"वीरेन्द्र खरे 'अकेला'": अवतरणों में अंतर
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{{सूचना बक्सा साहित्यकार | |||
|चित्र=Virendra khare-‘Akela’.jpg | |||
|चित्र का नाम=वीरेन्द्र खरे 'अकेला' | |||
|पूरा नाम= वीरेन्द्र खरे | |||
|अन्य नाम='अकेला' | |||
|जन्म=[[18 अगस्त]], [[1968]] | |||
|जन्म स्थान=किशनगढ़, [[छतरपुर]], [[मध्यप्रदेश]] | |||
|मृत्यु= | |||
|मृत्यु स्थान= | |||
|पिता=पुरुषोत्तम दास | |||
|पति/पत्नी=प्रेमलता | |||
|संतान=एक पुत्री | |||
|कर्म भूमि=छतरपुर | |||
|कर्म-क्षेत्र=अध्यापन,साहित्य,समाजसेवा | |||
|मुख्य रचनाएँ=शेष बची चौथाई रात (ग़ज़ल संग्रह), सुबह की दस्तक (ग़ज़ल-गीत संग्रह), अंगारों पर शबनम (ग़ज़ल संग्रह) | |||
|विषय=ग़ज़ल,गीत,कविता,व्यंग्य लेख,कहानी | |||
|भाषा=[[हिन्दी]] | |||
|शिक्षा=स्नातकोत्तर (इतिहास),बी.एड. | |||
|पुरस्कार-उपाधि=[[हिन्दी भूषण]], [[काव्य-कौस्तुभ]] | |||
|प्रसिद्धि= | |||
|विशेष योगदान=हिंदी ग़ज़ल एवं गीत को नया सर्वग्राही रूप देने में अहम भूमिका | |||
|नागरिकता=भारतीय | |||
|संबंधित लेख= | |||
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|शीर्षक 2= | |||
|पाठ 2= | |||
|अन्य जानकारी= | |||
|बाहरी कड़ियाँ= | |||
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!वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की रचनाएँ | |||
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{{वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की रचनाएँ}} | |||
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'''वीरेन्द्र खरे 'अकेला' ''' का (जन्म- [[18 अगस्त]], [[1968]], किशनगढ़, [[छतरपुर]], [[मध्यप्रदेश]]) वर्तमान समय में ग़ज़ल विधा के लोकप्रिय और प्रसिद्ध कवि हैं, जिन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी ग़ज़लों तथा सरल, सहज गीतों द्वारा हिन्दी कविता की उल्लेखनीय सेवा की है और [[दुष्यन्त कुमार]] जी के बाद के ग़ज़लकारों में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है और साहित्यप्रेमियों को बहुत प्रभावित किया है। <ref>सृजन पथ,सिलीगुडी-नवम्बर 2003, साप्ताहिक शुक्रवार का 05 दिसम्बर 2009 का अंक</ref> | |||
==जीवन परिचय== | |||
'''वीरेन्द्र खरे 'अकेला' '''(Virendra khare akela) का जन्म 18 अगस्त सन् 1968 को छतरपुर (म.प्र.) के ठेठ देहाती आदिवासी बहुल छोटे से गांव किशनगढ़ में एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ, पांच भाइयों में सबसे बड़े वीरेन्द्र बचपन से ही गंभीर स्वभाव और साहित्यिक रुचि के हैं । अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से इतिहास में एम. ए. एवं बी. एड. करने के बाद वे लम्बे समय तक छतरपुर शहर के अशासकीय विद्यालयों में अध्यापन कार्य करते रहे साथ ही निःशक्तजनों की शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए समर्पित एन. जी. ओ. ‘प्रगतिशील विकलांग संसार, छतरपुर के संचालन एवं व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाते रहे । रोज़गार को लेकर वे लम्बे समय भ्रमित और संघर्षरत रहे तथा अभावों से जूझते रहे । वर्तमान में ‘अकेला’ जी एक अध्यापक के रूप में शासन को अपनी सेवाएं दे रहे हैं साथ ही निःशक्तजनों की सेवा एवं लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं । | |||
==कार्यक्षेत्र== | |||
‘अकेला’ जी को लेखन की प्रेरणा अपने पिता स्व. श्री पुरुषोत्तम दास जी से मिली । जो भजन-कीर्तन लिखने में काफ़ी रुचि रखते थे यद्यपि उनकी कोई कृति प्रकाशित नहीं हुई । माता श्रीमती कमला देवी भी साहित्यिक-सांस्कृतिक रुचि की हैं। ‘अकेला’ जी ने सन्-1990 से ग़ज़ल-गीत लेखन की यात्रा शुरू की जो अनवरत जारी है । ग़ज़ल संग्रह ‘शेष बची चौथाई रात’-1999 के प्रकाशन ने ग़ज़ल के क्षेत्र में उन्हें स्थापित किया और राष्ट्रीय ख्याति दिलाई । दूसरे ग़ज़ल-गीत संग्रह सुब्ह की दस्तक’-2006 एवं तीसरे ग़ज़ल संग्रह ‘अंगारों पर शबनम’-2012 ने उनकी साहित्यिक पहचान को और पुख़्तगी देते हुए उन्हें देश के प्रथम पंक्ति के हिन्दी ग़ज़लकारों के बीच खड़ा कर दिया है । ‘अकेला’ जी की ग़ज़लों में जीवन की सच्ची-तपती-सुलगती आग पूरी तेजस्विता के साथ विद्यमान है । वे देश और समाज में व्याप्त दुख-दर्दों, अभावों, असफलताओं, विसंगतियों और छल-छद्मों को अनूठे अंदाज़ में पेश कर अपने पाठकों में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भर देते हैं ‘अकेला‘ जी की ग़ज़लों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध कवि डॉ. कुंअर बेचैन लिखते हैं-“ ‘अकेला’ जी की ग़ज़लें विविध विषयों पर होने के साथ साथ बहर आदि की दृष्टि से निष्कलंक हैं, उनमें सहज प्रवाह भी है और अमिट प्रभाव भी । ये ग़ज़लें ग़ज़ल की यशस्वी परम्परा में रहकर नए विषयों तथा नए प्रतीकों की खोज करती हैं । इनमें यथार्थ की सच्चाई और कल्पना की ऊँचाई दोनों के दर्शन होते हैं ।” इसी प्रकार ’अकेला’ जी की ग़ज़ल के प्रभाव का उद्घाटन करते हुए इस दौर के शहंशाहे ग़ज़ल डॉ. बशीर बद्र कहते हैं-“अकेला की ग़ज़ल वो लहर है जो ग़ज़ल के समन्दर में नई हलचल पैदा करेगी ।” पद्मश्री डॉ. गोपालदास ‘नीरज’ कहते हैं कि-“ अकेला के शेरों में यह ख़ूबी है कि वे खुद-ब-खुद होठों पर आ जाते हैं । ” चर्चित व्यंग्यकार माणिक वर्मा एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. देवव्रत जोशी ने भी अपनी अपनी टिप्पणियों में ‘अकेला’ को दुष्यत कुमार के बाद का उल्लेखनीय शायर निरूपित किया है। स्पष्ट है कि वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ ने हिन्दी ग़ज़ल को नए विषय, नई सोच, नए प्रतीक और सम्यक शिल्पगत कसावट देकर इस विधा की उल्लेखनीय सेवा की है और इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान क़ायम की है । लेखन के अलावा ‘अकेला’ जी एक रंगकर्मी के रूप में भी सक्रिय रहे हैं । वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की ज़िला इकाई-छतरपुर के लम्बे समय से पदाधिकारी हैं और क़िस्सा कल्पनापुर का, ख़ूबसूरत बहू तथा बाजीराव मस्तानी आदि नाटकों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ अभिनीत कर चुके हैं । | |||
==रचनाएँ== | |||
#शेष बची चौथाई रात (ग़ज़ल संग्रह) | |||
#सुबह की दस्तक (ग़ज़ल-गीत संग्रह) | |||
#अंगारों पर शबनम (ग़ज़ल संग्रह) | |||
*इसके अतिरिक्त ‘अकेला’ जी ने कई कहानियां, बाल कवितायें, समीक्षा आलेख और व्यंग्य लेख भी लिखे हैं <ref>दैनिक भास्कर भोपाल, अंक-22 सितम्बर 1995, राष्ट्रधर्मं अंक-सितम्बर-1999, जनवरी-2000, फरवरी-2001 दिसंबर-2001 मार्च-2003 </ref> | |||
==सम्मान/पुरस्कार== | |||
*सूचना प्रसारण मंत्रालय(भारत सरकार) द्वारा ‘युवा कविता’ प्रथम पुरस्कार । | |||
*ग़ज़ल-संग्रह 'शेष बची चौथाई रात' पर अभियान जबलपुर द्वारा 'हिन्दी भूषण' अलंकरण । | |||
*मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन एवं बुंदेलखंड हिंदी साहित्य-संस्कृति मंच सागर [म.प्र.]द्वारा कपूर चंद वैसाखिया 'तहलका ' सम्मान । | |||
*अ०भा० साहित्य संगम, उदयपुर द्वारा काव्य कृति ‘सुबह की दस्तक’ पर राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान के अन्तर्गत 'काव्य-कौस्तुभ' सम्मान । | |||
*लायन्स क्लब द्वारा ‘छतरपुर गौरव’ सम्मान । | |||
==हिन्दी ग़ज़ल और ‘अकेला’== | |||
ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसमें शायर अपनी बात कम से कम शब्दों में ज़्यादा से ज़्यादा प्रभावशाली ढंग से कहता है । ग़ज़ल के सभी शेर एक दूसरे से मुक्त (स्वतंत्र) होते हैं । यानी एक ग़ज़ल में अगर सात शेर हैं तो ये मान कर चलिए कि उसमें सात अलग अलग बयान, सात अलग अलग भावनाएँ या सात अलग अलग कविताएँ हैं । ग़ज़ल फारसी से उर्दू में आई और उर्दू से हिन्दी में । जब ग़ज़ल उर्दू से हिन्दी में आई तो हिन्दी में बहुत से कवि ग़ज़ल लेखन की ओर आकृष्ट हुये लेकिन ज़्यादातर ग़ज़लकार चूंकि उर्दू की ग़ज़ल परम्परा और ग़ज़ल के व्याकरण से अनभिज्ञ थे इसलिए उनकी ग़ज़लें ग़ज़ल की कसौटी पर खरी नहीं उतरीं और नकार दी गईं । लेकिन कुछ ऐसे हिन्दी ग़ज़लकार भी सामने आये जो ग़ालिबो-मीर की ज़बान से परिचित थे । ग़ज़ल जिनकी आत्मा में बसी हुई थी और जो अमीर खुसरो से लेकर बशीर बद्र तक के ग़ज़ल के सफ़र से परिचित थे । जब ऐसे ग़ज़लकारों ने ग़ज़ल कही तो उर्दू वाले भी आश्यर्च चकित रह गये और इस तरह हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा शुरू हुई । उर्दू से हिन्दी के इस ख़ूबसूरत मोड़ पर जो चंद लोग खड़े हैं जिनकी शायरी के आधार पर आने वाली साहित्यिक नस्लें हिन्दी ग़ज़ल का अपना पैमाना बनायेंगी उनमें दुष्यंत कुमार, गोपालदास ‘नीरज’, बालस्वरूप राही, कुंअर बेचैन, मुनव्वर राना, राजेश रेड्डी, सूर्यभानु गुप्त आदि के साथ एक नाम और आता है-वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ अना क़ासमी लिखते हैं ‘उर्दू से हिन्दी ग़ज़ल के जिस ख़ूबसूरत मोड़ पर वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ खड़े हैं सिर्फ़ यही बात इनके नाम को सदियों तक ज़िन्दा रखने के लिए काफ़ी है मगर इनके इस बस्फ़ के साथ एक और जो सिफ़त मौजूद है कि वो अपने दौर के तमाम हालात को इतने क़रीब से देख रहे हैं जैसे आज का युग उन्हें घूर रहा हो और वो खड़े उसे आँख दिखा रहे हों । अकेला साहब शायरी के साथ तकल्लुफ़ात नहीं बरतते बल्कि हर वो सच्ची बात जे़रे क़लम ले आते हैं जो आज के समाज की सही मंज़रकशी कर सके । ’ | |||
अकेला जी की शायरी में आज की कड़वी सच्चाईयों के साथ साथ बहुत से ऐसे पहलू भी हैं जो कभी आँखों को नम करते हैं, कभी होंठों पर मुस्कुराहट लाते हैं कभी दिलो-दिमाग़ को झकझोरते हैं और कभी कठिन परिस्थितियों के बीच हौसला बंधाते हैं । अर्द्धवाषिक उर्दू पत्रिका ‘अस्बाक़’ (पुणे) के एडीटर नज़ीर फतेहपुरी लिखते हैं-‘अकेला की ग़ज़ल मायूसी, नाकामी और अंधेरों की शिकायतों तक महदूद नहीं बल्कि उसमें हिम्मत और हौसले की एक दुनिया भी आबाद है । <ref>नवभारत, ग्वालियर-01 अप्रैल 2004, गज़ल दुष्यन्त के बाद भाग-3, वाणी प्रकाशन नई दिल्ली</ref> | |||
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==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ==टीका टिप्पणी और संदर्भ== | ||
<references/> | <references/> | ||
==बाहरी कड़ियाँ== | ==बाहरी कड़ियाँ== | ||
* वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की कविताएँ तथा ग़जलें - [http://www.kavitakosh.org/kk/%E0%A4%B5%E0%A5%80%E0%A4%B0%E0%A5%87%E0%A4%A8%E0%A5%8D%E0%A4%A6%E0%A5%8D%E0%A4%B0_%E0%A4%96%E0%A4%B0%E0%A5%87_%27%E0%A4%85%E0%A4%95%E0%A5%87%E0%A4%B2%E0%A4%BE%27 कविता कोश पर] | |||
== | * वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की कविताएँ [http://kavysanklan.blogspot.in/ काव्य संकलन में] | ||
* 'अकेला' का काव्य-पाठ [http://www.youtube.com/watch?v=hE7ljmQvobU (यू-ट्यूब)] | |||
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वीरेन्द्र खरे 'अकेला' का (जन्म- 18 अगस्त, 1968, किशनगढ़, छतरपुर, मध्यप्रदेश) वर्तमान समय में ग़ज़ल विधा के लोकप्रिय और प्रसिद्ध कवि हैं, जिन्होंने अपनी मर्मस्पर्शी ग़ज़लों तथा सरल, सहज गीतों द्वारा हिन्दी कविता की उल्लेखनीय सेवा की है और दुष्यन्त कुमार जी के बाद के ग़ज़लकारों में अपना विशिष्ट स्थान बनाया है और साहित्यप्रेमियों को बहुत प्रभावित किया है। [1]
जीवन परिचय
वीरेन्द्र खरे 'अकेला' (Virendra khare akela) का जन्म 18 अगस्त सन् 1968 को छतरपुर (म.प्र.) के ठेठ देहाती आदिवासी बहुल छोटे से गांव किशनगढ़ में एक मध्यमवर्गीय कायस्थ परिवार में हुआ, पांच भाइयों में सबसे बड़े वीरेन्द्र बचपन से ही गंभीर स्वभाव और साहित्यिक रुचि के हैं । अवधेश प्रताप सिंह विश्वविद्यालय, रीवा से इतिहास में एम. ए. एवं बी. एड. करने के बाद वे लम्बे समय तक छतरपुर शहर के अशासकीय विद्यालयों में अध्यापन कार्य करते रहे साथ ही निःशक्तजनों की शिक्षा, प्रशिक्षण और पुनर्वास के लिए समर्पित एन. जी. ओ. ‘प्रगतिशील विकलांग संसार, छतरपुर के संचालन एवं व्यवस्था में सक्रिय भूमिका निभाते रहे । रोज़गार को लेकर वे लम्बे समय भ्रमित और संघर्षरत रहे तथा अभावों से जूझते रहे । वर्तमान में ‘अकेला’ जी एक अध्यापक के रूप में शासन को अपनी सेवाएं दे रहे हैं साथ ही निःशक्तजनों की सेवा एवं लेखन के क्षेत्र में सक्रिय हैं ।
कार्यक्षेत्र
‘अकेला’ जी को लेखन की प्रेरणा अपने पिता स्व. श्री पुरुषोत्तम दास जी से मिली । जो भजन-कीर्तन लिखने में काफ़ी रुचि रखते थे यद्यपि उनकी कोई कृति प्रकाशित नहीं हुई । माता श्रीमती कमला देवी भी साहित्यिक-सांस्कृतिक रुचि की हैं। ‘अकेला’ जी ने सन्-1990 से ग़ज़ल-गीत लेखन की यात्रा शुरू की जो अनवरत जारी है । ग़ज़ल संग्रह ‘शेष बची चौथाई रात’-1999 के प्रकाशन ने ग़ज़ल के क्षेत्र में उन्हें स्थापित किया और राष्ट्रीय ख्याति दिलाई । दूसरे ग़ज़ल-गीत संग्रह सुब्ह की दस्तक’-2006 एवं तीसरे ग़ज़ल संग्रह ‘अंगारों पर शबनम’-2012 ने उनकी साहित्यिक पहचान को और पुख़्तगी देते हुए उन्हें देश के प्रथम पंक्ति के हिन्दी ग़ज़लकारों के बीच खड़ा कर दिया है । ‘अकेला’ जी की ग़ज़लों में जीवन की सच्ची-तपती-सुलगती आग पूरी तेजस्विता के साथ विद्यमान है । वे देश और समाज में व्याप्त दुख-दर्दों, अभावों, असफलताओं, विसंगतियों और छल-छद्मों को अनूठे अंदाज़ में पेश कर अपने पाठकों में विपरीत परिस्थितियों से लड़ने का हौसला भर देते हैं ‘अकेला‘ जी की ग़ज़लों की विशेषताओं को रेखांकित करते हुए प्रसिद्ध कवि डॉ. कुंअर बेचैन लिखते हैं-“ ‘अकेला’ जी की ग़ज़लें विविध विषयों पर होने के साथ साथ बहर आदि की दृष्टि से निष्कलंक हैं, उनमें सहज प्रवाह भी है और अमिट प्रभाव भी । ये ग़ज़लें ग़ज़ल की यशस्वी परम्परा में रहकर नए विषयों तथा नए प्रतीकों की खोज करती हैं । इनमें यथार्थ की सच्चाई और कल्पना की ऊँचाई दोनों के दर्शन होते हैं ।” इसी प्रकार ’अकेला’ जी की ग़ज़ल के प्रभाव का उद्घाटन करते हुए इस दौर के शहंशाहे ग़ज़ल डॉ. बशीर बद्र कहते हैं-“अकेला की ग़ज़ल वो लहर है जो ग़ज़ल के समन्दर में नई हलचल पैदा करेगी ।” पद्मश्री डॉ. गोपालदास ‘नीरज’ कहते हैं कि-“ अकेला के शेरों में यह ख़ूबी है कि वे खुद-ब-खुद होठों पर आ जाते हैं । ” चर्चित व्यंग्यकार माणिक वर्मा एवं प्रतिष्ठित साहित्यकार डॉ. देवव्रत जोशी ने भी अपनी अपनी टिप्पणियों में ‘अकेला’ को दुष्यत कुमार के बाद का उल्लेखनीय शायर निरूपित किया है। स्पष्ट है कि वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ ने हिन्दी ग़ज़ल को नए विषय, नई सोच, नए प्रतीक और सम्यक शिल्पगत कसावट देकर इस विधा की उल्लेखनीय सेवा की है और इस क्षेत्र में अपनी विशिष्ट पहचान क़ायम की है । लेखन के अलावा ‘अकेला’ जी एक रंगकर्मी के रूप में भी सक्रिय रहे हैं । वे भारतीय जन नाट्य संघ (इप्टा) की ज़िला इकाई-छतरपुर के लम्बे समय से पदाधिकारी हैं और क़िस्सा कल्पनापुर का, ख़ूबसूरत बहू तथा बाजीराव मस्तानी आदि नाटकों में महत्त्वपूर्ण भूमिकाएँ अभिनीत कर चुके हैं ।
रचनाएँ
- शेष बची चौथाई रात (ग़ज़ल संग्रह)
- सुबह की दस्तक (ग़ज़ल-गीत संग्रह)
- अंगारों पर शबनम (ग़ज़ल संग्रह)
- इसके अतिरिक्त ‘अकेला’ जी ने कई कहानियां, बाल कवितायें, समीक्षा आलेख और व्यंग्य लेख भी लिखे हैं [2]
सम्मान/पुरस्कार
- सूचना प्रसारण मंत्रालय(भारत सरकार) द्वारा ‘युवा कविता’ प्रथम पुरस्कार ।
- ग़ज़ल-संग्रह 'शेष बची चौथाई रात' पर अभियान जबलपुर द्वारा 'हिन्दी भूषण' अलंकरण ।
- मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन एवं बुंदेलखंड हिंदी साहित्य-संस्कृति मंच सागर [म.प्र.]द्वारा कपूर चंद वैसाखिया 'तहलका ' सम्मान ।
- अ०भा० साहित्य संगम, उदयपुर द्वारा काव्य कृति ‘सुबह की दस्तक’ पर राष्ट्रीय प्रतिभा सम्मान के अन्तर्गत 'काव्य-कौस्तुभ' सम्मान ।
- लायन्स क्लब द्वारा ‘छतरपुर गौरव’ सम्मान ।
हिन्दी ग़ज़ल और ‘अकेला’
ग़ज़ल एक ऐसी विधा है जिसमें शायर अपनी बात कम से कम शब्दों में ज़्यादा से ज़्यादा प्रभावशाली ढंग से कहता है । ग़ज़ल के सभी शेर एक दूसरे से मुक्त (स्वतंत्र) होते हैं । यानी एक ग़ज़ल में अगर सात शेर हैं तो ये मान कर चलिए कि उसमें सात अलग अलग बयान, सात अलग अलग भावनाएँ या सात अलग अलग कविताएँ हैं । ग़ज़ल फारसी से उर्दू में आई और उर्दू से हिन्दी में । जब ग़ज़ल उर्दू से हिन्दी में आई तो हिन्दी में बहुत से कवि ग़ज़ल लेखन की ओर आकृष्ट हुये लेकिन ज़्यादातर ग़ज़लकार चूंकि उर्दू की ग़ज़ल परम्परा और ग़ज़ल के व्याकरण से अनभिज्ञ थे इसलिए उनकी ग़ज़लें ग़ज़ल की कसौटी पर खरी नहीं उतरीं और नकार दी गईं । लेकिन कुछ ऐसे हिन्दी ग़ज़लकार भी सामने आये जो ग़ालिबो-मीर की ज़बान से परिचित थे । ग़ज़ल जिनकी आत्मा में बसी हुई थी और जो अमीर खुसरो से लेकर बशीर बद्र तक के ग़ज़ल के सफ़र से परिचित थे । जब ऐसे ग़ज़लकारों ने ग़ज़ल कही तो उर्दू वाले भी आश्यर्च चकित रह गये और इस तरह हिन्दी ग़ज़ल की परम्परा शुरू हुई । उर्दू से हिन्दी के इस ख़ूबसूरत मोड़ पर जो चंद लोग खड़े हैं जिनकी शायरी के आधार पर आने वाली साहित्यिक नस्लें हिन्दी ग़ज़ल का अपना पैमाना बनायेंगी उनमें दुष्यंत कुमार, गोपालदास ‘नीरज’, बालस्वरूप राही, कुंअर बेचैन, मुनव्वर राना, राजेश रेड्डी, सूर्यभानु गुप्त आदि के साथ एक नाम और आता है-वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ अना क़ासमी लिखते हैं ‘उर्दू से हिन्दी ग़ज़ल के जिस ख़ूबसूरत मोड़ पर वीरेन्द्र खरे ‘अकेला’ खड़े हैं सिर्फ़ यही बात इनके नाम को सदियों तक ज़िन्दा रखने के लिए काफ़ी है मगर इनके इस बस्फ़ के साथ एक और जो सिफ़त मौजूद है कि वो अपने दौर के तमाम हालात को इतने क़रीब से देख रहे हैं जैसे आज का युग उन्हें घूर रहा हो और वो खड़े उसे आँख दिखा रहे हों । अकेला साहब शायरी के साथ तकल्लुफ़ात नहीं बरतते बल्कि हर वो सच्ची बात जे़रे क़लम ले आते हैं जो आज के समाज की सही मंज़रकशी कर सके । ’ अकेला जी की शायरी में आज की कड़वी सच्चाईयों के साथ साथ बहुत से ऐसे पहलू भी हैं जो कभी आँखों को नम करते हैं, कभी होंठों पर मुस्कुराहट लाते हैं कभी दिलो-दिमाग़ को झकझोरते हैं और कभी कठिन परिस्थितियों के बीच हौसला बंधाते हैं । अर्द्धवाषिक उर्दू पत्रिका ‘अस्बाक़’ (पुणे) के एडीटर नज़ीर फतेहपुरी लिखते हैं-‘अकेला की ग़ज़ल मायूसी, नाकामी और अंधेरों की शिकायतों तक महदूद नहीं बल्कि उसमें हिम्मत और हौसले की एक दुनिया भी आबाद है । [3]
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
- वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की कविताएँ तथा ग़जलें - कविता कोश पर
- वीरेन्द्र खरे 'अकेला' की कविताएँ काव्य संकलन में
- 'अकेला' का काव्य-पाठ (यू-ट्यूब)
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