"इरोम शर्मिला": अवतरणों में अंतर
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==सेना को मनमानी की छूट== | ==सेना को मनमानी की छूट== | ||
इरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अर्थ है सेना को मनमानी की छूट को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और सेना के धर पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मारे जाते। सेना के द्वारा चलाए जा रहे एक ऎसे ही अभियान में 1 नवंबर, [[2000]] में लगभग 9-10 लोग मारे गए। सुबह कत्लेआम की तस्वीरें अखबारों में देख इरोम विचलित हो गईं। न्याय के लिए इरोम ने अनशन का रास्ता चुना। [[4 नवंबर]] 2000 से शुरू हुई उनकी भूख हड़ताल आज तक जारी है। इस साल 4 नवंबर को तेरह साल हो जाएंगे। | इरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अर्थ है सेना को मनमानी की छूट को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और सेना के धर पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मारे जाते। सेना के द्वारा चलाए जा रहे एक ऎसे ही अभियान में 1 नवंबर, [[2000]] में लगभग 9-10 लोग मारे गए। सुबह कत्लेआम की तस्वीरें अखबारों में देख इरोम विचलित हो गईं। न्याय के लिए इरोम ने अनशन का रास्ता चुना। [[4 नवंबर]] 2000 से शुरू हुई उनकी भूख हड़ताल आज तक जारी है। इस साल 4 नवंबर को तेरह साल हो जाएंगे। मणिपुर जैसे पूर्वोतर राज्य में देखने को मिलता है जहाँ ‘आस्पा’ शासन के 53 वर्षों में बीस हजार से ज्यादा नागरिकों को अपनी जानें गंवानी पड़ी है। इसी की देन एक तरफ अपमान, बलात्कार, गिरफ्तारी व हत्या है तो दूसरी तरफ तीव्र घृणा, आत्मदाह, आत्महत्या, असन्तोष व आक्रोश का विस्फोट है। इस संदर्भ में 2004 में मणिपुर की महिलाओं द्वारा किये संघर्ष की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। उनके आक्रोश और चेतना का विस्फोट हमें देखने को मिला जब असम राइफल्स के जवानों द्वारा थंगजम मनोरमा के साथ किये बलात्कार और हत्या के विरोध में मणिपुर की महिलाओं ने कांगला फोर्ट के सामने नग्न होकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जो बैनर ले रखा था, उसमें लिखा था ‘भारतीय सेना आओ, हमारा बलात्कार करो’। इरोम शर्मिला इसी यथार्थ की मुखर अभिव्यक्ति हैं। | ||
उन्हें अपने अहिंसक आंदोलन के लिए जेल की काल कोठरी मिली है। इरोम शर्मिला की ये बातें हमारे जनतंत्र की वास्तविकता को सामने लाती है और उनका संघर्ष इस हकीकत से रुबरु कराता है कि हमारा जनतंत्र कितना खंडित है। यह ऐसा जनतंत्र है जहाँ भारतीय राज्य अशान्त क्षेत्रों में अपनी ही जनता के विरुद्ध अघोषित युद्ध चला रहा है। | |||
==इरोम की मांग== | ==इरोम की मांग== | ||
इरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है। | इरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है। इरोम शर्मिला का यह संघर्ष अभी हाल में उस वक्त खास चर्चा में आया जब पिछले अगस्त में अन्ना हजारे जन लोकपाल की माँग को लेकर रामलीला मैदान में अनशन पर थे। इरोम शर्मिला ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का गर्मजोशी के साथ समर्थन किया था। अन्ना को लिखे अपने पत्र में इरोम शर्मिला का कहना था कि जहाँ अन्ना को अहिंसक तरीके से विरोध करने की स्वतंत्रता मिली, वहीं उन्हें यह स्वतंत्रता नहीं दी गई। | ||
