"सालिम अली": अवतरणों में अंतर
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पूरा नाम '''सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली''' (जन्म- [[12 नवम्बर]] [[1896]]; मृत्यु- [[27 जुलाई]], [[1987]]) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। सालिम अली को '''भारत के बर्डमैन''' के रूप में जाना जाता है, सलीम अली [[भारत]] के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। | पूरा नाम '''सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली''' (जन्म- [[12 नवम्बर]] [[1896]]; मृत्यु- [[27 जुलाई]], [[1987]]) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। सालिम अली को '''भारत के बर्डमैन''' के रूप में जाना जाता है, सलीम अली [[भारत]] के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। सन् [[1906]] में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षी शास्त्री के रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है। | ||
==जीवन परिचय== | ==जीवन परिचय== | ||
सालिम अली बचपन से ही प्रकृति से स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह से नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए [[बर्मा]] भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षी शास्त्री में प्रशिक्षण लिया और [[मुंबई|बंबई]] के ''नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी'' के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। फिर [[जर्मनी]] जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे। जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज़्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बया पक्षी ने घौंसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बया पक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोज़ाना घंटों करते रहते। | सालिम अली बचपन से ही प्रकृति से स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह से नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए [[बर्मा]] भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षी शास्त्री में प्रशिक्षण लिया और [[मुंबई|बंबई]] के ''नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी'' के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। फिर [[जर्मनी]] जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे। जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज़्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बया पक्षी ने घौंसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बया पक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोज़ाना घंटों करते रहते। | ||
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सन [[1930]] में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराये। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। | सन [[1930]] में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराये। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सन् [[1941]] में 'दि बुक ऑफ़ इंण्डियन बर्ड्स' और सन् [[1948]] में 'हैण्डबुक ऑफ़ बर्ड्स ऑफ़ इण्डिया एण्ड [[पाकिस्तान]]' इनके द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें हैं। | ||
==सम्मान== | ==सम्मान== | ||
[[1976]] में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[पद्म विभूषण]] से सालिम अली को सम्मानित किया गया। | [[1976]] में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान [[पद्म विभूषण]] से सालिम अली को सम्मानित किया गया। |
14:15, 6 मार्च 2012 का अवतरण

Salim Ali
पूरा नाम सलीम मोइज़ुद्दीन अब्दुल अली (जन्म- 12 नवम्बर 1896; मृत्यु- 27 जुलाई, 1987) एक भारतीय पक्षी विज्ञानी और प्रकृतिवादी थे। सालिम अली को भारत के बर्डमैन के रूप में जाना जाता है, सलीम अली भारत के ऐसे पहले व्यक्ति थे जिन्होंने भारत भर में व्यवस्थित रूप से पक्षी सर्वेक्षण का आयोजन किया और पक्षियों पर लिखी उनकी किताबों ने भारत में पक्षी-विज्ञान के विकास में काफ़ी मदद की है। सन् 1906 में दस वर्ष के बालक सालिम अली की अटूट जिज्ञासा ने ही पक्षी शास्त्री के रूप में उन्हें आज विश्व में मान्यता दिलाई है।
जीवन परिचय
सालिम अली बचपन से ही प्रकृति से स्वच्छन्द वातावरण में घूमना इनकी रुचि रही है। इसी कारण वे अपनी पढ़ाई भी पूरी तरह से नहीं कर पाये। बड़ा होने पर सालिम अली को बड़े भाई के साथ उसके काम में मदद करने के लिए बर्मा भेज दिया गया। यहाँ पर भी इनका मन जंगल में तरह-तरह के परिन्दों को देखने में लगता। घर लौटने पर सालिम अली ने पक्षी शास्त्री में प्रशिक्षण लिया और बंबई के नेचुरल हिस्ट्री सोसाइटी के म्यूज़ियम में गाइड के पद पर नियुक्त हो गये। फिर जर्मनी जाकर इन्होंने उच्च प्रशिक्षण प्राप्त किया। लेकिन एक साल बाद देश लौटने पर इन्हें ज्ञात हुआ कि इनका पद खत्म हो चुका है। इनकी पत्नी के पास थोड़े-बहुत पैसे थे। जिसके कारण बंबई बन्दरगाह के पास किहिम स्थान पर एक छोटा सा मकान लेकर सालिम अली रहने लगे। यह मकान चारों तरफ़ से पेड़ों से घिरा हुआ था। उस साल वर्षा ज़्यादा होने के कारण इनके घर के पास एक पेड़ पर बया पक्षी ने घौंसला बनाया। सालिम अली तीन-चार माह तक बया पक्षी के रहने-सहने का अध्ययन रोज़ाना घंटों करते रहते।
लेखन कार्य
सन 1930 में इन्होंने अपने अध्ययन पर आधारित लेख प्रकाशित कराये। इन लेखों के कारण ही सालिम अली को पक्षी शास्त्री के रूप में मान्यता प्राप्त हुई। सालिम अली ने कुछ पुस्तकें भी लिखी हैं। सन् 1941 में 'दि बुक ऑफ़ इंण्डियन बर्ड्स' और सन् 1948 में 'हैण्डबुक ऑफ़ बर्ड्स ऑफ़ इण्डिया एण्ड पाकिस्तान' इनके द्वारा लिखित प्रमुख पुस्तकें हैं।
सम्मान
1976 में भारत के दूसरे सर्वोच्च नागरिक सम्मान पद्म विभूषण से सालिम अली को सम्मानित किया गया।
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टीका टिप्पणी और संदर्भ