भारत का भूगोल

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भारत के मुख्‍य भूभाग में चार क्षेत्र हैं, नामत: महापर्वत क्षेत्र, गंगा और सिंधु नदी के मैदानी क्षेत्र और मरूस्‍थली क्षेत्र और दक्षिणी प्रायद्वीप।

हिमालय की तीन श्रृंखलाएँ हैं, जो लगभग समानांतर फैली हुई हैं। इसके बीच बड़े - बड़े पठार और घाटियाँ हैं, इनमें कश्मीर और कुल्लू जैसी कुछ घाटियाँ उपजाऊ, विस्‍तृत और प्राकृतिक सौंदर्य से भरपूर हैं। संसार की सबसे ऊंची चोटियों में से कुछ इन्‍हीं पर्वत श्रृंखलाओं में हैं। अधिक ऊंचाई के कारण आना -जाना केवल कुछ ही दर्रों से हो पाता है, जिनमें मुख्‍य हैं -

  • चुंबी घाटी से होते हुए मुख्‍य भारत-तिब्‍बत व्‍यापार मार्ग पर जेलप ला और नाथू-ला दर्रे
  • उत्तर-पूर्व दार्जिलिंग
  • कल्‍पना (किन्‍नौर) के उत्तर - पूर्व में सतलुज घाटी में शिपकी ला दर्रा

पर्वतीय दीवार लगभग 2,400 कि.मी. की दूरी तक फैली है, जो 240 कि.मी. से 320 कि.मी. तक चौड़ी है। पूर्व में भारत तथा म्यांमार और भारत एवं बांग्लादेश के बीच में पहाड़ी श्रृंखलाओं की ऊंचाई बहुत कम है। लगभग पूर्व से पश्चिम तक फैली हुई गारो, खासी, जैंतिया और नगा पहाडियाँ उत्तर से दक्षिण तक फैली मिज़ो तथा रखाइन पहाडियों की श्रृंखला से जा मिलती हैं।

मरुस्‍थली क्षेत्र को दो भागों में बाँटा जा सकता है बड़ा मरुस्‍थल कच्‍छ के रण की सीमा से लुनी नदी के उत्‍तरी ओर आगे तक फैला हुआ है। राजस्थान सिंध की पूरी सीमा इससे होकर गुजरती है। छोटा मरुस्‍थल लुनी से जैसलमेर और जोधपुर के बीच उत्‍तरी भूभाग तक फैला हुआ बड़े और छोटे मरुस्‍थल के बीच का क्षेत्र बिल्‍कुल ही बंजर है जिसमें चूने के पत्‍थर की पर्वत माला द्वारा पृथक किया हुआ पथरीला भूभाग है।

पर्वत समूह और पहाड़ी श्रृंखलाएँ जिनकी ऊँचाई 460 से 1,220 मीटर है, प्रायद्वीपीय पठार को गंगा और सिंधु के मैदानी क्षेत्रों से अलग करती हैं। इनमें प्रमुख हैं अरावली, विंध्‍य, सतपुड़ा, मैकाला और अजन्‍ता। इस प्रायद्वीप की एक ओर पूर्व घाट दूसरी ओर पश्चिमी घाट है जिनकी ऊँचाई सामान्‍यत: 915 से 1,220 मीटर है, कुछ स्‍थानों में 2,440 मीटर से अधिक ऊँचाई है। पश्चिमी घाटों और अरब सागर के बीच एक संकीर्ण तटवर्ती पट्टी है जबकि पूर्व घाट और बंगाल की खाड़ी के बीच का विस्‍तृत तटवर्ती क्षेत्र है। पठार का दक्षिणी भाग नीलगिरी पहाड़ियों द्वारा निर्मित है जहाँ पूर्वी और पश्चिमी घाट मिलते हैं। इसके आगे इलायची की पहाडियाँ पश्चिमी घाट के विस्‍तारण के रुप में मानी जा सकती हैं।

भूगर्भीय संरचना

भू‍वैज्ञानिक क्षेत्र व्‍यापक रुप से भौतिक विशेषताओं का पालन करते हैं और इन्‍हें तीन क्षेत्रों के समूह में रखा जा सकता है:

  • हिमाचल पर्वत श्रृंखला और उनके संबद्ध पर्वत समूह
  • भारत-गंगा मैदान क्षेत्र
  • प्रायद्वीपीय ओट

उत्‍तर में हिमाचलय पर्वत क्षेत्र और पूर्व में नागालुशाई पर्वत, पर्वत निर्माण गतिविधि के क्षेत्र है। इस क्षेत्र का अधिकांश भाग जो वर्तमान समय में विश्‍व का सार्वधिक सुंदर पर्वत दृश्‍य प्रस्‍तुत करता है, 60 करोड़ वर्ष पहले समुद्री क्षेत्र में था। 7 करोड़ वर्ष पहले शुरू हुए पर्वत-निर्माण गतिविधियों की श्रृंखला में तलछटें और आधार चट्टानें काफ़ी ऊँचाई तक पहुँच गई। आज हम जो इन पर उभार देखते हैं, उनको उत्‍पन्‍न करने में अपक्षय और अपरदक ने कार्य किया। भारत-गंगा के मैदानी क्षेत्र एक जलोढ़ भूभाग हैं जो दक्षिण के प्रायद्वीप से उत्‍तर में हिमाचल को अलग करते हैं।

प्रायद्वीप सापेक्ष स्थिरता और कभी-कभार भूकंपीय परेशानियों का क्षेत्र है। 380 करोड़ वर्ष पहले के प्रारंभिक काल की अत्‍याधिक कायांतरित चट्टानें इस क्षेत्र में पायी जाती हैं, बाक़ी क्षेत्र गोंदवाना के तटवर्ती क्षेत्र से घिरा है, दक्षिण में सीढ़ीदार रचना और छोटी तलछटें लावा के प्रवाह से निर्मित हैं।

नदियाँ

ॠग्वैदिककालीन नदियाँ
प्राचीन नाम आधुनिक नाम
क्रुभु कुर्रम
कुभा काबुल
वितस्ता झेलम
आस्किनी चिनाव
पुरुष्णी रावी
शतुद्रि सतलज
विपाशा व्यास
सदानीरा गंडक
दृषद्वती घग्घर
गोमती गोमल
सुवास्तु स्वात
सिंधु सिन्ध
सरस्वती / दृशद्वर्ती घघ्घर / रक्षी / चित्तग
सुषोमा सोहन
मरूद्वृधा मरूवर्मन

भारत की नदियों को चार समूहों में वर्गीकृत किया जा सकता है जैसे :-

  • हिमाचल से निकलने वाली नदियाँ
  • दक्षिण से निकलने वाली नदियाँ
  • तटवर्ती नदियाँ
  • अंतर्देशीय नालों से द्रोणी क्षेत्र की नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ

हिमालय से निकलने वाली नदियाँ बर्फ़ और ग्‍लेशियरों के पिघलने से बनी हैं अत: इनमें पूरे वर्ष के दौरान निरन्‍तर प्रवाह बना रहता है। मॉनसून माह के दौरान हिमालय क्षेत्र में बहुत अधिक वृष्टि होती है और नदियाँ बारिश पर निर्भर हैं अत: इसके आयतन में उतार चढ़ाव होता है। इनमें से कई अस्‍थायी होती हैं। तटवर्ती नदियाँ, विशेषकर पश्चिमी तट पर, लंबाई में छोटी होती हैं और उनका सीमित जलग्रहण क्षेत्र होता है। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी होती हैं। पश्चिमी राजस्थान के अंतर्देशीय नाला द्रोणी क्षेत्र की कुछ्‍ नदियाँ हैं। इनमें से अधिकांश अस्‍थायी प्रकृति की हैं।

