पंचायत व्यवस्था

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1988 में पी. के. थुंगन समिति का गठन पंचायती संस्थाओं पर विचार करने के लिए किया गया। इस समिति ने अपने प्रतिवेदन में कहा कि राज संस्थाओं को संविधान में स्थान दिया जाना चाहिए। इस समिति की सिफ़ारिश के आधार पंचायती राज को संवैधानिक मान्यता प्रदान करने के लिए 1989 में 64वाँ संविधान संशोधन लोकसभा में पेश किया गया, जिसे लोक सभा के द्वारा पारित कर दिया गया, लेकिन राज्य सभा के द्वारा नामंजूर कर दिया गया। इसके बाद लोकसभा को भंग कर दिए जाने के कारण यह विधेयक समाप्त कर दिया गया। इसके बाद 74वाँ संविधान संशोधन पेश किया गया, जो लोकसभा के भंग किये जाने के कारण समाप्त हो गया। इसके बाद 16 दिसम्बर, 1991 को 72वाँ संविधान संशोधन विधेयक पेश किया गया, जिसे संयुक्त संसदीय समिति (प्रवर समिति) को सौंप दिया गया। इस समिति ने विधेयक पर अपनी सम्मति जुलाई 1992 में दी और विधेयक के क्रमांक को बदलकर 73वाँ संविधान संशोधन विधेयक कर दिया गया, जिसे 22 दिसम्बर, 1992 को लोकसभा ने तथा 23 दिसम्बर, 1992 को राज्यसभा ने पारित कर दिया। 17 राज्य विधान सभाओं के द्वारा अनुमोदित किय जाने पर इसे राष्ट्रपति की सम्मति के लिए उनके समक्ष पेश किया गया। राष्ट्रपति ने 20 अप्रैल, 1993 को इस पर अपनी सम्मति दे दी और इसे 24 अप्रैल, 1993 को प्रवर्तित कर दिया गया।

विभिन्न राज्यों में वर्तमान पंचायती राज्य संस्थाएँ
राज्य स्तर संस्थाएँ
केरल एक स्तरीय ग्राम पंचायत
जम्मू-कश्मीर एक स्तरीय ग्राम पंचायत
त्रिपुरा एक स्तरीय ग्राम पंचायत
मणिपुर एक स्तरीय ग्राम पंचायत
सिक्किम एक स्तरीय ग्राम पंचायत
असम दो स्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
मध्य प्रदेश दो स्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
कर्नाटक दो स्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
उड़ीसा दो स्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
हरियाणा दो स्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति
उत्तर प्रदेश त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
बिहार त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
राजस्थान त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
महाराष्ट्र त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
आन्ध्र प्रदेश त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
हिमाचल प्रदेश त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
पंजाब त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
तमिलनाडु त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
गुजरात त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-पंचायत समिति, 3-ज़िला पंचायत
पश्चिम बंगाल चार स्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-अचल पंचायत, 3-आंचलिक परिषद, 4-ज़िला पंचायत
मेघालय एक स्तरीय जनजातिय परिषद
नागालैण्ड एक स्तरीय जनजातिय परिषद
मिज़ोरम एक स्तरीय जनजातिय परिषद
गोवा त्रिस्तरीय 1-ग्राम पंचायत, 2-तालुका समिति, 3-ज़िला पंचायत

पंचायत व्यवस्था के सम्बन्ध में प्रावधान संविधान के भाग 9 में 16 अनुच्छेदों में शामिल किया गया, जो निम्न प्रकार हैं–

