"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
||
पंक्ति 227: | पंक्ति 227: | ||
+महत्त्वपूर्ण | +महत्त्वपूर्ण | ||
-महत्त्वहीन | -महत्त्वहीन | ||
||माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ से-तुंग किसानों को साथ लेकर | ||माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ से-तुंग किसानों को साथ लेकर मार्क्सवादी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी। | ||
{"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13 | {"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस- संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-डायसी | -डायसी | ||
पंक्ति 251: | पंक्ति 251: | ||
-[[अरस्तू]] | -[[अरस्तू]] | ||
-जॉन लॉक | -जॉन लॉक | ||
||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय | ||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्त्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नव उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति की कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||
पंक्ति 262: | पंक्ति 262: | ||
-रूसो | -रूसो | ||
-बोसांके | -बोसांके | ||
||हीगल के अनुसार, राज्य पृथ्वी पर ईश्वर का अवतरण (पदक्षेप) है। हीगल ने अपनी पुस्तक "The Philosophy of Rights" में राज्य को मानवीय चेतना का विराट रूप कहा है। हीगल के अनुसार, राज्य चेतना की साकार प्रतिमा है इसलिए राज्य का क़ानून वस्तुपरक चेतना का मूर्त रूप है। अत: जो कोई क़ानून का पालन करता है, वही स्वतंत्र है। इस प्रकार हीगल ने निरंकुश राज्य का समर्थन करते हुए व्यक्ति को विरोध का अधिकार नहीं दिया। मुसोलिनी हीगल के इसी विचार से प्रभावित थे, इसलिए हीगल को फॉसीवाद का आध्यात्मिक गुरु कहा जाता है। | ||हीगल के अनुसार, [[राज्य]] पृथ्वी पर [[ईश्वर]] का अवतरण (पदक्षेप) है। हीगल ने अपनी पुस्तक "The Philosophy of Rights" में राज्य को मानवीय चेतना का विराट रूप कहा है। हीगल के अनुसार, राज्य चेतना की साकार प्रतिमा है इसलिए राज्य का क़ानून वस्तुपरक चेतना का मूर्त रूप है। अत: जो कोई क़ानून का पालन करता है, वही स्वतंत्र है। इस प्रकार हीगल ने निरंकुश राज्य का समर्थन करते हुए व्यक्ति को विरोध का अधिकार नहीं दिया। मुसोलिनी हीगल के इसी विचार से प्रभावित थे, इसलिए हीगल को फॉसीवाद का आध्यात्मिक गुरु कहा जाता है। | ||
{निम्न वक्तव्यों में से कौन-सा वक्तव्य राज्य की उत्पत्ति के विषय में मार्क्सवादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-14 | {निम्न वक्तव्यों में से कौन-सा वक्तव्य राज्य की उत्पत्ति के विषय में मार्क्सवादी सिद्धांत को स्पष्ट करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-14 | ||
पंक्ति 270: | पंक्ति 270: | ||
+राज्य की उत्पत्ति उत्पादन के शोषणपरक संबंधों के रक्षार्थ हुई | +राज्य की उत्पत्ति उत्पादन के शोषणपरक संबंधों के रक्षार्थ हुई | ||
-राज्य की उत्पत्ति वर्गविहीन समाज के उद्देश्य से हुई | -राज्य की उत्पत्ति वर्गविहीन समाज के उद्देश्य से हुई | ||
||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति व्यक्तियों का अधिकार बना रहता है। इसलिए मार्क्स राज्यविहीन समाज की स्थापना की वकालत करता है। | ||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति व्यक्तियों का अधिकार बना रहता है। इसलिए मार्क्स राज्यविहीन समाज की स्थापना की वकालत करता है। | ||
{जॉन राल्स के की न्याय की धारणा क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-4 | {जॉन राल्स के की न्याय की धारणा क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-4 |
13:02, 15 अप्रैल 2017 का अवतरण
|