हिमाचल से निकलने वाली नदी की मुख्‍य प्रणाली सिंधु और गंगा [[ ब्रह्मपुत्र नदी|ब्रह्मपुत्र]] मेघना नदी की प्रणाली की तरह है।

सिंधु नदी

विश्‍व की महान, नदियों में एक है, तिब्बत में मानसरोवर के निकट से निकलती है और भारत से होकर बहती है और तत्‍पश्‍चात् पाकिस्तान से हो कर और अंतत: कराची के निकट अरब सागर में मिल जाती है। भारतीय क्षेत्र में बहने वाली इसकी सहायक नदियों में सतलुज (तिब्‍बत से निकलती है), व्‍यास, रावी, चिनाब, और झेलम है।

वाराणसी में गंगा नदी के घाट
Ghats of Ganga River in Varanasi

गंगा

ब्रह्मपुत्र मेघना एक अन्‍य महत्‍वपूर्ण प्रणाली है जिसका उप द्रोणी क्षेत्र भागीरथी और अलकनंदा में हैं, जो देवप्रयाग में मिलकर गंगा बन जाती है। यह उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार और प.बंगाल से होकर बहती है। राजमहल की पहाडियों के नीचे भागीरथी नदी, जो पुराने समय में मुख्‍य नदी हुआ करती थी, निकलती है जबकि पद्भा पूरब की ओर बहती है और बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

सहायक नदियाँ

यमुना, रामगंगा, घाघरा, गंडक, कोसी, महानदी, और सोन; गंगा की महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ है। चंबल और बेतवा महत्‍वपूर्ण उप सहायक नदियाँ हैं जो गंगा से मिलने से पहले यमुना में मिल जाती हैं। पद्मा और ब्रह्मपुत्र बांग्लादेश में मिलती है और पद्मा अथवा गंगा के रुप में बहती रहती है।

ब्रह्मपुत्र

ब्रह्मपुत्र तिब्बत से निकलती है, जहाँ इसे सांगणो कहा जाता है और भारत में अरुणाचल प्रदेश तक प्रवेश करने तथा यह काफ़ी लंबी दूरी तय करती है, यहाँ इसे दिहांग कहा जाता है। पासी घाट के निकट देबांग और लोहित ब्रह्मपुत्र नदी से मिल जाती है और यह संयुक्‍त नदी पूरे असम से होकर एक संकीर्ण घाटी में बहती है। यह घुबरी के अनुप्रवाह में बांग्लादेश में प्रवेश करती है।

सहायक नदियाँ

भारत में ब्रह्मपुत्र की प्रमुख सहायक नदियाँ सुबसिरी, जिया भरेली, घनसिरी, पुथिभारी, पागलादिया और मानस हैं। बांग्‍लादेश में ब्रह्मपुत्र तिस्‍त आदि के प्रवाह में मिल जाती है और अंतत: गंगा में मिल जाती है। मेघना की मुख्‍य नदी बराक नदी मणिपुर की पहाडियों में से निकलती है। इसकी महत्‍वपूर्ण सहायक नदियाँ मक्‍कू, ट्रांग, तुईवई, जिरी, सोनई, रुक्‍वी, कचरवल, घालरेवरी, लांगाचिनी, महुवा और जातिंगा हैं। बराक नदी बांग्‍लादेश में भैरव बाज़ार के निकट गंगा-‍ब्रह्मपुत्र के मिलने तक बहती रहती है।

दक्‍कन क्षेत्र में अधिकांश नदी प्रणालियाँ सामान्‍यत पूर्व दिशा में बहती हैं और बंगाल की खाड़ी में मिल जाती हैं।

गोदावरी, कृष्‍णा, कावेरी, महानदी, आदि पूर्व की ओर बहने वाली प्रमुख नदियाँ हैं और नर्मदा, ताप्‍ती पश्चिम की बहने वाली प्रमुख नदियाँ है। दक्षिणी प्रायद्वीप में गोदावरी का दूसरी सबसे बड़ी नदी का द्रोणी क्षेत्र है जो भारत के क्षेत्र 10 प्रतिशत भाग है। इसके बाद कृष्‍णा नदी के द्रोणी क्षेत्र का स्‍थान है जबकि महानदी का तीसरा स्‍थान है। डेक्‍कन के ऊपरी भूभाग में नर्मदा का द्रोणी क्षेत्र है, यह अरब सागर की ओर बहती है, बंगाल की खाड़ी में गिरती हैं दक्षिण में कावेरी के समान आकार की है और परन्‍तु इसकी विशेषताएँ और बनावट अलग है।

कई प्रकार की तटवर्ती नदियाँ हैं जो अपेक्षाकृत छोटी हैं। ऐसी नदियों में काफ़ी कम नदियाँ-पूर्वी तट के डेल्‍टा के निकट समुद्र में मिलती है, जबकि पश्चिम तट पर ऐसी 600 नदियाँ है।

राजस्‍थान में ऐसी कुछ नदियाँ है जो समुद्र में नहीं मिलती हैं। ये खारे झीलों में मिल जाती है और रेत में समाप्‍त हो जाती हैं जिसकी समुद्र में कोई निकासी नहीं होती है। इसके अतिरिक्‍त कुछ मरुस्‍थल की नदियाँ होती है जो कुछ दूरी तक बहती हैं और मरुस्‍थल में लुप्‍त हो जाती है। ऐसी नदियों में लुनी और मच्‍छ, स्‍पेन, सरस्‍वती, बानस और घग्‍गर जैसी अन्‍य नदियाँ हैं।

भारत की प्रमुख नदियों की सूची

क्रम नदी लम्बाई (कि.मी.) उद्गम स्थान सहायक नदियाँ प्रवाह क्षेत्र (सम्बन्धित राज्य)
1 सिन्धु नदी 2,880 (709) मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत) सतलुज, व्यास, झेलम, चिनाब, रावी, शिंगार, गिलगित, श्योक जम्मू और कश्मीर, लेह
2 झेलम नदी 720 शेषनाग झील, जम्मू-कश्मीर किशन, गंगा, पुँछ, लिदार, करेवाल, सिंध जम्मू-कश्मीर, कश्मीर
3 चिनाब नदी 1,180 बारालाचा दर्रे के निकट चन्द्रभागा जम्मू-कश्मीर
4 रावी नदी 725 रोहतांग दर्रा, कांगड़ा साहो, सुइल हिमाचल प्रदेश, जम्मू-कश्मीर, पंजाब
5 सतलुज नदी 1440 (1050) मानसरोवर के निकट राकसताल व्यास, स्पिती, बस्पा हिमाचल प्रदेश, पंजाब
6 व्यास नदी 470 रोहतांग दर्रा तीर्थन, पार्वती, हुरला हिमाचल प्रदेश
7 गंगा नदी 2,510 (2071) गंगोत्री के निकट गोमुख से यमुना, रामगंगा, गोमती, बागमती, गंडक, कोसी, सोन, अलकनंदा, भागीरथी, पिण्डार, मंदाकिनी उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, बिहार, पश्चिम बंगाल
8 यमुना नदी 1375 यमुनोत्री ग्लेशियर चम्बल, बेतवा, केन, टोंस, गिरी, काली, सिंध, आसन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश, दिल्ली
9 रामगंगा नदी 690 नैनीताल के निकट एक हिमनदी से खोन उत्तरांचल, उत्तर प्रदेश
10 घाघरा नदी 1,080 मप्सातुंग (नेपाल) हिमनद शारदा, करनली, कुवाना, राप्ती, चौकिया उत्तर प्रदेश, बिहार
11 गंडक नदी 425 नेपाल तिब्बत सीमा पर मुस्ताग के निकट काली, गंडक, त्रिशूल, गंगा बिहार
12 कोसी नदी 730 नेपाल में सप्तकोशिकी (गोंसाईधाम) इन्द्रावती, तामुर, अरुण, कोसी सिक्किम, बिहार
13 चम्बल नदी 960 मऊ के निकट जानापाव पहाड़ी से काली, सिंध, सिप्ता, पार्वती, बनास मध्य प्रदेश
14 बेतवा नदी 480 भोपाल के पास उबेदुल्ला गंज के पास मध्य प्रदेश
15 सोन नदी 770 अमरकंटक की पहाड़ियों से रिहन्द, कुनहड़ मध्य प्रदेश, बिहार
16 दामोदर नदी 600 छोटा नागपुर पठार से दक्षिण पूर्व कोनार, जामुनिया, बराकर झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
17 ब्रह्मपुत्र नदी 2,880 मानसरोवर झील के निकट (तिब्बत में सांग्पो) घनसिरी, कपिली, सुवनसिती, मानस, लोहित, नोवा, पद्मा, दिहांग अरुणाचल प्रदेश, असम
18 महानदी 890 सिहावा के निकट रायपुर सियोनाथ, हसदेव, उंग, ईब, ब्राह्मणी, वैतरणी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, उड़ीसा
19 वैतरणी नदी 333 क्योंझर पठार उड़ीसा
20 स्वर्ण रेखा 480 छोटा नागपुर पठार उड़ीसा, झारखण्ड, पश्चिम बंगाल
21 गोदावरी नदी 1,450 नासिक की पहाड़ियों से प्राणहिता, पेनगंगा, वर्धा, वेनगंगा, इन्द्रावती, मंजीरा, पुरना महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
22 कृष्णा नदी 1,290 महाबलेश्वर के निकट कोयना, यरला, वर्णा, पंचगंगा, दूधगंगा, घाटप्रभा, मालप्रभा, भीमा, तुंगप्रभा, मूसी महाराष्ट्र, कर्नाटक, आन्ध्र प्रदेश
23 कावेरी नदी 760 केरकारा के निकट ब्रह्मगिरी हेमावती, लोकपावना, शिमला, भवानी, अमरावती, स्वर्णवती कर्नाटक, तमिलनाडु
24 नर्मदा नदी 1,312 अमरकंटक चोटी तवा, शेर, शक्कर, दूधी, बर्ना मध्य प्रदेश, गुजरात
25 ताप्ती नदी 724 मुल्ताई से (बेतूल) पूरणा, बेतूल, गंजल, गोमई मध्य प्रदेश, गुजरात
26 साबरमती 716 जयसमंद झील (उदयपुर) वाकल, हाथमती राजस्थान, गुजरात
27 लूनी नदी नाग पहाड़ सुकड़ी, जनाई, बांडी राजस्थान, गुजरात, मिरूडी, जोजरी
28 बनास नदी खमनौर पहाड़ियों से सोड्रा, मौसी, खारी कर्नाटक, तमिलनाडु
29 माही नदी मेहद झील से सोम, जोखम, अनास, सोरन मध्य प्रदेश, गुजरात
30 हुगली नदी नवद्वीप के निकट जलांगी
31 उत्तरी पेन्नार 570 नंदी दुर्ग पहाड़ी पाआधनी, चित्रावती, सागीलेरू
32 तुंगभद्रा नदी पश्चिमी घाट में गोमन्तक चोटी कुमुदवती, वर्धा, हगरी, हिंद, तुंगा, भद्रा
33 मयूसा नदी आसोनोरा के निकट मेदेई
34 साबरी नदी 418 सुईकरम पहाड़ी सिलेरु
35 इन्द्रावती नदी 531 कालाहाण्डी, उड़ीसा नारंगी, कोटरी
36 क्षिप्रा नदी काकरी बरडी पहाड़ी, इंदौर चम्बल नदी
37 शारदा नदी 602 मिलाम हिमनद, हिमालय, कुमायूँ घाघरा नदी
38 तवा नदी महादेव पर्वत, पंचमढ़ी नर्मदा नदी
39 हसदो नदी सरगुजा में कैमूर पहाड़ियाँ महानदी
40 काली सिंध नदी 416 बागलो, ज़िला देवास, विंध्याचल पर्वत यमुना नदी
41 सिन्ध नदी सिरोज, गुना ज़िला चम्बल नदी
42 केन नदी विंध्याचल श्रेणी यमुना नदी
43 पार्वती नदी विंध्याचल, मध्य प्रदेश चम्बल नदी
44 घग्घर नदी कालका, हिमाचल प्रदेश
45 बाणगंगा नदी 494 बैराठ पहाड़ियाँ, जयपुर यमुना नदी
46 सोम नदी बीछा मेंड़ा, उदयपुर जोखम, गोमती, सारनी
47 आयड़ या बेडच नदी 190 गोमुण्डा पहाड़ी, उदयपुर बनास नदी
48 दक्षिण पिनाकिन 400 चेन्ना केशव पहाड़ी, कर्नाटक
49 दक्षिणी टोंस 265 तमसा कुंड, कैमूर पहाड़ी
50 दामन गंगा नदी पश्चिम घाट
51 गिरना नदी पश्चिम घाट, नासिक

