"सदस्य:रविन्द्र प्रसाद/3": अवतरणों में अंतर
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||[[चित्र:Munshi-Premchand.jpg|right|100px|मुंशी प्रेमचन्द]]मुंशी प्रेमचन्द 'भारत के उपन्यास सम्राट' माने जाते हैं, जिनके युग का विस्तार सन [[1880]] से [[1936]] तक है। यह कालखण्ड [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में बहुत महत्त्व का है। [[प्रेमचन्द]] का वास्तविक नाम "धनपत राय श्रीवास्तव" था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। मुंशी प्रेमचन्द की स्मृति में 'भारतीय डाक विभाग' की ओर से [[31 जुलाई]], [[1980]] को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक [[डाक टिकट]] जारी किया था। [[गोरखपुर]] के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ 'प्रेमचन्द साहित्य संस्थान' की स्थापना की गई है। यहाँ उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचन्द]] | ||[[चित्र:Munshi-Premchand.jpg|right|100px|मुंशी प्रेमचन्द]]मुंशी प्रेमचन्द 'भारत के उपन्यास सम्राट' माने जाते हैं, जिनके युग का विस्तार सन [[1880]] से [[1936]] तक है। यह कालखण्ड [[भारत का इतिहास|भारत के इतिहास]] में बहुत महत्त्व का है। [[प्रेमचन्द]] का वास्तविक नाम "धनपत राय श्रीवास्तव" था। वे एक सफल लेखक, देशभक्त नागरिक, कुशल वक्ता, ज़िम्मेदार संपादक और संवेदनशील रचनाकार थे। मुंशी प्रेमचन्द की स्मृति में 'भारतीय डाक विभाग' की ओर से [[31 जुलाई]], [[1980]] को उनकी जन्मशती के अवसर पर 30 पैसे मूल्य का एक [[डाक टिकट]] जारी किया था। [[गोरखपुर]] के जिस स्कूल में वे शिक्षक थे, वहाँ 'प्रेमचन्द साहित्य संस्थान' की स्थापना की गई है। यहाँ उनसे संबंधित वस्तुओं का एक संग्रहालय भी है।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[प्रेमचन्द]] | ||
{' | {निम्नलिखित में से कौन 'राग दरबारी' उपन्यास के लेखक हैं?(भारतकोश) | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[ | -[[यशपाल]] | ||
+ | -[[भगवतीचरण वर्मा]] | ||
-[[श्रीलाल शुक्ल]] | +[[श्रीलाल शुक्ल]] | ||
-[[ | -[[अमृतलाल नागर]] | ||
||[[चित्र:Shrilal Shukla55.jpg|right|100px|श्रीलाल शुक्ल]]श्रीलाल शुक्ल प्रसिद्ध साहित्यकार थे, जिन्हें समकालीन कथा-साहित्य में उद्देश्यपूर्ण व्यंग्य लेखन के लिये जाना जाता है। उनके दस उपन्यास, चार कहानी संग्रह, नौ व्यंग्य संग्रह, दो विनिबंध, तथा एक आलोचना पुस्तक आदि उनकी कीर्ति को बनाये रखने के लिए पर्याप्त हैं। [[श्रीलाल शुक्ल]] का पहला [[उपन्यास]] 'सूनी घाटी का सूरज', [[1957]] में प्रकाशित हुआ था। उनका सबसे लोकप्रिय उपन्यास 'राग दरबारी', [[1968]] में छपा। 'राग दरबारी' का पन्द्रह भारतीय भाषाओं के अलावा [[अंग्रेज़ी]] में भी अनुवाद प्रकाशित हुआ। 'राग विराग' श्रीलाल शुक्ल का आखिरी उपन्यास था। उन्होंने [[हिन्दी साहित्य]] को कुल मिलाकर 25 रचनाएँ दी हैं। इनमें 'मकान', 'पहला पड़ाव', 'अज्ञातवास' और 'विश्रामपुर का संत' प्रमुख हैं।{{point}}अधिक जानकारी के लिए देखें:-[[श्रीलाल शुक्ल]] | |||
{[[देवनागरी लिपि]] को संवैधानिक मान्यता किसने प्रदान की है? (पृ.सं. 9 | {[[देवनागरी लिपि]] को संवैधानिक मान्यता किसने प्रदान की है? (पृ.सं. 9 |
06:43, 7 मार्च 2013 का अवतरण
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