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||[[चित्र:Munnar-Hill-Station-Kerala.jpg|right| | ||[[चित्र:Munnar-Hill-Station-Kerala.jpg|right|100px|मुन्नार, केरल]]'मुन्नार' [[केरल]] का एक ख़ूबसूरत हिल स्टेशन है। यह केरल के इडुक्की ज़िले में 6000 फीट की ऊँचाई पर स्थित है। [[मुन्नार]] की सुन्दरता के कारण मुन्नार को "ईश्वर का देश" भी कहा जाता है। यहाँ की ख़ूबसूरती को देखकर ऐसा लगता है, जैसे कि यह धरती का स्वर्ग है। मुन्नार की प्राकृतिक सुन्दरता पर्यटकों को बहुत आकर्षित करती हैं। मन को सम्मोहित करने वाली [[झील|झीलें]] और घने जंगल यहाँ की ख़ूबसूरती में चार चाँद लगा देते हैं। किसी समय मुन्नार ब्रिटिश सरकार का दक्षिणी भारत का गर्मियों का रिजॉर्ट हुआ करता था। मुन्नार की ख़ूबसूरती शब्दों में बयां नहीं की जा सकती।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुन्नार]] | ||
{[[बौद्ध धर्म]] के किस [[ग्रंथ]] में सर्वप्रथम [[संस्कृत]] का प्रयोग हुआ? | {[[बौद्ध धर्म]] के किस [[ग्रंथ]] में सर्वप्रथम [[संस्कृत]] का प्रयोग हुआ? | ||
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+[[सुचित्रा सेन]] | +[[सुचित्रा सेन]] | ||
-[[कानन देवी]] | -[[कानन देवी]] | ||
||[[चित्र:Suchitra-sen.jpg|right| | ||[[चित्र:Suchitra-sen.jpg|right|100px|सुचित्रा सेन]]'सुचित्रा सेन' [[हिन्दी]] एवं [[बांग्ला भाषा|बांग्ला]] फ़िल्मों की प्रसिद्ध अभिनेत्री थीं। वह मुनमुन सेन की माँ थीं। विशेषकर [[उत्तम कुमार]] के साथ अभिनय करने के कारण वे सारे [[पश्चिम बंगाल]] में अत्यन्त जनप्रिय हुईं। [[सुचित्रा सेन]] ने अपने कैरियर की शुरुआत [[1952]] में बंगाली फ़िल्म 'शेष कोठई' से की थी। [[1955]] में [[बिमल राय]] की [[हिन्दी]] फ़िल्म '[[देवदास (1955 फ़िल्म)|देवदास]]' में उन्होंने 'पारो' की भूमिका निभाई थी। इसमें उनके साथ [[दिलीप कुमार]] थे। सुचित्रा सेन बंगाली सिनेमा की एक ऐसी हस्ती थीं, जिन्होंने अपनी अलौकिक सुंदरता और बेहतरीन अभिनय के दम पर लगभग तीन दशक तक दर्शकों के दिलों पर राज किया और 'अग्निपरीक्षा', 'देवदास' तथा 'सात पाके बंधा' जैसी यादगार फ़िल्में कीं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुचित्रा सेन]] | ||
{'''भारतीय राजनीति के अपराजित नायक''' के रूप में किसे जाना जाता है? | {'''भारतीय राजनीति के अपराजित नायक''' के रूप में किसे जाना जाता है? | ||
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-[[जयनारायण व्यास]] | -[[जयनारायण व्यास]] | ||
-[[हीरा लाल शास्त्री]] | -[[हीरा लाल शास्त्री]] | ||
||[[चित्र:Devilal.jpg|right| | ||[[चित्र:Devilal.jpg|right|100px|चौधरी देवी लाल]]'चौधरी देवी लाल' [[भारत]] के पूर्व [[उप प्रधानमंत्री]] एवं भारतीय राजनीति के पुरोधा, किसानों के मसीहा, महान् स्वतंत्रता सेनानी, [[हरियाणा]] के जन्मदाता, राष्ट्रीय राजनीति के भीष्म-पितामह, करोड़ों भारतीयों के जननायक थे। आज भी [[चौधरी देवी लाल]] का महज नाम-मात्र लेने से ही, हज़ारों की संख्या में बुजुर्ग एवं नौजवान उद्वेलित हो उठते हैं। उन्होंने आजीवन किसान, मुजारों, मज़दूरों, ग़रीब एवं सर्वहारा वर्ग के लोगों के लिए लड़ाई लड़ी और कभी भी पराजित नहीं हुए। उनका क़द भारतीय राजनीति में बहुत ऊंचा है। उन्हें लोग "भारतीय राजनीति के अपराजित नायक" के रूप में जानते हैं। उन्होंने भारतीय राजनीतिज्ञों के सामने अपना जो चरित्र रखा वह वर्तमान दौर में बहुत प्रासंगिक है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चौधरी देवी लाल]] | ||
{[[शाहू|राजा शाहू]] ने [[मराठा साम्राज्य]] का दूसरा '[[पेशवा]]' किसे नियुक्त किया था? | {[[शाहू|राजा शाहू]] ने [[मराठा साम्राज्य]] का दूसरा '[[पेशवा]]' किसे नियुक्त किया था? | ||
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-[[शमशेर बहादुर सिंह]] | -[[शमशेर बहादुर सिंह]] | ||
+[[रामचन्द्र शुक्ल]] | +[[रामचन्द्र शुक्ल]] | ||
||[[चित्र:RamChandraShukla.jpg|right| | ||[[चित्र:RamChandraShukla.jpg|right|100px|रामचन्द्र शुक्ल]]'रामचन्द्र शुक्ल' बीसवीं [[शताब्दी]] के [[हिन्दी]] के प्रमुख साहित्यकार थे। उनकी लिखी गई पुस्तकों में 'हिन्दी साहित्य का इतिहास' प्रमुख है। [[रामचन्द्र शुक्ल]] का साहित्यिक व्यक्तित्व विविध पक्षों वाला था। उन्होंने अपने साहित्यिक जीवन के प्रारम्भ में लेख लिखे हैं और फिर गम्भीर [[निबन्ध|निबन्धों]] का प्रणयन किया, जो चिन्तामणि (दो भाग) में संकलित है। उन्होंने [[ब्रजभाषा]] और [[खड़ी बोली]] में फुटकर कविताएँ लिखीं तथा एडविन आर्नल्ड के 'लाइट ऑफ़ एशिया' का ब्रजभाषा में 'बुद्धचरित' के नाम से पद्यानुवाद किया। शुक्ल जी ने [[मनोविज्ञान]], [[इतिहास]], [[संस्कृति]], शिक्षा एवं व्यवहार सम्बन्धी लेखों एवं पत्रिकाओं के भी अनुवाद किये हैं तथा जोसेफ़ एडिसन के 'प्लेजर्स ऑफ़ इमेजिनेशन' का 'कल्पना का आनन्द' नाम से एवं [[राखालदास बंद्योपाध्याय]] के 'शशांक' [[उपन्यास]] का भी [[हिन्दी]] में रोचक अनुवाद किया। {{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रामचन्द्र शुक्ल]] | ||
{[[दिल्ली]] स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल '[[क़ुतुब मीनार]]' का निर्माण किसने पूर्ण करवाया था? | {[[दिल्ली]] स्थित प्रसिद्ध पर्यटन स्थल '[[क़ुतुब मीनार]]' का निर्माण किसने पूर्ण करवाया था? | ||
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+[[अमीर ख़ुसरो]] | +[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
-[[अलबेरूनी]] | -[[अलबेरूनी]] | ||
||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right| | ||[[चित्र:Amir-Khusro.jpg|right|100px|अमीर ख़ुसरो]]'अमीर ख़ुसरो' [[हिन्दी]] [[खड़ी बोली]] के पहले लोकप्रिय [[कवि]] थे, जिन्होंने कई [[ग़ज़ल]], [[ख़याल]], [[कव्वाली]], [[रुबाई]] और तराना आदि की रचनाएँ कीं। [[ग़ुलाम वंश]] के पतन के बाद [[जलालुद्दीन ख़िलजी]] [[दिल्ली]] का सुल्तान हुआ। उसने ख़ुसरो को अमीर की उपाधि से विभूषित किया। ख़ुसरो ने जलालुद्दीन की प्रशंसा में 'मिफ्तोलफ़तह' नामक ग्रन्थ की रचना की। जलालुद्दीन के हत्यारे उसके भतीजे [[अलाउद्दीन ख़िलजी|अलाउद्दीन]] ने भी सुल्तान होने पर [[अमीर ख़ुसरो]] को उसी प्रकार सम्मानित किया और उन्हें राजकवि की उपाधि प्रदान की। अलाउद्दीन की प्रशंसा में खुसरो ने जो रचनाएँ कीं, वे अभूतपूर्व थीं। '''तुग़लक़नामा''' अमीर ख़ुसरो द्वारा रचित अंतिम कृति है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अमीर ख़ुसरो]] | ||
{"[[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]] एक सुन्दर वधू अर्थात् [[भारत]] की दो आँखें हैं।" यह कथन किसका है? | {"[[हिन्दू]] तथा [[मुसलमान]] एक सुन्दर वधू अर्थात् [[भारत]] की दो आँखें हैं।" यह कथन किसका है? | ||
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-[[तुलसीदास]] | -[[तुलसीदास]] | ||
-[[सूरदास]] | -[[सूरदास]] | ||
||[[चित्र:सुदामा चरित -नरोत्तमदास.jpg|right| | ||[[चित्र:सुदामा चरित -नरोत्तमदास.jpg|right|100px|'सुदामाचरित' का आवरण पृष्ठ]]'सुदामाचरित' [[नंददास]] के समसामयिक [[नरोत्तमदास|कवि नरोत्तमदास]] (सम्वत 1602) द्वारा रचित सर्वाधिक महत्त्वपूर्ण रचना है। यह एक संक्षिप्त खण्ड काव्य है, जो [[दोहा]], [[कवित्त]] और [[सवैया]] छन्दों में रचा गया है। कथासंगठन, नाटकीय विधान, भाव, [[भाषा]], [[छन्द]] आदि सभी दृष्टियों से नरोत्तमदास कृत '[[सुदामाचरित]]' एक श्रेष्ठ रचना है तथा परवर्ती [[सुदामा]] के चरित सम्बंधी रचनाओ को इससे प्रचुर प्रेरणा मिली।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सुदामाचरित]] | ||
{[[अशोक]] का सबसे छोटा स्तम्भ लेख कौन-सा है? | {[[अशोक]] का सबसे छोटा स्तम्भ लेख कौन-सा है? | ||
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-[[श्यामसुन्दर दास]] | -[[श्यामसुन्दर दास]] | ||
-[[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] | -[[भारतेन्दु हरिश्चंद्र]] | ||
||[[चित्र:Gulabrai.jpg|right| | ||[[चित्र:Gulabrai.jpg|right|100px|बाबू गुलाबराय]]'बाबू गुलाबराय' [[भारत]] के प्रसिद्ध साहित्यकार, निबंधकार और व्यंग्यकार थे। वे हमेशा सरल [[साहित्य]] को प्रमुखता देते थे, जिससे [[हिन्दी भाषा]] जन-जन तक पहुँच सके। [[आधुनिक काल]] के [[निबंध]] लेखकों और आलोचकों में [[बाबू गुलाबराय]] का स्थान बहुत ऊँचा है। उन्होंने आलोचना और निबंध दोनों ही क्षेत्रों में अपनी प्रतिभा और मौलिकता का परिचय दिया है। 'ठलुआ क्लब', 'कुछ उथले-कुछ गहरे' तथा '''फिर निराश क्यों''' उनकी चर्चित रचनाएँ हैं। उन्होंने अपनी आत्मकथा 'मेरी असफलताएँ' नाम से लिखी थी। आनंदप्रियता बाबू गुलाबराय के [[परिवार]] की एक ख़ास विशेषता रही थी। वह सभी त्योहार बड़ी धूमधाम से मनाते थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बाबू गुलाबराय]] | ||
{[[भारत]] में [[डाक टिकट]] की शुरुआत कब से हुई? | {[[भारत]] में [[डाक टिकट]] की शुरुआत कब से हुई? | ||
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-[[1860]] | -[[1860]] | ||
||[[चित्र:Dr.Radhakrishnan.jpg|right| | ||[[चित्र:Dr.Radhakrishnan.jpg|right|100px|डॉ. राधाकृष्णन पर जारी डाक टिकट]]'डाक टिकट' चिपकने वाले [[काग़ज़]] से बना एक साक्ष्य है, जो यह दर्शाता है कि डाक सेवाओं के शुल्क का भुगतान हो चुका है। आमतौर पर यह एक छोटा आयताकार काग़ज़ का टुकड़ा होता है, जो एक लिफाफे पर चिपका रहता है, जो यह यह दर्शाता है कि प्रेषक ने प्राप्तकर्ता को सुपुर्दगी के लिए डाक सेवाओं का पूरी तरह से या आंशिक रूप से भुगतान किया है। विश्व में पहला [[डाक टिकट]] आज से लगभग डेढ़ सौ साल से पहले [[ब्रिटेन]] में जारी हुआ था। उस समय इंग्लैंड के राजसिंहासन पर [[महारानी विक्टोरिया]] विराजमान थीं, इसलिए स्वाभाविक रूप से इंग्लैंड अपने डाक टिकटों पर महारानी विक्टोरिया के चित्रों को प्रमुखता देता रहा। जहाँ तक [[भारत]] का संबंध है, भारत में डाक टिकटों की शुरुआत 1852 में हुई। [[1 जुलाई]], 1852 को [[सिन्ध]] के मुख्य आयुक्त सर बर्टलेफ्रोरे द्वारा सिर्फ़ सिंध राज्य में और [[मुंबई]]-[[कराची]] मार्ग पर प्रयोग के लिए 'सिंध डाक' नामक डाक टिकट जारी किया गया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[डाक टिकट]] | ||
{[[भारत]] में दूसरी बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा कब की गई थी? | {[[भारत]] में दूसरी बार राष्ट्रीय आपातकाल की उद्घोषणा कब की गई थी? | ||
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-[[उत्तर प्रदेश]] | -[[उत्तर प्रदेश]] | ||
-[[झारखण्ड]] | -[[झारखण्ड]] | ||
||[[चित्र:Pabuji-Ki-Phad.jpg|right| | ||[[चित्र:Pabuji-Ki-Phad.jpg|right|100px|पाबूजी की फड़]]'पाबूजी की फड़' एक प्रकार का नाट्य गीत है, जिसे अभिनय के साथ गाया जाता है। यह सम्पूर्ण [[राजस्थान]] में विख्यात है। 'फड़' लम्बे कपड़े पर बनाई गई एक कलाकृति होती है, जिसमें किसी लोक देवता (विशेष रूप से 'पाबूजी' या 'देवनारायण') की [[कथा]] का चित्रण किया जाता है। फड़ को लकड़ी पर लपेट कर रखा जाता है। इसे धीरे-धीरे खोल कर भोपा तथा भोपी द्वारा लोक देवता की कथा को गीत व [[संगीत]] के साथ सुनाया जाता है। राजस्थान में पाबूजी के अलावा अन्य लोकप्रिय फड़ 'देवनारायण जी की फड़' होती है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[पाबूजी की फड़]] | ||
{"हिस्ट्री ऑफ़ ओरिसा" किस [[इतिहासकार]] की प्रमुख रचना है? | {"हिस्ट्री ऑफ़ ओरिसा" किस [[इतिहासकार]] की प्रमुख रचना है? | ||
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-[[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] | -[[गौरीशंकर हीराचंद ओझा]] | ||
+[[राखालदास बंद्योपाध्याय]] | +[[राखालदास बंद्योपाध्याय]] | ||
||[[चित्र:Rakhaldas-Bandyopadhyay.jpg|right| | ||[[चित्र:Rakhaldas-Bandyopadhyay.jpg|right|100px|राखालदास बंद्योपाध्याय]]'राखालदास बंद्योपाध्याय' [[भारत]] के प्रसिद्ध [[इतिहासकार]] और पुरातत्त्ववेत्ता थे। वे भारतीय पुराविदों के उस समूह में से एक थे, जिसमें से अधिकांश ने 20वीं शती के प्रथम चरण में तत्कालीन '[[भारतीय पुरातत्त्व सर्वेक्षण]]' के महानिदेशक जॉन मार्शल के सहयोगी के रूप में पुरातात्त्विक उत्खनन, शोध तथा स्मारकों के संरक्षण में विशेष ख्याति प्राप्त की थी। [[राखालदास बंद्योपाध्याय]] ने कई प्रसिद्ध ग्रंथों की रचना भी की थी, जैसे- 'द ओरिजिन ऑफ़ बंगाली स्क्रिप्ट', 'हिस्ट्री ऑफ़ ओरिसा', 'बास रिलीवस् ऑफ़ बादामी', 'शिव टेंपुल ऑफ़ भूमरा' तथा 'ईस्टर्न स्कूल ऑफ़ मेडडीवल स्कल्पचर' आदि।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राखालदास बंद्योपाध्याय]] | ||
{[[बंगाली भाषा|बंगाली]] साप्ताहिक 'युगान्तर' का प्रकाशन किसने आरम्भ किया था? | {[[बंगाली भाषा|बंगाली]] साप्ताहिक 'युगान्तर' का प्रकाशन किसने आरम्भ किया था? | ||
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-[[हेमा मालिनी]] | -[[हेमा मालिनी]] | ||
-[[जयललिता]] | -[[जयललिता]] | ||
||[[चित्र:Nargis-Motherindia.jpg|right| | ||[[चित्र:Nargis-Motherindia.jpg|right|100px|नर्गिस]]'नर्गिस' [[हिन्दी सिनेमा]] की महान् अभिनेत्रियों में से एक थीं। वे मशहूर गायिका जद्दनबाई की पुत्री थीं। सिर्फ छह साल की उम्र में [[नर्गिस]] ने फ़िल्म 'तलाशे हक़' ([[1935]]) से अभिनय की शुरुआत कर दी थी। अभिनय से अलग होने के बाद नर्गिस सामाजिक कार्य में जुट गईं थीं। उन्होंने अपने पति [[सुनील दत्त]] के साथ 'अजंता आर्ट्स कल्चरल ट्रूप' की स्थापना की। यह दल सीमाओं पर जाकर जवानों के मनोरंजन के लिए स्टेज शो करता था। इसके अलावा वे स्पास्टिक सोसाइटी से भी जुड़ी रहीं। बाद में नर्गिस को [[राज्यसभा]] के लिए भी नामित किया गया, लेकिन किस्मत को कुछ और ही मंजूर था। वे अपना कार्यकाल पूरा नहीं कर सकीं। इसी कार्यकाल के दौरान वे गंभीर रूप से बीमार हो गईं और [[3 मई]], [[1981]] को कैंसर के कारण उनकी मौत हो गई।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नर्गिस]] | ||
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