"मापदण्ड बदलो -दुष्यंत कुमार": अवतरणों में अंतर

भारत डिस्कवरी प्रस्तुति
यहाँ जाएँ:नेविगेशन, खोजें
('{| style="background:transparent; float:right" |- | {{सूचना बक्सा कविता |चित्र=Dushyant-kumar.jpg...' के साथ नया पन्ना बनाया)
 
No edit summary
पंक्ति 2: पंक्ति 2:
|-
|-
|
|
{{सूचना बक्सा कविता
{{सूचना बक्सा पुस्तक
|चित्र=Dushyant-kumar.jpg
|चित्र=Surya-ka-swagat.jpg
|चित्र का नाम=दुष्यंत कुमार
|चित्र का नाम=सूर्य का स्वागत
|कवि =[[दुष्यंत कुमार]]  
| लेखक=
|जन्म=[[1 सितम्बर]], [[1933]]
| कवि= [[दुष्यंत कुमार]]
|जन्म स्थान=[[बिजनौर]], [[उत्तर प्रदेश]]
| मूल_शीर्षक = [[सूर्य का स्वागत -दुष्यंत कुमार|सूर्य का स्वागत]]
|मृत्यु=[[30 दिसम्बर]], [[1975]]
| अनुवादक =
|मृत्यु स्थान=
| संपादक =
|मुख्य रचनाएँ=[[अब तो पथ यही है -दुष्यंत कुमार|अब तो पथ यही है]], [[उसे क्या कहूँ -दुष्यंत कुमार|उसे क्या कहूँ]], [[गीत का जन्म -दुष्यंत कुमार|गीत का जन्म]], [[प्रेरणा के नाम -दुष्यंत कुमार|प्रेरणा के नाम]] आदि।
| प्रकाशक = राजकमल प्रकाशन, इलाहाबाद
|यू-ट्यूब लिंक=
| प्रकाशन_तिथि = 1957
|शीर्षक 1=
| भाषा = [[हिन्दी]]  
|पाठ 1=
| देश = [[भारत]]
|शीर्षक 2=
| विषय = कविताएँ
|पाठ 2=
| शैली =छंदमुक्त
|बाहरी कड़ियाँ=  
| मुखपृष्ठ_रचना =  
| प्रकार =  
| पृष्ठ = 84
| ISBN =  
| भाग =
| टिप्पणियाँ =  
}}
}}
|-
|-

07:52, 30 दिसम्बर 2012 का अवतरण

मापदण्ड बदलो -दुष्यंत कुमार
सूर्य का स्वागत
सूर्य का स्वागत
कवि दुष्यंत कुमार
मूल शीर्षक सूर्य का स्वागत
प्रकाशक राजकमल प्रकाशन, इलाहाबाद
प्रकाशन तिथि 1957
देश भारत
पृष्ठ: 84
भाषा हिन्दी
शैली छंदमुक्त
विषय कविताएँ
दुष्यंत कुमार की रचनाएँ

मेरी प्रगति या अगति का
यह मापदण्ड बदलो तुम,
जुए के पत्ते-सा
मैं अभी अनिश्चित हूँ।
मुझ पर हर ओर से चोटें पड़ रही हैं,
कोपलें उग रही हैं,
पत्तियाँ झड़ रही हैं,
मैं नया बनने के लिए खराद पर चढ़ रहा हूँ,
लड़ता हुआ
नई राह गढ़ता हुआ आगे बढ़ रहा हूँ।

        अगर इस लड़ाई में मेरी साँसें उखड़ गईं,
        मेरे बाज़ू टूट गए,
        मेरे चरणों में आँधियों के समूह ठहर गए,
        मेरे अधरों पर तरंगाकुल संगीत जम गया,
        या मेरे माथे पर शर्म की लकीरें खिंच गईं,
        तो मुझे पराजित मत मानना,
        समझना-
        तब और भी बड़े पैमाने पर
        मेरे हृदय में असन्तोष उबल रहा होगा,
        मेरी उम्मीदों के सैनिकों की पराजित पंक्तियाँ
        एक बार और
        शक्ति आज़माने को
        धूल में खो जाने या कुछ हो जाने को
        मचल रही होंगी।
        एक और अवसर की प्रतीक्षा में
        मन की क़न्दीलें जल रही होंगी।

ये जो फफोले तलुओं मे दीख रहे हैं
ये मुझको उकसाते हैं।
पिण्डलियों की उभरी हुई नसें
मुझ पर व्यंग्य करती हैं।
मुँह पर पड़ी हुई यौवन की झुर्रियाँ
क़सम देती हैं।
कुछ हो अब, तय है-
मुझको आशंकाओं पर क़ाबू पाना है,
पत्थरों के सीने में
प्रतिध्वनि जगाते हुए
परिचित उन राहों में एक बार
विजय-गीत गाते हुए जाना है-
जिनमें मैं हार चुका हूँ।

        मेरी प्रगति या अगति का
        यह मापदण्ड बदलो तुम
        मैं अभी अनिश्चित हूँ।


पन्ने की प्रगति अवस्था
आधार
प्रारम्भिक
माध्यमिक
पूर्णता
शोध

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख