"प्रयोग:रिंकू10": अवतरणों में अंतर
भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
रिंकू बघेल (वार्ता | योगदान) No edit summary |
No edit summary |
||
पंक्ति 19: | पंक्ति 19: | ||
+[[कुमारगुप्त प्रथम]] | +[[कुमारगुप्त प्रथम]] | ||
-[[समुद्रगुप्त]] | -[[समुद्रगुप्त]] | ||
||कुमारगुप्त प्रथम (414-455 ई.) गुप्तवंशीय सम्राट था। पिता [[चंद्रगुप्त द्वितीय]] की मृत्यु के बाद वह राजगद्दी पर बैठा था। वह पट्टमहादेवी ध्रुवदेवी का पुत्र था। उसके शासन काल में विशाल गुप्त साम्राज्य अक्षुण रूप से क़ायम रहा। बल्ख से बंगाल की खाड़ी तक उसका अबाधित शासन था। सब राजा, सामन्त, गणराज्य और प्रत्यंतवर्ती जनपद कुमारगुप्त के वशवर्ती थे। गुप्त वंश की शक्ति उसके शासन काल में अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी। कुमारगुप्त को विद्रोही राजाओं को वश में लाने के लिए कोई युद्ध नहीं करने पड़े।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य]] | ||[[कुमारगुप्त प्रथम]] (414-455 ई.) [[गुप्तवंश|गुप्तवंशीय]] सम्राट था। [[पिता]] [[चंद्रगुप्त द्वितीय]] की मृत्यु के बाद वह राजगद्दी पर बैठा था। वह [[ध्रुवदेवी|पट्टमहादेवी ध्रुवदेवी]] का [[पुत्र]] था। उसके शासन काल में विशाल गुप्त साम्राज्य अक्षुण रूप से क़ायम रहा। [[बल्ख]] से [[बंगाल की खाड़ी]] तक उसका अबाधित शासन था। सब राजा, सामन्त, गणराज्य और प्रत्यंतवर्ती जनपद कुमारगुप्त के वशवर्ती थे। गुप्त वंश की शक्ति उसके शासन काल में अपनी चरम सीमा पर पहुँच गई थी। कुमारगुप्त को विद्रोही राजाओं को वश में लाने के लिए कोई युद्ध नहीं करने पड़े।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[कुमारगुप्त प्रथम महेन्द्रादित्य]] | ||
{शतपथ ब्राह्मण में [[शिव]] को निम्नलिखित में से किस नाम से जाना जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-860 | {[[शतपथ ब्राह्मण]] में [[शिव]] को निम्नलिखित में से किस नाम से जाना जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-860 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-गिरित्र | -गिरित्र | ||
-कपर्दिन | -कपर्दिन | ||
+ | +सहस्त्राक्ष | ||
-शतरुद्रिय | -शतरुद्रिय | ||
पंक्ति 34: | पंक्ति 34: | ||
-[[दाल]] और नमक | -[[दाल]] और नमक | ||
+[[धान]] और [[नमक]] | +[[धान]] और [[नमक]] | ||
||सुदूर दक्षिण भारत में कृष्णा एवं तुंगभद्रा नदियों के बीच के क्षेत्र को 'तमिल प्रदेश' कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व था, जिनमें चेर, चोल और पांड्य प्रमुख थे। दक्षिण भारत के इस प्रदेश में तमिल कवियों द्वारा सभाओं तथा गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था। इन गोष्ठियों में विद्वानों के मध्य विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया जाता था, इसे ही 'संगम' के नाम से जाना जाता है। 100 ई. से 250 ई. के मध्य दक्षिण भारत में तीन संगमों को आयोजित किया गया। इस युग को ही इतिहास में "संगम युग" के नाम से जाना जाता है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[संगम युग]] | ||सुदूर [[दक्षिण भारत]] में [[कृष्णा नदी|कृष्णा]] एवं [[तुंगभद्रा नदी|तुंगभद्रा नदियों]] के बीच के क्षेत्र को 'तमिल प्रदेश' कहा जाता था। इस प्रदेश में अनेक छोटे-छोटे राज्यों का अस्तित्व था, जिनमें [[चेर वंश|चेर]], [[चोल]] और [[पांड्य]] प्रमुख थे। दक्षिण भारत के इस प्रदेश में तमिल कवियों द्वारा सभाओं तथा गोष्ठियों का आयोजन किया जाता था। इन गोष्ठियों में विद्वानों के मध्य विभिन्न विषयों पर विचार-विमर्श किया जाता था, इसे ही 'संगम' के नाम से जाना जाता है। 100 ई. से 250 ई. के मध्य दक्षिण भारत में तीन संगमों को आयोजित किया गया। इस युग को ही इतिहास में "[[संगम युग]]" के नाम से जाना जाता है।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[संगम युग]] | ||
