"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
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||'ज्ञान शक्ति है" यह सूक्ति फ्रांसिस बेकन की है। फ्रांसिस बेकन अंग्रेज़ दार्शनिक और न्यायविद | ||'ज्ञान शक्ति है" यह सूक्ति फ्रांसिस बेकन की है। फ्रांसिस बेकन अंग्रेज़ दार्शनिक और न्यायविद है, जिसे वैज्ञानिक पद्धति का उन्नायक माना जाता है। यह ब्रिटिश अनुभववादी परंपरा का प्रथम सिद्धांतकार था जिसे जॉन लॉक, डेविड ह्यूम, मिल तथा रसेल ने आगे वढ़ाया। बेकन का विचार है कि विज्ञान को मानवता के हित और लाभ का साधन बनाना चाहिये। बेकन ने तर्क दिया कि प्रकृति के बारे में हम जो ज्ञान प्राप्त करते हैं उससे हमें प्रकृति पर नियंत्रण स्थापित करने की शक्ति प्राप्त होती है। इसी विचार को बेकन ने 'ज्ञान ही शक्ति है' की सूक्ति के रूप में व्यक्त किया। यद्यपि हीगल ने कहा कि 'राज्य चेतना का विराट रूप है' तथापि उसका चेतना (Spirit) आत्मीय तत्त्व है न कि ज्ञान। | ||
{अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यर्थाथवादी सिद्धांत तीन मान्यताओं पर आधारित है। निम्न में से कौन-सी एक आधारभूत मान्यता नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-98 | {अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में यर्थाथवादी सिद्धांत तीन मान्यताओं पर आधारित है। निम्न में से कौन-सी एक आधारभूत मान्यता नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-98 | ||
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-प्रत्येक राज्य का बहुराष्ट्रीय हित उसके प्रभाव के विस्तार में निहित है। | -प्रत्येक राज्य का बहुराष्ट्रीय हित उसके प्रभाव के विस्तार में निहित है। | ||
-राज्य अपने हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपनी शक्ति अथवा प्रभाव का प्रयोग करता है। | -राज्य अपने हितों के संरक्षण और संवर्धन के लिए अपनी शक्ति अथवा प्रभाव का प्रयोग करता है। | ||
||यथार्थवाद के अनुसार, राष्ट्र की शक्ति का विकास की | ||यथार्थवाद के अनुसार, राष्ट्र की शक्ति का विकास की उसके हितों को पूर्ण करने का एकमात्र साधन है। प्रत्येक राज्य और राजनेता सत्ता और शक्ति के विकास से ही अपने हित-पूर्ति के लिए प्रयत्नशील रहते हैं। यथार्थवादी दृष्टिकोण इस बात पर बल देता है कि विदेश नीति संबंधी निर्णय राष्ट्रीय हित के आधार पर लिए जाने चाहिए, न कि नैतिक सिद्धांतों और भावनात्मक मान्यताओं के आधार पर। | ||
{निम्नलिखित में से किस एक विचारक ने स्वतंत्रता तथा समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-9 | {निम्नलिखित में से किस एक विचारक ने स्वतंत्रता तथा समानता को एक-दूसरे का पूरक बताया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-9 | ||
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-मैकियावेली | -मैकियावेली | ||
-डी. टाकविल | -डी. टाकविल | ||
||मैकाइवर, आर.एच. टॉनी, एच.जे लास्की, टी.एच.ग्रीन, सी.बी. मैक्फर्सन आदि विचारक स्वतंत्रता एवं समानता को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||मैकाइवर, आर. एच. टॉनी, एच. जे लास्की, टी. एच. ग्रीन, सी. बी. मैक्फर्सन आदि विचारक स्वतंत्रता एवं समानता को एक-दूसरे का पूरक मानते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) समानता का सबसे व्यवस्थित विश्लेषण आर. एच. टॉनी ने अपनी कृति 'इक्वैलिटी' में किया है। (2) उपर्युक्त विचारकों के अलावा ह्यूम, बार्कर, रूसो भी स्वतंत्रता व समानता को एक दूसरे का पूरक मानते हैं। (3) एच. जे लास्की के अनुसार, "यदि स्वतंत्रता का अर्थ मानवीय [[आत्मा]] में लगातार विकास की शक्ति से है, तो यह समान लोगों के समाज के अतिरिक्त शायद ही कहीं संभव है। जहां ग़रीब और साहूकार हों, शिक्षित और अशिक्षित हों, वहां मालिक और नौकर ज़रूर मिलेंगे।" (4) समानता के द्वारा स्वतंत्रता के आधार के रूप में कार्य किया जाता है। एक ऐसे राज्य में जिसमें समानता नहीं है, स्वतंत्रता हो ही नहीं सकती। | ||
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+मैकियावेली | +मैकियावेली | ||
-हॉब्स | -हॉब्स | ||
||मैकियावेली सबसे पहला राजनीतिक विचारक है जिसने 'राज्य' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया और इसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति का निरूपण किया इसके अनुसार राज्य एक ऐसी संस्था है, जो अपने क्षेत्र में सर्वोच्च शक्ति का प्रयोगी करती है। मैकियावेली ने इस बात पर सबसे अधिक ज़ोर दिया है कि मानव जीवन की पूर्णता के लिए एक सुदृढ़ और संगठित राज्य की परम आवश्यकता है। सेबाइन के अनुसार, " 'राज्य' एक सर्वोच्च राजनीतिक संस्था के रूप में मैकियावेली की लेखनी से ही पहली बार अभिव्यक्त हुआ और तब से उसे 'संप्रभु' कहा जाने लगा, बाद में यहीं से संप्रभुता प्रतिपादित किया गया जो आधुनिक राज्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है"। | ||मैकियावेली सबसे पहला राजनीतिक विचारक है, जिसने 'राज्य' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग किया और इसकी महत्त्वपूर्ण स्थिति का निरूपण किया इसके अनुसार राज्य एक ऐसी संस्था है, जो अपने क्षेत्र में सर्वोच्च शक्ति का प्रयोगी करती है। मैकियावेली ने इस बात पर सबसे अधिक ज़ोर दिया है कि मानव जीवन की पूर्णता के लिए एक सुदृढ़ और संगठित राज्य की परम आवश्यकता है। सेबाइन के अनुसार, " 'राज्य' एक सर्वोच्च राजनीतिक संस्था के रूप में मैकियावेली की लेखनी से ही पहली बार अभिव्यक्त हुआ और तब से उसे 'संप्रभु' कहा जाने लगा, बाद में यहीं से संप्रभुता प्रतिपादित किया गया जो आधुनिक राज्य का महत्त्वपूर्ण तत्त्व है"। | ||
{'सामाजिक संविदा' का लेखक कौन था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-20 | {'सामाजिक संविदा' का लेखक कौन था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-20,प्रश्न-20 | ||
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-[[जवाहरलाल नेहरू]] | -[[जवाहरलाल नेहरू]] | ||
+रूसो | +रूसो | ||
||'सामाजिक संविदा' की रचना वर्ष 1762 में तत्कालीन फ़्रासीसी लेखक रूसों ने | ||'सामाजिक संविदा' की रचना वर्ष 1762 में तत्कालीन फ़्रासीसी लेखक रूसों ने फ़्रेंच भाषा में की थी। इस पुस्तक का एक दूसरा नाम 'प्रिंसिपल ऑफ़ पॉलिटिकल राइट' भी है। इस पुस्तक में रूसो ने राज्य की उत्पत्ति की व्याख्या की है। इस पुस्तक की शुरुआत ही ''मनुष्य जन्म से स्वतंत्र किंतु बेड़ियों से जकड़ा हुआ है" शब्दों से हुई है। 'सोशल कांट्रैक्ट' पुस्तक ने [[फ़्राँस]] में राजनीतिक सुधारों के लिए हुई क्रांति में लोगों को प्रेरणा का कार्य किया था। | ||
