"प्रयोग:कविता बघेल 3": अवतरणों में अंतर
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||[[भरत मुनि]] ने आठ प्रकर के [[रस|रसों]] का वर्णन किया है। [[अभिनवगुप्त|अभिनव गुप्त]] ने '[[शांत रस]]' को नवां रस माना है। अत: अभिनव गुप्त ने 'शान्त रस' को पहली बार प्रस्तुत किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) सुनीति शतक में आचार्य विद्यासागर ने लिखा है, "जिस प्रकार तिलक के बिना चंद्रमुखी, उद्यम के बिना देश, सम्यक दृष्टि के बिना मुनि का चरित्र सुशोभित नहीं होता, उसी प्रकार 'शांत रस' के बिना कवि सुशोभित नहीं होता।" | ||[[भरत मुनि]] ने आठ प्रकर के [[रस|रसों]] का वर्णन किया है। [[अभिनवगुप्त|अभिनव गुप्त]] ने '[[शांत रस]]' को नवां रस माना है। अत: अभिनव गुप्त ने 'शान्त रस' को पहली बार प्रस्तुत किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) सुनीति शतक में आचार्य विद्यासागर ने लिखा है, "जिस प्रकार तिलक के बिना चंद्रमुखी, उद्यम के बिना देश, सम्यक दृष्टि के बिना मुनि का चरित्र सुशोभित नहीं होता, उसी प्रकार 'शांत रस' के बिना कवि सुशोभित नहीं होता।" | ||
{ | {A4 काग़ज़ का वास्तविक माप क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-10 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+201x297 मिमी. | +201x297 मिमी. | ||
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-210x287 मिमी. | -210x287 मिमी. | ||
-228x287 मिमी. | -228x287 मिमी. | ||
||A4 | ||A4 काग़ज़ का प्रयोग ऑफ़िस तथा स्टेशनरी आदि कार्यों के लिए किया जाता है। A4 काग़ज़ का वास्तविक माप 201x297 मिमी. है। अन्य माप के काग़ज़ों का वास्तविक माप इस प्रकार है- | ||
A0 काग़ज़ का वास्तविक माप 841x1189 मिमी. है। | |||
A1 काग़ज़ का वास्तविक माप 594x841 मिमी. है। | |||
A2 काग़ज़ का वास्तविक माप 420x594 मिमी. है। | |||
A3 काग़ज़ का वास्तविक माप 297x420 मिमी. है। | |||
A5 काग़ज़ का वास्तविक माप 148x210 मिमी. है। | |||
A0 सबसे बड़े माप का होता है जबकि A5 नोट पैड के लिए तथा A6 पोस्टकार्ड की माप होती है। | |||
{भारतीय चित्र षडंग के सूत्रधार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-10 | {भारतीय चित्र षडंग के सूत्रधार कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-178,प्रश्न-10 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+पंडित यशोधर | +पंडित यशोधर | ||
-बाणभट्ट | -[[बाणभट्ट]] | ||
-भास | -[[भास]] | ||
- | -[[शुक्राचार्य]] | ||
||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्।यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण | |||
ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | |||
रूपभेदा: प्रमाणिनि | |||
अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | |||
{विश्व फोटोग्राफी दिवस मनाया जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-10 | {विश्व फोटोग्राफी दिवस कब मनाया जाता है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-10 | ||
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-5 सितंबर | -[[5 सितंबर]] | ||
+19 अगस्त | +[[19 अगस्त]] | ||
-14 नवंबर | -[[14 नवंबर]] | ||
-7 दिसंबर | -[[7 दिसंबर]] | ||
