"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
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==इतिहास सामान्य ज्ञान== | |||
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{[[कांग्रेस]] के किस अधिवेशन में [[स्थायी बन्दोबस्त]] का विस्तार पूरे देश में करने की माँग की गई? | {[[कांग्रेस]] के किस अधिवेशन में [[स्थायी बन्दोबस्त]] का विस्तार पूरे देश में करने की माँग की गई? | ||
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-[[1888]] ई. | -[[1888]] ई. | ||
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-[[1903]] ई. | -[[1903]] ई. | ||
{[[भारत]] का वह अर्थशास्त्री कौन था, जिसने भारतीय कृषि व्यवस्था पर पुस्तक लिखी? | {[[भारत]] का वह अर्थशास्त्री कौन था, जिसने भारतीय कृषि व्यवस्था पर पुस्तक लिखी? | ||
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+आर.सी. दत्त | +आर.सी. दत्त | ||
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-रजनी पाम दत्त | -रजनी पाम दत्त | ||
{"पूर्व एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जहाँ विद्यार्थी को कभी प्रमाणपत्र नहीं मिलता", यह कथन किसका है? | {"पूर्व एक ऐसा विश्वविद्यालय है, जहाँ विद्यार्थी को कभी प्रमाणपत्र नहीं मिलता", यह कथन किसका है? | ||
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+[[लॉर्ड कर्ज़न]] | +[[लॉर्ड कर्ज़न]] | ||
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||[[चित्र:Lord Curzon.jpg|right|100px|लॉर्ड कर्ज़न]][[लॉर्ड एलगिन द्वितीय]] के बाद [[1899]] ई. में [[लॉर्ड कर्ज़न]] [[भारत]] का [[वाइसराय]] बनकर आया। भारत का वाइसराय बनने के पूर्व भी कर्ज़न चार बार भारत आ चुका था। भारत में वाइसराय के रूप में उसका कार्यकाल काफ़ी उथल-पुथल का रहा। शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने [[1902]] ई. में 'सर टॉमस रैले' की अध्यक्षता में 'विश्वविद्यालय आयोग' का गठन किया। आयोग द्वारा दिये गए सुझावों के आधार पर विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 ई. पारित किया गया। इस अधिनियम के आधार पर विश्वविद्यालय पर सरकारी नियन्त्रण बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लॉर्ड कर्ज़न]] | ||[[चित्र:Lord Curzon.jpg|right|100px|लॉर्ड कर्ज़न]][[लॉर्ड एलगिन द्वितीय]] के बाद [[1899]] ई. में [[लॉर्ड कर्ज़न]] [[भारत]] का [[वाइसराय]] बनकर आया। भारत का वाइसराय बनने के पूर्व भी कर्ज़न चार बार भारत आ चुका था। भारत में वाइसराय के रूप में उसका कार्यकाल काफ़ी उथल-पुथल का रहा। शैक्षिक सुधारों के अन्तर्गत कर्ज़न ने [[1902]] ई. में 'सर टॉमस रैले' की अध्यक्षता में 'विश्वविद्यालय आयोग' का गठन किया। आयोग द्वारा दिये गए सुझावों के आधार पर विश्वविद्यालय अधिनियम, 1904 ई. पारित किया गया। इस अधिनियम के आधार पर विश्वविद्यालय पर सरकारी नियन्त्रण बढ़ गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[लॉर्ड कर्ज़न]] | ||
{'[[कैबिनेट मिशन]]' की नियुक्ति [[क्लीमेंट एटली]] के मंत्रिमंडल द्वारा [[1946]] में की गई थी। इसका अध्यक्ष कौन था? | {'[[कैबिनेट मिशन]]' की नियुक्ति [[क्लीमेंट एटली]] के मंत्रिमंडल द्वारा [[1946]] में की गई थी। इसका अध्यक्ष कौन था? | ||
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-ए.वी. अलेक्ज़ेंडर | -ए.वी. अलेक्ज़ेंडर | ||
