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'''डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Dr. Hanumappa Sudarshan'',  जन्म: 30 दिसम्बर, 1950) एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्हें आदिवासियों के बीच किये गये कार्यों के लिए पद्मश्री और लाइव्लीहुड अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है।  
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'''डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन''' ([[अंग्रेज़ी]]:''Dr. Hanumappa Sudarshan'',  जन्म: 30 दिसम्बर, 1950) एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्हें आदिवासियों के बीच किये गये कार्यों के लिए [[पद्मश्री]] और लाइव्लीहुड अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन को दो स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा दिये जाने वाले सोशल एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड 2014 का विजेता घोषित किया गया है।
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==जीवन परिचय==
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डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन का जन्म [[30 दिसम्बर]], [[1950]] को येमलूर, [[बेंगळूरू]] में हुआ था। बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और 1973 में डॉक्टर बन गये। एक दिन कुछ दोस्तों के साथ बसावनागुडी के रामकृष्ण आश्रम गये। वह दिन इनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा। इसके बाद से ये [[रामकृष्ण परमहंस|स्वामी रामकृष्ण परमहंस]] और [[स्वामी विवेकानंद]] को पढ़ते गये। उनकी शिक्षाओं ने इनके जीवन का की पूरी दिशा बदल गई। 
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====पहाड़ी पर बनाया क्लीनिक====
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[[1980]] में इन्होंने इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तौर पर [[मैसूर]] के पास बी.आर. हिल्स में विवेकानंद गिरिजन कल्याण केंद्र शुरू किया। इन्होंने अपना क्लीनिक एक पहाड़ी पर झोपड़ी में शुरू किया। चूंकि इन्हें वहां के लोगों से जुड़ना था, इसलिए इन्हें उनके जैसे ही रहना पड़ा। तभी ये उनकी तकलीफ़ों को वाकई समझ पाये। रोगियों को ढूंढ़-ढूंढ़कर उनका इलाज करना पड़ा। शुरू-शुरू में आदिवासियों के तगड़े विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे वे समझते गए और उन्हें इनपर भरोसा भी हो गया। फिर इन्होंने [[कर्नाटक]] और [[तमिल नाडु]] के अलावा [[अरुणाचल प्रदेश]] में भी अपना नेटवर्क फैलाया और अच्छा काम किया।<ref name="JJ"/>
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==विवेकानंद केंद्र एवं करुणा ट्रस्ट==
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डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन के अनुसार [[स्वामी विवेकानंद]] की यह पंक्ति बहुत प्रेरणाप्रद है:- "पूरी दुनिया का खजाना भी एक छोटे से गांव की मदद नहीं कर सकता, जब तक वहां के लोग अपनी मदद खुद करना न सीख जाएं।" विवेकानंद केंद्र के तहत खोले गए स्कूलों से आदिवासी जातियों के कई स्टूडेंट्स ने पी.एचडी तक की। वे बाद में अपनी कम्युनिटी को एजुकेट करने और उनके डेवलपमेंट में लग गए। विवेकानंद केंद्र के प्रयासों का ही फल है कि आज कर्नाटक के सोलिगा जनजाति के 60 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों के पास 300 दिनों तक का रोज़गार होता है। क़रीब 6 साल बाद [[1986]] में डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन ने करुणा ट्रस्ट की स्थापना की। यह विवेकानंद केंद्र से जुड़ा हुआ था। यह [[कर्नाटक]], [[अरुणाचल प्रदेश]] और [[ओडिशा]] में ग्रामीण विकास के लिए काम करता है। चमराजानगर ज़िले के येलंदुर में लेप्रोसी के कई सारे मामले सामने आए। इसी के बाद इन्होंने करुणा ट्रस्ट के विचार पर काम करना शुरू किया। आज कर्नाटक औऱ अरुणाचल प्रदेश में 72 से ज़्यादा प्राइमरी हेल्थकेयर सेंटर्स चल रहे हैं।<ref name="JJ">{{cite web |url=http://www.jagran.com/josh/motive-earned-success-11806613.html |title=मकसद दिलाए सक्सेस |accessmonthday=27 नवम्बर |accessyear=2014 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जोश |language=हिन्दी}}  </ref>
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11:16, 27 नवम्बर 2014 का अवतरण

डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन (अंग्रेज़ी:Dr. Hanumappa Sudarshan, जन्म: 30 दिसम्बर, 1950) एक प्रसिद्ध सामाजिक कार्यकर्ता हैं। इन्हें आदिवासियों के बीच किये गये कार्यों के लिए पद्मश्री और लाइव्लीहुड अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। इसके अतिरिक्त डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन को दो स्वयं सेवी संस्थाओं द्वारा दिये जाने वाले सोशल एंटरप्रेन्योरशिप अवार्ड 2014 का विजेता घोषित किया गया है।

जीवन परिचय

डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन का जन्म 30 दिसम्बर, 1950 को येमलूर, बेंगळूरू में हुआ था। बेंगलुरु मेडिकल कॉलेज से ग्रेजुएशन किया और 1973 में डॉक्टर बन गये। एक दिन कुछ दोस्तों के साथ बसावनागुडी के रामकृष्ण आश्रम गये। वह दिन इनके जीवन का टर्निंग प्वाइंट रहा। इसके बाद से ये स्वामी रामकृष्ण परमहंस और स्वामी विवेकानंद को पढ़ते गये। उनकी शिक्षाओं ने इनके जीवन का की पूरी दिशा बदल गई।

पहाड़ी पर बनाया क्लीनिक

1980 में इन्होंने इंटीग्रेटेड ट्राइबल डेवलपमेंट प्रोजेक्ट के तौर पर मैसूर के पास बी.आर. हिल्स में विवेकानंद गिरिजन कल्याण केंद्र शुरू किया। इन्होंने अपना क्लीनिक एक पहाड़ी पर झोपड़ी में शुरू किया। चूंकि इन्हें वहां के लोगों से जुड़ना था, इसलिए इन्हें उनके जैसे ही रहना पड़ा। तभी ये उनकी तकलीफ़ों को वाकई समझ पाये। रोगियों को ढूंढ़-ढूंढ़कर उनका इलाज करना पड़ा। शुरू-शुरू में आदिवासियों के तगड़े विरोध का भी सामना करना पड़ा, लेकिन धीरे-धीरे वे समझते गए और उन्हें इनपर भरोसा भी हो गया। फिर इन्होंने कर्नाटक और तमिल नाडु के अलावा अरुणाचल प्रदेश में भी अपना नेटवर्क फैलाया और अच्छा काम किया।[1]

विवेकानंद केंद्र एवं करुणा ट्रस्ट

डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन के अनुसार स्वामी विवेकानंद की यह पंक्ति बहुत प्रेरणाप्रद है:- "पूरी दुनिया का खजाना भी एक छोटे से गांव की मदद नहीं कर सकता, जब तक वहां के लोग अपनी मदद खुद करना न सीख जाएं।" विवेकानंद केंद्र के तहत खोले गए स्कूलों से आदिवासी जातियों के कई स्टूडेंट्स ने पी.एचडी तक की। वे बाद में अपनी कम्युनिटी को एजुकेट करने और उनके डेवलपमेंट में लग गए। विवेकानंद केंद्र के प्रयासों का ही फल है कि आज कर्नाटक के सोलिगा जनजाति के 60 फ़ीसदी से ज़्यादा लोगों के पास 300 दिनों तक का रोज़गार होता है। क़रीब 6 साल बाद 1986 में डॉ. हनुम्प्पा सुदर्शन ने करुणा ट्रस्ट की स्थापना की। यह विवेकानंद केंद्र से जुड़ा हुआ था। यह कर्नाटक, अरुणाचल प्रदेश और ओडिशा में ग्रामीण विकास के लिए काम करता है। चमराजानगर ज़िले के येलंदुर में लेप्रोसी के कई सारे मामले सामने आए। इसी के बाद इन्होंने करुणा ट्रस्ट के विचार पर काम करना शुरू किया। आज कर्नाटक औऱ अरुणाचल प्रदेश में 72 से ज़्यादा प्राइमरी हेल्थकेयर सेंटर्स चल रहे हैं।[1]

सम्मान और पुरस्कार

  • 1984 : कर्नाटक सरकार की ओर से राज्योत्सव स्टेट अवार्ड
  • 1994 : राइट लाइव्लीहुड अवॉर्ड (आदिवासियों पर काम के लिए)
  • 2000 : भारत सरकार से पद्मश्री सम्मान
  • 2014 : सोशल एंटरप्रेन्योर ऑफ द ईयर[1]



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. 1.0 1.1 1.2 मकसद दिलाए सक्सेस (हिन्दी) जागरण जोश। अभिगमन तिथि: 27 नवम्बर, 2014।

बाहरी कड़ियाँ

संबंधित लेख

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