लुडमिला पावलीचेंको

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लुडमिला पावलीचेंको

लुडमिला पावलीचेंको (अंग्रेज़ी: Lyudmila Pavlichenko, जन्म- 12 जुलाई, 1916, बिला त्सरकवा, रूस; मृत्यु- 10 अक्टूबर, 1974, मॉस्को) दूसरे विश्वयुद्ध की वीरांगना महिलाओं में से एक थीं। वह इतिहास की सबसे कामयाब स्नाइपर्स में से एक रही थीं। 1941 में सोवियत यूनियन पर नाज़ियों ने हमला कर दिया था। इसके बाद लुडमिला पावलीचेंको युद्ध में कूद गईं। उनके नाम 309 जर्मन सैनिकों को अपनी राइफल से मार गिराने का ख़िताब है।

  • लुडमिला पावलीचेंको की गोली का शिकार होने वाले दुश्मन सैनिकों में दर्जनों ऐसे थे, जो खुद भी स्नाइपर थे। चूहे-बिल्ली की लुका-छिपी के खेल में लुडमिला पावलीचेंको ने इन्हें मौत की नींद सुला दिया।
  • सेवास्तापोल और ओडेसा की जंग में लुडमिला पावलीचेंको की ख्याति ऐसी फैली कि लोग उन्हें लेडी डेथ के नाम से बुलाने लगे।
  • नाज़ी स्नाइपर कभी उन्हें निशाना नहीं बना पाए, लेकिन, लुडमिला पावलीचेंको एक मोर्टार के फायर से घायल हो गईं। हालांकि, वह इस चोट से उबर गईं, लेकिन उन्हें फ्रंटलाइन से हटा लिया गया। उन्हें ऐसे काम में लगा दिया गया, जहां वह अपनी ख्याति का इस्तेमाल सोवियत यूनियन के युद्ध के प्रयासों के लिए समर्थन जुटाने में कर सकें।
लुडमिला पावलीचेंको
  • रेड आर्मी की पोस्टर गर्ल के तौर पर लुडमिला पावलीचेंको ने कई देशों की यात्राएं कीं। इसी सिलसिले में वह अमरीकी राष्ट्रपति फ्रैंकलिन डी रूज़वेल्ट से भी मिलीं।
  • हालांकि लुडमिला पावलीचेंको को "गोल्ड स्टार ऑफ़ द हीरो ऑफ़ द सोवियत यूनियन" का सम्मान दिया गया था, लेकिन बाद में उनकी उपलब्धियों को इतिहास से निकाल दिया गया।
  • जेंडर इक्वैलिटी एक्टिविस्ट और ब्रॉडकास्टर इरयाना स्वाविंस्का ने बीबीसी को बताया, "यह आश्चर्यजनक है कि एक असाधारण क्षमताओं वाली महिला स्नाइपर को उनकी मौत के बाद उचित सम्मान नहीं दिया गया।" वह बताती हैं कि "लेकिन, दूसरे विश्व युद्ध के बारे में सोवियत संघ का नजरिया केवल अपने बहादुर पुरुष सैनिकों तक सीमित रहा। सोचिए किस तरह से युद्ध नायकों के नाम पर बने सारे मकबरे पुरुष सैनिकों के हैं। इस पूरे नैरेटिव में महिलाएं कहीं नहीं दिखाई देतीं।"[1]
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