"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
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||इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।" | ||इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते है, "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।" | ||
{संपत्ति | {संपत्ति के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4 | ||
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-मार्क्सवाद | -मार्क्सवाद | ||
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-समाजवाद | -समाजवाद | ||
-गांधीवाद | -गांधीवाद | ||
||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए [[राज्य]] की उत्पत्ति हुई और उसका अस्तित्त्व बना हुआ है। लॉक इन अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'संपत्ति के अधिकार' को मानता है। | ||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए [[राज्य]] की उत्पत्ति हुई और उसका अस्तित्त्व बना हुआ है। जॉन लॉक इन अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'संपत्ति के अधिकार' को मानता है। | ||
{निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन रैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5 | {निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन रैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5 | ||
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-शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था | -शिथिल द्विध्रुवीय व्यवस्था | ||
-दृढ़ द्विध्रुवीय व्यवस्था | -दृढ़ द्विध्रुवीय व्यवस्था | ||
||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने, उसके विश्लेषण एवं भविष्य की चुनौतियों के समाधान के लिए मॉर्टन कैप्लान की [[1957]] की कृति System and Process in International Politics विश्व राजनीति का संरचनात्मक विश्लेषण के रूप में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था। कैप्लन ने अपनी इस पुस्तक में अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के निम्न छ: मॉडल प्रस्तुत किए हैं- 1. शक्ति संतुलन | ||अंतर्राष्ट्रीय राजनीति को समझने, उसके विश्लेषण एवं भविष्य की चुनौतियों के समाधान के लिए मॉर्टन कैप्लान की [[1957]] की कृति System and Process in International Politics विश्व राजनीति का संरचनात्मक विश्लेषण के रूप में एक महत्त्वपूर्ण प्रयास था। कैप्लन ने अपनी इस पुस्तक में अंतर्राष्ट्रीय व्यवहार के निम्न छ: मॉडल प्रस्तुत किए हैं- 1. शक्ति संतुलन व्यवस्था, 2. ढीली द्विध्रुवीय व्यवस्था, 3. कठोर द्विध्रुवीय व्यवस्था, 4. सार्वभौमिक व्यवस्था | ||
5. पदसोपानीय व्यवस्था, 6. इकाई निषेधाधिकार व्यवस्था | 5. पदसोपानीय व्यवस्था, 6. इकाई निषेधाधिकार व्यवस्था | ||
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-वितरणात्मक न्याय | -वितरणात्मक न्याय | ||
- | -सर्वसुलभ न्याय | ||
-प्रत्ययात्मक न्याय | -प्रत्ययात्मक न्याय | ||
+शुद्ध प्रक्रियात्मक | +शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय | ||
||"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धान्त का मौलिक अंग है", यह कथन जॉन राल्स का है। जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' में सामाजिक संविदा और कांट के विधि-दर्शन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। जॉन राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा प्रदान की है। | ||"एक बेहतर न्यायिक समाज की प्रकृति तथा उद्देश्य न्याय सिद्धान्त का मौलिक अंग है", यह कथन जॉन राल्स का है। जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' में सामाजिक संविदा और कांट के विधि-दर्शन को पुनर्जीवित करने का प्रयास किया है। जॉन राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा प्रदान की है। | ||
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-लोक कल्याणकारी राज्य | -लोक कल्याणकारी राज्य | ||
-सीमित सरकार | -सीमित सरकार | ||
||बुर्जुआ राज्य एक मार्क्सवादी धारणा है जो पूंजीपतियों द्वारा स्थापित राज्य को व्यक्त करती है, यह | ||बुर्जुआ राज्य एक मार्क्सवादी धारणा है जो पूंजीपतियों द्वारा स्थापित [[राज्य]] को व्यक्त करती है, यह उदारवाद से संबंध नहीं रखता। प्रतिनिधि सरकार, लोक कल्याणकारी राज्य व सीमित सरकार आदि सभी उदारवाद की विशषताएं हैं। | ||
{किसने कहा था- "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-7 | {किसने कहा था- "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-7 | ||
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+गिलक्राइस्ट | +[[गिलक्राइस्ट]] | ||
-लास्की | -प्रो. लास्की | ||
-गैटेल | -गैटेल | ||
-गार्नर | -गार्नर | ||
||गिलक्राइस्ट ने कहा है कि "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं हैं"। | ||[[गिलक्राइस्ट]] ने कहा है कि "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं हैं"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | विभिन्न देशों में वयस्क मताधिकार की आयु निम्नलिखित है- (1 ) [[भारत]] में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है। (2) [[फ्रांस]] व [[जर्मनी]] में वयस्क मताधिकार की आयु 20 वर्ष है। (3) डेनमार्क व [[जापान]] में वयस्क मताधिकार की आयु 25 वर्ष है। (4) नॉर्वे में वयस्क मताधिकार की आयु 23 वर्ष है। | ||
विभिन्न देशों में वयस्क मताधिकार की आयु निम्नलिखित है- | |||
{लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद | {लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-16 | ||
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-पूंजीवाद की निम्नतम अवस्था | -पूंजीवाद की निम्नतम अवस्था है। | ||
-पूंजीवाद का संकुचन | -पूंजीवाद का संकुचन है। | ||
+पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था | +पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। | ||
-पूंजीवाद का समाजवाद में | -पूंजीवाद का समाजवाद में विलय है। | ||
||लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। लेनिन ने इस अवस्था का विश्लेषण अपनी प्रसिद्ध कृति 'इंपीरियलिज्म: द हाइएस्ट स्टेज ऑफ़ कैपिटलिज्म' (साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था) में किया। | ||लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। लेनिन ने इस अवस्था का विश्लेषण अपनी प्रसिद्ध कृति 'इंपीरियलिज्म: द हाइएस्ट स्टेज ऑफ़ कैपिटलिज्म' (साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था) में किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लेनिन साम्राज्यवाद को पूंजीवाद की अभिव्यक्ति मानते हैं। (2) लेनिन ने वर्ष [[1902]] में 'ह्वाट इज टु बि इन?' (अब हमे क्या करना है?) की रचना किया। जिसमें अपने सैद्धांतिक विचारों का उल्लेख किया। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{निम्नलिखित में से कौन आमण्ड के हित-अभिव्यक्त करने वाली संरचनाओं के वर्गीकरण में शामिल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-16 | {निम्नलिखित में से कौन आमण्ड के हित-अभिव्यक्त करने वाली संरचनाओं के वर्गीकरण में शामिल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-16 | ||
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+प्रजातीय संरचनाएं | +प्रजातीय संरचनाएं | ||
-प्रदर्शनात्मक संरचनाएं | -प्रदर्शनात्मक संरचनाएं | ||
||जी.ए. आमंड तथा पॉवेल ने अपनी पुस्तक 'Comparative Politics' में दबाव समूहों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है- | ||जी.ए. आमंड तथा पॉवेल ने अपनी पुस्तक 'Comparative Politics' में दबाव समूहों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है- ?(1) संस्थात्मक दवाब समूह (Institutional Prassure Groups)- ये दबाव समूह राजनीतिज दलों, विधान मण्डलों, सेना, नौकरशाही इत्यादि में सक्रिय रहते हैं। (2) समुदायात्मक दबाव समूह (Associational Pressure Groups)- ये विशेषीकृत संघ होते हैं जो अपने विशिष्टहितों की पूर्ति करते हैं। (3) गैर समुदायात्मक दबाव समूह (Non Associational Pressure Groups)- ये संगठित संघ नहीं होते ये अनौपचारिका रूप से अपने हितों की अभिव्यक्ति करते हैं- जैसे- सांप्रदायिक और धार्मिक समुदाय, जातीय समुदाय आदि। (4) प्रदर्शनात्मक दबाव समूह (Anomic Pressure Groups)- ये अपनी मांगों को लेकर अवैधानिक उपायों का प्रयोग करते हैं जैसे- हिंसा, राजनैतिक हत्या, दंगे तथा अन्य आक्रामक रवैया अपनाते हैं। | ||
