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इरोम शर्मिला
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परिवार पिता इरोम नंदा और मां इरोम ओंग्बि सखी
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कार्यक्षेत्र एक्टिविस्ट, जर्नलिस्ट, कवयित्री
==सेना को मनमानी की छूट==
 
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इरोम को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और मणिपुर को जानना है तो इरोम की कहानी जाननी होगी। उन्हें "आयरन लेडी ऑव मणिपुर" का खिताब हासिल है। मणिपुर और इरोम की कहानी कुछ यूं है, आजादी के बाद मणिपुर के महाराजा ने मणिपुर को संवैधानिक राजतंत्र घोषित किया, लेकिन कई घटनाक्रमों के बाद 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ और 1958 में नागा आंदोलन सक्रिय हुआ। इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक कानून का इस्तेमाल किया जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून कहा जाता है। सेना को मनमानी की छूट।
 
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==इरोम की मांग==
इरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है।
इरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है।



06:22, 29 मई 2013 का अवतरण

इरोम शर्मिला
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पूरा नाम इरोम शर्मिला
जन्म भूमि कोंगपाल, इम्फाल, मणिपुर भारत
पुरस्कार-उपाधि रवींद्रनाथ टैगोर शांति पुरस्कार
विशेष योगदान एक्टिविस्ट, जर्नलिस्ट, कवयित्री
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी आयरन लेडी ऑव मणिपुर
बाहरी कड़ियाँ आधिकारिक वेबसाइट
इन्हें भी देखें कवि सूची, साहित्यकार सूची

मणिपुर को जानना है तो इरोम की कहानी जाननी होगी। आपको "आयरन लेडी ऑव मणिपुर" का खिताब हासिल है। इरोम की कहानी कुछ यूं है कि आजादी के बाद मणिपुर के महाराजा ने मणिपुर को संवैधानिक राजतंत्र घोषित किया, लेकिन कई घटनाक्रमों के बाद 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ और 1958 में नागा आंदोलन सक्रिय हुआ। इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक कानून का इस्तेमाल किया जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून कहा जाता है।

सेना को मनमानी की छूट

इरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अर्थ है सेना को मनमानी की छूट को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और सेना के धर पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मारे जाते। सेना के द्वारा चलाए जा रहे एक ऎसे ही अभियान में 1 नवंबर, 2000 में लगभग 9-10 लोग मारे गए। सुबह कत्लेआम की तस्वीरें अखबारों में देख इरोम विचलित हो गईं। न्याय के लिए इरोम ने अनशन का रास्ता चुना। 4 नवंबर 2000 से शुरू हुई उनकी भूख हड़ताल आज तक जारी है। इस साल 4 नवंबर को तेरह साल हो जाएंगे।

इरोम की मांग

इरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ


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