||विश्व फोटोग्राफी दिवस 19 अगस्त को मनाया जाता है। विश्व फोटोग्राफी लुईस देगुरे द्वारा विकसित एक फोटोग्राफिक प्रक्रिया 'देगुरियोटाइप' की खोज से उत्पन्न हुई। 9 जनवरी, 1839 को ' | ||विश्व फोटोग्राफी दिवस [[19 अगस्त]] को मनाया जाता है। विश्व फोटोग्राफी लुईस देगुरे द्वारा विकसित एक फोटोग्राफिक प्रक्रिया 'देगुरियोटाइप' की खोज से उत्पन्न हुई। [[9 जनवरी]], 1839 को 'फ़्रेच एकेडमी ऑफ़ साइंसेज ने 'देगुरियोटाइप' की घोषणा की। कुछ महीने बाद 19 अगस्त, 1819 को फ़्राँस सरकार की घोषणा के बाद यह खोज विश्व को उपहार में मिला। | ||
{शेरशाह का प्रसिद्ध | {[[शेरशाह सूरी]] का प्रसिद्ध मक़बरा कहाँ है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-41 | ||
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-कलकत्ता | -[[कलकत्ता]] | ||
-दिल्ली | -[[दिल्ली]] | ||
-अजमेर | -[[अजमेर]] | ||
+सासाराम | +[[सासाराम]] | ||
||शेरशाह का प्रसिद्ध | ||[[शेरशाह सूरी]] का प्रसिद्ध मक़बरा '[[सासाराम]]' ([[बिहार]]) में है। शेरशाह सूरी ने शासनिक, प्रशासनिक और सामरिक दृष्टि से [[गंगा]] के मैदानों के किनारे-किनारे अनेक सड़कों का निर्माण कराया था। उसने ग्रैंड ट्रंक रोड का निर्माण कराया जो [[कलकत्ता]] से [[पेशावर]] तक जाती है। | ||
{कला समीक्षा से कौन संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-81 | {कला समीक्षा से कौन संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-81 | ||
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+रतन परिमू | +रतन परिमू | ||
-हिम्मत शाह | -हिम्मत शाह | ||
||रतन परिमू कला | ||रतन परिमू कला समीक्षा से संबंधित हैं। वह एक प्रसिद्ध कला अध्यापक, इतिहासकार एवं समीक्षक है। अपनी इन्हीं प्रतिभाओं के आधार पर उन्होंने वर्ष [[1968]] में [[ऑस्ट्रेलिया]] में आयोजित [[कला]] के माध्यम से शिक्षा की अंतर्राष्ट्रीय सोसाइटी के तेईसवें विश्व कांग्रेस में प्रतीभाव किया। उन्होंने वर्ष [[2010]] में समकालीन भारतीय कला 1880-[[1947]] के ऐतिहासिक विकास का संपादन किया। उनके प्रकाशनों में शामिल हैं- 'Painting of three Tagore's in Modern Indian art' तथा 'sculptures of Sheshasayi Vishnu' इत्यादि। | ||
{वास्तु-विद्या और सृजन के देवता हैं | {वास्तु-विद्या और सृजन के [[देवता]] कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-196,प्रश्न-83 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-विष्णु | -[[विष्णु]] | ||
-इन्द्र | -[[इन्द्र]] | ||
+विश्वकर्मा | +[[विश्वकर्मा]] | ||
-गणेश | -[[गणेश]] | ||
||अग्नि पुराण 15,400 छंदों से युक्त है और वास्तुशास्त्र तथा रत्नशास्त्र (Gemology) के विवरण प्रस्तुत करता है, अग्नि पुराण में कलाकार को ब्रह्मांड का वास्तुकार (विश्वकर्मण) कहा गया है। वास्तु-विद्या और सृजन (निर्माण) के देवता विश्वकर्मा थे। | ||[[अग्नि पुराण]] 15,400 छंदों से युक्त है और [[वास्तुशास्त्र]] तथा रत्नशास्त्र (Gemology) के विवरण प्रस्तुत करता है, अग्नि पुराण में कलाकार को [[ब्रह्मांड]] का वास्तुकार (विश्वकर्मण) कहा गया है। वास्तु-विद्या और सृजन (निर्माण) के [[देवता]] [[विश्वकर्मा]] थे। | ||
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10:33, 19 अप्रैल 2017 का अवतरण
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