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07:27, 29 मई 2013 का अवतरण
मणिपुर को जानना है तो इरोम की कहानी जाननी होगी। आपको "आयरन लेडी ऑव मणिपुर" का खिताब हासिल है। इरोम की कहानी कुछ यूं है कि आजादी के बाद मणिपुर के महाराजा ने मणिपुर को संवैधानिक राजतंत्र घोषित किया, लेकिन कई घटनाक्रमों के बाद 1949 में मणिपुर का भारत में विलय हुआ और 1958 में नागा आंदोलन सक्रिय हुआ। इससे निपटने के लिए केंद्र सरकार ने एक कानून का इस्तेमाल किया जिसे सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून कहा जाता है। सेना को मनमानी की छूटइरोम का मानना है कि सशस्त्र बल विशेषाधिकार कानून अर्थ है सेना को मनमानी की छूट को समझना है तो मणिपुर का इतिहास खंगालना होगा और सेना के धर पकड़ अभियान में न जाने कितने मासूम लोग भी मारे जाते। सेना के द्वारा चलाए जा रहे एक ऎसे ही अभियान में 1 नवंबर, 2000 में लगभग 9-10 लोग मारे गए। सुबह कत्लेआम की तस्वीरें अखबारों में देख इरोम विचलित हो गईं। न्याय के लिए इरोम ने अनशन का रास्ता चुना। 4 नवंबर 2000 से शुरू हुई उनकी भूख हड़ताल आज तक जारी है। इस साल 4 नवंबर को तेरह साल हो जाएंगे। मणिपुर जैसे पूर्वोतर राज्य में देखने को मिलता है जहाँ ‘आस्पा’ शासन के 53 वर्षों में बीस हजार से ज्यादा नागरिकों को अपनी जानें गंवानी पड़ी है। इसी की देन एक तरफ अपमान, बलात्कार, गिरफ्तारी व हत्या है तो दूसरी तरफ तीव्र घृणा, आत्मदाह, आत्महत्या, असन्तोष व आक्रोश का विस्फोट है। इस संदर्भ में 2004 में मणिपुर की महिलाओं द्वारा किये संघर्ष की चर्चा करना प्रासंगिक होगा। उनके आक्रोश और चेतना का विस्फोट हमें देखने को मिला जब असम राइफल्स के जवानों द्वारा थंगजम मनोरमा के साथ किये बलात्कार और हत्या के विरोध में मणिपुर की महिलाओं ने कांगला फोर्ट के सामने नग्न होकर प्रदर्शन किया। उन्होंने जो बैनर ले रखा था, उसमें लिखा था ‘भारतीय सेना आओ, हमारा बलात्कार करो’। इरोम शर्मिला इसी यथार्थ की मुखर अभिव्यक्ति हैं। उन्हें अपने अहिंसक आंदोलन के लिए जेल की काल कोठरी मिली है। इरोम शर्मिला की ये बातें हमारे जनतंत्र की वास्तविकता को सामने लाती है और उनका संघर्ष इस हकीकत से रुबरु कराता है कि हमारा जनतंत्र कितना खंडित है। यह ऐसा जनतंत्र है जहाँ भारतीय राज्य अशान्त क्षेत्रों में अपनी ही जनता के विरुद्ध अघोषित युद्ध चला रहा है। इरोम की मांगइरोम की मांग है कि जब तक सेना के विशेष अधिकार समाप्त नहीं किए जाते, अनशन जारी रहेगा। गांधी के देश में इरोम के अनशन को आत्महत्या का प्रयास मान कुचला जा रहा है। इरोम शर्मिला का यह संघर्ष अभी हाल में उस वक्त खास चर्चा में आया जब पिछले अगस्त में अन्ना हजारे जन लोकपाल की माँग को लेकर रामलीला मैदान में अनशन पर थे। इरोम शर्मिला ने अन्ना के भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन का गर्मजोशी के साथ समर्थन किया था। अन्ना को लिखे अपने पत्र में इरोम शर्मिला का कहना था कि जहाँ अन्ना को अहिंसक तरीके से विरोध करने की स्वतंत्रता मिली, वहीं उन्हें यह स्वतंत्रता नहीं दी गई।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँसंबंधित लेख
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