{"जिन राज्यों में न्याय नहीं होता, वह डाकुओं का समूह है।" यह शब्द निम्न में से किनके हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-10 | {"जिन राज्यों में न्याय नहीं होता, वह डाकुओं का समूह है।" यह शब्द निम्न में से किनके हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-10 | ||
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-उदारवाद मिश्रण है समाजवाद व बाहुलवाद का | -उदारवाद मिश्रण है समाजवाद व बाहुलवाद का | ||
-उदारवाद मिश्रण है व्यक्तिवाद व मार्क्सवाद का | -उदारवाद मिश्रण है व्यक्तिवाद व मार्क्सवाद का | ||
||उदारवाद को 'लोकतंत्र व व्यक्तिवाद का मिश्रण' कहा जाता है। उदारवाद में व्यक्ति की वैयक्तिकता को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उदारवाद शासन पद्धति के रूप में लोकतंत्र को स्वीकार करता है जो संवैधानिक व सीमित सरकार के द्वारा शासन करती है। कोयरनर के अनुसार "उदारवाद की शुरुआत और अंत दोनों वैयक्तिक स्वतंत्रता, वैयक्तिक मानवाधिकार एवं वैयक्तिक मानवीय | ||उदारवाद को 'लोकतंत्र व व्यक्तिवाद का मिश्रण' कहा जाता है। उदारवाद में व्यक्ति की वैयक्तिकता को सबसे महत्त्वपूर्ण माना जाता है। उदारवाद शासन पद्धति के रूप में लोकतंत्र को स्वीकार करता है जो संवैधानिक व सीमित सरकार के द्वारा शासन करती है। कोयरनर के अनुसार "उदारवाद की शुरुआत और अंत दोनों वैयक्तिक स्वतंत्रता, वैयक्तिक मानवाधिकार एवं वैयक्तिक मानवीय ख़ुशी से होता है।" | ||
{"यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएग।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-46,प्रश्न-11 | {"यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएग।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-46,प्रश्न-11 | ||
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+[[अरस्तू]] | +[[अरस्तू]] | ||
-मैकियावेली | -मैकियावेली | ||
-जे.एस. मिल | -जे. एस. मिल | ||
||अरस्तू ने कहा है कि "यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएगा।" इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) गैटल का कथन है, "क्योंकि लोकतंत्र समानता के सामान्य सिद्धांत पर आधारित है, अत: इससे न्याय की वृद्धि होना संभव है जो कि राज्य के अस्तित्व के प्रधान लक्ष्यों में से एक है।" (2) जे.एस. मिल ने कहा है कि" लोकतंत्र लोगों की देशभक्ति को बढ़ाता है क्योंकि नागरिक यह अनुभव करते हैं कि सरकार उन्हीं की उत्पन्न की हुई वस्तु है और अधिकारी उनके स्वामी न होकर सेवक हैं।" (4) लावेल का कथन है, "अंत में, वही सरकार सर्वश्रेष्ट है, जो मनुष्य की नैतिकता, उद्योग, साहस, आत्मबोध पवित्रता को दृढ़ बनाए। क्योंकि प्रजातंत्र इन बातों को पूरा करता है, इसलिए वह सबसे अच्छा शासन है। | ||अरस्तू ने कहा है कि "यदि अतिसमानता से प्रजातंत्र भ्रष्ट होता है तो साथ ही अतिसमानता की भावना से भी वह नष्ट हो जाएगा।" इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) गैटल का कथन है, "क्योंकि लोकतंत्र समानता के सामान्य सिद्धांत पर आधारित है, अत: इससे न्याय की वृद्धि होना संभव है जो कि राज्य के अस्तित्व के प्रधान लक्ष्यों में से एक है।" (2) जे. एस. मिल ने कहा है कि" लोकतंत्र लोगों की देशभक्ति को बढ़ाता है क्योंकि नागरिक यह अनुभव करते हैं कि सरकार उन्हीं की उत्पन्न की हुई वस्तु है और अधिकारी उनके स्वामी न होकर सेवक हैं।" (4) लावेल का कथन है, "अंत में, वही सरकार सर्वश्रेष्ट है, जो मनुष्य की नैतिकता, उद्योग, साहस, आत्मबोध पवित्रता को दृढ़ बनाए। क्योंकि प्रजातंत्र इन बातों को पूरा करता है, इसलिए वह सबसे अच्छा शासन है। | ||
{"राज्य के लुप्त हो जाने का विचार" निम्न में से किससे संबंधित है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-21 | {"राज्य के लुप्त हो जाने का विचार" निम्न में से किससे संबंधित है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-21 | ||
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+मोस्का | +मोस्का | ||
-रॉबर्ट डाहल | -रॉबर्ट डाहल | ||
||मोस्का अभिजन वर्गवादी विचारक है। इसने अपनी चर्चित कृति 'द रुलिंग क्लास' (शासक वर्ग) के अंतर्गत माना है कि सब समाजों में दो वर्ग पाये जाते है- शासक वर्ग तथा शासित वर्ग। समाज के इस विभाजन को विशिष्ट वर्गवाद की संज्ञा दी जाती है। मोस्का ने तर्क दिया कि शासन प्रणाली में परिवर्तन होने पर राजनीतिक प्रणाली की इस बुनियादी प्रकृति में बदलाव नहीं आता। अत: लोकतंत्र को अपना लेने पर भी 'बहुमत का शासन अस्तित्व में नहीं आता' बल्कि इसमें अल्पमत के शासन को कायम रखने के गूढ़ | ||मोस्का अभिजन वर्गवादी विचारक है। इसने अपनी चर्चित कृति 'द रुलिंग क्लास' (शासक वर्ग) के अंतर्गत माना है कि सब समाजों में दो वर्ग पाये जाते है- शासक वर्ग तथा शासित वर्ग। समाज के इस विभाजन को विशिष्ट वर्गवाद की संज्ञा दी जाती है। मोस्का ने तर्क दिया कि शासन प्रणाली में परिवर्तन होने पर राजनीतिक प्रणाली की इस बुनियादी प्रकृति में बदलाव नहीं आता। अत: लोकतंत्र को अपना लेने पर भी 'बहुमत का शासन अस्तित्व में नहीं आता' बल्कि इसमें अल्पमत के शासन को कायम रखने के गूढ़ तरीक़े अपनाये जाते हैं। इसने लोकतंत्र में स्वतंत्र चुनावों की व्यवस्था को झूठी परिकल्पना कहा है। | ||
{'सामुदायिकतावाद' एक किसकी प्रमुख धारा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-80,प्रश्न-100 | {'सामुदायिकतावाद' एक किसकी प्रमुख धारा है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-80,प्रश्न-100 | ||
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-सर्वाधिकारवाद | -सर्वाधिकारवाद | ||
+प्रत्ययवाद | +प्रत्ययवाद | ||
||'सामुदायिकतावाद' प्रत्ययवाद की एक प्रमुख धारा है क्योंकि यह व्यक्ति के अस्तित्व | ||'सामुदायिकतावाद' प्रत्ययवाद की एक प्रमुख धारा है क्योंकि यह व्यक्ति के अस्तित्व को समाज की देन मानता है। इसलिए समाज के प्रति प्रतिबद्धता व्यक्ति के व्यक्तित्व का आवश्यक अंग है। जहां उदारवाद व्यक्ति की स्वतंत्रता, हितों और अधिकारों पर बल देता है, वहीं समुदायवाद उसके दायित्वों और कर्त्तव्यों तथा समाज के सामान्य हित पर अपना ध्यान केंद्रित करता है। समुदायवाद के समकालीन विचारक मैंकिटायर, सैंडल, माइकेल वाल्जर हैं जिनके आरंभिक चिंतन की जड़े ग्रीन व हीगल के विचारों मे मिलती हैं। | ||
{जॉन | {जॉन स्टुअर्ट मिल के स्वतंत्रता के सिद्धांत के बारे में निम्नलिखित कथनों में से कौन-सा एक सही है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-84,प्रश्न-10 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-जॉन | -जॉन स्टुअर्ट मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से तार्किक रूप से सुसंगत है। | ||
-मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से विसंगत है। | -मिल की स्वतंत्रता की अवधारणा उपयोगितावाद से विसंगत है। | ||
-अधिकतम लोगों के अधिकतम हित की प्राप्ति में मिल स्वतंत्रता को अपरिहार्य साधन मानता है। | -अधिकतम लोगों के अधिकतम हित की प्राप्ति में मिल स्वतंत्रता को अपरिहार्य साधन मानता है। | ||
+जॉन | +जॉन स्टुअर्ट मिल का विचार है कि स्वतंत्रता के बिना मनुष्य वौद्धिक और नैतिक पूर्णता प्राप्त नहीं कर सकता तथा विकास और एक आदर्श मनुष्य नहीं बन सकता। | ||
||जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने स्वतंत्रता संबंधी विचार वर्ष [[1859]] में प्रकाशित ग्रंथ 'स्वतंत्रता पर' (On Liderty) में दिए हैं। मिल ने स्वतंत्रता के नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया। मिल के अनुसार, व्यक्ति का उद्देश्य अपने व्यक्तित्त्व का उच्चतम एवं अधिकतम विकास है और यह विकास केवल स्वतंत्रता के वातावरण में ही संभव है। मिल का विचार है कि स्वतंत्रता के द्वारा ही मनुष्य बौद्धिक व नैतिक पूर्णता प्राप्त करके एक आदर्श मनुष्य बन सकता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||जॉन स्टुअर्ट मिल ने अपने स्वतंत्रता संबंधी विचार वर्ष [[1859]] में प्रकाशित ग्रंथ 'स्वतंत्रता पर' (On Liderty) में दिए हैं। मिल ने स्वतंत्रता के नकारात्मक दृष्टिकोण का प्रतिपादन किया। मिल के अनुसार, व्यक्ति का उद्देश्य अपने व्यक्तित्त्व का उच्चतम एवं अधिकतम विकास है और यह विकास केवल स्वतंत्रता के वातावरण में ही संभव है। मिल का विचार है कि स्वतंत्रता के द्वारा ही मनुष्य बौद्धिक व नैतिक पूर्णता प्राप्त करके एक आदर्श मनुष्य बन सकता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) मिल के अनुसार, "व्यक्ति के जीवन में [[राज्य]] का न्यूनतम हस्तक्षेप और अधिकतम संभव सीमा तक व्यक्ति को अपनी इच्छानुसार जीवन व्यतीत करने की छूट ही स्वतंत्रता है और वह इसे अपनाने पर बल देता है।" (2) मिल ने व्यक्ति की स्वतंत्रता को दो भागों में बांटा है- प्रथम विचारों की स्वतंत्रता, द्वितीय कार्य संबंधी स्वतंत्रता। (3) मिल के अनुसार, व्यक्ति को विचारों की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्त होनी चाहिए, मिल स्थापित परंपरा व धारणा के विरुद्ध विचार प्रकट करने की स्वतंत्रता देता है तथा सनकी व्यक्ति को भी स्वतंत्रता दिए जाने का पक्षधर है। (4) मिल, कार्य संबंधी स्वतंत्रता को स्व-विषयक तथा पर-विषयक दो भागों में विभाजित करता है। उसके अनुसार स्व-विकास कार्यों में व्यक्ति को पूर्ण स्वाधीनता प्राप्त होनी चाहिए, लेकिन पर-विषयक | ||
कार्यों में व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती है, विशेष कर जब उसके कार्यों से समाज के अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचती हो। | कार्यों में व्यक्ति की स्वतंत्रता सीमित होती है, विशेष कर जब उसके कार्यों से समाज के अन्य व्यक्तियों की स्वतंत्रता में बाधा पहुंचती हो। | ||
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12:38, 23 अप्रैल 2017 का अवतरण
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