मध्य प्रदेश का भूगोल

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मध्‍य प्रदेश दूसरा सबसे बड़ा भारतीय राज्‍य है। भौगोलिक दृष्टि से यह देश में केन्‍द्रीय स्‍थान रखता है। इसकी राजधानी भोपाल है । मध्य का अर्थ बीच में है, मध्य प्रदेश की भौगोलिक स्थिति भारतवर्ष के मध्य अर्थात बीच में होने के कारण इस प्रदेश का नाम मध्य प्रदेश दिया गया, जो कभी 'मध्य भारत' के नाम से जाना जाता था। मध्य प्रदेश हृदय की तरह देश के ठीक बीचोंबीच में स्थित है।

केरल का भूगोल

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  • केरल के पूर्व में ऊंचे पश्चिमी घाट और पश्चिम में अरब सागर के मध्य में स्थित इस प्रदेश की चौड़ाई 35 कि. मी. से 120 कि. मी. तक है।
  • भौगोलिक दृष्टि से केरल पर्वतीय क्षेत्रों, घाटियों, मध्‍यवर्ती मैदानों तथा समुद्र का तटवर्ती क्षेत्र हैं।
  • केरल नदियों और तालाबों के सम्बंध में बहुत ही समृद्ध है।

गुजरात का भूगोल

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गुजरात को तीन भौगोलिक क्षेत्रों में बाँटा गया है जैसे-

  1. सौराष्ट्र प्रायद्वीप- जो मूलतः एक पहाड़ी क्षेत्र है, बीच-बीच में मध्यम ऊँचाई के पर्वत हैं।
  2. कच्छ- जो पूर्वोत्तर में उजाड़ और चट्टानी है। विख्यात कच्छ का रन इसी क्षेत्र में है।
  3. गुजरात का मैदान- जो कच्छ के रन और अरावली की पहाड़ियों से लेकर दमन गंगा तक फैली है।

