"बुख़्ल की बुराइयाँ -नज़ीर अकबराबादी": अवतरणों में अंतर
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जब मौत का होवेगा तुझे आन के धड़का | जब मौत का होवेगा तुझे आन के धड़का | ||
और नज़आ | और नज़आ<ref>नज़आ=मरने के वक़्त</ref> तेरी आन के देवेगी भड़का | ||
जब उसमें तू अटकेगा, न दम निकलेगा फड़का | जब उसमें तू अटकेगा, न दम निकलेगा फड़का | ||
कुप्पों में रूपै डाल के जब देवेंगे भड़का | कुप्पों में रूपै डाल के जब देवेंगे भड़का |
12:29, 27 दिसम्बर 2012 के समय का अवतरण
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ज़र की जो मुहब्बत तुझे पड़ जावेगी बाबा! |
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