धरोहर बनकर रह गए लैटर बॉक्स (हिंदी)। । अभिगमन तिथि: 29 दिसम्बर, 2013।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख