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| {उत्तर-व्यवहारवाद की श्रेष्ठ व्याख्या किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-35, प्रश्न-29
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| -हैरोल्ड लॉस्की ने
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| -लॉसवेल ने
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| -चार्ल्स बेल ने
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| +डेविड इस्टन ने
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| ||बीसवीं शताब्दी के अंत में डेविड ईस्टन ने व्यवहारवाद की तत्कालीन प्रवृत्तियों पर प्रबल प्रहार किया और 'उत्तर-व्यवहारवादी क्रांति' का शंखनाद किया।
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| उत्तर व्यवहारवाद की दो मुख्य मांगें थी- 1.प्रासंगिकता (Relevance) 2. कार्रवाई (Action)।
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| {'विधि के शासन' वाक्यांश में प्रयुक्त 'विधि' पद का अभिप्राय क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-69,प्रश्न-32
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| +मानव स्थापित विधि
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| -प्राकृतिक विधि
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| -स्थापित के अधिसमय
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| -सामान्य विधि
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| ||'विधि के शासन' वाक्यांश में प्रयुक्त 'विधि' पद का अभिप्राय 'मानव स्थापित विधि' से है। इस सिद्धांतानुसार, प्रत्येक व्यक्ति, चाहे उसकी अवस्था या पद जो कुछ भी हो, देश की सामान्य विधियों के अधीन और साधारण न्यायालयों की अधिकारिता के भीतर है।
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| {नाटो (NATO) संधि पर किस वर्ष में हस्ताक्षर हुए थे? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-114,प्रश्न-20
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| -सन् 1948 में
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| +सन् 1949 में
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| -सन् 1950 में
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| -सन् 1951 में
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| ||नाटो (NATO- North Atlantic Treaty Organization) एक सैन्य संगठन है, जिसकी स्थापना [[4 अप्रैल]], [[1949]] को उत्तर अटलांटिक सन्धि पर हस्ताक्षर के साथ हुई। नाटो का मुख्यालय ब्रुसेल्स (बेल्जियम) में है। इस संगठन के अंतर्गत सामूहिक सुरक्षा के दृष्टिकोण से सदस्य राज्य बाहरी हमले की स्थिति में सहयोग के लिए सहमत होंगे। वर्तमान में 28 राज्य इसके सदस्य सदस्य हैं।
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| {[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की स्थापना कब हुई थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-134,प्रश्न-23
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| -24 जनवरी, 1943 को
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| -24 अगस्त, 1945 को
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| +24 अगस्त, 1949 को
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| -4 अक्टूबर, 1945 को
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| ||[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की स्थापना 24 अक्टूबर, 1945 को संयुक्त राष्ट्र अधिकार-पत्र पर 50 देशों के हस्ताक्षर होने के साथ हुई। इसकी संरचना में सुरक्षा परिषद वाले सबसे शक्तिशाली देश ([[संयुक्त राज्य अमेरिका]], [[फ्रांस]], [[रूस]] और [[ब्रिटेन]]) द्वितीय विश्व युद्ध में बहुत अहम देश थे। वर्तमान में 193 देश उसके सदस्य हैं इसका मुख्यालय न्यूयॉर्क (संयुक्त राज्य अमेरिका) में हैं।
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| {ऐसा कौन-सा देश है जहां 'लूट पद्धति' के आधार पर लोक सेवा में भर्ती का लंबा इतिहास रहा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-135,प्रश्न-41
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| -[[भारत]]
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| +[[अमेरिका]]
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| -[[फ्रांस]]
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| -[[चीन]]
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| ||[[संयुक्त राज्य अमेरिका]] में नागरिक सेवा (सिविल सर्विसेज) की शुरुआत वर्ष 1871 में हुई। 19वीं सदी के शुरुआती दौर में उच्च सरकारी पदों पर नियुक्तियां राष्ट्रपति की इच्छा तथा आज्ञा से होती थीं तथा नियुक्त नौकरशाहों को किसी भी समय सेवामुक्त कर दिया जाता था। नौकरशाही की इस लूट प्रणाली को राजनीतिक दलों का समर्थन प्राप्त करने के उद्देश्य से उपयोग किया गया। इसी समस्या के समाधनार्थ पेंडलेटन सिविल सेवा सुधार अधिनियम, 1883 तथा हैच अधिनियम, 1939 बना।
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| {'पॉलिटिक्स: हू गेट्स, व्हाट एंड हाउ?' इस पुस्तक के लेखक कौन हैं?- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-10,प्रश्न-20
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| |type="()"}
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| -चार्ल्स मेरियम
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| -जॉन बोल्टन
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| +हेरोल्ड लॉसवेल
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| -नेथन ग्लेजर
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| ||पॉलिटिक्स: हू गेट्स, व्हाट एंड हाउ? पुस्तक के लेखक हेरोल्ड लॉसवेल हैं।
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| {"राज्य एक संसार है जिसे आत्मा अपने लिए बनाती है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-12,प्रश्न-45
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| |type="()"}
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| -एम.पी. फॉलेट
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| +हीगल
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| -[[प्लेटो]]
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||राज्य की आदर्शवादी व्याख्या हीगल, प्लेटो, एम.पी. प्लेटो, एम.पी. फालेट, ग्रीन जैसे दार्शनिकों द्वारा की गई है। इनके अनुसार राज्य सर्वोच्च नैतिकता है। इसी संदर्भ में हीगल ने कहा कि "राज्य एक संसार है जिसे आत्मा अपने लिए बनाती है।" इसी संदर्भ में अपनी पुस्तक 'न्यू स्टेट' में एम.पी. फॉलेट ने लिखा है कि "मेरी आत्मा का निवास स्थान राज्य में है।"
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| {बहुलवाद ऑप्टिन के संप्रभुता सिद्धांत का- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-25,प्रश्न-20
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| |type="()"}
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| +विरोधी है
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| -समर्थक है
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| -न तो विरोधी है और न समर्थक है
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| -उपर्युक्त में कोई नहीं
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| ||बहुलवाद ऑस्टिन के संप्रभुता सिद्धांत का विरोधी है।
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| ऑस्टिन के संप्रभुता सिद्धांत के अनुसार, "यदि कोई निश्चित मानवीय सत्ता अपनी जैसी किसी अन्य सत्ता की आज्ञा मानने में अभ्यस्त न हो, बल्कि प्रस्तुत समाज के लोग उसकी आज्ञा मानने में अभ्यस्त हों, तो इस निश्चित मानवीय सत्ता को उस समाज में 'प्रभु सत्ताधारी' कहेंगे और उस समाज को राजनीतिक और स्वाधीन समाज कहा जायेगा।" ऑस्टिन का प्रभुसत्ता संबंधी उपर्युक्त मत प्रभुसत्ता के एकलवादी सिद्धांत की स्थापना करता है।
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| उन्नीसवीं शती में प्रबुसत्ता के बहुलवादी सिद्धांत का उदय हुआ जिसने राज्य के एक तत्वीय (Monistic) स्वरूप और उसकी अखंड प्रभुसत्ता का खंडन करके उसे समाज की अन्य संस्थाओं के समकक्ष रखा और सामाजिक उद्देश्यों की पूर्ति हेतु राज्य के साथ-साथ अन्य सामाजिक संस्थाओं के महत्त्व पर बल दिया।
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| {अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत किसके द्वारा प्रतिपादित किया गया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-52, प्रश्न-22 | | {[[भारतीय संविधान]] को निम्नलिखित में से कौन-सी अनुसूची राज्यसभा में स्थानों के आवंटन से संबंधित है? |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -रूसो | | -[[भारत का संविधान- तीसरी अनुसूची |तीसरी अनुसूची]] |
| +[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] | | +[[भारत का संविधान- चौथी अनुसूची|चौथी अनुसूची]] |
| -लास्की | | -[[भारत का संविधान- पांचवीं अनुसूची|पांचवीं अनुसूची]] |
| -मिल | | -[[भारत का संविधान- छठी अनुसूची|छठीं अनुसूची]] |
| ||अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का प्रतिपादन राजनीतिक क्षेत्र में कार्य मार्क्स द्वारा किया गया। 'अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत' (Theory of Surplus Value) मूलत: रिकार्डो के 'मूल्य का श्रम सिद्धांत' (Labour Theory of value) से प्रभावित है। मार्क्स का अतिरिक्त मूल्य का सिद्धांत रिकार्डो के सिद्धांत का ही व्यापक रूप है। इसलिए रिकार्डो को अतिरिक्त मूल्य के सिद्धांत का जनक माना जाता है। मार्क्स के अनुसार, "अतिरिक्त मूल्य उन दो मूल्यों का अंतर है जिसे एक मजदूर पैदा करता है और जो वह वास्तव में पाता है।"{{point}} '''अधिक जानकारी के लिए देखें-:'''[[कार्ल मार्क्स|मार्क्स]] | | ||[[भारतीय संविधान]] की चौथी अनुसूची [[राज्य सभा]] में स्थानों के आवंटन से संबंधित है। |
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| {इनमें से आधुनिक उदारवादी राज्य की कौन-सी विशेषता नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-38, प्रश्न-12 | | {'पैकेज डील' का संबंध है: (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-121,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव | | -[[भारत]]-[[चीन]] वार्ता से |
| -जनता को मूल अधिकार | | -[[भारत]]-[[पाक]] वार्ता से |
| -एक से अधिक राजनीतिक दल | | +[[संयुक्त राष्ट्र संघ]] की सदस्यता से |
| +राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन | | -कॉमनवेल्थ की सदस्यता से |
| ||'राज्य द्वारा आर्थिक नियोजन' समाजवादी राज्य की विशेषता है। स्वतंत्र एवं निष्पक्ष चुनाव, जनता को मूल अधिकार, कर से अधिक राजनीतिक दल आदि आधुनिक उदारवादी राज्य की विशेषता है। इसके अतिरिक्त आधुनिक उदारवादी राज्य की विशेषताएं निम्नलिखित हैं-1.वैयक्तिक अस्तित्व को पहचान 2.वैयक्तिक तार्किकता में विश्वास 3.स्वतंत्रता को प्रमुखता 4.राज्य साधन तथा व्यक्ति साध्य 5.संवैधानिक एवं सीमित सरकार 6.लोकतंत्र को समर्थन 7.सेकुलरिज़्म में विश्वास 8.बहुलवादी समाज। | | ||पैकेज डील का संबंध संयुक्त राष्ट्र की सदस्यता से था। |
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| {निम्ननिखित में किन दो के राजनीतिक दर्शन में यह मत व्यक्त किया गया है कि समितियां राज्य-संप्रभुता के लिए हानिकारक हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-25,प्रश्न-21
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| |type="()"}
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| -हॉब्स
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| -रूसो
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| +उपर्युक्त दोनों
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| -उपर्युक्त में से कोई नहीं
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| ||हॉब्स और रूसो के राजनीतिक दर्शन में यह मत व्यक्त किया गया है कि समितियां राज्य-संप्रभुता के लिए हानिकारक हैं।
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| {'परंपरागत राजनीति विज्ञान' का निम्न में से कौन लक्षण नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-71,प्रश्न-44
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| |type="()"}
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| -अमूर्त स्वरूप
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| -काल्पनिकता
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| -दार्शनिकता पर बल
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| +तथ्यों के अध्ययन पर बल
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| ||परंपरागत राजनीति विज्ञान तथ्यों के अध्ययन पर बल नहीं देता है बल्कि व्यवहारवाद नई पद्धतियों, नई तकनीकों, नए तथ्यों और एक व्यवस्थित सिद्धांत के विकास के अध्ययन पर बल देता है, द्वितीय महायुद्ध के पश्चात, परंपरागत राजनीति विज्ञान के विरोध में एक व्यापक क्रांति हुई, इसे 'व्यवहारवाद' का नाम दिया गया। व्यवहारवाद की आधारभूत मान्यता यह है कि प्राकृतिक विज्ञानों और समाज विज्ञानों के बीच एक गुणात्मक निरंतरता है।
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| {जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों का विभायन किस प्रकार किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-11 | | {सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखित पुस्तक कौन नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-205,प्रश्न-34 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +स्वसंबंधित एवं परसंबंधित
| | -सम कैरेक्टरस्टिक्स ऑफ़ दि इंडियन कांस्टीट्यूशन |
| -प्रभावात्मक एवं निष्प्रभावात्मक | | -दी लॉ एंड दी कांस्टीट्यूशन |
| -धार्मिक एवं नास्तिक
| | +माडर्न कांस्टीट्यूशन |
| -उपर्युक्त में कोई नहीं | | -कैबिनेट गवर्नमेंट |
| ||जॉन स्टुअर्ट मिल ने स्वतंत्रता के संदर्भ में सभी मानवीय कार्यों को दो श्रेणियों स्वसंबंधित एवं परसंबंधित कार्यों में विभाजित किया मिल का मानना है कि स्वयं से संबंधित कार्यों पर कोई भी नियंत्रण नहीं होना चाहिए परंतु परसंबंधित कार्य, जो दूसरों को हानि तथा दु:ख पहुंचाते है, उन पर नियंत्रण होना चाहिए। | | ||'मॉडर्न कांस्टीट्यूशन' नामक पुस्तक के.सी. व्हीयर द्वारा लिखी गई है। शेष पुस्तकों को सर आइवर जेनिंग्स द्वारा लिखा गया है। |
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| {अध्यक्षात्मक व्यवस्था में कैबिनट के सदस्य जिम्मेदार होते हैं- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-94,प्रश्न-3 | | {यदि राज्य सभा किसी संविधान संशोधन विधेयक पर लोक सभा से असहमत हो तो ऐसी स्थिति में-(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-141,प्रश्न-25 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +राष्ट्रपति के प्रति | | +संशोधन विधेयक पारित नहीं माना जाता |
| -व्यक्तिगत रूप से विधायिका के प्रति | | -दोनों सदनों की संयुक्त बैठक द्वारा इसका निर्णय होगा |
| -सामूहिक रूप से विधायिका के प्रति | | -लोक सभा द्वारा दो-तिहाई बहुमत से यह विधेयक पारित कर दिया जाएगा |
| -मतदाताओं के प्रति | | -लोक सभा राज्य सभा के मत को अस्वीकृत कर देगी |
| ||अध्यक्षात्मक प्रणाली में कैबिनेट के सदस्य राष्ट्रपति के प्रति जिम्मेदार होते हैं। राष्ट्रपति अपने मंत्रिमंडल के सदस्यों को नियुक्त करता है और उन्हें जब चाहे परच्युत करता है। | | ||संविधान संशोधन विधेयक संसद के दोनों सदनों द्वारा अलग-अलग विशेष बहुमत से स्वीकृत किया जाना आवश्यक है। दोनों सदनों में असहमति की स्थिति में विधेयक अंतिम रूप से समाप्त हो जाएगा क्योंकि संविधान संशोधन के प्रस्ताव पर विचार करने के लिए संसद के दोनों सदनों की संयुक्त बैठक की संविधान में कोई व्यवस्था नहीं हैं। |
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| {भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत है- (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-107,प्रश्न-21
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| |type="()"}
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| +जनता
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| -संविधान
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| -संसद
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| -संसद एवं राज्य-विधान सभा
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| ||भारत में राजनीतिक शक्ति का मुख्य स्त्रोत मतदाता या जनता है। डॉ. भीमराव अंबेडकर के अनुसार, "उद्देशिका स्पष्ट करती है कि भारतीय संविधान का आधार जनता है एवं इसमें निहित प्राधिकार और प्रभुसत्ता सब जनता से प्राप्त हुई हैं"।
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