"अनेगुंडी": अवतरणों में अंतर
गोविन्द राम (वार्ता | योगदान) No edit summary |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replace - "नक्काशी" to "नक़्क़ाशी") |
||
(एक दूसरे सदस्य द्वारा किया गया बीच का एक अवतरण नहीं दर्शाया गया) | |||
पंक्ति 1: | पंक्ति 1: | ||
[[चित्र: | [[चित्र:Anegundi-Fort.jpg|thumb|250px|अनेगुंडी क़िला]] | ||
'''अनेगुंडी''' [[तुंगभद्रा नदी]] के तट पर बसा हुआ अत्यंत प्राचीन नगर, जो [[कर्नाटक]] राज्य के [[रायचूर ज़िला|रायचूर ज़िले]] में स्थित है। नगर के दूसरी ओर [[हंपी]] के खण्डहर हैं जहाँ 16वीं [[सदी|शती]] का प्रसिद्ध ऐश्वर्यशाली नगर विजयनगर स्थित था। | '''अनेगुंडी''' [[तुंगभद्रा नदी]] के तट पर बसा हुआ अत्यंत प्राचीन नगर, जो [[कर्नाटक]] राज्य के [[रायचूर ज़िला|रायचूर ज़िले]] में स्थित है। नगर के दूसरी ओर [[हंपी]] के खण्डहर हैं जहाँ 16वीं [[सदी|शती]] का प्रसिद्ध ऐश्वर्यशाली नगर विजयनगर स्थित था। | ||
==इतिहास== | ==इतिहास== | ||
[[तालीकोट का युद्ध|तालीकोट]] के निर्णायक युद्ध (1565 ई.) के पश्चात् हंपी और अनेगुंडी दोनों ही नगरों को [[मुसलमान]] विजेताओं ने लूट कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। अनेगुंडी शब्द का अर्थ हाथी-घर है। यहीं विजयनगर दरबार के हाथी-घर है। यहीं विजयनगर दरबार के हाथी रखे जाते थे। अब यह जगह बिल्कुल खण्डहर हो गई है। कुछ विद्वानों के मत में चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] द्वारा वर्णित 'कोंगकीनयापुल' या कंकुनपुर यही अनेगुंडी था। | [[तालीकोट का युद्ध|तालीकोट]] के निर्णायक युद्ध (1565 ई.) के पश्चात् हंपी और अनेगुंडी दोनों ही नगरों को [[मुसलमान]] विजेताओं ने लूट कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। अनेगुंडी शब्द का अर्थ हाथी-घर है। यहीं विजयनगर दरबार के हाथी-घर है। यहीं विजयनगर दरबार के हाथी रखे जाते थे। अब यह जगह बिल्कुल खण्डहर हो गई है। कुछ विद्वानों के मत में चीनी यात्री [[युवानच्वांग]] द्वारा वर्णित 'कोंगकीनयापुल' या कंकुनपुर यही अनेगुंडी था। | ||
==स्थापत्य== | ==स्थापत्य== | ||
[[विजय नगर साम्राज्य|विजयनगर]] के नरेशों द्वारा बनवाए हुए भवनों के चिह्न यहाँ अब भी वर्तमान हैं। 'ओंचा अप्पमठ' के स्तंभ और गणेश मंदिर की पाषाणजालियां तथा सुन्दर उत्कीर्ण मूर्तियां प्राचीन कला-वैभव के ज्वलंत उदाहरण है। स्तंभ काले पत्थर के बने हुए हैं और उन पर गहरी | [[विजय नगर साम्राज्य|विजयनगर]] के नरेशों द्वारा बनवाए हुए भवनों के चिह्न यहाँ अब भी वर्तमान हैं। 'ओंचा अप्पमठ' के स्तंभ और गणेश मंदिर की पाषाणजालियां तथा सुन्दर उत्कीर्ण मूर्तियां प्राचीन कला-वैभव के ज्वलंत उदाहरण है। स्तंभ काले पत्थर के बने हुए हैं और उन पर गहरी नक़्क़ाशी है। स्तंभों की नक़्क़ाशी और उन पर मूर्तियों का उत्किरण बिलारी ज़िले के हुविना हदगट्ट मन्दिर की याद दिलाते हैं। ओंचाअप्प मठ की छत पर प्राचीन चित्रकारी के अंश भी मिले हैं। एक फलक पर [[हाथी]] की मुद्रा में स्थित पांच नर्तकियों के ऊपर [[शिव]] को आसीन दिखाया गया है। इसी प्रकार घोड़े तथा पालकी की आकृतियों के रूप में स्त्रियों का अंकन किया गया है। यह चित्रकारी शायद 17 वीं शती की है। जनश्रुति के अनुसार [[रामायण]] में वर्णित वानरों की राजधानी [[किष्किंधा]] अनेगुंडी के स्थान पर ही बसी हुई थी। | ||
{{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | {{लेख प्रगति|आधार=|प्रारम्भिक=प्रारम्भिक1 |माध्यमिक= |पूर्णता= |शोध= }} | ||
==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
{{कर्नाटक के नगर}} | {{कर्नाटक के नगर}} |
13:56, 2 सितम्बर 2013 के समय का अवतरण

अनेगुंडी तुंगभद्रा नदी के तट पर बसा हुआ अत्यंत प्राचीन नगर, जो कर्नाटक राज्य के रायचूर ज़िले में स्थित है। नगर के दूसरी ओर हंपी के खण्डहर हैं जहाँ 16वीं शती का प्रसिद्ध ऐश्वर्यशाली नगर विजयनगर स्थित था।
इतिहास
तालीकोट के निर्णायक युद्ध (1565 ई.) के पश्चात् हंपी और अनेगुंडी दोनों ही नगरों को मुसलमान विजेताओं ने लूट कर नष्ट-भ्रष्ट कर दिया था। अनेगुंडी शब्द का अर्थ हाथी-घर है। यहीं विजयनगर दरबार के हाथी-घर है। यहीं विजयनगर दरबार के हाथी रखे जाते थे। अब यह जगह बिल्कुल खण्डहर हो गई है। कुछ विद्वानों के मत में चीनी यात्री युवानच्वांग द्वारा वर्णित 'कोंगकीनयापुल' या कंकुनपुर यही अनेगुंडी था।
स्थापत्य
विजयनगर के नरेशों द्वारा बनवाए हुए भवनों के चिह्न यहाँ अब भी वर्तमान हैं। 'ओंचा अप्पमठ' के स्तंभ और गणेश मंदिर की पाषाणजालियां तथा सुन्दर उत्कीर्ण मूर्तियां प्राचीन कला-वैभव के ज्वलंत उदाहरण है। स्तंभ काले पत्थर के बने हुए हैं और उन पर गहरी नक़्क़ाशी है। स्तंभों की नक़्क़ाशी और उन पर मूर्तियों का उत्किरण बिलारी ज़िले के हुविना हदगट्ट मन्दिर की याद दिलाते हैं। ओंचाअप्प मठ की छत पर प्राचीन चित्रकारी के अंश भी मिले हैं। एक फलक पर हाथी की मुद्रा में स्थित पांच नर्तकियों के ऊपर शिव को आसीन दिखाया गया है। इसी प्रकार घोड़े तथा पालकी की आकृतियों के रूप में स्त्रियों का अंकन किया गया है। यह चित्रकारी शायद 17 वीं शती की है। जनश्रुति के अनुसार रामायण में वर्णित वानरों की राजधानी किष्किंधा अनेगुंडी के स्थान पर ही बसी हुई थी।
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख