"यूनानी चिकित्सा पद्धति": अवतरणों में अंतर
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यद्यपि यूनानी पद्धति का उद्गम [[यूनान]] में हुआ ऐसा माना जाता है, तथा यह पद्धति [[भारत]] में [[मध्यकाल]] मे लाई गई थी किन्तु, इसकी व्यापक स्वीकार्यता और लोगों द्वारा इसके निरंतर प्रयोग के कारण कालांतर में भारत के लिए स्वदेशी पद्धति हो गई है एवं पूरे देश के लोगो में इसकी बडी मांग है। यह पद्धति [[मिस्र]], [[अरब]], [[ईरान]], [[चीन]], सीरिया और भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं, इन राष्ट्रों के युक्तियुक्त विचारों और अनुभवों के विलय से विकसित हुई है। इसका मूल ईसा पूर्व चौथी और पांचवी शताब्दी में यूनान के हिप्पोके्रटस् (377-460 ईसा पूर्व) और गेलेन्स की शिक्षाओं में है।<ref name="AVRS">{{cite web |url=http://ayurved.rajasthan.gov.in/unani.asp |title=यूनानी चिकित्सा सेवाएं |accessmonthday=28 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आयुर्वेद विभाग, राजस्थान सरकार |language=हिंदी }}</ref> | यद्यपि यूनानी पद्धति का उद्गम [[यूनान]] में हुआ ऐसा माना जाता है, तथा यह पद्धति [[भारत]] में [[मध्यकाल]] मे लाई गई थी किन्तु, इसकी व्यापक स्वीकार्यता और लोगों द्वारा इसके निरंतर प्रयोग के कारण कालांतर में भारत के लिए स्वदेशी पद्धति हो गई है एवं पूरे देश के लोगो में इसकी बडी मांग है। यह पद्धति [[मिस्र]], [[अरब]], [[ईरान]], [[चीन]], सीरिया और भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं, इन राष्ट्रों के युक्तियुक्त विचारों और अनुभवों के विलय से विकसित हुई है। इसका मूल ईसा पूर्व चौथी और पांचवी शताब्दी में यूनान के हिप्पोके्रटस् (377-460 ईसा पूर्व) और गेलेन्स की शिक्षाओं में है।<ref name="AVRS">{{cite web |url=http://ayurved.rajasthan.gov.in/unani.asp |title=यूनानी चिकित्सा सेवाएं |accessmonthday=28 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=आयुर्वेद विभाग, राजस्थान सरकार |language=हिंदी }}</ref> | ||
==चिकित्सा पद्धति== | ==चिकित्सा पद्धति== | ||
यूनानी चिकित्सा पद्धति प्राकृतिक रूप से उत्पन्न मुख्यतः वनौषधियों के प्रयोग पर जोर देती है, हालांकि पशु, समुद्रीय, खनिज मूल के संघटकों का उपयोग भी किया जाता है। स्वर्गीय [[हकीम अजमल ख़ाँ]] ने यूनानी चिकित्सा पद्धति को भारत में संस्थापित किया है और यूनानी तिब्ब को समझने में विज्ञान के साथ एकीकरण और उपचार में इसके प्रयोग का समर्थन किया था। | यूनानी चिकित्सा पद्धति प्राकृतिक रूप से उत्पन्न मुख्यतः वनौषधियों के प्रयोग पर जोर देती है, हालांकि पशु, समुद्रीय, खनिज मूल के संघटकों का उपयोग भी किया जाता है। स्वर्गीय [[हकीम अजमल ख़ाँ]] ने यूनानी चिकित्सा पद्धति को भारत में संस्थापित किया है और यूनानी तिब्ब को समझने में विज्ञान के साथ एकीकरण और उपचार में इसके प्रयोग का समर्थन किया था। उन्होंने (असरोल) रावोल्फिया सर्पेन्टाइन की खोज की जिसने उच्च रक्त दाब के उपचार में अपनी प्रभावकारिता स्थापित की। यूनानी चिकित्सा पद्धति अनुसंधान प्रेक्षण एवं अनुभवों का प्रयोग करते हुए निश्चित विधि का अनुसरण कर सुव्यवस्थित तरीके से चिकित्सा प्रदान करती है और रोगों का निदान करती है। यह चिकित्सा पद्वति शेख बु-अली सिना (अवि-सेना, 980-1037ई.) की अल-कानून जो चिकिसा बाइबल है और राजी (850-923ई.) के अल हावी में प्रलेखित है। उपचार की चार पद्धतियां हैः- | ||
# औषधि पद्धति | # औषधि पद्धति | ||
# आहार पद्धति | # आहार पद्धति | ||
# | # रेजिमेंटल पद्धति | ||
# शल्य चिकित्सा<ref name="AVRS"/> | # शल्य चिकित्सा | ||
रेजिमेंटल थेरेपी यूनानी चिकित्सा पद्धति की विशेषता है। इसे इलाज-बिद तदबीर कहा जाता है। कुछ विशिष्ट और जटिल रोगों के लिए इसकी 12 उपचार विधियां है। कपिंग, जलौका, शिरा शल्यक्रिया, स्वेदन और स्नान जैसी विधियां औषधि रहित उपचार है और [[मधुमेह]], उच्च रक्तचाप, मोटापा, गठिया और माइग्रेन आदि के उपचार में प्रभावी है।<ref name="AVRS"/> | |||
==उपचार के अंग== | |||
उपचार के तीन अंग है। निवारक, संवर्धनात्मक एवं उपचारात्मक। यूनानी चिकित्सा पद्धति संधिवात, पीलिया, फाइलेरियासिस, एग्जीमा, साइनुसाइटिस और श्वसनी दमा में अधिक प्रभावकारी है। हृदय रोग के उपचार और व्यवस्था में इसकी क्षमता पर अनुसंधान किया जा रहा है। यूनानी पद्धति रोग के निवारण और स्वास्थ्य के उत्थान के लिए छह आवश्यकताओं (असबाब-ए सित्ता-ज़रूरिया) पर जोर देती है। ये आवश्यकताऐं हैः- स्वच्छ हवा, जल और संतुलित आहार, व्यायाम एवं विश्राम, मानसिक क्रियाएं एवं विश्राम, सोना एवं जागना, परित्याग और धारण करना।<ref name="AVRS"/> | |||
==आधुनिक युग में महत्त्वता== | |||
आधुनिक युग में भी प्राचीन यूनानी चिकित्सा पद्धति का महत्व बरकरार है। यह विश्व की सबसे पुरानी उपचार पद्धतियों में से एक है, जिसकी शुरुआत ग्रीस (यूनान) से हुई। यूनानी डॉक्टर बनने के लिए 12वीं के बाद छात्र बीयूएमएस (B.U.M.S.) यानी बैचलर आफ यूनानी मेडिसिन ऐंड सर्जरी में एडमिशन ले सकते हैं। साढ़े पांच साल के इस कोर्स में वही छात्र दाखिला पा सकते हैं, जिनका अनिवार्य विषय के रुप में जीव विज्ञान और [[उर्दू भाषा|उर्दू]] रहा है। बीयूएमएस के बाद छात्र एम.डी और एम.एस. भी कर सकते हैं। लेकिन एम.एस. यानी मास्टर ऑफ सर्जन की पढ़ाई वर्तमान में [[अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय]] में ही है।<ref name="JJ">{{cite web |url=http://www.jagranjosh.com/articles/%E0%A4%AF%E0%A5%82%E0%A4%A8%E0%A4%BE%E0%A4%A8%E0%A5%80-%E0%A4%9A%E0%A4%BF%E0%A4%95%E0%A4%BF%E0%A4%A4%E0%A5%8D%E0%A4%B8%E0%A4%BE-1287650942-2 |title=यूनानी चिकित्सा |accessmonthday=28 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=जागरण जोश |language=हिंदी }}</ref> | |||
==प्रवेश प्रक्रिया== | |||
बीयूएमएस में दाखिले के लिए छात्रों को प्री यूनिवर्सिटी टेस्ट (पीयूटी) से गुजरना पडता है, लेकिन [[उत्तर प्रदेश]] के यूनानी कॉलेजों में कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) परीक्षा पास करने के बाद ही दाखिला मिल पाता है। बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त छात्र ही इस परीक्षा में बैठ सकते हैं। साढ़े पांच साल के इस कोर्स में एक साल इंटर्नशिप कराया जाता है।<ref name="JJ"/> | |||
==बीयूएमएस कराने वाले प्रमुख संस्थान== | |||
# जामिया हमदर्द, [[नई दिल्ली]] | |||
# आयुर्वेद यूनानी तिब्बी कॉलेज, करोलबाग़, नई दिल्ली | |||
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# अजमल खान तिब्बी कॉलेज, [[अलीगढ़]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
# जामिया तिब्बिया देवबंद, [[सहारनपुर]], [[देवबंद]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
# स्टेट यूनानी मेडिकल कॉलेज [[इलाहाबाद]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
# तिब्बिया कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, बैतुल अमन, [[मुंबई]] | |||
# तकमील उतिब कालेज ऐंड हॉस्पिटल, [[लखनऊ]], [[उत्तर प्रदेश]] | |||
==भारत में यूनानी चिकित्सा== | |||
यूनानी चिकित्सा पद्धति का [[भारत]] में एक लंबा और शानदार रिकार्ड रहा है। यह भारत में अरबों और ईरानियों द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी के आसपास पेश की गयी थी। जहां तक यूनानी चिकित्सा का सवाल है, आज भारत इसका उपयोग करने वाले अग्रणी देशों में से एक है। यहाँ यूनानी शैक्षिक, अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की सबसे बड़ी संख्या है। जैसा कि नाम इंगित करता है, यूनानी प्रणाली ने [[यूनान]] में जन्म लिया। हिप्पोक्रेट्स द्वारा यूनानी प्रणाली की नींव रखी गई थी। इस प्रणाली के मौजूदा स्वरूप का श्रेय अरबों को जाता है जिन्होंने न केवल अनुवाद कर ग्रीक साहित्य के अधिकाँश हिस्से बल्कि अपने स्वयं के योगदान के साथ रोजमर्रा की दवा को समृद्ध बनाया। इस प्रक्रिया में उन्होंने भौतिकी विज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, चिकित्सा और सर्जरी का व्यापक इस्तेमाल किया।<ref name="INDG">{{cite web |url=http://www.indg.in/health/ayush-1/92f94292893e928940/view?set_language=hi |title=यूनानी|accessmonthday=28 दिसम्बर |accessyear=2012 |last= |first= |authorlink= |format= |publisher=INDG |language=हिंदी }}</ref> | |||
====यूनानी दवाएं==== | |||
यूनानी दवाएं उन पहलुओं को अपनाकर समृद्ध हुई जो मिस्र, सीरिया, इराक, फारस, भारत, चीन और अन्य मध्य पूर्व के देशों में पारंपरिक दवाओं की समकालीन प्रणालियों में सबसे अच्छी थी। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति अरबों द्वारा पेश की गयी थी और जल्द ही इसने मज़बूत जड़ें जमा ली। दिल्ली के सुल्तानों (शासकों) ने यूनानी प्रणाली के विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया और यहां तक कि कुछ को राज्य कर्मचारियों और दरबारी चिकित्सकों के रूप में नामांकित भी किया।<ref name="INDG"/> | |||
====ब्रिटिश शासन के दौरान==== | |||
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान इस प्रणाली को एक गंभीर झटका लगा। एलोपैथिक प्रणाली शुरू की गयी और उसने अपने पैर जमा लिए। इसने दवा की यूनानी प्रणाली के शिक्षा, अनुसंधान और अभ्यास को धीमा कर दिया। यूनानी प्रणाली के साथ-साथ चिकित्सा की सभी पारंपरिक प्रणालियों को लगभग दो शताब्दियों तक लगभग पूरी तरह उपेक्षा का सामना करना पड़ा। राज्य द्वारा संरक्षण वापस लेने से आम जनता को बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ क्योंकि उसने इस प्रणाली में विश्वास जताया और इसका अभ्यास जारी रहा। ब्रिटिश काल के दौरान मुख्य रूप से दिल्ली में शरीफी खानदान, [[लखनऊ]] में अजीजी खानदान और [[हैदराबाद]] के निजाम के प्रयासों की वजह से यूनानी चिकित्सा बच गयी।<ref name="INDG"/> | |||
====भारत की आज़ादी के बाद==== | |||
आज़ादी के बाद औषधि की भारतीय प्रणाली के साथ-साथ यूनानी प्रणाली को राष्ट्रीय सरकार और लोगों के संरक्षण के तहत फिर से बढ़ावा मिला। भारत सरकार ने इस प्रणाली के सर्वांगीण विकास के लिए कई कदम उठाए। सरकार ने इसकी शिक्षा और प्रशिक्षण को विनियमित करने और बढ़ावा देने के लिए क़ानून पारित किए। सरकार ने इन दवाओं के उत्पादन और अभ्यास के लिए अनुसंधान संस्थानों, परीक्षण प्रयोगशालाओं और मानकीकृत नियमों की स्थापना की। आज अपने मान्यता प्राप्त चिकित्सकों, अस्पतालों और शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थानों के साथ दवा की यूनानी प्रणाली, राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है।<ref name="INDG"/> | |||
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==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
*[http://www.indg.in/health/ayush-1/92f94292893e928940/view?set_language=hi यूनानी चिकित्सा] | |||
*[http://www.unani.com/index.htm Unani Herbal Healing] | |||
*[http://www.ibnsinaacademy.org/ IAMMS] | |||
==संबंधित लेख== | ==संबंधित लेख== | ||
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यूनानी चिकित्सा पद्धति स्वास्थ्य के संवर्धन और रोग के निवारण से संबंधित सुस्थापित ज्ञान और अभ्यास पर आधारित चिकित्सा विज्ञान है। यह बहुत समृद्ध और समय पर खरी उतरी कुप्रभाव रहित उपचार की पद्धति है।
इतिहास
यद्यपि यूनानी पद्धति का उद्गम यूनान में हुआ ऐसा माना जाता है, तथा यह पद्धति भारत में मध्यकाल मे लाई गई थी किन्तु, इसकी व्यापक स्वीकार्यता और लोगों द्वारा इसके निरंतर प्रयोग के कारण कालांतर में भारत के लिए स्वदेशी पद्धति हो गई है एवं पूरे देश के लोगो में इसकी बडी मांग है। यह पद्धति मिस्र, अरब, ईरान, चीन, सीरिया और भारत की प्राचीन सांस्कृतिक परंपराओं, इन राष्ट्रों के युक्तियुक्त विचारों और अनुभवों के विलय से विकसित हुई है। इसका मूल ईसा पूर्व चौथी और पांचवी शताब्दी में यूनान के हिप्पोके्रटस् (377-460 ईसा पूर्व) और गेलेन्स की शिक्षाओं में है।[1]
चिकित्सा पद्धति
यूनानी चिकित्सा पद्धति प्राकृतिक रूप से उत्पन्न मुख्यतः वनौषधियों के प्रयोग पर जोर देती है, हालांकि पशु, समुद्रीय, खनिज मूल के संघटकों का उपयोग भी किया जाता है। स्वर्गीय हकीम अजमल ख़ाँ ने यूनानी चिकित्सा पद्धति को भारत में संस्थापित किया है और यूनानी तिब्ब को समझने में विज्ञान के साथ एकीकरण और उपचार में इसके प्रयोग का समर्थन किया था। उन्होंने (असरोल) रावोल्फिया सर्पेन्टाइन की खोज की जिसने उच्च रक्त दाब के उपचार में अपनी प्रभावकारिता स्थापित की। यूनानी चिकित्सा पद्धति अनुसंधान प्रेक्षण एवं अनुभवों का प्रयोग करते हुए निश्चित विधि का अनुसरण कर सुव्यवस्थित तरीके से चिकित्सा प्रदान करती है और रोगों का निदान करती है। यह चिकित्सा पद्वति शेख बु-अली सिना (अवि-सेना, 980-1037ई.) की अल-कानून जो चिकिसा बाइबल है और राजी (850-923ई.) के अल हावी में प्रलेखित है। उपचार की चार पद्धतियां हैः-
- औषधि पद्धति
- आहार पद्धति
- रेजिमेंटल पद्धति
- शल्य चिकित्सा
रेजिमेंटल थेरेपी यूनानी चिकित्सा पद्धति की विशेषता है। इसे इलाज-बिद तदबीर कहा जाता है। कुछ विशिष्ट और जटिल रोगों के लिए इसकी 12 उपचार विधियां है। कपिंग, जलौका, शिरा शल्यक्रिया, स्वेदन और स्नान जैसी विधियां औषधि रहित उपचार है और मधुमेह, उच्च रक्तचाप, मोटापा, गठिया और माइग्रेन आदि के उपचार में प्रभावी है।[1]
उपचार के अंग
उपचार के तीन अंग है। निवारक, संवर्धनात्मक एवं उपचारात्मक। यूनानी चिकित्सा पद्धति संधिवात, पीलिया, फाइलेरियासिस, एग्जीमा, साइनुसाइटिस और श्वसनी दमा में अधिक प्रभावकारी है। हृदय रोग के उपचार और व्यवस्था में इसकी क्षमता पर अनुसंधान किया जा रहा है। यूनानी पद्धति रोग के निवारण और स्वास्थ्य के उत्थान के लिए छह आवश्यकताओं (असबाब-ए सित्ता-ज़रूरिया) पर जोर देती है। ये आवश्यकताऐं हैः- स्वच्छ हवा, जल और संतुलित आहार, व्यायाम एवं विश्राम, मानसिक क्रियाएं एवं विश्राम, सोना एवं जागना, परित्याग और धारण करना।[1]
आधुनिक युग में महत्त्वता
आधुनिक युग में भी प्राचीन यूनानी चिकित्सा पद्धति का महत्व बरकरार है। यह विश्व की सबसे पुरानी उपचार पद्धतियों में से एक है, जिसकी शुरुआत ग्रीस (यूनान) से हुई। यूनानी डॉक्टर बनने के लिए 12वीं के बाद छात्र बीयूएमएस (B.U.M.S.) यानी बैचलर आफ यूनानी मेडिसिन ऐंड सर्जरी में एडमिशन ले सकते हैं। साढ़े पांच साल के इस कोर्स में वही छात्र दाखिला पा सकते हैं, जिनका अनिवार्य विषय के रुप में जीव विज्ञान और उर्दू रहा है। बीयूएमएस के बाद छात्र एम.डी और एम.एस. भी कर सकते हैं। लेकिन एम.एस. यानी मास्टर ऑफ सर्जन की पढ़ाई वर्तमान में अलीगढ़ मुस्लिम विश्वविद्यालय में ही है।[2]
प्रवेश प्रक्रिया
बीयूएमएस में दाखिले के लिए छात्रों को प्री यूनिवर्सिटी टेस्ट (पीयूटी) से गुजरना पडता है, लेकिन उत्तर प्रदेश के यूनानी कॉलेजों में कंबाइंड प्री मेडिकल टेस्ट (सीपीएमटी) परीक्षा पास करने के बाद ही दाखिला मिल पाता है। बारहवीं में अच्छे अंक प्राप्त छात्र ही इस परीक्षा में बैठ सकते हैं। साढ़े पांच साल के इस कोर्स में एक साल इंटर्नशिप कराया जाता है।[2]
बीयूएमएस कराने वाले प्रमुख संस्थान
- जामिया हमदर्द, नई दिल्ली
- आयुर्वेद यूनानी तिब्बी कॉलेज, करोलबाग़, नई दिल्ली
- गवर्नमेंट निजामी तिब्बी कॉलेज, चारमीनार, हैदराबाद, आंध्र प्रदेश
- गवर्नमेंट तिब्बी कॉलेज, कदमकुआं, पटना
- साफिया यूनानी मेडिकल कॉलेज, दरभंगा, बिहार
- अजमल खान तिब्बी कॉलेज, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
- जामिया तिब्बिया देवबंद, सहारनपुर, देवबंद, उत्तर प्रदेश
- स्टेट यूनानी मेडिकल कॉलेज इलाहाबाद, उत्तर प्रदेश
- तिब्बिया कॉलेज ऐंड हॉस्पिटल, बैतुल अमन, मुंबई
- तकमील उतिब कालेज ऐंड हॉस्पिटल, लखनऊ, उत्तर प्रदेश
भारत में यूनानी चिकित्सा
यूनानी चिकित्सा पद्धति का भारत में एक लंबा और शानदार रिकार्ड रहा है। यह भारत में अरबों और ईरानियों द्वारा ग्यारहवीं शताब्दी के आसपास पेश की गयी थी। जहां तक यूनानी चिकित्सा का सवाल है, आज भारत इसका उपयोग करने वाले अग्रणी देशों में से एक है। यहाँ यूनानी शैक्षिक, अनुसंधान और स्वास्थ्य देखभाल संस्थानों की सबसे बड़ी संख्या है। जैसा कि नाम इंगित करता है, यूनानी प्रणाली ने यूनान में जन्म लिया। हिप्पोक्रेट्स द्वारा यूनानी प्रणाली की नींव रखी गई थी। इस प्रणाली के मौजूदा स्वरूप का श्रेय अरबों को जाता है जिन्होंने न केवल अनुवाद कर ग्रीक साहित्य के अधिकाँश हिस्से बल्कि अपने स्वयं के योगदान के साथ रोजमर्रा की दवा को समृद्ध बनाया। इस प्रक्रिया में उन्होंने भौतिकी विज्ञान, रसायन विज्ञान, वनस्पति विज्ञान, एनाटॉमी, फिजियोलॉजी, पैथोलॉजी, चिकित्सा और सर्जरी का व्यापक इस्तेमाल किया।[3]
यूनानी दवाएं
यूनानी दवाएं उन पहलुओं को अपनाकर समृद्ध हुई जो मिस्र, सीरिया, इराक, फारस, भारत, चीन और अन्य मध्य पूर्व के देशों में पारंपरिक दवाओं की समकालीन प्रणालियों में सबसे अच्छी थी। भारत में यूनानी चिकित्सा पद्धति अरबों द्वारा पेश की गयी थी और जल्द ही इसने मज़बूत जड़ें जमा ली। दिल्ली के सुल्तानों (शासकों) ने यूनानी प्रणाली के विद्वानों को संरक्षण प्रदान किया और यहां तक कि कुछ को राज्य कर्मचारियों और दरबारी चिकित्सकों के रूप में नामांकित भी किया।[3]
ब्रिटिश शासन के दौरान
भारत में ब्रिटिश शासन के दौरान इस प्रणाली को एक गंभीर झटका लगा। एलोपैथिक प्रणाली शुरू की गयी और उसने अपने पैर जमा लिए। इसने दवा की यूनानी प्रणाली के शिक्षा, अनुसंधान और अभ्यास को धीमा कर दिया। यूनानी प्रणाली के साथ-साथ चिकित्सा की सभी पारंपरिक प्रणालियों को लगभग दो शताब्दियों तक लगभग पूरी तरह उपेक्षा का सामना करना पड़ा। राज्य द्वारा संरक्षण वापस लेने से आम जनता को बहुत अधिक नुकसान नहीं हुआ क्योंकि उसने इस प्रणाली में विश्वास जताया और इसका अभ्यास जारी रहा। ब्रिटिश काल के दौरान मुख्य रूप से दिल्ली में शरीफी खानदान, लखनऊ में अजीजी खानदान और हैदराबाद के निजाम के प्रयासों की वजह से यूनानी चिकित्सा बच गयी।[3]
भारत की आज़ादी के बाद
आज़ादी के बाद औषधि की भारतीय प्रणाली के साथ-साथ यूनानी प्रणाली को राष्ट्रीय सरकार और लोगों के संरक्षण के तहत फिर से बढ़ावा मिला। भारत सरकार ने इस प्रणाली के सर्वांगीण विकास के लिए कई कदम उठाए। सरकार ने इसकी शिक्षा और प्रशिक्षण को विनियमित करने और बढ़ावा देने के लिए क़ानून पारित किए। सरकार ने इन दवाओं के उत्पादन और अभ्यास के लिए अनुसंधान संस्थानों, परीक्षण प्रयोगशालाओं और मानकीकृत नियमों की स्थापना की। आज अपने मान्यता प्राप्त चिकित्सकों, अस्पतालों और शैक्षिक एवं अनुसंधान संस्थानों के साथ दवा की यूनानी प्रणाली, राष्ट्रीय स्वास्थ्य देखभाल प्रदान करने की प्रणाली का एक अभिन्न हिस्सा है।[3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
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