"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
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-गृह युद्धों का अंत हो सके | -गृह युद्धों का अंत हो सके | ||
-शासकीय चर्च की स्थापना हो सके | -शासकीय चर्च की स्थापना हो सके | ||
||लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता इसलिए किया था ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। लॉक समझौता सिद्धांत में अपनी बाधाओं से संबंधित कुछ अधिकार व्यक्तियों ने समाज को इसलिए अर्पित कर दिए ताकि उसकी सामूहिक संतुलित बुद्धि से असुविधा, में बदल जाए। इस समझौता का उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की आंतरिक तथा वाह्य संकटों से रक्षा करना था। | ||जॉन लॉक के अनुसार लोगों ने समझौता इसलिए किया था ताकि उनके अधिकारों की रक्षा हो सके। जॉन लॉक समझौता सिद्धांत में अपनी बाधाओं से संबंधित कुछ अधिकार व्यक्तियों ने समाज को इसलिए अर्पित कर दिए ताकि उसकी सामूहिक संतुलित बुद्धि से असुविधा, में बदल जाए। इस समझौता का उद्देश्य जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति की आंतरिक तथा वाह्य संकटों से रक्षा करना था। | ||
{निम्न में से न्याय का क्या अर्थ है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-1 | {निम्न में से न्याय का क्या अर्थ है?(नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-27,प्रश्न-1 | ||
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+[[हर्बर्ट स्पेंसर]] | +[[हर्बर्ट स्पेंसर]] | ||
-रूसो | -रूसो | ||
-लॉक | -जॉन लॉक | ||
||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली महत्त्वपूर्ण कृति 'सोशल स्टेटिक्स' (1850) चार्ल्स डार्विन की 'ओरजिन ऑफ़ स्पसीज' ([[1857]]) से 9 वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। इस तरह स्पेंसर ने अपना विकासवादी सिद्धांत डार्विन से भी पहले रखा था। योग्यता की विजय या योग्यता की अतिजीविता शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम स्पेंसर ने ही किया था। यद्यपि यह डार्विन के नाम के साथ जुड़कर प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार स्पेंसर ही योग्यतम की अतिजीविता के सिद्धांत का प्रतिपादक है। | ||[[हर्बर्ट स्पेंसर]] (1820-[[1903]]) उन्नीसवीं सदी के ब्रिटिश दार्शनिक और सिद्धांतकार हैं। इन्होंने योग्यतम की अतिजीविता का सिद्धांत प्रतिपादित किया। स्पेंसर की पहली महत्त्वपूर्ण कृति 'सोशल स्टेटिक्स' (1850) चार्ल्स डार्विन की 'ओरजिन ऑफ़ स्पसीज' ([[1857]]) से 9 वर्ष पहले प्रकाशित हुई थी। इस तरह स्पेंसर ने अपना विकासवादी सिद्धांत डार्विन से भी पहले रखा था। योग्यता की विजय या योग्यता की अतिजीविता शब्दावली का प्रयोग सर्वप्रथम स्पेंसर ने ही किया था। यद्यपि यह डार्विन के नाम के साथ जुड़कर प्रसिद्ध हुई। इस प्रकार स्पेंसर ही योग्यतम की अतिजीविता के सिद्धांत का प्रतिपादक है। | ||
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-[[कार्ल मार्क्स]] | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-लेनिन | -लेनिन | ||
+माओ | +माओ से-तुंग | ||
-हो-ची मिन्ह | -हो-ची मिन्ह | ||
||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत माओ ने दिया। माओ के अनुसार, क्रांति कोई अंतिम समाधन नहीं है, बल्कि वह केवल अभीष्ट दिशा में प्रगति का एक चरण है। आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने के बाद समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो जाएगी; इसके लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और विचारधारात्मक मोर्चों पर समाजवाद को बढ़ावा देना ज़रूरी होगा, जिसमें लंबा समय लगेगा अत: समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया 'निरंतर क्रांति' की प्रक्रिया है जिसमें कभी कोई ढील नहीं दी जा सकती। | ||'सतत क्रांति' या 'निरंतर क्रांति' का सिद्धांत माओ से-तुंग ने दिया। माओ से-तुंग के अनुसार, क्रांति कोई अंतिम समाधन नहीं है, बल्कि वह केवल अभीष्ट दिशा में प्रगति का एक चरण है। आर्थिक मोर्चे पर समाजवादी क्रांति हो जाने के बाद समाजवादी व्यवस्था अपने आप सुदृढ़ नहीं हो जाएगी; इसके लिए राजनीतिक, सांस्कृतिक, शैक्षिक और विचारधारात्मक मोर्चों पर समाजवाद को बढ़ावा देना ज़रूरी होगा, जिसमें लंबा समय लगेगा अत: समाजवादी पुनर्निर्माण की प्रक्रिया 'निरंतर क्रांति' की प्रक्रिया है जिसमें कभी कोई ढील नहीं दी जा सकती। | ||
{मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12 | {मूने के अनुसार स्टाफ़ कार्य के तीन पक्ष कौन-कौन से हैं? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-12 | ||
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-बार्कर | -बार्कर | ||
+सीले | +सीले | ||
||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्त्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नव उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||''स्वतंत्रता सभी बंधनों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्त्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नव उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||
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|type="()"} | |type="()"} | ||
-बेथम | -बेथम | ||
-जे.एस. मिल | -जे. एस. मिल | ||
-[[कार्ल मार्क्स]] | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
+हीगल | +हीगल | ||
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-सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो | -सभी को समान धार्मिक स्वतंत्रता का अधिकार प्राप्त हो | ||
-सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो। | -सभी को हर प्रकार के भेद-भाव से रहित समान सुविधा प्राप्त हो। | ||
||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने | ||राजव्यवस्था का प्रभाव समाज के सभी व्यक्तियों पर प्रत्यक्ष या परोक्ष रूप से पड़ता है। सभी व्यक्तियों को समान अवसर, समान रूप से प्राप्त होने चाहिए तथा राजनीतिक व्यक्तियों द्वारा सभी व्यक्तियों की लाभ प्राप्ति भी सुनिश्चित होनी चाहिए, यही राजनीतिक न्याय है। इसकी प्राप्ति स्वाभाविक रूप से एक प्रजातांत्रिक व्यवस्था के अंतर्गत ही की जा सकती है, जिसका आधार (स्त्रोत) [[संविधान]] होता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-(1) राजनीतिक न्याय प्राप्ति के मुख्य साधन हैं- वयस्क मताधिकार, सभी व्यक्तियों को भाषण-विचार, सम्मेलन, संगठन आदि नागरिक स्वतंत्रताएं, प्रेस की स्वतंत्रता, [[न्यायपालिका]] की स्वतंत्रता, भेद-भाव के बिना सार्वजनिक पदों हेतु सभी को समान अवसर आदि। (2) राजनीतिक न्याय की धारणा में यह तथ्य निहित है कि राजनीति में कोई कुलीन या विशेषाधिकार प्राप्त वर्ग नहीं होगा। | ||
{लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13 | {लेसेज़ फेयर का क्या अभिप्राय है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-32,प्रश्न-13 | ||
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-समाजवाद | -समाजवाद | ||
+व्यक्ति को अकेला छोड़ दो | +व्यक्ति को अकेला छोड़ दो | ||
- | -उपरोक्त सभी | ||
||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] के एक व्यक्ति जी.सी.एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से 'लेसेज़ फेर' अर्थात 'चीजों को अपने हाल पर छोड़ दो' निकल पड़ा। व्यक्ति- वादियों ने राज्य के हस्तक्षेप से बचने के लिए 'व्यक्ति को अकेला छोड़ दो' के रूप में इसका प्रयोग किया। | ||आमतौर पर समझा जाता है कि यह पद 18वीं शताब्दी में [[फ्रांस]] के एक व्यक्ति जी. सी. एम. बिसेट द गोर्ने की देन है। व्यापार पर लगी अनेक पाबंदियों से तंग आकर एक दिन उनके मुंह से 'लेसेज़ फेर' अर्थात 'चीजों को अपने हाल पर छोड़ दो' निकल पड़ा। व्यक्ति- वादियों ने राज्य के हस्तक्षेप से बचने के लिए 'व्यक्ति को अकेला छोड़ दो' के रूप में इसका प्रयोग किया। | ||
{किसने कहा था कि [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3 | {किसने कहा था कि [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप नहीं करना चाहिए? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-3 | ||
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+[[एडम स्मिथ]] | +[[एडम स्मिथ]] | ||
-जॉन लॉक | -जॉन लॉक | ||