{किस [[इतिहासकार]] ने [[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] सामाजिक, आर्थिक संगठन एवं संरचना के लिए [[सामंतवाद]] शब्द का प्रयोग किया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1001 | {किस [[इतिहासकार]] ने [[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] सामाजिक, आर्थिक संगठन एवं संरचना के लिए [[सामंतवाद]] शब्द का प्रयोग किया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1001 | ||
पंक्ति 42: | पंक्ति 42: | ||
-[[के. पी. जायसवाल]] | -[[के. पी. जायसवाल]] | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||राम शरण शर्मा (अंग्रेज़ी: Ram Sharan Sharma; जन्म- 26 नवम्बर, 1919, बेगुसराय, बिहार; मृत्यु- 20 अगस्त, 2011, पटना) भारत के प्रसिद्ध इतिहासकार और शिक्षाविद थे। वे समाज को हकीकत से रु-ब-रु कराने वाले, अन्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भारतीय इतिहासकारों में से एक थे। राम शरण शर्मा 'भारतीय इतिहास' को वंशवादी कथाओं से मुक्त कर सामाजिक और आर्थिक इतिहास लेखन की प्रक्रिया की शुरुआत करने वालों में गिने जाते थे।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राम शरण शर्मा]] | ||राम शरण शर्मा (अंग्रेज़ी: Ram Sharan Sharma; जन्म- [[26 नवम्बर]], [[1919]], बेगुसराय, [[बिहार]]; मृत्यु- 20 अगस्त, 2011, [[पटना]]) [[भारत]] के प्रसिद्ध [[इतिहासकार]] और शिक्षाविद थे। वे समाज को हकीकत से रु-ब-रु कराने वाले, अन्तराष्ट्रीय ख्यातिप्राप्त भारतीय इतिहासकारों में से एक थे। राम शरण शर्मा 'भारतीय इतिहास' को वंशवादी कथाओं से मुक्त कर सामाजिक और आर्थिक इतिहास लेखन की प्रक्रिया की शुरुआत करने वालों में गिने जाते थे।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[राम शरण शर्मा]] | ||
{निम्नांकित में से कौन एक [[गुप्तोत्तर काल]] में [[भारत]] में आयात की एक प्रमुख मद थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-239,प्रश्न-1073 | {निम्नांकित में से कौन एक [[गुप्तोत्तर काल]] में [[भारत]] में आयात की एक प्रमुख मद थी? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-239,प्रश्न-1073 | ||
पंक्ति 57: | पंक्ति 57: | ||
-भू-राजस्व कर | -भू-राजस्व कर | ||
-इनमें से कोई नहीं | -इनमें से कोई नहीं | ||
||[[चोल साम्राज्य]] का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। चोल शासकों ने [[श्रीलंका]] पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और मालदीव द्वीपों पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव कलिंग और तुंगभद्र दोआब पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली नौसेना थी और ये दक्षिण पूर्वी एशिया में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चोल साम्राज्य]] | ||[[चोल साम्राज्य]] का अभ्युदय नौवीं शताब्दी में हुआ और दक्षिण प्राय:द्वीप का अधिकांश भाग इसके अधिकार में था। चोल शासकों ने [[श्रीलंका]] पर भी विजय प्राप्त कर ली थी और [[मालदीव|मालदीव द्वीपों]] पर भी इनका अधिकार था। कुछ समय तक इनका प्रभाव [[कलिंग]] और तुंगभद्र दोआब पर भी छाया था। इनके पास शक्तिशाली [[नौसेना]] थी और ये दक्षिण पूर्वी एशिया में अपना प्रभाव क़ायम करने में सफल हो सके।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[चोल साम्राज्य]] | ||