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-[[लॉर्ड वेवेल]] | -[[लॉर्ड वेवेल]] | ||
{अपनी दानशीलता के लिए किस भारतीय को 'प्रिंस' की उपाधि मिली थी? | {अपनी दानशीलता के लिए किस भारतीय को 'प्रिंस' की उपाधि मिली थी? | ||
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-[[जवाहर लाल नेहरू]] | -[[जवाहर लाल नेहरू]] | ||
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||देवेन्द्रनाथ ठाकुर [[कलकत्ता]] निवासी श्री [[द्वारकानाथ ठाकुर]] के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। [[पिता]] से उन्होंने ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। नोबेल पुरस्कार विजेता [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]], देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]] | ||देवेन्द्रनाथ ठाकुर [[कलकत्ता]] निवासी श्री [[द्वारकानाथ ठाकुर]] के पुत्र थे, जो प्रख्यात विद्वान और धार्मिक नेता थे। अपनी दानशीलता के कारण उन्होंने 'प्रिंस' की उपाधि प्राप्त की थी। [[पिता]] से उन्होंने ऊँची सामाजिक प्रतिष्ठा तथा ऋण उत्तराधिकार में प्राप्त किया था। नोबेल पुरस्कार विजेता [[रबीन्द्रनाथ ठाकुर]], देवेंद्रनाथ ठाकुर के पुत्र थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[देवेन्द्रनाथ ठाकुर]] | ||
{'[[मुस्लिम लीग]]' ने अपने किस अधिवेशन में 'डिवाइड एण्ड क्विट' का नारा दिया? | {'[[मुस्लिम लीग]]' ने अपने किस अधिवेशन में 'डिवाइड एण्ड क्विट' का नारा दिया? | ||
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-लाहौर अधिवेशन, 1940 | -लाहौर अधिवेशन, 1940 | ||
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-लखनऊ अधिवेशन, 1931 | -लखनऊ अधिवेशन, 1931 | ||
{[[खिलाफत आन्दोलन]] का अंत निम्न में से किस कारण हुआ? | {[[खिलाफत आन्दोलन]] का अंत निम्न में से किस कारण हुआ? | ||
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-[[मुस्लिम|मुस्लिमों]] की माँगें [[अंग्रेज़]] सरकार द्वारा मान ली गईं | -[[मुस्लिम|मुस्लिमों]] की माँगें [[अंग्रेज़]] सरकार द्वारा मान ली गईं | ||
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-[[मुस्लिम लीग]] के इस आन्दोलन से हट जाने के कारण | -[[मुस्लिम लीग]] के इस आन्दोलन से हट जाने के कारण | ||
{सर्वप्रथम किस योजना में भारतीयों के लिए 'अपने संविधान' की बात कही गई थी? | {सर्वप्रथम किस योजना में भारतीयों के लिए 'अपने संविधान' की बात कही गई थी? | ||
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+[[अगस्त प्रस्ताव]] | +[[अगस्त प्रस्ताव]] | ||
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||'अगस्त प्रस्ताव' की घोषणा [[8 अगस्त]], [[1940]] ई. को [[भारत]] के तत्कालीन [[वायसराय]] [[लॉर्ड लिनलिथगो]] ने की थी। इन प्रस्तावों के द्वारा भारत में रहने वाले अल्प-संख्यकों को अधिकांशत: वे चीज़े प्राप्त हो गईं, जिनकी उन्हें अपेक्षा भी नहीं थी। [[अगस्त प्रस्ताव]] के अंतर्गत ही सर्वप्रथम यह बात भी कही गई कि भारतीयों के लिए स्वयं का संविधान होना चाहिए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अगस्त प्रस्ताव]] | ||'अगस्त प्रस्ताव' की घोषणा [[8 अगस्त]], [[1940]] ई. को [[भारत]] के तत्कालीन [[वायसराय]] [[लॉर्ड लिनलिथगो]] ने की थी। इन प्रस्तावों के द्वारा भारत में रहने वाले अल्प-संख्यकों को अधिकांशत: वे चीज़े प्राप्त हो गईं, जिनकी उन्हें अपेक्षा भी नहीं थी। [[अगस्त प्रस्ताव]] के अंतर्गत ही सर्वप्रथम यह बात भी कही गई कि भारतीयों के लिए स्वयं का संविधान होना चाहिए।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अगस्त प्रस्ताव]] | ||
