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'''विमुद्रीकरण''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Demonenitization'') एक आर्थिक गतिविधि है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा को चालू करती है। जब [[काला धन]] बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।  
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{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
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|चित्र=500-1000-rupee-notes.jpg
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|चित्र का नाम=500 और 1000 रुपये के नोट
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|विवरण='''विमुद्रीकरण''' एक आर्थिक गतिविधि है जिसमें सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर नई मुद्रा चालू करती है।
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|पाठ 1=[[काला धन]] और जाली नोटों को खत्म करने के लिए विमुद्रीकरण लागू किया जाता है।
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|शीर्षक 2=कब-कब हुआ विमुद्रीकरण
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|पाठ 2=दो बार- पहली बार '''[[जनवरी]] [[1978]]''' में ₹1000, ₹5000 और ₹10000 का विमुद्रीकरण हुआ। दूसरी बार '''[[8 नवंबर]], [[2016]]''' को ₹500 और ₹1000 के नोटों को उसी [[रात]] 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की। 
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|पाठ 3=1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के [[30 जून]], [[2011]] से संचलन से वापिस लिये गये, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।
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|पाठ 10=[[भारतीय रिज़र्व बैंक]], [[भारत]] में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। [[भारत सरकार]], भारतीय रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेता है।
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|संबंधित लेख=[[काला धन]], [[टकसाल]], [[भारतीय रुपया]]
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|अन्य जानकारी=वर्तमान में, भारत में 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 [[रुपया|रुपये]] के मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं। ₹1, ₹2 और ₹5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी वैध हैं।
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|अद्यतन={{अद्यतन|14:55, 22 नवम्बर 2016 (IST)}}
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'''विमुद्रीकरण''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Demonenitization'') एक आर्थिक गतिविधि है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा को प्रचलित करती है। जब [[काला धन]] बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।  
 
==भारतीय मुद्रा==
 
==भारतीय मुद्रा==
[[चित्र:5000.jpg|thumb|5000 रुपये के नोट विमुद्रीकरण सन् 1978 में हुआ]]
 
 
{{Main|भारतीय रुपया}}
 
{{Main|भारतीय रुपया}}
[[भारत]] की अपनी राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले [[रुपया|रुपये]] को [[हिन्दी]] में दर्शाने के लिए ‘रु’ और अंग्रेज़ी में Rs. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं। भारतीय करेंसी को भारतीय रुपया (INR) तथा सिक्कों को “पैसे” कहा जाता है। एक रुपया 100 पैसे का होता है । भारतीय रुपये का प्रतीक है- यह डिजाईन देवनागरी अक्षर “र” (ra) और लैटिन बड़ा अक्षर “R” के सदृश है जिसमें ऊपर दोहरी आड़ी रेखा है। भारतीय रुपया चिह्न (₹) भारतीय रुपये (भारत की आधिकारिक मुद्रा) के लिये प्रयोग किया जाने वाला [[मुद्रा चिन्ह|मुद्रा चिह्न]] है। यह डिजाइन [[भारत सरकार]] द्वारा [[15 जुलाई]] [[2010]] को सार्वजनिक किया गया था मूलतः यह नया चिह्न [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] अक्षर ‘र’ पर आधारित है किन्तु यह रोमन के कैपिटल अक्षर R का बिना उर्ध्वाकार डण्डे का भी आभास देता है। अतः इस चिह्न को इन दोनो अक्षरों का मिश्रण माना जा सकता है। मूल रूप से तमिल भाषी इसके अभिकल्पक उदय के अनुसार जब वो इसका डिजाइन सोच रहे थे तो उन्हें लगा कि सिर्फ देवनागरी लिपि से संबंधित कोई चिन्ह ही भारतीय भावनाओं को व्यक्त कर सकता है। ऊपर की तरफ समान्तर रेखायें (उनके बीच में खाली जगह समेत) भारतीय झण्डे तिरंगे का आभास देती हैं।  
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[[भारत]] की अपनी राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले [[रुपया|रुपये]] को [[हिन्दी]] में दर्शाने के लिए '''रु''' और अंग्रेज़ी में '''Rs.''' का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं। भारतीय करेंसी को '''भारतीय रुपया''' (INR) तथा सिक्कों को '''पैसे''' कहा जाता है। एक रुपया 100 पैसे का होता है।
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====रुपये का प्रतीक चिह्न====
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भारतीय रुपये का प्रतीक है- यह डिजाईन देवनागरी अक्षर '''र''' (ra) और लैटिन बड़ा अक्षर '''R''' के सदृश है जिसमें ऊपर दोहरी आड़ी रेखा है। भारतीय रुपया चिह्न (₹) भारतीय रुपये (भारत की आधिकारिक मुद्रा) के लिये प्रयोग किया जाने वाला [[मुद्रा चिन्ह|मुद्रा चिह्न]] है। यह डिज़ाइन [[भारत सरकार]] द्वारा [[15 जुलाई]] [[2010]] को सार्वजनिक किया गया था मूलतः यह नया चिह्न [[देवनागरी लिपि|देवनागरी]] अक्षर ‘र’ पर आधारित है किन्तु यह रोमन के कैपिटल अक्षर R का बिना उर्ध्वाकार डण्डे का भी आभास देता है। अतः इस चिह्न को इन दोनो अक्षरों का मिश्रण माना जा सकता है। मूल रूप से [[तमिल भाषा|तमिल भाषी]] इसके अभिकल्पक '''उदय''' के अनुसार जब वो इसका डिज़ाइन सोच रहे थे तो उन्हें लगा कि सिर्फ [[देवनागरी लिपि]] से संबंधित कोई चिह्न ही भारतीय भावनाओं को व्यक्त कर सकता है। ऊपर की तरफ समान्तर रेखायें (उनके बीच में ख़ाली जगह समेत) [[तिरंगा|भारतीय झण्डे तिरंगे]] का आभास देती हैं।  
 
