अब अंतर में अवसाद नहीं चापल्य नहीं उन्माद नहीं सूना-सूना सा जीवन है कुछ शोक नहीं आल्हाद नहीं तव स्वागत हित हिलता रहता अंतरवीणा का तार प्रिये .. इच्छाएँ मुझको लूट चुकी आशाएं मुझसे छूट चुकी सुख की सुन्दर-सुन्दर लड़ियाँ मेरे हाथों से टूट चुकी खो बैठा अपने हाथों ही मैं अपना कोष अपार प्रिये फिर कर लेने दो प्यार प्रिये ..