गुजरात की सबसे ऊँची चोटी गिरिनार पहाड़ियों में स्थित गोरखनाथ की चोटी है, जो 1117 मीटर ऊँची है। गुजरात की जलवायु ऊष्ण प्रदेशीय और मानसूनी है। वर्षा की कमी के कारण इस प्रदेश में रेतीली और बलुई मिट्टी पायी जाती है। प्रदेश में पूर्व की ओर उत्तरी गुजरात में वर्षा की मात्र 50 सेमी तक होती है। इसके दक्षिण की ओर मध्य गुजरात में मिट्टी कुछ अधिक उपजाऊ है तथा जलवायु भी अपेक्षयता आर्द्र है। वर्षा 75 सेमी तक होती है। नर्मदा, ताप्ती, साबरमती, सरस्वती, माही, भादर, बनास, और विश्वामित्र इस प्रदेश की सुपरिचित नदियाँ हैं। कर्क रेखा इस राज्य की उत्तरी सीमा से होकर गुजरती है, अतः यहाँ गर्मियों में खूब गर्मी तथा सर्दियों में खूब सर्दी पड़ती है। शहरीकरण की प्रक्रिया ने राज्य के विभिन्न क्षेत्रों में विभिन्न कुछ स्वरूप धारण किए हैं। राज्य का सर्वाधिक शहरीकृत क्षेत्र अहमदाबाद-वडोदरा औद्योगिक पट्टी है। राष्ट्रीय राजमार्ग संख्या-8 के किनारे उत्तर में ऊंझा से दक्षिण में वापी के औद्योगिक मैदान में एक वृहदनगरीय क्षेत्र[1] उभर रहा है। सौराष्ट्र कृषि क्षेत्र में क्रमिक बसाव प्रणाली को देखा जा सकता है, जबकि उत्तर और पूर्व के बाह्य क्षेत्रों में बिखरी हुई छोटी-छोटी बस्तियाँ हैं, जो शुष्क, पर्वतीय या वनाच्छादित क्षेत्र हैं। आदिवासी जनसंख्या इन्हीं सीमांत अनुत्पादक क्षेत्रों में केंद्रित है।

उत्तर प्रदेश का भूगोल

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उत्तर प्रदेश के प्रमुख भूगोलीय तत्व इस प्रकार से हैं-

भूमि

  • भू-आकृति - उत्तर प्रदेश को दो विशिष्ट भौगोलिक क्षेत्रों, गंगा के मध्यवर्ती मैदान और दक्षिणी उच्चभूमि में बाँटा जा सकता है। उत्तर प्रदेश के कुल क्षेत्रफल का लगभग 90 प्रतिशत हिस्सा गंगा के मैदान में है। मैदान अधिकांशत: गंगा व उसकी सहायक नदियों के द्वारा लाए गए जलोढ़ अवसादों से बने हैं। इस क्षेत्र के अधिकांश हिस्सों में उतार-चढ़ाव नहीं है, यद्यपि मैदान बहुत उपजाऊ है, लेकिन इनकी ऊँचाई में कुछ भिन्नता है, जो पश्चिमोत्तर में 305 मीटर और सुदूर पूर्व में 58 मीटर है। गंगा के मैदान की दक्षिणी उच्चभूमि अत्यधिक विच्छेदित और विषम विंध्य पर्वतमाला का एक भाग है, जो सामान्यत: दक्षिण-पूर्व की ओर उठती चली जाती है। यहाँ ऊँचाई कहीं-कहीं ही 305 से अधिक होती है।

मुम्बई का भूगोल

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मुम्बई शहर प्रायद्विपीय स्थल पर बसा हुआ है, जो मूलतः पश्चिम भारत के कोंकण तट के पास स्थित सात द्वीपिकाओं से मिलकर बना है। 17 वीं शताब्दी से अपवाह व भूमि फिर से हासिल करने की परियोजनाओं और जलमार्गों व जल अवरोधकों के निर्माण के कारण ये द्वीपिकाएं मिलकर एक बड़े भूभाग का निर्माण करती हैं, जिसे बंबई द्वीप के नाम से जाना जाता था। इस द्वीप के पूर्व में मुम्बई बंदरगाह का स्थिर जलक्षेत्र है। यह द्वीप निम्न मैदान से बना है, जिसका एक चौथाई हिस्सा समुद्र तल से भी नीचा है; इस मैदान के पूर्वी और पश्चिमी किनारों में निचली पहाड़ियों की दो समानांतर पर्वतश्रेणियाँ हैं। इनमें से लंबी पर्वतश्रेणी द्वारा सुदूर दक्षिण में निर्मित कोलाबा पॉइंट मुम्बई बंदरगाह को खुले समुद्र से बचाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. (मेगालोपोलिस, अर्थात कई बड़े शहरों वाला एक सतत शहरी क्षेत्र)

बाहरी कड़ियाँ

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