{'मूल्य तटस्थता' निम्न में से किसकी विशेषता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-95 | {'मूल्य तटस्थता' निम्न में से किसकी विशेषता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-95 | ||
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-मार्क्सवादियों की | -मार्क्सवादियों की | ||
+व्यवहारवादियों की | +व्यवहारवादियों की | ||
||व्यवहारवाद ने राजनीति के अध्ययन के परंपरागत उपागम को चुनौती देते हुए विचार रखा कि प्रचलित संस्थाओं के | ||व्यवहारवाद ने राजनीति के अध्ययन के परंपरागत उपागम को चुनौती देते हुए विचार रखा कि प्रचलित संस्थाओं के क़ानूनी-औपचारिक पक्षों से ध्यान हटाकर उन व्यक्तियों या कार्यकर्त्ताओं के व्यवहार पर ध्यान देना चाहिए जो यथार्थ राजनीति के क्षेत्र में तरह-तरह की भूमिका निभाते हैं। व्यवहारवाद मुख्यत: शुद्ध ज्ञान का सिद्धान्त है जो मूल्यों से सरोकार नहीं रखता है। यह मूल्य तटस्थता की विशेषता रखता है। यह यथास्थिति का समर्थक है, जिसे सामाजिक परिवर्तन में कोई अभिरुचि नहीं है। | ||
{"आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-6 | {"आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-6 | ||
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-ग्रीन | -ग्रीन | ||
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+जी.डी.एच. कोल | +जी.डी.एच. कोल | ||
-लास्की | -लास्की | ||
||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। | ||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लास्की के अनुसार, "मुझे स्वादिष्ट भोजन करने का अधिकार नहीं है यदि मेरे पड़ोसी को मेरे इस अधिकार के कारण सूखी रोटी से वंचित रहना पड़े।" (2) [[जवाहरलाल नेहरू]] ने कहा है, "भूखे व्यक्ति के लिए मत का कोई मूल्य नहीं होता।" (3) लास्की के अनुसार, "यदि [[राज्य]] संपत्ति को अधीन नहीं रखता, तो संपत्ति राज्य को वशीभूत कर लेगी।" (4) कोल की तरह लास्की ने भी कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता कभी भी वास्तविक नहीं हो सकती।" | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
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{"राजनीति शास्त्र का 'प्रारंभ और अंत' राज्य के साथ ही होता है।" यह कथन है | {"राजनीति शास्त्र का 'प्रारंभ और अंत' राज्य के साथ ही होता है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-17 | ||
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-लीकॉक | -लीकॉक | ||
-गिलक्राइस्ट | -[[गिलक्राइस्ट]] | ||
+गार्नर | +गार्नर | ||
- | -लास्की | ||
|| | ||गार्नर ने अपनी पुस्तक 'Political Science and Government' में राजनीति विज्ञान की 'प्रकृति एवं विषय क्षेत्र' के संबंध में कहा है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत है। इसका संबंध राज्य के सिद्धान्त, संगठन एवं व्यवहार से है। इसके साथ-साथ राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति का परीक्षण, राजनीतिक संस्थाओं की प्रकृति, इतिहास एवं राज्य के रूपों की जांच पड़ताल, तथा जहां तक संभव हो राजनीतिक प्रगति एवं विकास के नियमों को निगमित करना इसके क्षेत्र में आते हैं। | ||
{राज्य की उत्पत्ति का सबसे सही सिद्धांत है | {राज्य की उत्पत्ति का सबसे सही सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-17 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
- | -दैवी उत्पत्ति सिद्धांत | ||
-शक्ति सिद्धांत | -शक्ति सिद्धांत | ||
-पैतृक सिद्धांत | -पैतृक सिद्धांत | ||
+विकासकारी सिद्धांत | +विकासकारी सिद्धांत | ||
|| | ||वर्तमान समय में राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी अर्थात ऐतिहासिक सिद्धांत सबसे अधिक मान्य व सही है। इस सिद्धांत के अनुसार, राज्य समस्त अतीत में हुए विकास का फल है। यह अनेक तत्त्वों जैसे- सामाजिक भावना, रक्त बंधन, शक्ति, आर्थिक गतिविधियों, [[धर्म]] तथा राजनीतिक चेतना का फल है। राज्य का विकास धीरे-धीरे हुआ है। यह कबीली चरण से राष्ट्रीय और वैश्वीकरण की तरफ़ अग्रसर है। बर्गेस के अनुसार, 'मानव प्रकृति के सार्वभौम सिद्धांतों की क्रमिक पूर्णता ही राज्य है"। | ||
{राल्स के अनुसार न्याय के लक्षण हैं | |||
{जॉन राल्स के अनुसार न्याय के क्या लक्षण हैं?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-7 | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है | -न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है | ||
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-सामाजिक न्याय से सरोकार | -सामाजिक न्याय से सरोकार | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
||राल्स के अनुसार, "न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है, यह प्रक्रियात्मक होता है एवं इसका सरोकर सामाजिक न्याय से होता है"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) समकालीन उदारवादी चिंतक जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' (न्याय सिद्धांत) में तर्क दिया कि उत्तम समाज में अनेक सद्गुण अपेक्षित होते हैं, जिनमें न्याय का स्थान सर्वप्रथम है। न्याय उत्तम समाज की आवश्यक शर्त है किंतु यह उसके लिए पर्याप्त नहीं है। (2) राल्स के अनुसार, न्याय की समस्या प्राथमिक वस्तुओं के न्यायपूर्ण वितरण की समस्या है। ये प्राथमिक वस्तुएं हैं- अधिकार एवं स्वतंत्रताएं, शक्तियां एवं अवसर, आय और संपदा, तथा आत्म-सम्मान के साधन। (3) राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा दी। इसका अर्थ है कि सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए न्याय सिद्धांतों के प्रयोग से जो भी वितरण-व्यवस्था अस्तित्व में आएगी यह अनिवार्यत: न्यायपूर्ण होगी। (3) राल्स ने न्याय की सर्वसम्मत प्रक्रिया निर्धारित करने हेतु सामाजिक अनुबंध की तर्क प्रणाली अपनाई। (4) राल्स ने सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु भेद-मूलक सिद्धांत स्वीकारा जिसके अनुसार, किसी व्यक्ति की असाधारण योग्यता और परिश्रम हेतु विशेष पुरस्कार तभी न्यायसंगत होगा जब उससे समाज के कमज़ोर वर्ग या व्यक्तियों को अधिकतम लाभ पहुंचे। इसके बाद प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था के मानदंड को लागू किया जा सकता है। | |||
||राल्स के अनुसार, "न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है, यह प्रक्रियात्मक होता है एवं इसका सरोकर सामाजिक न्याय से होता है"। | |||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{"राजनीति विज्ञान शक्ति की रचना और भागीदारी का अध्ययन है।" यह परिभाषा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-17 | {"राजनीति विज्ञान शक्ति की रचना और भागीदारी का अध्ययन है।" यह परिभाषा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-17 | ||
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+लासवेल व काप्लान | +लासवेल व काप्लान | ||
-राबर्ट ए. डहल | -राबर्ट ए. डहल | ||
-गिलक्राइस्ट | -[[गिलक्राइस्ट]] | ||
||राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यवहारवादी क्रांति ने इसकी परम्परागत अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन की पद्धति दोनों में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। इसकी परम्परागत धारणा में राज्य सरकार एवं संस्थाओं का अध्ययन किया जाता था। लेकिन व्यवहारवादी विचारक शक्ति, सत्ता एवं प्रभाव को अध्ययन का केन्द्र मानते हैं। ऐसे विचारकों में लासवेल, डहल, कैप्लान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लासवेल ने राजनीति शस्त्र की परिभाषा करते हुए लिखा है कि यह "शक्ति में सहभगी होने और उसका निरुपण (रचना) करने का अध्ययन है।" उनके अनुसार राजनीतिक क्रिया वह है जो शक्ति के परिप्रेक्ष्य में संपादित की जाए। | ||राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यवहारवादी क्रांति ने इसकी परम्परागत अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन की पद्धति दोनों में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। इसकी परम्परागत धारणा में राज्य सरकार एवं संस्थाओं का अध्ययन किया जाता था। लेकिन व्यवहारवादी विचारक शक्ति, सत्ता एवं प्रभाव को अध्ययन का केन्द्र मानते हैं। ऐसे विचारकों में लासवेल, डहल, कैप्लान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लासवेल ने राजनीति शस्त्र की परिभाषा करते हुए लिखा है कि यह "शक्ति में सहभगी होने और उसका निरुपण (रचना) करने का अध्ययन है।" उनके अनुसार राजनीतिक क्रिया वह है जो शक्ति के परिप्रेक्ष्य में संपादित की जाए। | ||
{उदारवाद का मौलिक सिद्धांत है | {उदारवाद का मौलिक सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-7 | ||
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+वैयक्तिक स्वतंत्रता | +वैयक्तिक स्वतंत्रता | ||
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-समानता | -समानता | ||
-राष्ट्रवाद | -राष्ट्रवाद | ||
||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरी, मस्तिष्क और आत्मा पर व्यक्ति संप्रभु है।" उदारवाद का मूल | ||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरी, मस्तिष्क और [[आत्मा]] पर व्यक्ति संप्रभु है।" उदारवाद का मूल तत्त्व वैयक्तिक स्वतंत्रता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण उदारवाद की मुख्य मान्यताएं निम्न हैं- (!) मनुष्य विवेकशील प्राणी है। (2) व्यक्ति के हित एवं सामान्य हित में कोई बुनियादी टकराव नहीं है। (3) व्यक्ति को कुछ प्राकृतिक अधिकार प्राप्त हैं। (4) नागरिक समाज एक कृत्रिम उपकरण है जिसका ध्येय मनुष्यों का हित साधन है। (5) उदारवाद केवल सांविधानिक शासन को ही मान्यता देता है। इसके अनुसार, व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई भी प्रतिबंध केवल इस आधार पर लगाया जा सकता है कि वह दूसरों को वैसी ही स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए आवश्यक हो। (7) उदारवाद अनुबंध की स्वतंत्रता में विश्वास करता है। इसके अनुसार, सार्वजनिक नीति व्यक्तियों और समूहों की स्वतंत्र सौदेबाजी का परिणाम होना चाहिए। इस प्रकार उदारवाद की संपूर्ण अवधारणा में वैयक्तिक स्वतंत्रता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण | |||
इस प्रकार उदारवाद की संपूर्ण अवधारणा में वैयक्तिक स्वतंत्रता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। | |||
{"सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन अभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" यह किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-8 | {"सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन अभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" यह किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-8 | ||
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-लास्की | -लास्की | ||
-लॉवेल | -लॉवेल | ||
||अब्राहम लिंकन का कथन है कि "सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन सभी मनुष्यों को सदैव नहीं बनाया जा सकता।" वास्तव में लोकतंत्र ऐसी शासन पद्धति है जो सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के शासन प्रक्रिया में बराबर हिस्सा देती है। | ||अब्राहम लिंकन का कथन है कि "सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन सभी मनुष्यों को सदैव नहीं बनाया जा सकता।" वास्तव में लोकतंत्र ऐसी शासन पद्धति है जो सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के शासन प्रक्रिया में बराबर हिस्सा देती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) सीले-"लोकतंत्र वह शासन है जिसमें हर व्यक्ति भाग लेता है।" (2) अब्राहम लिंकन-"लोकतंत्र जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन है।" (3) डायसी-"लोकतंत्र सरकार का ऐसा रूप है जिसमें जनता का एक बड़ा भाग शासन करता है।" | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर किस विचारक का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-17 | {राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर किस विचारक का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-17 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
-अरस्तू | -[[अरस्तू]] | ||
+मार्क्स | +[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-जान लॉक | -जान लॉक | ||
||राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर मार्क्स का विश्वास था, मार्क्स ने द्वंद्वात्मक पद्धति के माध्यम से 'समजवाद' को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। संपूर्ण इतिहास को 'वर्गहीन समाज' की स्थापना की ओर अग्रसर होते हुए दिखाया। मार्क्स राष्ट्रवाद का विरोधी था। | ||राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर [[कार्ल मार्क्स]] का विश्वास था, मार्क्स ने द्वंद्वात्मक पद्धति के माध्यम से 'समजवाद' को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। संपूर्ण इतिहास को 'वर्गहीन समाज' की स्थापना की ओर अग्रसर होते हुए दिखाया। क्कार्ल मार्क्स राष्ट्रवाद का विरोधी था। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) कार्ल मार्क्स का सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ 'दास कैपिटल' और 'कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टी' आदि हैं। (2) दास कैपिटल को श्रमिकों का धार्मिक ग्रंथ तथा 'धनिकों का दिमाग ठंडा करने वाला नुस्खा' कहा जाता है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{इनमें से किसे 'वैज्ञानिक प्रबंध का' पिता कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-17 | {इनमें से किसे 'वैज्ञानिक प्रबंध का' पिता कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-17 | ||
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||वैज्ञानिक प्रबंध में आयोजन, अनुसंधान, विश्लेषण, प्रयोग, विवेक, आदि बातों को अधिकतम महत्त्व दिया जाता है। वैज्ञानिक प्रबंध स्पष्टत: प्रबंध की वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा साधनों का आदर्शतम समंवय करके न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबंध का पिता अर्थात इसकी उत्पत्ति का श्रेय एफ.डब्ल्यू. टेलर को दिया जाता है। | ||वैज्ञानिक प्रबंध में आयोजन, अनुसंधान, विश्लेषण, प्रयोग, विवेक, आदि बातों को अधिकतम महत्त्व दिया जाता है। वैज्ञानिक प्रबंध स्पष्टत: प्रबंध की वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा साधनों का आदर्शतम समंवय करके न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबंध का पिता अर्थात इसकी उत्पत्ति का श्रेय एफ.डब्ल्यू. टेलर को दिया जाता है। | ||
{राजनीतिक चेतना का अर्थ है | {राजनीतिक चेतना का क्या अर्थ है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-96 | ||
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-समाज के प्रति प्रेम | -समाज के प्रति प्रेम | ||
-धर्म के प्रति प्रेम | -[[धर्म]] के प्रति प्रेम | ||
+राज्य के प्रति प्रेम | +[[राज्य]] के प्रति प्रेम | ||
-सभ्यता/संस्कृति के प्रति प्रेम | -सभ्यता/[[संस्कृति]] के प्रति प्रेम | ||
||'राजनीतिक चेतना' का अर्थ 'राज्य के प्रति प्रेम' है। नागरिकों में राजनीतिक चेतना का विकास, राज्य, लोकमत, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, संप्रभुता, सरकार, समाज आदि से संबंधित मौलिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श एवं चिंतन द्वारा होता है। उन्हें विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं तथा सिद्धांतों का ज्ञान हो जाता है। साथ ही वे यह समझने लगते हैं कि कौन-से राजनीतिक आदर्श उनके अपने देश और समाज के लिए कल्याणकारी हैं। | ||'राजनीतिक चेतना' का अर्थ '[[राज्य]] के प्रति प्रेम' है। नागरिकों में राजनीतिक चेतना का विकास, राज्य, लोकमत, न्याय, स्वतंत्रता, समानता, बंधुता, संप्रभुता, सरकार, समाज आदि से संबंधित मौलिक प्रश्नों पर विचार-विमर्श एवं चिंतन द्वारा होता है। उन्हें विभिन्न राजनीतिक विचारधाराओं तथा सिद्धांतों का ज्ञान हो जाता है। साथ ही वे यह समझने लगते हैं कि कौन-से राजनीतिक आदर्श उनके अपने देश और समाज के लिए कल्याणकारी हैं। | ||
{"राजनीतिक समानता कभी वास्तविक नहीं हो सकती, यदि उसके साथ वास्तविक आर्थिक समानता न हो।' यह कथन है | {"राजनीतिक समानता कभी वास्तविक नहीं हो सकती, यदि उसके साथ वास्तविक आर्थिक समानता न हो।' यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-7 | ||
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-मार्क्स | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-जे.एस. मिल | -जे.एस. मिल | ||
+लास्की | +लास्की | ||
-जी.डी.एच. कोल का | -जी.डी.एच. कोल | ||
||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लास्की के अनुसार, "मुझे स्वादिष्ट भोजन करने का अधिकार नहीं है यदि मेरे पड़ोसी को मेरे इस अधिकार के कारण सूखी रोटी से वंचित रहना पड़े।" (2) [[जवाहरलाल नेहरू]] ने कहा है, "भूखे व्यक्ति के लिए मत का कोई मूल्य नहीं होता।" (3) लास्की के अनुसार, "यदि [[राज्य]] संपत्ति को अधीन नहीं रखता, तो संपत्ति राज्य को वशीभूत कर लेगी।" (4) कोल की तरह लास्की ने भी कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता कभी भी वास्तविक नहीं हो सकती।" | |||
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+मैकियावेली | +मैकियावेली | ||
-कार्ल मार्क्स | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-लासवेल | -लासवेल | ||
-बेकर | -बेकर | ||
||आधुनिक युग में शक्ति की अवधारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम मैकियाबेली ने किया था। मैकियावेली ने राज्य के अस्तित्व के लिए शक्ति को मूल आधार माना। मैकियावेली ने राजनीति को शक्ति और नियंत्रण का विषय मानते हुए' इसे शक्ति के उपार्जन, परिरक्षण और प्रसार की कला के रूप में स्थापित किया है। मैकियावेली के अनुसार, प्रेम और भय- ये दो शक्तियां मनुष्यों को वश में कर सकती हैं, किंतु राजा के लिए भय का सहारा लेना ही अधिक श्रेष्ठ है। शक्ति भय की जननी है और भय प्रेम की अपेक्षा अधिक अनुशासन रखने में समर्थ है। | ||आधुनिक युग में शक्ति की अवधारणा का प्रतिपादन सर्वप्रथम मैकियाबेली ने किया था। मैकियावेली ने राज्य के अस्तित्व के लिए शक्ति को मूल आधार माना। मैकियावेली ने राजनीति को शक्ति और नियंत्रण का विषय मानते हुए' इसे शक्ति के उपार्जन, परिरक्षण और प्रसार की कला के रूप में स्थापित किया है। मैकियावेली के अनुसार, प्रेम और भय- ये दो शक्तियां मनुष्यों को वश में कर सकती हैं, किंतु राजा के लिए भय का सहारा लेना ही अधिक श्रेष्ठ है। शक्ति भय की जननी है और भय प्रेम की अपेक्षा अधिक अनुशासन रखने में समर्थ है। | ||
{राज्य की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत काल्पनिक नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-18 | {[[राज्य]] की उत्पत्ति का कौन-सा सिद्धांत काल्पनिक नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-18 | ||
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-दैवी सिद्धांत | -दैवी सिद्धांत | ||
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+ऐतिहासिक सिद्धांत | +ऐतिहासिक सिद्धांत | ||
-सामाजिक समझौते का सिद्धांत | -सामाजिक समझौते का सिद्धांत | ||
||राज्य की उत्पत्ति का विकासवादी अथवा ऐतिहासिक सिद्धांत को काल्पनिक नहीं माना जाता हैं। इसमें राज्य को अन्य संस्थाओं की तरह ही सतत विकास का परिणाम माना जाता है। आधुनिक राज्य के विकास के मुख्य चरण- 1.स्वजन समूह | ||[[राज्य]] की उत्पत्ति का विकासवादी अथवा ऐतिहासिक सिद्धांत को काल्पनिक नहीं माना जाता हैं। इसमें राज्य को अन्य संस्थाओं की तरह ही सतत विकास का परिणाम माना जाता है। आधुनिक राज्य के विकास के मुख्य चरण- 1. स्वजन समूह 2. संपत्ति 3. रीति-रिवाज 4. शक्ति 5 नागरिकता हैं। ऐतिहासिक सिद्धान्त राज्य को न दैवीय संस्था मानता है, न ही बल प्रयोग द्वारा स्थापित तथा न ही लोगों के आपसी समझौते द्वारा स्थापित ही मानता है। यह केवल राज्य को सतत विकास का परिणाम मानता है। जबकि दैवीय सिद्धांत, शक्ति सिद्धांत तथा सामाजिक समझौता सिद्धांत सभी का आधार एक काल्पनिक स्थिति पर आधारित है। | ||
{निम्नलिखित में से किसने यह विचार व्यक्त किया है- "यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-8 | {निम्नलिखित में से किसने यह विचार व्यक्त किया है- "यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-8 | ||
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-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
-अरस्तू | -[[अरस्तू]] | ||
+सेंट ऑगस्टाइन | +सेंट ऑगस्टाइन | ||
-लॉक | -जॉन लॉक | ||
||ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा | |||
{किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18 | {किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18 |
11:26, 6 अप्रैल 2017 का अवतरण
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