"प्रयोग:कविता बघेल 3": अवतरणों में अंतर
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-बेरनिनी | -बेरनिनी | ||
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+ | +देलाक्रा | ||
||'स्वच्छंदतावाद' (Romanticism) से देलाक्रा का संबंध है। स्वच्छंदतावाद की शुरुआत यद्यपि जरिको (थियोडोर जेरिकॉल्ट) ने की परंतु उसमें अधिक संवेदना और चेतना डालकर उसे सामर्थ्यशाली बनाने का काम ओजेन देलाफ्रा ने किया। | ||'स्वच्छंदतावाद' (Romanticism) से देलाक्रा का संबंध है। स्वच्छंदतावाद की शुरुआत यद्यपि जरिको (थियोडोर जेरिकॉल्ट) ने की परंतु उसमें अधिक संवेदना और चेतना डालकर उसे सामर्थ्यशाली बनाने का काम ओजेन देलाफ्रा ने किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) देलाक्रा ने ऑटोमॅन सेना द्वारा किओस में बरो लोगों पर हमले की भीषण घटना को विषय बनाते हुए अपना बहुविख्यात चित्र 'किओस में नरसंहार' (The Massacre of chios) बनाया। (2) देलाक्रा के विषय-चयन के साहस, स्फोटक रंगांकन और वस्तु-विन्यास ने एक नए कला-विचार का सूत्रपात्र किया। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{पिकासो किसके समय में पैदा हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-6 | {पिकासो किसके समय में पैदा हुआ था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-125,प्रश्न-6 | ||
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-फासिज्म | -फासिज्म | ||
-रिनेसांस | -रिनेसांस | ||
+ | +घनचित्रण शैली | ||
-आभास चित्रण | -आभास चित्रण | ||
||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{भारत में समीक्षावाद किसने स्थापित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-6 | {[[भारत]] में समीक्षावाद किसने स्थापित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आर.एस. बिष्ट | -आर.एस. बिष्ट | ||
-एम.एच. अंसारी | -एम.एच. अंसारी | ||
-जी.बी. लाल | -जी.बी. लाल | ||
+ | +आ.सी. शुक्ल | ||
||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात कला समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल | ||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात [[कला]] समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल जी एक चित्रकार और कला लेखक भी थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) रामचंद्र शुक्ल [[फ़्राँस]] द्वारा 'जीवन ऑनर फ्रैगानार्ड' सम्मान पाने वाले पहले भारतीय चित्रकार हैं। रामचंद्र शुल्क ने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के चित्रकला विभाग में अध्यापन का कार्य किया तथा आगे चलकर इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हुए। (2) प्रो. रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक कला-समीक्षावाद, भारतीय चित्रकला शिक्षण पद्धति, रेखावली, कला दर्शन, कला-प्रसंग और पश्चिमी आधुनिक चित्रकार आदि पुस्तकों की भी रचना की। (3) कागज की नाव, आपात काल, अंतिम भोज, चंद्र यात्रा, बैलेट बॉक्स आदि रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख चित्र कृतियां हैं। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{"कला सहजानुभूति है"- किस महान दार्शनिक ने इस तथ्य को स्पष्ट किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-6 | {"कला सहजानुभूति है"- किस महान दार्शनिक ने इस तथ्य को स्पष्ट किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-6 | ||
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-कांट | -कांट | ||
+क्रोचे | +क्रोचे | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
||पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र 'सहजानुभूति' (Intuition) का सिद्धांत क्रोचे ने प्रतिपादित किया। क्रोचे ने कला को सहजानुभूति माना है। क्रोचे आधुनिक काल के महान सौन्दर्यशास्त्रियों में गिना जाता है। 'What is Beauty' की विवेचना करते हुए उसने 'एस्थेटिक' ग्रंथ की रचना की। | ||पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र 'सहजानुभूति' (Intuition) का सिद्धांत क्रोचे ने प्रतिपादित किया। क्रोचे ने [[कला]] को सहजानुभूति माना है। क्रोचे आधुनिक काल के महान सौन्दर्यशास्त्रियों में गिना जाता है। 'What is Beauty' की विवेचना करते हुए उसने 'एस्थेटिक' ग्रंथ की रचना की। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) क्रोचे ने कला को तत्त्वत: भाषा माना है और भाषा को तत्त्वत: अभिव्यक्ति। (2) क्रोचे ने अभिव्यक्त के दो विभेद किए हैं- एस्थेटिक सेंस और नेचुरोलिस्टक सेंस। (3) क्रोचे ने अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य को एक माना है। उन्हीं के शब्दों में- अभिव्यक्त एवं सौन्दर्य दो अवधारणाएं नहीं हैं बल्कि एक ही अवधारणा है (Expression and beauty are not two concapts dut a Single concapt)| (4) 'एक्सप्रेशनिस्ट थ्योरी' का सबसे प्रमुख प्रवर्तक क्रोचे था। (5) हीगल की भांति ही क्रोचे ने भी कलाकृति को बौद्धिक माना है। क्रोचे माइकेल एंजेलो के कथन का उल्लेख करता है- "मैं अपने दिमाग से चित्र बनाता हूं, हाथ से नहीं"। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{[[नाट्यशास्त्र]] के प्रणेता कौन हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-6 | |||
{नाट्यशास्त्र के प्रणेता हैं | |||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-कालिदास | -[[कालिदास]] | ||
-वात्स्यायन | -[[वात्स्यायन]] | ||
+ | +[[भरत मुनि]] | ||
-अरस्तु | -[[अरस्तु]] | ||
|| | ||[[भरत मुनि]] (2-3 शती ई.) ने काव्य के आवश्यक तत्त्व के रूप में [[रस]] की प्रतिष्ठा करते हुए [[श्रृंगार रस|श्रृंगार]], [[हास्य रस|हास्य]], [[रौद्र रस|रौद्र]], [[करुण रस|करुण]], [[वीर रस |वीर]], [[अद्भुत रस|अद्भुत]], [[वीभत्स रस|वीभत्स]] तथा [[भयानक रस|भयानक]] नाम से उसके आठ भेदों का स्पष्ट उल्लेख किया है। उन्होंने अपनी कृति [[नाट्यशास्त्र]] में इसका विस्तारपूर्वक वर्णन किया है। कतिपय विद्वानों की कल्पना है कि उन्होंने [[शांत रस |शांत]] नामक नवें रस को भी स्वीकृति दी है। | ||
{ | {किन दो [[रंग|रंगों]] को मिलाकर [[काला रंग]] बनता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-7 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+लाल+नीला | +[[लाल रंग|लाल]]+[[नीला रंग|नीला]] | ||
-हरा+लाल | -[[हरा रंग|हरा]]+लाल | ||
-कत्थई+नीला | -[[कत्थई रंग|कत्थई]]+[[नीला रंग|नीला]] | ||
-कत्थई+हरा | -कत्थई+[[हरा रंग|हरा]] | ||
||चित्रकार के लिए नीला, लाल एवं पीला रंग प्राथमिक रंग होते हैं। बैंगनी, हरा और नारंगी रंग द्वितीयक रंग होते हैं। प्राथमिक और द्वितीयक रंगों के संयोजन से ही अन्य रंगों को प्राप्त किया जाता है। काले रंग को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक रंगों (नीला, लाल एवं पीला रंग) को एक साथ मिलाना पड़ेगा। अत: विकल्प (a) सत्य हो सकता है। | ||चित्रकार के लिए [[नीला रंग]], [[लाल रंग]] एवं [[पीला रंग]] [[प्राथमिक रंग]] होते हैं। [[बैंगनी रंग]], [[हरा रंग]] और [[नारंगी रंग]] [[द्वितीयक रंग]] होते हैं। प्राथमिक और द्वितीयक रंगों के संयोजन से ही अन्य रंगों को प्राप्त किया जाता है। [[काला रंग|काले रंग]] को प्राप्त करने के लिए प्राथमिक रंगों (नीला, लाल एवं पीला रंग) को एक साथ मिलाना पड़ेगा। अत: विकल्प (a) सत्य हो सकता है। | ||
{जल रंगीय (Wash) | {जल रंगीय पेंटिंग (Wash Painting) को [[जल]] में कितनी बार डुबाना चाहिए? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-6 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-8 बार | -8 बार | ||
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+आवश्यकतानुसार | +आवश्यकतानुसार | ||
-11 बार | -11 बार | ||
||जल रंगीय चित्रों (Wash Painting) को जल में आवश्यकतानुसार डुबाया जाता है। | ||जल रंगीय चित्रों (Wash Painting) को [[जल]] में आवश्यकतानुसार डुबाया जाता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) जलरंगीय पेंटिंग बंगाल शैली और जापान शैली के चित्रकारों के सहयोग से विकसित हुई। (2) जलरंगीय शैली के चित्रण के लिए सबसे उपयुक्त काग़ज़ सफ़ेद कैंट पेपर व हैंडमेड पेपर होता है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{भारतीय चित्रकला के षडंग में अनुपात को किस शब्द से परिभाषित किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-6 | {भारतीय चित्रकला के षडंग में अनुपात को किस शब्द से परिभाषित किया गया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-6 | ||
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-वर्णिका भंग | -वर्णिका भंग | ||
+प्रमाण | +प्रमाण | ||
||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्।यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
रूपभेदा: प्रमाणिनि | |||
अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | |||
{एल.सी.डी. मॉनिटर में एल.सी.डी. का अर्थ है | {एल.सी.डी. मॉनिटर में एल.सी.डी. का क्या अर्थ है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-6 | ||
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+लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले | +लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले | ||
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-लिक्विड कैडमियम डिस्पले | -लिक्विड कैडमियम डिस्पले | ||
-लो कंजाम्पशन डिस्पले | -लो कंजाम्पशन डिस्पले | ||
||लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले एल.सी.डी. का विस्तार रूप है। यह तरल क्रिस्टल मिश्रण के साथ ध्रुवीय धात्विक दो चद्दर होता है जिसके बीच में विद्युत धारा प्रवाहित होती है। | ||लिक्विड क्रिस्टल डिस्पले एल.सी.डी. का विस्तार रूप है। यह तरल क्रिस्टल मिश्रण के साथ ध्रुवीय धात्विक दो चद्दर होता है जिसके बीच में [[विद्युत धारा]] प्रवाहित होती है। | ||
{ | {[[अंग्रेज़ी भाषा]] के लगभग सभी अक्षर किस अक्षर [[लिपि]] से आए हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-37 | ||
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+लैटिन | +लैटिन | ||
-रोमन | -[[रोमन लिपि]] | ||
- | -फ़्रेच | ||
-स्वीडिश | -स्वीडिश | ||
|| | ||[[अंग्रेज़ी भाषा]] के लगभग सभी अक्षर 'लैटिन' अक्षर [[लिपि]] से आए हैं। 750 ई.पू. के आस-पास [[स्वर (व्याकरण)|स्वरों]] को जोड़कर (फोनिशियाई वर्णमाला) के आधार पर ग्रीक अक्षर बना। बाद में यह लैटिन वर्णमाला से विनियोगित किया गया जो आगे चलकर [[रोमन लिपि]] बना। | ||
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+जेरीकॉल्ट | +जेरीकॉल्ट | ||
-माने | -माने | ||
||थियोडोर जेरीकॉल्ट | ||थियोडोर जेरीकॉल्ट स्वच्छंदतावाद (रोमांसवाद) का चित्रकार था। वह चित्रण के लिए घर में लाशें रखा करता था। | ||