====भारतीय मुद्रा का निर्माण====
 
====भारतीय मुद्रा का निर्माण====
[[चित्र:10000.jpg|thumb|10000 रुपये के नोट विमुद्रीकरण सन् 1978 में हुआ]]
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प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि [[प्राचीन भारत]] में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। [[कौटिल्य]] के [[अर्थशास्त्र ग्रन्थ|अर्थशास्त्र]] से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि [[भारत]] में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। '''विल्सन''' और '''प्रिंसेप''' जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात् हुआ। वहीं '''जॉन एलन''' उनकी इस अवधारणा को ग़लत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘[[कार्षापण]]’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।  
प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि [[प्राचीन भारत]] में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। [[कौटिल्य]] के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात हुआ। वहीं जान एलन उनकी इस अवधारणा को ग़लत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘[[कार्षापण]]’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।  
 
 
====मुद्रा से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें====
 
====मुद्रा से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें====
;सिक्के-  
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;सिक्का -  
वर्तमान में भारत में, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये के मूल्यवर्गों में सिक्के जारी किये जा रहे हैं। 50 पैसे तक के सिक्के “छोटे सिक्के” और 1 रुपये तथा उसके ऊपर के सिक्कों को “रुपये सिक्के” कहते है। 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के 30 जून 2011 से संचलन से वापिस लिये गये हैं, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।  
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वर्तमान में भारत में, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये के मूल्यवर्गों में सिक्के जारी किये जा रहे हैं। 50 पैसे तक के सिक्के “छोटे सिक्के” और 1 रुपये तथा उसके ऊपर के सिक्कों को “रुपये सिक्के” कहते है। 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के [[30 जून]] '''2011''' से संचलन से वापिस ले लिये गये हैं, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।  
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[[चित्र:Historic-Indian-Coins.jpg|200px|left|thumb|दस पैसे, पाँच पैसे, पच्चीस पैसे और एक पैसे के भारतीय सिक़्क़े (बांये से दांये)]]
 
;करेंसी-
 
;करेंसी-
वर्तमान में, भारत में 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 रुपये के मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं।<ref>1000 रुपये के मूल्यवर्ग का बैंक नोट भारत सरकार ने 8 नवंबर, 2016 से बंद कर दिये हैं।</ref> क्योंकि ये भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये जाते हैं, इसलिए इन्हें “बैंकनोट” कहा जाता है। 1, 2 और 5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी संचलन में पाये जा सकते हैं और ये नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे।
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वर्तमान में, भारत में 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 रुपये के मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं। क्योंकि ये [[भारतीय रिज़र्व बैंक]] (रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये जाते हैं, इसलिए इन्हें “बैंकनोट” कहा जाता है। 1, 2 और 5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी संचलन में पाये जा सकते हैं और ये नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे।
 
 
 
==उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण==
 
==उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण==
मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, जनवरी 1946 में उस समय संचलन में मौजूद 1000 और 10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। वर्ष 1954 में 1000, 5000 और 10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया और भारत के चौथे प्रधानमंत्री [[मोरारजी देसाई]] के प्रधानमंत्री काल में जनवरी 1978 में इन बैंकनोटों (1000, 5000 और 10000) को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया।  
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[[चित्र:10000.jpg|thumb|10000 रुपये के नोट विमुद्रीकरण सन् 1978 में हुआ]]
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मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, [[जनवरी]] [[1946]] में उस समय संचलन में मौजूद 1000 और 10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। [[वर्ष]] [[1954]] में 1000, 5000 और 10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया और [[भारत]] के चौथे [[प्रधानमंत्री]] [[मोरारजी देसाई]] के प्रधानमंत्री काल में जनवरी 1978 में इन बैंकनोटों (1000, 5000 और 10000) को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया। [[8 नवंबर]], [[2016]] को भारतीय प्रधानमंत्री [[नरेंद्र मोदी]] ने एक बड़ा क़दम उठाते हुए 500 और 1000 के नोटों को उसी [[रात]] 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की।
 
;एक रुपया भारत सरकार की देयताओं में-  
 
;एक रुपया भारत सरकार की देयताओं में-  
 
करेंसी ऑर्डिनेंस 1940 के अंतर्गत जारी एक रुपये के नोट भी विधि मान्य मुद्रा हैं और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 के सभी प्रयोजनों हेतु रुपये सिक्के के रूप में माना गया हैं। क्योंकि सरकार द्वारा जारी रुपये सिक्के भारत सरकार की देयताओं में आते हैं, इसलिए सरकार द्वारा जारी एक रुपया भी भारत सरकार की देयता है।  
 
करेंसी ऑर्डिनेंस 1940 के अंतर्गत जारी एक रुपये के नोट भी विधि मान्य मुद्रा हैं और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 के सभी प्रयोजनों हेतु रुपये सिक्के के रूप में माना गया हैं। क्योंकि सरकार द्वारा जारी रुपये सिक्के भारत सरकार की देयताओं में आते हैं, इसलिए सरकार द्वारा जारी एक रुपया भी भारत सरकार की देयता है।  
 
;मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका
 
;मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका
भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेता है। भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा (डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोटों की मूल्यवर्ग-वार संभावित आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनकी मात्रा का आकलन करता है और तदनुसार, विभिन्न मुद्रण प्रेसों को अपना मांगपत्र प्रस्तुत करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है। इसके लिए, संचलन से वापिस प्राप्त होने वाले बैंकनोटों की जाँच की जाती हैं और पुन:जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं तथा गंदे और कटे-फटे बैंकनोटों को नष्ट कर दिया जाता है जिससे संचलन में बैंकनोटों की गुणवत्ता बनी रहे।  
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{{Main|भारतीय रिज़र्व बैंक}}
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भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेती है। भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा (डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोटों की मूल्यवर्ग-वार संभावित आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनकी मात्रा का आकलन करता है और तदनुसार, विभिन्न [[भारत प्रतिभूति मुद्रण तथा मुद्रा निर्माण निगम लिमिटेड|मुद्रण प्रेसों]] को अपना मांगपत्र प्रस्तुत करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है। इसके लिए, संचलन से वापिस प्राप्त होने वाले बैंकनोटों की जाँच की जाती हैं और पुन:जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं तथा गंदे और कटे-फटे बैंकनोटों को नष्ट कर दिया जाता है जिससे संचलन में बैंकनोटों की गुणवत्ता बनी रहे।  
 
==मुद्रा विमुद्रीकरण==
 
==मुद्रा विमुद्रीकरण==
मुद्रा विमुद्रीकरण के तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा चलाती है। यानी पुरानी मुद्रा की वैधता नहीं रहती। वह अवैध हो जाती है। आमतौर पर अर्थव्यवस्था में काले धन पर काबू पाने के लिए यह कदम यानी विमुद्रीकरण उठाया जाता है। जब [[काला धन]] अर्थव्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिये विमुद्रीकरण अपनाया जाता है। जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।  
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[[चित्र:5000.jpg|thumb|5000 रुपये के नोट विमुद्रीकरण सन् 1978 में हुआ]]
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'''मुद्रा विमुद्रीकरण''' के तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा चलाती है। यानी पुरानी मुद्रा की वैधता नहीं रहती। वह अवैध हो जाती है। आमतौर पर अर्थव्यवस्था में [[काला धन|काले धन]] पर काबू पाने के लिए यह कदम यानी विमुद्रीकरण उठाया जाता है। जब [[काला धन]] अर्थव्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिये विमुद्रीकरण अपनाया जाता है। जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।  
 
;नकली नोट तथा काला धन बनाम विमुद्रीकरण-
 
;नकली नोट तथा काला धन बनाम विमुद्रीकरण-
देश में नकली नोट का सम्बन्ध 1991 से प्रारम्भ आर्थिक सुधार से माना जा रहा है। उदारवाद के बाद चार कम्यूनिस्ट पार्टी एवं [[काँग्रेस]] समर्थित संयुक्त मोर्चे की सरकार को सन 1996-97 में 3,35,900 करोड़ रुपये की नयी मुद्रा छपवाने की आवश्यकता पड़ी। संयुक्त मोर्चा सरकार ने काले धन की समाप्ति के लिए स्वैच्छिक आय उजागर योजना (वीडीआईएस) शुरु की। वीडीआईएस में लगभग 33,000 करोड़ रुपये का काला धन सामने आया। आरबीआई के [[टकसाल]] की क्षमता 2,16,575 करोड़ रुपये की थी, जिससे विदेशों से 1,20,000 करोड़ रुपये के नोट छपवाने माँग हुई। भारतीय मुद्रा छापने वाली विदेशी कम्पनियों को स्पष्ट निर्देश था कि वे भारतीय नोट की प्लेट, स्याही, वाटरमार्क कागज भारत सरकार को सौंपेंगी। वैसे, [[इंग्लैण्ड]] की कम्पनी डेलारू देश-विदेशों की सरकारों के नोट छापती है।<ref>{{cite web |url=http://www.pravakta.com/indian-currency-vimudrikran-once-again/|title=भारतीय मुद्रा का विमुद्रीकरण : एक बार फिर |accessmonthday=19 नवंबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रवक्ता डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref>  
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देश में नकली नोट का सम्बन्ध [[1991]] से प्रारम्भ आर्थिक सुधार से माना जा रहा है। उदारवाद के बाद चार कम्यूनिस्ट पार्टी एवं [[काँग्रेस]] समर्थित संयुक्त मोर्चे की सरकार को सन 1996-97 में 3,35,900 करोड़ रुपये की नयी मुद्रा छपवाने की आवश्यकता पड़ी। संयुक्त मोर्चा सरकार ने काले धन की समाप्ति के लिए स्वैच्छिक आय उजागर योजना (वीडीआईएस) शुरु की। वीडीआईएस में लगभग 33,000 करोड़ रुपये का काला धन सामने आया। आरबीआई के [[टकसाल]] की क्षमता 2,16,575 करोड़ रुपये की थी, जिससे विदेशों से 1,20,000 करोड़ रुपये के नोट छपवाने माँग हुई। भारतीय मुद्रा छापने वाली विदेशी कम्पनियों को स्पष्ट निर्देश था कि वे भारतीय नोट की प्लेट, स्याही, वाटरमार्क कागज भारत सरकार को सौंपेंगी। वैसे, [[इंग्लैण्ड]] की कम्पनी डेलारू देश-विदेशों की सरकारों के नोट छापती है।<ref>{{cite web |url=http://www.pravakta.com/indian-currency-vimudrikran-once-again/|title=भारतीय मुद्रा का विमुद्रीकरण : एक बार फिर |accessmonthday=19 नवंबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=प्रवक्ता डॉट कॉम |language=हिन्दी }}</ref>  
 