{एक [[पाल वंश|पाल]] राजा को दीर्घकाल तक | {एक [[पाल वंश|पाल]] राजा को दीर्घकाल तक कलचुरी कर्ण के साथ युद्धरत रहना पड़ा। [[बौद्ध]] आचार्य श्रीज्ञान की मध्यस्थता से दोनों में शांति स्थापित हुई, वह राजा था: (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1168 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[महिपाल]] | -[[महिपाल]] | ||
पंक्ति 65: | पंक्ति 65: | ||
-[[देवपाल]] | -[[देवपाल]] | ||
-[[धर्मपाल]] | -[[धर्मपाल]] | ||
||[[नयपाल]] [[बिहार]] और [[बंगाल]] के [[पाल वंश]] के शासक महीपाल का पुत्र और उत्तराधिकारी था। वह पाल वंश का दसवाँ शासक था, और उसने लगभग 1038 से 1055 ई. तक राज्य किया था। उसके राज्य काल में दीर्घकाल तक कलचुरियों से संघर्ष चलता रहा।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नयपाल]] | ||[[नयपाल]] [[बिहार]] और [[बंगाल]] के [[पाल वंश]] के शासक महीपाल का [[पुत्र]] और उत्तराधिकारी था। वह पाल वंश का दसवाँ शासक था, और उसने लगभग 1038 से 1055 ई. तक राज्य किया था। उसके राज्य काल में दीर्घकाल तक कलचुरियों से संघर्ष चलता रहा।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[नयपाल]] | ||
{[[बुद्ध]] के प्रवचनों का | {[[बुद्ध]] के प्रवचनों का संकल्प प्रसिद्ध [[धम्मपद]] निम्नलिखित में से किस [[ग्रंथ]] का अंग है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-485 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+सत्तुपिटक | +सत्तुपिटक | ||
पंक्ति 73: | पंक्ति 73: | ||
-[[अभिधम्मपिटक]] | -[[अभिधम्मपिटक]] | ||
-[[दीघनिकाय]] | -[[दीघनिकाय]] | ||
||[[धम्मपद]] बौद्ध साहित्य का सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय ग्रंथ है। इसमें बुद्ध भगवान के नैतिक उपदेशों का संग्रह है। धम्मपद एक पालि शब्द है, जिसका अर्थ है- "सिद्धांत के शब्द" या "सत्य का मार्ग"।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धम्मपद]] | ||[[धम्मपद]] [[बौद्ध साहित्य]] का सर्वोत्कृष्ट लोकप्रिय [[ग्रंथ]] है। इसमें [[बुद्ध |बुद्ध भगवान]] के नैतिक उपदेशों का संग्रह है। धम्मपद एक [[पालि]] शब्द है, जिसका अर्थ है- "सिद्धांत के शब्द" या "सत्य का मार्ग"।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[धम्मपद]] | ||
{निम्नलिखित में से किनका [[अशोक के अभिलेख|अशोक के अभिलेखों]] में उल्लेख हुआ है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-653 | {निम्नलिखित में से किनका [[अशोक के अभिलेख|अशोक के अभिलेखों]] में उल्लेख हुआ है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-653 | ||
पंक्ति 81: | पंक्ति 81: | ||
-पांड्य, सतियपुत्र, आंध्र एवं चेर | -पांड्य, सतियपुत्र, आंध्र एवं चेर | ||
-[[चोल]], [[पांड्य राजवंश|पांड्य]], भोज एवं आंध्र | -[[चोल]], [[पांड्य राजवंश|पांड्य]], भोज एवं आंध्र | ||
||मौर्य सम्राट [[अशोक]] के इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी उसके अभिलेखों से मिलती है। यह माना जाता है कि, अशोक को अभिलेखों की प्रेरणा ईरान के शासक 'डेरियस' से मिली थी। अशोक के लगभग 40 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। ये ब्राह्मी, खरोष्ठी और आर्मेइक- ग्रीक लिपियों में लिखे गये हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक के अभिलेख]] | ||मौर्य सम्राट [[अशोक]] के इतिहास की सम्पूर्ण जानकारी उसके अभिलेखों से मिलती है। यह माना जाता है कि, अशोक को अभिलेखों की प्रेरणा [[ईरान]] के शासक 'डेरियस' से मिली थी। अशोक के लगभग 40 अभिलेख प्राप्त हुए हैं। ये [[ब्राह्मी]], [[खरोष्ठी]] और आर्मेइक- ग्रीक लिपियों में लिखे गये हैं।{{point}}'''अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[अशोक के अभिलेख]] | ||
12:26, 10 नवम्बर 2017 का अवतरण
|