{ब्राक और पिकाओ ने जिस शैली को जन्म दिया उसे किस नाम से पुकारा जाता है | {ब्राक और पिकाओ ने जिस शैली को जन्म दिया उसे किस नाम से पुकारा जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-7 | ||
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-फन्तासी | -फन्तासी | ||
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+घनवाद | +घनवाद | ||
-प्रभाववाद | -प्रभाववाद | ||
||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{भारत में प्रोफेसर | {[[भारत]] में प्रोफेसर रामचंद्र शुक्ल किस भारतीय समकालीन कला से संबंधित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-7 | ||
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- | -[[मुग़लकालीन चित्रकला|मुग़ल शैली]] | ||
-अजंता शैली | -अजंता शैली | ||
+बंगाल शैली | +बंगाल शैली | ||
-समीक्षावादी शैली | -समीक्षावादी शैली | ||
||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात कला समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल | ||रामचंद्र शुक्ल एक प्रख्यात [[कला]] समीक्षक थे। इसके साथ ही शुक्ल जी एक चित्रकार और कला लेखक भी थे। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) रामचंद्र शुक्ल [[फ़्राँस]] द्वारा 'जीवन ऑनर फ्रैगानार्ड' सम्मान पाने वाले पहले भारतीय चित्रकार हैं। रामचंद्र शुल्क ने [[काशी हिंदू विश्वविद्यालय]] के चित्रकला विभाग में अध्यापन का कार्य किया तथा आगे चलकर इस विभाग के विभागाध्यक्ष भी हुए। (2) प्रो. रामचंद्र शुक्ल ने आधुनिक कला-समीक्षावाद, भारतीय चित्रकला शिक्षण पद्धति, रेखावली, कला दर्शन, कला-प्रसंग और पश्चिमी आधुनिक चित्रकार आदि पुस्तकों की भी रचना की। (3) कागज की नाव, आपात काल, अंतिम भोज, चंद्र यात्रा, बैलेट बॉक्स आदि रामचंद्र शुक्ल की प्रमुख चित्र कृतियां हैं। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र के 'अनुकृति सिद्धांत' (Mimesis throty) | {पाश्चात्य सौन्दर्यशास्त्र के 'अनुकृति सिद्धांत' (Mimesis throty) के प्रणेता कौन है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न- 7 | ||
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-कांट | -कांट | ||
-हीगेल | -हीगेल | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
+अरिस्टॉटल | +अरिस्टॉटल | ||
||अरिस्टॉटल (अरस्तू) के अनुसार, अनुकृति करना | ||अरिस्टॉटल ([[अरस्तू]]) के अनुसार, अनुकृति करना [[कला]] का परम पावन धर्म है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेंष्ट प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। इससे सम्बधित अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। (2) [[होमी भाभा]] ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है। | ||
अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{नाट्यशास्त्र में | {[[नाट्यशास्त्र]] में [[भरत मुनि]] ने कितने भावों का विवेचन किया है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-155,प्रश्न-7 | ||
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-42 | -42 | ||
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+49 | +49 | ||
-45 | -45 | ||
|| | ||[[भरत मुनि]] ने [[नाट्यशास्त्र]] में कुल 49 भावों को प्रस्तुत किया है, जिनमें 8 स्थायी भाव, 33 संचारी भाव तथा 8 सात्विक भाव शामिल हैं। | ||
{कौन-से रंगों में अधिक भार होता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-8 | {कौन-से [[रंग|रंगों]] में अधिक भार होता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-ठंडे रंग | -ठंडे रंग | ||
- | -जल रंग | ||
-तैल रंग | -तैल रंग | ||