==500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण==
 
==500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण==
[[चित्र:500-1000-rupee-notes.jpg|thumb|500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण]]
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[[8 नवंबर]], [[2016]] को भारतीय [[नरेंद्र मोदी|प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी]] ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 500 और 1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की। यानी [[9 नवंबर]] से कुछ तय जगहोंपेट्रोल पंप, अस्पताल, रेलवे स्टेशन इत्यादि को छोड़कर देश में कहीं भी 500 और 1000 के नोटों से लेन-देन पर रोक लग गई। इन जगहों पर भी इन नोटों के प्रयोग को तय समय सीमा (अब 24 नवंबर) तक ही इजाज़त दी गई है। जिन लोगों के पास 500 और 1000 के नोट पड़े हैं वो उन्हें [[30 दिसंबर]] तक देश के किसी भी बैंक या [[डाकघर]] में जाकर बदल सकते हैं या अपने खातों में जमा कर सकते हैं। सरकार ने पुराने नोटों की जगह 500 और 2000 के नए नोट जारी किए हैं जो लोगों को बैंकों और [[एटीएम]] के माध्यम से मिलने शुरू हो गए हैं। हालांकि लेन-देन के पूरी तरह सामान्य होने में कुछ [[हफ्ता|हफ्ते]] और लगेंगे। इस फैसले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को [[आर.बी.आई.|आरबीआई]] के वर्तमान गवर्नर [[उर्जित पटेल]] का समर्थन हासिल है। उर्जित पटेल ने प्रधानमंत्री मोदी के फैसले को “बहुत साहसिक कदम” बताया है। हालांकि आरबीआई के पूर्व गवर्नर [[रघुराम राजन]] विमुद्रीकरण को [[काला धन|कालाधन]] बाहर लाने के लिए ज्यादा कारगर नहीं मानते हैं। कई अन्य विशेषज्ञों ने भी इस कदम पर सवाल उठाए हैं। [[भारतीय सांख्यिकी संस्थान]], [[कोलकाता]] के प्रोफेसर अभिरूप सरकार के अनुसार काला धन रखने वाले ज्यादातर लोग अपने पैसे विदेशी बैंकों में रखते हैं इसलिए देश में विमुद्रीकरण करने से ज्यादा बड़े मछलियों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। आरबीआई के अनुसार [[31 मार्च]] [[2016]] तक [[भारत]] में 16.42 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट बाज़ार में थे जिसमें से करीब 14.18 लाख रुपये 500 और 1000 के नोटों के रूप में थे। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार कुल देश में तब तक मौजूद कुल 9026 करोड़ नोटों में करीब 24 प्रतिशत नोट (करीब 2203 करोड़ रुपये) ही प्रचलन में थीं।<ref>{{cite web |url=http://www.jansatta.com/national/demonetization-in-hindi-what-is-demonetization-what-are-different-ways-of-demonetization-and-demonetization-in-india-by-pm-modi-explained/184774/|title=जानिए क्या है विमुद्रीकरण, क्यों लेती हैं सरकारें इसका फैसला और अब तक भारत में कब-कब ऐसा हुआ है? |accessmonthday=20 नवंबर |accessyear=2016 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जनसत्ता डॉट कॉम|language=हिन्दी }}</ref>
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07:30, 7 नवम्बर 2017 के समय का अवतरण

विमुद्रीकरण
500 और 1000 रुपये के नोट
विवरण विमुद्रीकरण एक आर्थिक गतिविधि है जिसमें सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर नई मुद्रा चालू करती है।
उद्देश्य काला धन और जाली नोटों को खत्म करने के लिए विमुद्रीकरण लागू किया जाता है।
कब-कब हुआ विमुद्रीकरण दो बार- पहली बार जनवरी 1978 में ₹1000, ₹5000 और ₹10000 का विमुद्रीकरण हुआ। दूसरी बार 8 नवंबर, 2016 को ₹500 और ₹1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की।
सिक्के जो बंद हुए 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के 30 जून, 2011 से संचलन से वापिस लिये गये, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।
विशेष भारतीय रिज़र्व बैंक, भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, भारतीय रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेता है।
संबंधित लेख काला धन, टकसाल, भारतीय रुपया
अन्य जानकारी वर्तमान में, भारत में 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 रुपये के मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं। ₹1, ₹2 और ₹5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी वैध हैं।
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विमुद्रीकरण (अंग्रेज़ी:Demonenitization) एक आर्थिक गतिविधि है जिसके अंतर्गत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा को प्रचलित करती है। जब काला धन बढ़ जाता है और अर्थव्यवस्था के लिए खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिए इस विधि का प्रयोग किया जाता है। जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले में नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते हैं और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।

भारतीय मुद्रा

भारत की अपनी राष्ट्रीय मुद्रा है। इसका बाज़ार नियामक और जारीकर्ता भारतीय रिज़र्व बैंक है। नये प्रतीक चिह्न के आने से पहले रुपये को हिन्दी में दर्शाने के लिए रु और अंग्रेज़ी में Rs. का प्रयोग किया जाता था। आधुनिक भारतीय रुपये को 100 पैसे में विभाजित किया गया है। सिक्कों का मूल्य 5, 10, 20, 25 और 50 पैसे और 1, 2, 5 और 10 रुपये भी है। बैंकनोट 1, 2, 5, 10, 20, 50, 100, 500 और 1000 के मूल्य पर हैं। भारतीय करेंसी को भारतीय रुपया (INR) तथा सिक्कों को पैसे कहा जाता है। एक रुपया 100 पैसे का होता है।

रुपये का प्रतीक चिह्न

भारतीय रुपये का प्रतीक है- यह डिजाईन देवनागरी अक्षर (ra) और लैटिन बड़ा अक्षर R के सदृश है जिसमें ऊपर दोहरी आड़ी रेखा है। भारतीय रुपया चिह्न (₹) भारतीय रुपये (भारत की आधिकारिक मुद्रा) के लिये प्रयोग किया जाने वाला मुद्रा चिह्न है। यह डिज़ाइन भारत सरकार द्वारा 15 जुलाई 2010 को सार्वजनिक किया गया था मूलतः यह नया चिह्न देवनागरी अक्षर ‘र’ पर आधारित है किन्तु यह रोमन के कैपिटल अक्षर R का बिना उर्ध्वाकार डण्डे का भी आभास देता है। अतः इस चिह्न को इन दोनो अक्षरों का मिश्रण माना जा सकता है। मूल रूप से तमिल भाषी इसके अभिकल्पक उदय के अनुसार जब वो इसका डिज़ाइन सोच रहे थे तो उन्हें लगा कि सिर्फ देवनागरी लिपि से संबंधित कोई चिह्न ही भारतीय भावनाओं को व्यक्त कर सकता है। ऊपर की तरफ समान्तर रेखायें (उनके बीच में ख़ाली जगह समेत) भारतीय झण्डे तिरंगे का आभास देती हैं।

भारतीय मुद्रा का निर्माण

प्रारंभ में छोटे राज्य थे जहां वस्तु विनिमय अर्थात एक वस्तु के बदले दूसरी वस्तु का आदान-प्रदान संभव था। परंतु कालांतर में जब बड़े-बड़े राज्यों का निर्माण हुआ तो यह प्रणाली समाप्त होती गई और इस कमी को पूरा करने के लिए मुद्रा को जन्म दिया गया। इतिहासकार के. वी. आर. आयंगर का मानना है कि प्राचीन भारत में मुद्राएं राजसत्ता के प्रतीक के रूप में ग्रहण की जाती थीं। परंतु प्रारंभ में किस व्यक्ति अथवा संस्था ने इन्हें जन्म दिया, यह ज्ञात नहीं है। अनुमान यह किया जाता है कि व्यापारी वर्ग ने आदान-प्रदान की सुविधा हेतु सर्वप्रथम सिक्के तैयार करवाए। संभवत: प्रारंभ में राज्य इसके प्रति उदासीन थे। परंतु परवर्ती युगों में इस पर राज्य का पूर्ण नियंत्रण स्थापित हो गया था। कौटिल्य के अर्थशास्त्र से ज्ञात होता है कि मुद्रा निर्माण पर पूर्णत: राज्य का अधिकार था। कुछ विद्वानों का मानना है कि भारत में मुद्राओं का प्रचलन विदेशी प्रभाव का परिणाम है। वहीं कुछ इसे इसी धरती की उपज मानते हैं। विल्सन और प्रिंसेप जैसे विद्वानों का मानना है कि भारत भूमि पर सिक्कों का आविर्भाव यूनानी आक्रमण के पश्चात् हुआ। वहीं जॉन एलन उनकी इस अवधारणा को ग़लत बताते हुए कहते हैं कि ‘प्रारम्भिक भारतीय सिक्के जैसे ‘कार्षापण’ अथवा ‘आहत’ और यूनानी सिक्कों के मध्य कोई सम्पर्क नहीं था।

मुद्रा से जुड़ी कुछ प्रमुख बातें

सिक्का -

वर्तमान में भारत में, 50 पैसे, 1 रुपये, 2 रुपये, 5 रुपये और 10 रुपये के मूल्यवर्गों में सिक्के जारी किये जा रहे हैं। 50 पैसे तक के सिक्के “छोटे सिक्के” और 1 रुपये तथा उसके ऊपर के सिक्कों को “रुपये सिक्के” कहते है। 1 पैसे, 2 पैसे, 3 पैसे, 5 पैसे, 10 पैसे, 20 पैसे और 25 पैसे मूल्यवर्ग के सिक्के 30 जून 2011 से संचलन से वापिस ले लिये गये हैं, अतः वे वैध मुद्रा नहीं रहे।

दस पैसे, पाँच पैसे, पच्चीस पैसे और एक पैसे के भारतीय सिक़्क़े (बांये से दांये)
करेंसी-

वर्तमान में, भारत में 10, 20, 50, 100, 500 और 2000 रुपये के मूल्यवर्ग के बैंकनोट जारी किये जा रहे हैं। क्योंकि ये भारतीय रिज़र्व बैंक (रिज़र्व बैंक) द्वारा जारी किये जाते हैं, इसलिए इन्हें “बैंकनोट” कहा जाता है। 1, 2 और 5 मूल्यवर्गों के नोटों का मुद्रण बंद किया गया है क्योंकि इनका सिक्काकरण हो चुका है। तथापि, पहले जारी किये गये ऐसे नोट अभी भी संचलन में पाये जा सकते हैं और ये नोट वैध मुद्रा बने रहेंगे।

उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण

10000 रुपये के नोट विमुद्रीकरण सन् 1978 में हुआ

मुख्यतः अघोषित धन पर नियंत्रण रखने के प्रयोजन से, जनवरी 1946 में उस समय संचलन में मौजूद 1000 और 10000 के बैंकनोटों का विमुद्रीकरण किया गया था। वर्ष 1954 में 1000, 5000 और 10000 के उच्च मूल्यवर्ग के बैंकनोटों को फिर से जारी किया गया और भारत के चौथे प्रधानमंत्री मोरारजी देसाई के प्रधानमंत्री काल में जनवरी 1978 में इन बैंकनोटों (1000, 5000 और 10000) को एक बार फिर विमुद्रीकृत किया गया। 8 नवंबर, 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा क़दम उठाते हुए 500 और 1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की।

एक रुपया भारत सरकार की देयताओं में-

करेंसी ऑर्डिनेंस 1940 के अंतर्गत जारी एक रुपये के नोट भी विधि मान्य मुद्रा हैं और उन्हें भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम,1934 के सभी प्रयोजनों हेतु रुपये सिक्के के रूप में माना गया हैं। क्योंकि सरकार द्वारा जारी रुपये सिक्के भारत सरकार की देयताओं में आते हैं, इसलिए सरकार द्वारा जारी एक रुपया भी भारत सरकार की देयता है।

मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका

भारतीय रिज़र्व बैंक अधिनियम, 1934 के आधार पर मुद्रा प्रबंध में भारतीय रिज़र्व बैंक की भूमिका निर्धारित हुई है। भारतीय रिज़र्व बैंक भारत में मुद्रा संबंधी कार्य संभालता है। भारत सरकार, रिज़र्व बैंक की सलाह पर जारी किये जाने वाले विभिन्न मूल्यवर्ग के बैंकनोटों के संबंध में निर्णय लेती है। भारतीय रिज़र्व बैंक सुरक्षा विशेषताओं सहित बैंकनोटों की रूपरेखा (डिजाइनिंग) तैयार करने में भी भारत सरकार के साथ समन्वय करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक बैंकनोटों की मूल्यवर्ग-वार संभावित आवश्यकता को ध्यान में रखते हुए, उनकी मात्रा का आकलन करता है और तदनुसार, विभिन्न मुद्रण प्रेसों को अपना मांगपत्र प्रस्तुत करता है। भारतीय रिज़र्व बैंक का उद्देश्य आम जनता को अच्छी गुणवत्ता के नोट प्रदान करना है। इसके लिए, संचलन से वापिस प्राप्त होने वाले बैंकनोटों की जाँच की जाती हैं और पुन:जारी करने योग्य बैंकनोट फिर से संचलन में डाल दिये जाते हैं तथा गंदे और कटे-फटे बैंकनोटों को नष्ट कर दिया जाता है जिससे संचलन में बैंकनोटों की गुणवत्ता बनी रहे।

मुद्रा विमुद्रीकरण

5000 रुपये के नोट विमुद्रीकरण सन् 1978 में हुआ

मुद्रा विमुद्रीकरण के तहत सरकार पुरानी मुद्रा को समाप्त कर देती है और नई मुद्रा चलाती है। यानी पुरानी मुद्रा की वैधता नहीं रहती। वह अवैध हो जाती है। आमतौर पर अर्थव्यवस्था में काले धन पर काबू पाने के लिए यह कदम यानी विमुद्रीकरण उठाया जाता है। जब काला धन अर्थव्यवस्था के लिये खतरा बन जाता है तो इसे दूर करने के लिये विमुद्रीकरण अपनाया जाता है। जिनके पास काला धन होता है, वह उसके बदले नई मुद्रा लेने का साहस नहीं जुटा पाते और काला धन स्वयं ही नष्ट हो जाता है।

नकली नोट तथा काला धन बनाम विमुद्रीकरण-

देश में नकली नोट का सम्बन्ध 1991 से प्रारम्भ आर्थिक सुधार से माना जा रहा है। उदारवाद के बाद चार कम्यूनिस्ट पार्टी एवं काँग्रेस समर्थित संयुक्त मोर्चे की सरकार को सन 1996-97 में 3,35,900 करोड़ रुपये की नयी मुद्रा छपवाने की आवश्यकता पड़ी। संयुक्त मोर्चा सरकार ने काले धन की समाप्ति के लिए स्वैच्छिक आय उजागर योजना (वीडीआईएस) शुरु की। वीडीआईएस में लगभग 33,000 करोड़ रुपये का काला धन सामने आया। आरबीआई के टकसाल की क्षमता 2,16,575 करोड़ रुपये की थी, जिससे विदेशों से 1,20,000 करोड़ रुपये के नोट छपवाने माँग हुई। भारतीय मुद्रा छापने वाली विदेशी कम्पनियों को स्पष्ट निर्देश था कि वे भारतीय नोट की प्लेट, स्याही, वाटरमार्क कागज भारत सरकार को सौंपेंगी। वैसे, इंग्लैण्ड की कम्पनी डेलारू देश-विदेशों की सरकारों के नोट छापती है।[1]

500 और 1000 रुपये के नोटों का विमुद्रीकरण

8 नवंबर, 2016 को भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने एक बड़ा कदम उठाते हुए 500 और 1000 के नोटों को उसी रात 12 बजे से बंद किए जाने की घोषणा की। यानी 9 नवंबर से कुछ तय जगहों- पेट्रोल पंप, अस्पताल, रेलवे स्टेशन इत्यादि को छोड़कर देश में कहीं भी 500 और 1000 के नोटों से लेन-देन पर रोक लग गई। इन जगहों पर भी इन नोटों के प्रयोग को तय समय सीमा (अब 24 नवंबर) तक ही इजाज़त दी गई है। जिन लोगों के पास 500 और 1000 के नोट पड़े हैं वो उन्हें 30 दिसंबर तक देश के किसी भी बैंक या डाकघर में जाकर बदल सकते हैं या अपने खातों में जमा कर सकते हैं। सरकार ने पुराने नोटों की जगह 500 और 2000 के नए नोट जारी किए हैं जो लोगों को बैंकों और एटीएम के माध्यम से मिलने शुरू हो गए हैं। हालांकि लेन-देन के पूरी तरह सामान्य होने में कुछ हफ्ते और लगेंगे। इस फैसले में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को आरबीआई के वर्तमान गवर्नर उर्जित पटेल का समर्थन हासिल है। उर्जित पटेल ने प्रधानमंत्री मोदी के फैसले को “बहुत साहसिक कदम” बताया है। हालांकि आरबीआई के पूर्व गवर्नर रघुराम राजन विमुद्रीकरण को कालाधन बाहर लाने के लिए ज्यादा कारगर नहीं मानते हैं। कई अन्य विशेषज्ञों ने भी इस कदम पर सवाल उठाए हैं। भारतीय सांख्यिकी संस्थान, कोलकाता के प्रोफेसर अभिरूप सरकार के अनुसार काला धन रखने वाले ज्यादातर लोग अपने पैसे विदेशी बैंकों में रखते हैं इसलिए देश में विमुद्रीकरण करने से ज्यादा बड़े मछलियों का कुछ नहीं बिगड़ेगा। आरबीआई के अनुसार 31 मार्च 2016 तक भारत में 16.42 लाख करोड़ रुपये मूल्य के नोट बाज़ार में थे जिसमें से करीब 14.18 लाख रुपये 500 और 1000 के नोटों के रूप में थे। आरबीआई की रिपोर्ट के अनुसार कुल देश में तब तक मौजूद कुल 9026 करोड़ नोटों में करीब 24 प्रतिशत नोट (करीब 2203 करोड़ रुपये) ही प्रचलन में थीं।[2]

टीका-टिप्पणी और संदर्भ

  1. भारतीय मुद्रा का विमुद्रीकरण : एक बार फिर (हिन्दी) प्रवक्ता डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 19 नवंबर, 2016।
  2. जानिए क्या है विमुद्रीकरण, क्यों लेती हैं सरकारें इसका फैसला और अब तक भारत में कब-कब ऐसा हुआ है? (हिन्दी) जनसत्ता डॉट कॉम। अभिगमन तिथि: 20 नवंबर, 2016।

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