घोटुल प्रथा

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घोटुल प्रथा छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र, आंध्र प्रदेश के जनजातीय इलाकों में, गोंड एवं मुरिया समाज में प्रचलित एक सामाजिक, धार्मिक, सांस्कृतिक परंपरा है।

  • घोटुल मिट्टी और लकड़ी आदि से बनी एक बड़ी-सी कुटिया को कहते हैं, जहाँ आदिवासी समुदाय की युवक-युवतियां को, बुजुर्ग व्यक्ति की देख-रेख में, आपस में मिलने-जुलने, जानने-समझने का अवसर दिया जाता है।
  • घोटुल में भाग लेने वाली युवतियों को 'मोतियारी' एवं लड़कों को 'छेलिक' तथा उनके प्रमुख को 'बेलोसा' एवं 'सरदार' कहा जाता है।
  • यह प्रथा, उनकी स्वतंत्रता, प्रसन्नता, परस्पर मैत्री, सहानुभूति एवं प्रेम का परिचायक है।
  • इसमें युवक कहानियां सुनाते हैं, पहेलियां बुझाते हैं, दैनिक काम-काज सुलझाते हैं। बाद में वे त्योहारों में पुरोहितों के सहायक के रूप में कार्य कर सकते हैं और युवतियां, समाज में, किसी युवती के विवाह के अवसर पर, उसकी सहायिका बनकर।
  • गोंड परंपरा के अनुसार, लिंगों ने, जो उनके सबसे बड़े देवता हैं, घोटुल प्रथा की शुरुआत की थी।


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