+गर्म | +गर्म रग | ||
||रेखा तथा रूप के समान वर्णों में भी भार होता है। गहरे वर्णों में अधिक तथा हल्के | ||रेखा तथा रूप के समान [[रंग|वर्णों]] में भी भार होता है। गहरे वर्णों में अधिक तथा हल्के वर्णों में कम भार होता है। इसी प्रकार उष्ण (गरम) वर्णों में अधिक तथा शीतल वर्णों में कम भार होता है। | ||
{निम्न में से कौन रूपप्रद कला का तत्त्व नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-7 | {निम्न में से कौन रूपप्रद कला का तत्त्व नहीं है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-166,प्रश्न-7 | ||
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-रेखा | -रेखा | ||
+कोलाज | +कोलाज | ||
-वर्ण | -[[रंग|वर्ण]] | ||
-अंतराल | -अंतराल | ||
|| | ||काग़ज़ या कपड़ों के टुकड़ों को चित्र-तल पर चिपका कर तैयार की गई चित्र कृतियां, 'कोलॉज कृतियां' कहलाती हैं। | ||
{षडंग सिद्धान्त किस ग्रंथ में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-7 | {षडंग सिद्धान्त किस ग्रंथ में है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-177,प्रश्न-7 | ||
पंक्ति 190: | पंक्ति 151: | ||
-विष्णुधर्मोत्तर | -विष्णुधर्मोत्तर | ||
-अपराजितपृच्छा | -अपराजितपृच्छा | ||
+जयमंगला | +[[जयमंगला]] | ||
||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर | ||ईसा पूर्व पहली शताब्दी के लगभग षडंग चित्रकला (छ: अंगों वाली कला) का विकास हुआ। यशोधर पंडित ने 'जयमंगला' नाम से टीका की। कामसूत्र के प्रथम अधिकरण के तीसरे अध्याय की टीका करते हुए पंडित यशोधर ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- रूपभेदा: प्रमाणिनि भावलावण्ययोजनम्।यादृश्यं वर्णिकाभंग इति चित्र षडंगकम्॥ अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | ||
ने आलेख (चित्रकला) के छ: अंग बताए हैं- | |||
रूपभेदा: प्रमाणिनि | |||
अर्थात रूपभेद, प्रमाण (सही नाप और संरचना आदि), भाव (भावना), लावण्ययोजना, सादृश्य विधान तथा वर्णिकाभंग ये छ: अंग हैं। | |||
{लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को क्या कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-7 | {लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को क्या कहते हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-182,प्रश्न-7 | ||
पंक्ति 203: | पंक्ति 160: | ||
-टीपीआई | -टीपीआई | ||
-एलपीआई | -एलपीआई | ||
||लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को डीपीआई (Dost Per Inch) से प्रदर्शित करते हैं। | ||लेजर प्रिंटिंग में रिजोल्यूशन की इकाई को डीपीआई (Dost Per Inch) से प्रदर्शित करते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) IPT-Internet Packet Time (इंटरनेट पैकेट टाइम) (2) TPI-Tracks Per Inch (ट्रैक्स पर इंच) (3) LPI-Line Printer Interface (लाइन प्रिंटर इंटरफेस) | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{किसने कहा था "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-38 | {किसने कहा था "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-188,प्रश्न-38 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+सुकरात | +[[सुकरात]] | ||
-प्लेटो | -[[प्लेटो]] | ||
-अरस्तू | -[[अरस्तू]] | ||
-आगस्टाइन | -आगस्टाइन | ||
||महान विचारक सुकरात का जन्म 470 ई.पू. में एथेंस (ग्रीस) में हुआ था। एथेंस के | ||महान विचारक [[सुकरात]] का जन्म 470 ई.पू. में एथेंस (ग्रीस) में हुआ था। एथेंस के नवयुवकों को गुमराह करने का आरोप लगाकर 399 ई.पू. में सुकरात को ज़हर देकर मृत्युदंड की सजा दी गई। उसने कहा था- "मैं यह जानता हूं कि मैं कुछ नहीं जानता"। | ||
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{'मेडुसा का बेड़ा' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-9 | {'मेडुसा का बेड़ा' चित्र किसने चित्रित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-115,प्रश्न-9 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+थियोडोर जेरिकॉल्ट | +थियोडोर जेरिकॉल्ट | ||
-जांक दावि | -जांक दावि | ||
-मोने | -मोने | ||
-सिसली | -सिसली | ||
||जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट | ||जीन-लुइस आंद्रे थियोडोर जेरिकॉल्ट फ़्राँसीसी चित्रकार एवं लिथोग्राफर थे। वे 'समुद्री जहाज' की दुर्घटना पर बनी पेंटिग 'मेडुसा का बेड़ा' (The Raft of the Medusa) नामक चित्रण के लिए जाने जाते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) 'मेडुसा का बेड़ा' रोमांसवाद का सर्वप्रथम चित्र माना गया। (2) अपने चित्रों की [[रंग]] योजना पर जेरिकॉल्ट ने इटालियन चित्रकार काराद्ज्यो का अनुसरण किया है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{'मुर्गा' किस कलाकार की मूर्ति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-8 | {'मुर्गा' किस कलाकार की मूर्ति है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-126,प्रश्न-8 | ||
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-वान गॉग | -वान गॉग | ||
-एम.एफ. हुसैन | -[[एम.एफ. हुसैन]] | ||
-सेजां | -सेजां | ||
+ | +पिकासो | ||
||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय (1907 ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। | ||पिकासो व ब्राक ने घनवाद को विकसित किया। संभवत: घनवाद का उदय ([[1907]] ई.) पिकासो के सुविख्यात चित्र 'एविगनन की स्त्रियां' (सुंदरियां) (1907 ई..) से हुआ जो कि घनवाद का प्रथम चित्र माना जाता है। यह चित्र एविगनन के वेश्यालय से संबंधित हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) पिकाओ का चित्र 'बेंत की कुर्सी पर वस्तु समूह' ([[1912]]) घनवाद की प्रथम कोलाज कृति है। (2) आकारों के सामर्थ्य को बढ़ावा देने के उद्देश्य से पिकासो ने चमकीले रंगों को छोड़कर [[भूरा रंग|भूरे रंगों]] का प्रयोग किया। (3) पिकासो ने चित्रकला के अतिरिक्त मूर्तिकला, एंग्रेविंग, लीथोग्राफी, सरैमिक्स, कोलाज आदि भिन्न माध्यमों से उत्कृष्ट कलाकृतियों का निर्माण किया। (4) मजाकिया, मुर्गा, धातु की रचना, बिल्ली, बकरी तथा भेड़वाला आदमी आदि पिकासो के मूर्ति शिल्प हैं। (5) पिकासो के प्रमुख चित्र हैं- वायलिन, माता व बालक (मैटरनिटी), युद्ध, शांति आदि। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{Op | {ऑप आर्ट (Op) कला की शुरुआत किसने की? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-139,प्रश्न-8 | ||
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-एंडी वारहोल | -एंडी वारहोल | ||
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+वासरली | +वासरली | ||
-रूबेन्स | -रूबेन्स | ||
||आधुनिक कला में Op (ऑप आर्ट) की शुरुआत वर्ष 1904 में विक्टर वासरली ने की। | ||आधुनिक कला में Op (ऑप आर्ट) की शुरुआत वर्ष [[1904]] में विक्टर वासरली ने की। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) ऑप आर्ट में ज्यामितीय आकार के कुछ छोटे टुकड़ों की पच्चीकारी करके चित्र बनाया जाता है जो हिलता हुआ प्रतीत होता है। इसे 'ऑप आर्ट' कहते हैं। ऑप आर्ट (Op) को 'नेत्रीय कला' भी कहा जाता है। | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{अरस्तू के अनुसार कला क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-8 | {[[अरस्तू]] के अनुसार कला क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-152,प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+अनुकृति | +अनुकृति | ||
-प्रमाण | -प्रमाण | ||
-अभिव्यक्ति | -अभिव्यक्ति | ||
-प्रकृति | -[[प्रकृति]] | ||
||अरिस्टॉटल (अरस्तू) के अनुसार, अनुकृति करना | ||अरिस्टॉटल ([[अरस्तू]]) के अनुसार, अनुकृति करना [[कला]] का परम पावन धर्म है। मानव में बाल्यकाल से ही अनुकरण करने की प्रवृत्ति होती है। संसार का सर्वश्रेंष्ट प्राणी सब कुछ नकल करके सीखता है। नकल में उसे आनंद आता है। उसने स्पष्ट लिखा है कि 'कला प्रकृति की अनुकृति करती है'। इससे सम्बधित अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) प्लेटो ने भी अपनी पुस्तक The Republic में 'अनुकृति' सिद्धांत का वर्णन किया है। (2) [[होमी भाभा]] ने भी 'अनुकृति' सिद्धांत पर लिखा है। | ||
अन्य अहत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{'रस' उत्पत्ति को सबसे पहले किसने परिभाषित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-8 | {'[[रस]]' उत्पत्ति को सबसे पहले किसने परिभाषित किया? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-154,प्रश्न-8 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-अरस्तु | -[[अरस्तु]] | ||
-अभिनव गुप्त | -[[अभिनवगुप्त|अभिनव गुप्त]] | ||
+ | +[[भरत मुनि]] | ||
-ब्रडले | -ब्रडले | ||
||'रस' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय | ||'[[रस]]' उत्पत्ति को सबसे पहले परिभाषित करने का श्रेय [[भरत मुनि]] को जाता है। उन्होंने अपने '[[नाट्यशास्त्र]]' में आठ प्रकार के रसों का वर्णन किया है। रस की व्याख्या करते हुए भरत मुनि कहते हैं कि सब नाट्य उपकरणों द्वारा प्रस्तुत एक भाव मूलक कलात्मक अनुभूति है। रस का केंद्र रंगमंच है। भाव रस नहीं, उसका आधार है किंतु भरत ने स्थायी भाव को ही रस माना है। भरत मुनि ने लिखा है- 'विभावानुभावव्यभिचारी- संयोगद्रसनिष्पत्ति अर्थात विभाव, अनुभाव तथा संचारी भावों के संयोग से रस की निष्पत्ति होती है। अत: भरत मुनि के 'रस तत्त्व' का आधारभूत विषय नाट्य में रस की निष्पत्ति है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) काव्य शास्त्र के मर्मज्ञ विद्वानों ने [[काव्य]] की आत्मा को ही रस माना है। (2) आचार्य धनंजय के अनुसार, 'विभाव, अनुभाव, सात्त्विक, साहित्य भाव और व्यभिचारी भावों के संयोग से आस्वाद्यमान स्थायी भाव ही रस है। (3) साहित्य दर्पणकार [[आचार्य विश्वनाथ]] ने रस की परिभाषा इस प्रकार दी है-"विभावेनानुभावेन व्यक्त: सच्चारिणा तथा। रसतामेति रत्यादि: स्थायिभाव: सचेतसाम्॥ (3) डॉ. विश्वम्भर नाथ कहते हैं, "भावों के छंदात्मक समन्वय का नाम ही रस है।" (4) [[श्यामसुंदर दास|आचार्य श्याम सुंदर दास]] के अनुसार, "स्थायी भाव जब विभाव, अनुभाव एवं संचारी भावों के योग से आस्वादन करने योग्य हो जाता है, तब सहृदय प्रेक्षक के हृदय में रस रूप में उसका आस्वादन होता है। (5) आचार्य रामचंद्र शुक्ल के अनुसार, जिस प्रकार आत्मा की मुक्तावस्था ज्ञानदशा कहलाती है। उसी प्रकार हृदय की मुक्तावस्था रस दशा कहलाती है।" | ||
अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य | |||
{निम्नलिखित में से गरम रंग कौन-सा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-9 | {निम्नलिखित में से गरम रंग कौन-सा है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-158,प्रश्न-9 |
12:10, 16 अप्रैल 2017 का अवतरण
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