{किस घटना के पश्चात [[महात्मा गाँधी]] ने ब्रिटिश सरकार को 'शैतानी लोग' कहा था? | {किस घटना के पश्चात [[महात्मा गाँधी]] ने ब्रिटिश सरकार को 'शैतानी लोग' कहा था? | ||
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-[[जलियांवाला बाग|जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड]] | -[[जलियांवाला बाग|जलियांवाला बाग़ हत्याकाण्ड]] | ||
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||'रौलट एक्ट' [[8 मार्च]], [[1919]] ई. को लागू किया गया था। इस एक्ट के विरोध में राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] ने [[6 अप्रैल]], 1919 ई. को एक देशव्यापी हड़ताल करवायी। [[दिल्ली]] में इस आन्दोलन की बागडोर स्वामी श्रद्धानंदजी ने संभाली। वहाँ भीड़ पर चलाई गई गोली में पाँच आन्दोलनकारी आहत हुए। [[लाहौर]] एवं [[पंजाब]] में भी भीड़ पर गोलियाँ चलायी गईं। स्वामी श्रद्धानंद एवं डॉक्टर सत्यपाल के निमंत्रण पर महात्मा गांधी दिल्ली की ओर चले।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रौलट एक्ट]] | ||'रौलट एक्ट' [[8 मार्च]], [[1919]] ई. को लागू किया गया था। इस एक्ट के विरोध में राष्ट्रपिता [[महात्मा गाँधी]] ने [[6 अप्रैल]], 1919 ई. को एक देशव्यापी हड़ताल करवायी। [[दिल्ली]] में इस आन्दोलन की बागडोर स्वामी श्रद्धानंदजी ने संभाली। वहाँ भीड़ पर चलाई गई गोली में पाँच आन्दोलनकारी आहत हुए। [[लाहौर]] एवं [[पंजाब]] में भी भीड़ पर गोलियाँ चलायी गईं। स्वामी श्रद्धानंद एवं डॉक्टर सत्यपाल के निमंत्रण पर महात्मा गांधी दिल्ली की ओर चले।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[रौलट एक्ट]] | ||
{[[द्वैध शासन पद्धति|द्वैध शासन प्रणाली]] का प्रारम्भ किस वर्ष में हुआ? | {[[द्वैध शासन पद्धति|द्वैध शासन प्रणाली]] का प्रारम्भ किस वर्ष में हुआ? | ||
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-1813 ई. | -1813 ई. | ||
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+1784 ई. | +1784 ई. | ||
{[[मराठा|मराठों]] से पूर्व गुरिल्ला (छापामार) युद्ध पद्धति का प्रयोग किसने किया? | {[[मराठा|मराठों]] से पूर्व गुरिल्ला (छापामार) युद्ध पद्धति का प्रयोग किसने किया? | ||
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-महावत ख़ाँ | -महावत ख़ाँ | ||
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||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था, जो अपनी योग्यता के बल पर तरक्की करके वज़ीर के पद तक पहुँचा था। [[मलिक अम्बर]] ने काफ़ी बड़ी [[मराठा]] सेना इकट्ठी की थी। मराठे तेज़ गति वाले थे और दुश्मन की रसद काटने में काफ़ी होशियार थे। मलिक अम्बर ने मराठों को गुरिल्ला युद्ध में भी निपुणता प्रदान कर दी थी। यह गुरिल्ला युद्ध प्रणाली [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और अम्बर के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए थे। किंतु मुग़ल इससे अपरिचित ही थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | ||'मलिक अम्बर' एक हब्शी ग़ुलाम था, जो अपनी योग्यता के बल पर तरक्की करके वज़ीर के पद तक पहुँचा था। [[मलिक अम्बर]] ने काफ़ी बड़ी [[मराठा]] सेना इकट्ठी की थी। मराठे तेज़ गति वाले थे और दुश्मन की रसद काटने में काफ़ी होशियार थे। मलिक अम्बर ने मराठों को गुरिल्ला युद्ध में भी निपुणता प्रदान कर दी थी। यह गुरिल्ला युद्ध प्रणाली [[दक्कन सल्तनत|दक्कन]] के मराठों के लिए परम्परागत थी और अम्बर के सहयोग से वे इसमें और भी निपुण हो गए थे। किंतु मुग़ल इससे अपरिचित ही थे।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मलिक अम्बर]] | ||
{[[फ़र्रुख़सियर]] किसके सहयोग से [[मुग़ल]] बादशाह बना था? | {[[फ़र्रुख़सियर]] किसके सहयोग से [[मुग़ल]] बादशाह बना था? | ||
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-जुल्फ़िकार ख़ाँ | -जुल्फ़िकार ख़ाँ | ||
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||[[भारतीय इतिहास]] में हुसैन अली और उसका भाई अब्दुल्ला, [[सैयद बन्धु|सैयद बन्धुओं]] के नाम से प्रसिद्ध हैं। सैयद बन्धु भारतीय इतिहास में 'राजा बनाने वाले' के नाम से प्रसिद्ध थे। वे [[अवध]] के एक उच्च परिवार में उत्पन्न हुए और सम्राट [[बहादुरशाह प्रथम]] के राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में उच्च पदाधिकारी हो गए थे। ये लोग 'हिन्दुस्तानी दल' के नेता थे। इन्होंने चार [[मुग़ल]] बादशाहों- [[फ़र्रुख़सियर]], [[रफ़ीउद्दाराजात]], रफ़ीउद्दौलत और [[मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर|मुहम्मद शाह]] को सत्तारूढ़ करने में उनकी सहायता की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सैय्यद बन्धु]] | ||[[भारतीय इतिहास]] में हुसैन अली और उसका भाई अब्दुल्ला, [[सैयद बन्धु|सैयद बन्धुओं]] के नाम से प्रसिद्ध हैं। सैयद बन्धु भारतीय इतिहास में 'राजा बनाने वाले' के नाम से प्रसिद्ध थे। वे [[अवध]] के एक उच्च परिवार में उत्पन्न हुए और सम्राट [[बहादुरशाह प्रथम]] के राज्यकाल के अन्तिम वर्षों में उच्च पदाधिकारी हो गए थे। ये लोग 'हिन्दुस्तानी दल' के नेता थे। इन्होंने चार [[मुग़ल]] बादशाहों- [[फ़र्रुख़सियर]], [[रफ़ीउद्दाराजात]], रफ़ीउद्दौलत और [[मुहम्मदशाह रौशन अख़्तर|मुहम्मद शाह]] को सत्तारूढ़ करने में उनकी सहायता की।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[सैय्यद बन्धु]] | ||
{किस सन्धि के बाद [[पेशवा]] [[बाजीराव द्वितीय]] [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के पूर्ण अधीन हो गया? | {किस सन्धि के बाद [[पेशवा]] [[बाजीराव द्वितीय]] [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के पूर्ण अधीन हो गया? | ||
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+[[बसीन की सन्धि]] | +[[बसीन की सन्धि]] | ||
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||'बसई की सन्धि' अथवा 'बसीन की सन्धि' [[31 दिसम्बर]], 1802 में [[भारत]] में [[पूना]] के [[मराठा]] [[पेशवा]] [[बाजीराव द्वितीय]] और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के मध्य हुई थी। [[अक्टूबर]], 1802 में होल्कर ने सिंधिया और पेशवा को पराजित किया तथा धर्मभाई को पूना की गद्दी पर बैठाया। [[बाजीराव द्वितीय]] भागकर [[बसई]] चला गया और अंग्रेज़ों से मदद की गुहार की। [[बसई की सन्धि]] के तहत पेशवा अंग्रेज़ों की सेना की छह बटालियनों का ख़र्च वहन करने को राज़ी हुआ, जिसका ख़र्च उठाने के लिए एक इलाका प्रत्यर्पित किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बसीन की सन्धि]] | ||'बसई की सन्धि' अथवा 'बसीन की सन्धि' [[31 दिसम्बर]], 1802 में [[भारत]] में [[पूना]] के [[मराठा]] [[पेशवा]] [[बाजीराव द्वितीय]] और [[अंग्रेज़|अंग्रेज़ों]] के मध्य हुई थी। [[अक्टूबर]], 1802 में होल्कर ने सिंधिया और पेशवा को पराजित किया तथा धर्मभाई को पूना की गद्दी पर बैठाया। [[बाजीराव द्वितीय]] भागकर [[बसई]] चला गया और अंग्रेज़ों से मदद की गुहार की। [[बसई की सन्धि]] के तहत पेशवा अंग्रेज़ों की सेना की छह बटालियनों का ख़र्च वहन करने को राज़ी हुआ, जिसका ख़र्च उठाने के लिए एक इलाका प्रत्यर्पित किया गया।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[बसीन की सन्धि]] | ||
{[[पुलकेशिन द्वितीय]] की 'एहोल प्रशस्ति' का लेखक कौन था? | {[[पुलकेशिन द्वितीय]] की 'एहोल प्रशस्ति' का लेखक कौन था? | ||
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-रविवर्मा | -रविवर्मा | ||
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+रविकीर्ति | +रविकीर्ति | ||
{[[मुहम्मद गोरी|सिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी]] ने 1175 में [[भारत]] पर पहला आक्रमण किस राज्य के ख़िलाफ़ किया? | {[[मुहम्मद गोरी|सिहाबुद्दीन मुहम्मद गोरी]] ने 1175 में [[भारत]] पर पहला आक्रमण किस राज्य के ख़िलाफ़ किया? | ||
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+[[मुल्तान]] एवं उच्छ | +[[मुल्तान]] एवं उच्छ | ||
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||[[चित्र:Tomb-Of-Sakhi-Sultan-Multan.jpg|right|120px|सखी सुल्तान का मक़बरा, मुल्तान]]'मुल्तान' अथवा 'मुलतान' आधुनिक पश्चिमी [[पाकिस्तान]] में [[चिनाब नदी]] के तट पर स्थित पश्चिमी पंजाब का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन नगर है। यह [[सिन्ध]] से [[पंजाब]] जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। सैनिक दृष्टि से भी इसकी स्थिति अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 1175 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी]] का पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ था। इस पर उस समय 'करमाथी' लोग शासन करते थे। मुहम्मद ग़ोरी ने नगर पर अधिकार कर उसे अपने सूबेदार के सुपुर्द कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुल्तान]] | ||[[चित्र:Tomb-Of-Sakhi-Sultan-Multan.jpg|right|120px|सखी सुल्तान का मक़बरा, मुल्तान]]'मुल्तान' अथवा 'मुलतान' आधुनिक पश्चिमी [[पाकिस्तान]] में [[चिनाब नदी]] के तट पर स्थित पश्चिमी पंजाब का एक महत्त्वपूर्ण प्राचीन नगर है। यह [[सिन्ध]] से [[पंजाब]] जाने वाले राजमार्ग पर स्थित है। सैनिक दृष्टि से भी इसकी स्थिति अत्यंत महत्त्वपूर्ण है। 1175 ई. में [[मुहम्मद ग़ोरी]] का पहला आक्रमण मुल्तान पर हुआ था। इस पर उस समय 'करमाथी' लोग शासन करते थे। मुहम्मद ग़ोरी ने नगर पर अधिकार कर उसे अपने सूबेदार के सुपुर्द कर दिया था।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[मुल्तान]] | ||
{प्रारम्भिक [[तुर्क]] या आदि तुर्क शासकों में किसे उसकी उदारता के कारण 'लाखबख्श' कहा गया? | {प्रारम्भिक [[तुर्क]] या आदि तुर्क शासकों में किसे उसकी उदारता के कारण 'लाखबख्श' कहा गया? | ||
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-[[इल्तुतमिश]] | -[[इल्तुतमिश]] |
07:11, 30 जून 2012 का अवतरण
इतिहास सामान्य ज्ञान
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