मराठा

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मराठा
छत्रपति शिवाजी महाराज
विवरण भारत के वे प्रमुख लोग, जो इतिहास में क्षेत्र रक्षक योद्धा और हिन्दू धर्म के समर्थक के रूप में विख्यात हैं, इनका गृहक्षेत्र, आज का मराठी भाषी क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य है।
अन्य नाम 'महरट्टा' या 'महरट्टी'
स्थापना 17वीं शताब्दी
भाषा मराठी
राज्य महाराष्ट्र
मराठा युद्ध प्रथम युद्ध- 1775-1782 ई.

द्वितीय युद्ध- 1803-1805 ई.
तृतीय युद्ध- 1817-1818ई.

शासन और सैन्य व्यवस्था मराठा साम्राज्य हिन्दू तथा मुसलमान शासन एवं सैन्य व्यवस्था का मिश्रित रूप था। इसका सूत्रपात शिवाजी ने किया, इसमें समस्त राज्यशक्ति राजा के हाथ में रहती थी।
मराठा जाति लगभग 6.5 करोड़
संबंधित लेख शिवाजी, शाहजी भोंसले, जीजाबाई, शम्भाजी, शाहू, ताराबाई, बालाजी बाजीराव, बालाजी विश्वनाथ, बाजीराव प्रथम, बाजीराव द्वितीय महाराष्ट्र, तुकाराम, मराठी
अन्य जानकारी शिवाजी ने 'हिन्दू पद पादशाही' एवं 'हिन्दुत्व धर्मोद्धारक' की उपाधि ग्रहण कर पुनः ब्राह्मणों की रक्षा का प्रण किया, जो मराठा उत्कर्ष का एक कारण रहा। इन सब कारणों के साथ मराठों के उत्थान में शिवाजी की भूमिका एवं उनके चमत्कारी व्यक्तित्व को भुलाया नहीं जा सकता।


मराठा लोगों को 'महरट्टा' या 'महरट्टी' भी कहा जाता है। भारत के वे प्रमुख लोग, जो इतिहास में 'क्षेत्र रक्षक योद्धा' और हिन्दू धर्म के समर्थक के रूप में विख्यात हैं, इनका गृहक्षेत्र आज का मराठी भाषी क्षेत्र महाराष्ट्र राज्य है, जिसका पश्चिमी क्षेत्र समुद्र तट के किनारे मुंबई (भूतपूर्व बंबई) से गोवा तक और आंतरिक क्षेत्र पूर्व में लगभग 160 किमी. नागपुर तक फैला हुआ था। मराठा शब्द का तीन मिलते-जुलते अर्थों में उपयोग होता है-मराठी भाषी क्षेत्र में इससे एकमात्र प्रभुत्वशाली मराठा जाति, या मराठों और कुंभी जाति के एक समूह का बोध होता है। महाराष्ट्र के बाहर मोटे तौर पर इससे समूची क्षेत्रीय मराठी भाषी आबादी का बोध होता है, जिसकी संख्या लगभग 6.5 करोड़ है।

इतिहास

शिवाजी के प्रतिनिधित्व में मराठा शक्ति के उत्थान को मध्यकालीन भारत के इतिहास की एक महत्त्वपूर्ण घटना के रूप में माना जाता है। मराठों के उत्कर्ष के कारणों में महत्त्वपूर्ण कारण था- ‘महाराष्ट्र की भौगोलिक स्थिति।’ चूँकि यह प्रदेश अधिकांशतः पहाड़ों, नदियों, जंगलों एवं अनुपजाऊ भूमि वाला क्षेत्र था, इसलिए यहाँ के लोग जुझारू व्यक्तित्व के धनी थे। दूसरा कारण, पहाड़ी प्रदेश के निवासी होने के कारण मराठे स्वस्थ एवं बलिष्ठ होते थे। तीसरे, चूँकि मराठे पहाड़ी क्षेत्रों में रहते थे, इसलिए ये छापामार युद्ध शैली (गोरिल्ला युद्ध) में काफ़ी निपुण थे।

कुल और वंश

ऐतिहासिक रूप में मराठा शब्द शिवाजी द्वारा 17वीं शताब्दी में स्थापित राज्य और उनके उत्तराधिकारियों द्वारा 18वीं शताब्दी में विस्तारित क्षेत्रीय राज्य के लिए प्रयुक्त होता है। मराठा जाति के लोग मुख्यतः ग्रामीण किसान, ज़मींदार और सैनिक थे। कुछ मराठों और कुंभियों ने कभी-कभी क्षत्रिय होने का दावा भी किया, और इसकी पुष्टि वे अपने कुल-नाम व वंशावली को महाकाव्यों के नायकों, उत्तर के राजपूत वंशों या पूर्व मध्यकाल के ऐतिहासिक राजवंशों से जोड़कर करते हैं। मराठा और कुंभी समूह की जातियाँ तटीय, पश्चिमी पहाड़ियों और दक्कन के मैदान के उपसमूहों में बँटी हुई हैं, और उनके बीच आपस में वैवाहिक संबंध कम ही होते हैं। प्रत्येक उप क्षेत्र में इन जातियों के गोत्रों को विभिन्न समाज मंडलों में क्रमशः घटते हुए क्रम में वर्गीकृत किया गया है। सबसे बड़े सामाजिक मंडल में 96 गोत्र शामिल हैं। जिनमें सभी असली मराठा बताए जाते हैं। लेकिन इन 96 गोत्रों की सूचियों में काफ़ी विविधता और विवाद हैं।

धर्म सुधारकों का योगदान

16वीं एवं 17वीं शताब्दी में भारत में हुए धार्मिक आन्दोलनों ने महाराष्ट्र में तुकाराम, रामदास, वामन पंडित एवं एकनाथ जैसे धर्म सुधारकों को जन्म दिया। इन सबके उपदेशों ने मराठों को एकता के सूत्र में बांधने एवं देशभक्ति की भावना जगाने में महत्त्वपूर्ण योगदान दिया। इन धर्मोंपदेश द्वारा महाराष्ट्र की भाषा 'मराठी' को अपने उपदेशों का माध्यम बनाने के कारण मराठी साहित्य का विकास हुआ। भाषा एवं साहित्य के विकास ने भी मराठों के उत्कर्ष में भूमिका निभायी।

उच्च पद प्राप्ति

दक्षिणी के मुस्लिम राज्यों के राजस्व विभाग में कार्यरत मराठों को शासन कला एवं युद्ध कला की शिक्षा उन्हीं राज्यों से मिली थी। शाहजी भोंसले, मुशरराव, मदनपंडित और राजराय परिवार के सदस्यों ने इन मुस्लिम राज्यों में सूबेदार, मंत्री दीवान आदि अनेक महत्त्वपूर्ण पदों को धारण किया था। गोलकुण्डा, बीदर और बीजापुर के नाममात्र के मुसलमान शासक अपने सैनिक एवं असैनिक दोनों विभाग की कुशलता के मराठों पर निर्भर थे। इस प्रकार मराठा शक्ति के उत्कर्ष में दक्षिणी राज्यों की भूमिका निर्विवाद है।

शिवाजी की प्रेरणा

औरंगज़ेब की हिन्दू विरोधी नीति का ही परिणाम था कि, शिवाजी ने 'हिन्दू पद पादशाही' एवं 'हिन्दुत्व धमोद्धारक' की उपाधि ग्रहण कर पुनः ब्राह्मणों की रक्षा का प्रण किया, जो मराठा उत्कर्ष का एक कारण रहा। इन सब कारणों के साथ मराठों के उत्थान में शिवाजी की भूमिका एवं उनके चमत्कारी व्यक्तित्व को भुलाया नहीं जा सकता। शिवाजी ने अणु के कणों की तरह फैले हुए मराठों को अपने कुशल नेतृत्व एवं राष्ट्रीयता के संदेशों के माध्यम से एकता के सूत्र में बाँधा और इसके साथ ही मराठों की उस शक्ति का जगाया, जो उनके अन्दर वर्षों से छिपी थी।


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