||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक [[एडम स्मिथ]] ने [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी स्वामित्त्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए 'अहस्तक्षेप का सिद्धांत' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप न होने पर मनुष्य में कार्य करने की प्रेरणा अधिक होगी जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अधिक से अधिक संपदा उत्पन्न करेगा और वह अंतत: समाज के हित में होगी। स्मिथ के अनुसार "सच्ची स्वतंत्रता वाणिज्य से ही संभव है।" | ||नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थक/विचारक [[एडम स्मिथ]] ने [[राज्य]] को आर्थिक मामलों में हस्तक्षेप न करने का समर्थन किया। एडम स्मिथ ने आर्थिक क्षेत्र में निजी स्वामित्त्व के सिद्धांत का समर्थन करते हुए 'अहस्तक्षेप का सिद्धांत' प्रतिपादित किया। इसके अनुसार, व्यक्ति की आर्थिक गतिविधियों में राज्य का हस्तक्षेप न होने पर मनुष्य में कार्य करने की प्रेरणा अधिक होगी जिसके परिणामस्वरूप व्यक्ति अधिक-से-अधिक संपदा उत्पन्न करेगा और वह अंतत: समाज के हित में होगी। स्मिथ के अनुसार "सच्ची स्वतंत्रता वाणिज्य से ही संभव है।" | ||
{निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4 | {निम्न में से कौन लोकतंत्र को 'स्वीकृत पागलपन' कहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-4 | ||
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-प्रौंधा | -प्रौंधा | ||
+टेलीरैंड | +टेलीरैंड | ||
||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है-लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- (1) [[प्लेटो]], [[अरस्तू]] के अनुसार, "लोकतंत्र, भीड़तंत्र या मूर्खतंत्र या विकृत व्यवस्था है।" (2) कार्लाइल के अनुसार, "लोकतंत्र लाखों मूर्खों की सरकार है।" (3) लुडोविसी के अनुसार, "लोकतंत्र का अर्थ है [[मृत्यु]]।" (3) वाल्टर वेल के अनुसार, "लोकतंत्र भ्रष्ट प्लेटोवाद है।" (4) एंथनी गिडिन्स के अनुसार, "लोकतंत्र में भावनात्मकता एवं बहुमत अत्याधिकता देखी जाती है।" (4) वार्कर के अनुसार, "लोकतंत्र जुगाड़ों का शासन है।" | ||टेलीरैंड के अनुसार, "लोकतंत्र स्वीकृत पागलपन है।" उन्होंने लोकतंत्र को 'दुष्ट लोगों का कुलीनतंत्र' भी कहा है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- लोकतंत्र की आलोचना करने वाले अन्य विद्वानों के कथन निम्नलिखित हैं- (1) [[प्लेटो]], [[अरस्तू]] के अनुसार, "लोकतंत्र, भीड़तंत्र या मूर्खतंत्र या विकृत व्यवस्था है।" (2) कार्लाइल के अनुसार, "लोकतंत्र लाखों मूर्खों की सरकार है।" (3) लुडोविसी के अनुसार, "लोकतंत्र का अर्थ है [[मृत्यु]]।" (3) वाल्टर वेल के अनुसार, "लोकतंत्र भ्रष्ट प्लेटोवाद है।" (4) एंथनी गिडिन्स के अनुसार, "लोकतंत्र में भावनात्मकता एवं बहुमत अत्याधिकता देखी जाती है।" (4) वार्कर के अनुसार, "लोकतंत्र जुगाड़ों का शासन है।" | ||
{माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13 | {माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की भूमिका कैसी होगी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-13 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-प्रतिक्रियात्मक | -प्रतिक्रियात्मक | ||
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+महत्त्वपूर्ण | +महत्त्वपूर्ण | ||
-महत्त्वहीन | -महत्त्वहीन | ||
||माओ के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी। | ||माओ से-तुंग के अनुसार, मार्क्सवादी क्रांति में कृषकों की महत्त्वपूर्ण भूमिका होगी। माओ से-तुंग किसानों को साथ लेकर मार्क्सवदी क्रांति की सफलता के लिए संघर्ष करता रहा। [[चीन]] के गांवों में विद्रोही किसानों को एकजुट करते हुए उसने चीन सोवियत रिपब्लिक की नींव रखी। | ||
{"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13 | {"किंतु प्रत्येक व्यक्ति है किस-संसद राजा को ऑस्टिनवादी अर्थ में प्रभुसत्त-संपन्न संस्था समझना असंगत है" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-13 | ||
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-[[अरस्तू]] | -[[अरस्तू]] | ||
-जॉन लॉक | -जॉन लॉक | ||
||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||"स्वतंत्रता का मतलब सभी प्रकार के बंधनों का अभाव है।" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||
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-समुदायवादी | -समुदायवादी | ||
+उदारवादी | +उदारवादी | ||
||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता हैं इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरुरत मंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बना कर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है। | ||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, जॉन लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता हैं इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक जरुरत मंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बना कर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है। | ||
{"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14 | {"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14 | ||
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-रूसो | -रूसो | ||
-ग्राम्सी | -ग्राम्सी | ||
+ | +माओ से-तुंगत्से-तुंग | ||
||'लोक युद्ध' का सिद्धांत | ||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओ से-तुंगत्से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ से-तुंग ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ से-तुंग के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह [[गुरिल्ला युद्ध]] या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है। | ||
{मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14 | {मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14 | ||
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-कांट | -कांट | ||
+सीले | +सीले | ||
||''स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||''स्वतंत्रता समस्त प्रतिबंधों का अभाव है" यह कथन सीले का है। स्वतंत्रता उदारवादी चिंतन का केंद्रीय तत्व तथा सार है। स्वतंत्रता को नकारात्मक स्वतंत्रता तथा सकारात्मक स्वतंत्रता में वर्गीकृत किया गया है। सीले की यह परिभाषा नकारात्मक स्वतंत्रता को व्यक्त करती है। आरंभिक उदारवादी विचारक हॉब्स, जॉन लॉक, बेंथम, मिल, सिजविक, स्पेंशर, माण्टेस्क्यू तथा नवा उदारवादी विचारक जैसे हेयक, फ्रीडमैन, वर्लिन आदि नकारात्मक स्वतंत्रता के समर्थन है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) स्वतंत्रता का [[अंग्रेज़ी]] रूपांतर लिबर्टी 'लैटिन' भाषा के शब्द लिबर से लिया गया है जिसका अर्थ होता बंधनों का अभाव। (2) सीले के अनुसार, "स्वतंत्रता अतिशासन का विरोधी है।" (3) हॉब्स के अनुसार, "स्वतंत्रता वाह्य बाधाओं की अनुपस्थिति है वे बाधाएं जो व्यक्ति का कोई भी कार्य करने की शक्ति घटाती है।" (4) रूसो के अनुसार, "स्वतंत्रता सामान्य इच्छा के पालन में है।" (5) हीगल के अनुसार, "स्वतंत्रता राज्य के क़ानूनों का पालन करने में है।" (6) मैकेन्जी के अनुसार, "स्वतंत्रता सभी प्रकार के प्रतिबंधों का अभाव नहीं, अपितु अनुचित प्रतिबंधों के स्थान पर उचित प्रतिबंधों की व्यवस्था है। | ||
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+सेंट ऑगस्टाइन | +सेंट ऑगस्टाइन | ||
-जॉन लॉक | -जॉन लॉक | ||
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओ से-तुंगं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
{किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18 | {किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18 | ||
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||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओ से-तुंगं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
{आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19 | {आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19 | ||
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||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओ से-तुंगं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिको के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास-प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
{कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20 | {कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20 |
12:55, 12 अप्रैल 2017 का अवतरण
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