कुमाऊँ

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कुमाऊँ का एक दृश्य

कुमाऊँ उत्तराखण्ड की राज्य में प्रशासनिक सुविधा के उद्देश्य से बनाऐ गये दो मुख्य संभाग (मंडल) में से एक है। दूसरा मण्डल है गढ़वाल। कुमाऊँ संभाग (मंडल) में नैनीताल, पिथौरागढ़, अल्मोड़ा , बागेश्वर, चम्पावत तथा उधमसिंह नगर जनपद सम्मिलित हैं जबकि गढवाल संभाग में पौडी गढ़वाल, टिहरी गढ़वाल, उत्तरकाशी, देहरादून, चमोली, रुद्रप्रयाग तथा हरिद्वार जनपद शामिल है। कुमाऊँ का प्राचीन पौराणिक नाम 'कूर्माचल' है। कुमाऊँ में प्रशासनात्मक इकाई इसमें नेपाल के पश्चिम हिमालय पर्वत की बाहरी श्रेणियाँ, तराई और भाभर की दो पट्टियाँ सम्मिलित हैं।

इतिहास

कुमाऊँ में प्राचीन काल में किन्नर, किरात और नाग लोग रहते थे। तदनंतर कुमाऊँ में खस लोग आए और इन लोगों को पराजित कर यहाँ बहुत दिनों तक राज्य करते रहे। नवीं शती ई. के आसपास कत्यूरी वंश ने अपना प्रभुत्व स्थापित किया। कदाचित ये लोग शक थे। यह वंश 1050 ई. तक राज्य करता रहा। उसके बाद के तीन-साढ़े तीन सौ वर्ष के बीच अनेक वंश के राजाओं का अधिकार रहा किंतु उनके संबंध की जानकारी उपलब्ध नहीं है। 1400 ई. के लगभग चंद्रवंश के अधिकार में यह प्रदेश आया। भारतीचंद्र, रतनचंद, किरातीचंद, माणिकचंद, रुद्रचंद के पश्चात् 17 वीं शती में बाजबहादुरचंद्र (1638-78 ई.) राजा हुए। उन्होंने तिब्बत पर आक्रमणकर उसे अपने अधिकार में कर लिया। 18वीं शती में रुहेलों में कुमाऊँ पर आक्रमण किया और अनेक मंदिर ध्वस्त किए। उन्होंने स्वयं तो अपना राज्य स्थापित नहीं किया किंतु चंद्रवंश की स्थिति इतनी नाजुक हो गई कि नेपाल के गोरखा शासकों ने उसपर अधिकार कर लिया। 1815 ई. में अंग्रेज़ों ने इसे गोरखों से ले लिया और यह भारत का एक अंग बन गया। इस प्रदेश के निवासी मुख्यत: ब्राह्मण, राजपूत और शिल्पकार हैं। दूसरी से छठीं शती ई. तक इस प्रदेश पर बौद्ध धर्म का प्रभाव रहा। उस समय अधिकांश खस और शिल्पकारों ने बौद्ध धर्म ग्रहण कर लिया था। 12वीं शताब्दी के पश्चात् उस प्रदेश पर हिन्दू धर्म का प्रभाव बढ़ा।

पौराणिक मान्यता

पौराणिक आख्यानों के अनुसार अपने पिता दक्ष के यहाँ यज्ञ के अवसर पर पति महादेव का अपमान देखकर पार्वती ने कुमाऊँ में ही अग्निप्रवेश किया था। स्वर्गयात्रा के समय पांडव यहीं आए थे ऐसा महाभारत में कहा गया है।

भूगोल

कुमाऊँ में 1850 ई. तक तराई और भाभ्र क्षेत्रों में दुर्गम और घने जंगल थे, जिनमें केवल जंगली जानवर रहा करते थे। धीरे-धीरे जंगलों को साफ़ किया गया तथा पहाड़ पर रहने वाले लोगों का ध्यान इधर आकर्षित हुआ। पहाड़ी लोग गर्मी और जाड़े में नीचे आकर इन क्षेत्रों में खेती करते हैं तथा वर्षा में पहाड़ों पर लौट जाते हैं। कुमाऊँ में विशाल पर्वतश्रेणियाँ हैं। 140 मील लंबे तथा 40 मील चौड़े इस पहाड़ी क्षेत्र में लगभग 30 ऐसी चोटियाँ हैं, जिनकी ऊँचाई समुद्रतल से 18,000 फुट से भी अधिक है; जिनमें नंदा देवी पर्वत, त्रिशूल, नंदाकोट और पंचूली विशेष प्रख्यात है। तिब्बत की जलविभाजक श्रेणियों की दक्षिणी ढालों से अनेक नदियाँ निकलती हैं तथा इन विशाल चोटियों को काटती हुई आगे बढ़ती हैं; इससे अत्यंत गहरी घाटियाँ बन गई हैं। इनमें से बहनेवाली प्रमुख नदियों के नाम शारदा नदी या काली नदी, पिंडारी और काली गंगा हैं। ये सभी नदियाँ अलकनंदा नदी से मिल जाती हैं। जंगलों से मूल्यवान लकड़ियाँ मिलती हैं। इन जंगलों में चीड़, देवदार, सरोया साइप्रस, फ़र, साल, सैदान और ऐल्डर आदि के वृक्ष मुख्य हैं। खनिज पदार्थों की दृष्टि से यह क्षेत्र अत्यंत धना हैं; इसमें लोहा, ताँबा, जिप्सम, सीसा और ऐसबेस्टस जैसे महत्त्वपूर्ण खनिज मिलते है। कुमाऊँ के तराई, भाभर और गहरी घाटियों को छोड़कर अन्य सभी भागों की जलवायु सम तथा अनुकूल हैं। कुमाऊँ के बाह्य हिमालय की दक्षिणी ढालों पर अधिक वर्षा होती है, क्योंकि वे मानसून के मार्ग में सर्वप्रथम पड़ते हैं। 40 से 80 इंच तक इस क्षेत्र में औसत वार्षिक वर्षा होती है। जाड़े के दिनों में प्रति वर्षा ऊँची चोटियों पर हिमपात होता है। किसी किसी वर्ष तो पूरा क्षेत्र ही हिमच्छादित हो जाता है।

क्षेत्रफल

कुमाऊँ क्षेत्रफल 23,676 वर्ग किलोमीटर है। इसके उत्तर तिब्बत, पूर्व नेपाल और पश्चिम में शिवालिक पर्वतश्रृंखला है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

“खण्ड 3”, हिन्दी विश्वकोश, 1966 (हिन्दी), भारतडिस्कवरी पुस्तकालय: नागरी प्रचारिणी सभा वाराणसी, 64।

बाहरी कड़ियाँ

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