  1. पंचायत व्यवस्था के अन्तर्गत सबसे निचले स्तर पर ग्रामसभा होगी। इसमें एक या एक से अधिक गाँव शामिल किए जा सकते हैं। ग्रामसभा की शक्तियों के सम्बन्ध में राज्य विधान मण्डल द्वारा क़ानून बनाया जाएगा।
  2. जिन राज्यों की जनसंख्या 20 लाख से कम है, उनमें दो स्तरीय पंचायत, अर्थात् ज़िला स्तर और गाँव स्तर पर, का गठन किया जाएगा और 20 लाख की जनसंख्या से अधिक वाले राज्यों में त्रिस्तरीय पंचायत राज्य, अर्थात् गाँव, मध्यवर्ती तथा ज़िला स्तर पर, की स्थापना की जाएगी।
  3. सभी स्तर के पंचायतों के सभी सदस्यों का चुनाव वयस्क मतदाताओं द्वारा प्रत्येक पाँचवें वर्ष में किया जाएगा। गाँव स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव प्रत्यक्षतः तथा मध्यवर्ती एवं ज़िला स्तर के पंचायत के अध्यक्ष का चुनाव अप्रत्यक्ष रूप से किया जाएगा।
  4. पंचायत के सभी स्तरों पर अनुसूचित जाति तथा अनुसूचित जनजाति के सदस्यों के लिए उनके अनुपात में आरक्षण प्रदान किया जाएगा तथा महिलाओं के लिए 30% आरक्षण होगा।
  5. सभी स्तर की पंचायतों का कार्यकाल पाँच वर्ष होगा, लेकिन इनका विघटन पाँच वर्ष के पहले भी किया जा सकता है, परन्तु विघटन की दशा में 6 मास के अन्तर्गत चुनाव कराना आवश्यक होगा।
  6. पंचायतों को कौन सी शक्तियाँ प्राप्त होंगी और वे किन उत्तरदायित्वों का निर्वाह करेंगी, इसकी सूची संविधान में ग्याहरवीं अनुसूची में दी गयी हैं। इस सूची में पंचायतों के कार्य निर्धारण के लिए 29 कार्य क्षेत्रों को चिह्नित किया गया है, जो निम्न प्रकार हैं-
    1. कृषि, जिसके अन्तर्गत कृषि विस्तार भी है
    2. भूमि सुधार और मृदा संरक्षण
    3. लघु सिंचाई, जल प्रबन्ध और जल आच्छादन विकास
    4. पशु पालन, दुग्ध उद्योग और कुक्कुट पालन
    5. मत्स्य उद्योग
    6. सामाजिक वनोद्योग और फ़ार्म वनोद्योग
    7. लघु वन उत्पाद
    8. लघु उद्योग, जिसके अन्तर्गत खाद्य प्रसंस्करण उद्योग भी है
    9. खादी, ग्राम और कुटीर उद्योग
    10. ग्रामीण आवास
    11. पेय जल
    12. ईधन और चारा
    13. सड़कें, पुलिया, पुल, नौघाट, जल मार्ग और संचार के अन्य साधन
    14. ग्रामीण विद्युतीकरण, जिसके अन्तर्गत विद्युत का वितरण भी है
    15. ग़ैर पारम्परिक ऊर्जा स्रोत
    16. ग़रीबी उपशमन कार्यक्रम
    17. शिक्षा, जिसके अन्तर्गत प्राथमिक और माध्यमिक विद्यालय भी हैं
    18. तकनीकी प्रशिक्षण और व्यावसायिक शिक्षा
    19. प्रौढ़ और अनौपचारिक शिक्षा
    20. पुस्तकालय
    21. सांस्कृतिक क्रिया कलाप
    22. बाज़ार और मेले
    23. स्वास्थ्य और स्वच्छता (अस्पताल, प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र और औषधालय)
    24. परिवार कल्याण
    25. महिला और बाल विकास
    26. समाज कल्याण (विकलांग और मानसिक रूप से अविकसित सहित)
    27. कमज़ोर वर्गों का (विशेष रूप से अनुसूचित जातियों तथा जनजातियों का) कल्याण
    28. लोक वितरण प्रणाली
    29. सामुदायिक आस्तियों का अनुरक्षण
  7. राज्य विधान मण्डल क़ानून बनाकर पंचायतों को उपयुक्त स्थानीय कर लगाने, उन्हें वसूल करने तथा उनसे प्राप्त धन को व्यय करने का अधिकार प्रदान कर सकती है।
  8. पंचायतों की वित्तीय अवस्था के सम्बन्ध में जांच करने के लिए प्रति पाँचवें वर्ष वित्तीय आयोग का गठन किया जाएगा, जो राज्यपाल को अपनी रिपोर्ट देगा।



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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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