"प्रियप्रवास चतुर्थ सर्ग": अवतरणों में अंतर
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " दुख " to " दु:ख ") |
व्यवस्थापन (वार्ता | योगदान) छो (Text replacement - " जगत " to " जगत् ") |
||
पंक्ति 187: | पंक्ति 187: | ||
प्रिय स्वजन किसी के क्या न जाते कहीं हैं। | प्रिय स्वजन किसी के क्या न जाते कहीं हैं। | ||
पर हृदय न जानें दग्ध क्यों हो रहा है। | पर हृदय न जानें दग्ध क्यों हो रहा है। | ||
सब | सब जगत् हमें है शून्य होता दिखाता॥31॥ | ||
यह सकल दिशायें आज रो सी रही हैं। | यह सकल दिशायें आज रो सी रही हैं। |
14:16, 30 जून 2017 का अवतरण
| ||||||||||||||||||||||||
|
|
|
|
|
|
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
संबंधित लेख