"प्रियप्रवास चतुर्थ सर्ग": अवतरणों में अंतर
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सब सुखाकर श्रीवृषभानुजा। | सब सुखाकर श्रीवृषभानुजा। | ||
सदन-सज्जित-शोभन-स्वर्ग सा। | सदन-सज्जित-शोभन-स्वर्ग सा। | ||
तुरत ही | तुरत ही दु:ख के लवलेश से। | ||
मलिन शोक-निमज्जित हो गया॥24॥ | मलिन शोक-निमज्जित हो गया॥24॥ | ||
पंक्ति 266: | पंक्ति 266: | ||
यह नयन हमारे क्या हमें हैं सताते। | यह नयन हमारे क्या हमें हैं सताते। | ||
अहह निपट मैली ज्योति भी हो रही है। | अहह निपट मैली ज्योति भी हो रही है। | ||
मम | मम दु:ख अवलोके या हुए मंद तारे। | ||
कुछ समझ हमारी काम देती नहीं है॥47॥ | कुछ समझ हमारी काम देती नहीं है॥47॥ | ||
सखि! मुख अब तारे क्यों छिपाने लगे हैं। | सखि! मुख अब तारे क्यों छिपाने लगे हैं। | ||
वह | वह दु:ख लखने की ताब क्या हैं न लाते। | ||
परम-विफल होके आपदा टालने में। | परम-विफल होके आपदा टालने में। | ||
वह मुख अपना हैं लाज से या छिपाते॥48॥ | वह मुख अपना हैं लाज से या छिपाते॥48॥ | ||
पंक्ति 291: | पंक्ति 291: | ||
तेरा होना उदय ब्रज में तो अंधेरा करेगा॥51॥ | तेरा होना उदय ब्रज में तो अंधेरा करेगा॥51॥ | ||
नाना बातें | नाना बातें दु:ख शमन को प्यार से थी सुनाती। | ||
धीरे-धीरे नयन-जल थी पोंछती राधिका का। | धीरे-धीरे नयन-जल थी पोंछती राधिका का। | ||
हा! हा! प्यारी दुखित मत हो यों कभी थी सुनाती। | हा! हा! प्यारी दुखित मत हो यों कभी थी सुनाती। |
14:02, 2 जून 2017 का अवतरण
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टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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