"देवीकूप शक्तिपीठ": अवतरणों में अंतर
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;देवीकूप शक्तिपीठ / भद्रकाली पीठ / कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ | |||
'''देवीकूप शक्तिपीठ''' [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] में से एक है। [[हिन्दू धर्म]] के [[पुराण|पुराणों]] के अनुसार जहां-जहां [[सती]] के अंग के टुकड़े, धारण किए [[वस्त्र]] या [[आभूषण]] गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन [[तीर्थ स्थान|तीर्थस्थान]] कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में [[शक्तिपीठ|51 शक्तिपीठों]] का वर्णन है। | |||
==स्थिति== | ==स्थिति== | ||
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==पौराणिक संदर्भ== | ==पौराणिक संदर्भ== | ||
यहाँ सती के दाएँ चरण (गुल्फ) का निपात हुआ था। | यहाँ [[सती]] के दाएँ चरण (गुल्फ) का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'सावित्री' तथा भैरव 'स्थाणु' हैं। इस स्थान का माहात्म्य तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। कहते हैं कि यहाँ पर [[पाण्डव|पाण्डवों]] ने [[महाभारत]] युद्ध से पूर्व विजय की कामना से [[काली देवी|माँ काली]] की उपासना की थी और विजय के पश्चात् [[स्वर्ण]] का अश्व चढ़ाया था। आज भी यह प्रथा है कि [[भक्त]] यहाँ पर स्वर्ण का तो नहीं, किंतु काठ का घोड़ा चढ़ाते हैं। किम्वदंती है कि [[कृष्ण]] तथा [[बलराम]] का यहीं पर 'मुण्डन संस्कार' भी संपन्न हुआ था। | ||
==प्रतिमाएँ== | ====प्रतिमाएँ==== | ||
इस पीठ में भद्रकाली की विलक्षण प्रतिमा है। गणों के रूप में दक्षिणमुखी [[हनुमान]], [[गणेश]] तथा भैरव विद्यमान हैं। यहीं स्थाणु शिव का अद्भुत [[शिवलिंग]] भी है,जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक एवं सर्प अंकित हैं। मान्यता है कि पहले स्थाणु [[शिव]] का दर्शन करके तब भद्रकाली का दर्शन करना चाहिए। | इस पीठ में भद्रकाली की विलक्षण प्रतिमा है। गणों के रूप में दक्षिणमुखी [[हनुमान]], [[गणेश]] तथा भैरव विद्यमान हैं। यहीं स्थाणु शिव का अद्भुत [[शिवलिंग]] भी है, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, [[तिलक]] एवं सर्प अंकित हैं। मान्यता है कि पहले स्थाणु [[शिव]] का दर्शन करके तब भद्रकाली का दर्शन करना चाहिए। | ||
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मंदिर के दक्षिण तरफ द्वैपायन सरोवर तथा उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर सूर्य यंत्र तथा दक्षेश्वर महादेव का मंदिर भी है। | *मंदिर के दक्षिण तरफ 'द्वैपायन सरोवर' तथा उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर 'सूर्य यंत्र' तथा 'दक्षेश्वर महादेव का मंदिर' भी है। | ||
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देवीकूप शक्तिपीठ
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वर्णन | हरियाणा स्थित 'देवीकूप शक्तिपीठ' भारतवर्ष के अज्ञात 108 एवं ज्ञात 51 पीठों में से एक है। इसका हिन्दू धर्म में बड़ा ही महत्त्व है। |
स्थान | कुरुक्षेत्र, हरियाणा |
देवी-देवता | देवी 'सावित्री' तथा भैरव 'स्थाणु'। |
संबंधित लेख | शक्तिपीठ, सती |
पौराणिक मान्यता | मान्यतानुसार यह माना जाता है कि इस स्थान पर देवी सती के दाएँ चरण (गुल्फ) का निपात हुआ था। |
अन्य जानकारी | इस पीठ में भद्रकाली की विलक्षण प्रतिमा है। गणों के रूप में दक्षिणमुखी हनुमान, गणेश तथा भैरव विद्यमान हैं। यहीं स्थाणु शिव का अद्भुत शिवलिंग भी है, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक एवं सर्प अंकित हैं। |
- देवीकूप शक्तिपीठ / भद्रकाली पीठ / कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ
देवीकूप शक्तिपीठ 51 शक्तिपीठों में से एक है। हिन्दू धर्म के पुराणों के अनुसार जहां-जहां सती के अंग के टुकड़े, धारण किए वस्त्र या आभूषण गिरे, वहां-वहां शक्तिपीठ अस्तित्व में आये। ये अत्यंत पावन तीर्थस्थान कहलाये। ये तीर्थ पूरे भारतीय उपमहाद्वीप पर फैले हुए हैं। देवीपुराण में 51 शक्तिपीठों का वर्णन है।
स्थिति
यह शक्तिपीठ हरियाणा के कुरुक्षेत्र जंक्शन तथा थानेश्वर रेलवे स्टेशन के दोनों ओर से 4 किलोमीटर दूर झाँसी मार्ग पर, 'द्वैपायन सरोवर' के पास स्थित है। कुरुक्षेत्र शक्तिपीठ, जिसे 'श्रीदेवीकूप' कहा जाता है, 'भद्रकाली पीठ' के नाम से मान्य है।
पौराणिक संदर्भ
यहाँ सती के दाएँ चरण (गुल्फ) का निपात हुआ था। यहाँ की शक्ति 'सावित्री' तथा भैरव 'स्थाणु' हैं। इस स्थान का माहात्म्य तंत्र चूड़ामणि में भी मिलता है। कहते हैं कि यहाँ पर पाण्डवों ने महाभारत युद्ध से पूर्व विजय की कामना से माँ काली की उपासना की थी और विजय के पश्चात् स्वर्ण का अश्व चढ़ाया था। आज भी यह प्रथा है कि भक्त यहाँ पर स्वर्ण का तो नहीं, किंतु काठ का घोड़ा चढ़ाते हैं। किम्वदंती है कि कृष्ण तथा बलराम का यहीं पर 'मुण्डन संस्कार' भी संपन्न हुआ था।
प्रतिमाएँ
इस पीठ में भद्रकाली की विलक्षण प्रतिमा है। गणों के रूप में दक्षिणमुखी हनुमान, गणेश तथा भैरव विद्यमान हैं। यहीं स्थाणु शिव का अद्भुत शिवलिंग भी है, जिसमें प्राकृतिक रूप से ललाट, तिलक एवं सर्प अंकित हैं। मान्यता है कि पहले स्थाणु शिव का दर्शन करके तब भद्रकाली का दर्शन करना चाहिए।
मंदिर और त्योहार
- मंदिर के दक्षिण तरफ 'द्वैपायन सरोवर' तथा उत्तरी-पश्चिमी किनारे पर 'सूर्य यंत्र' तथा 'दक्षेश्वर महादेव का मंदिर' भी है।
- नवरात्रों में तथा प्रत्येक शनिवार को यहाँ अपार भक्त समूह पूजा हेतु आता है।
यातायात और आवास
- यात्रियों के ठहरने के लिए मंदिर परिसर में ही धर्म कक्ष भी मौजूद है।
- दिल्ली-अमृतसर रेलमार्ग पर कुरुक्षेत्र स्टेशन दिल्ली से 55 किलोमीटर दूर है। सड़क मार्ग से मंदिर दिल्ली-अम्बाला मार्ग (जी.टी.रोड) प्रियली बस अड्डे से 9 किलोमीटर दूर है।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख