"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
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||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति व्यक्तियों का अधिकार बना रहता है। इसलिए मार्क्स राज्यविहीन समाज की स्थापना की वकालत करता है। | ||मार्क्सवाद के अनुसार, राज्य की उत्पत्ति किसी नैतिक उद्देश्य की सिद्धि के लिए नहीं हुई है बल्कि यह एक कृत्रिम संस्था है, जिसकी उत्पत्ति संपत्तिशाली-वर्ग के हितों की सुरक्षा के लिए हुई है। राज्य एक ऐसी संस्था है जो एक वर्ग के द्वारा दूसरे वर्ग के दमन और शोषण के लिए स्थापित की गई है। इसमें उत्पादन के साधनों पर पूंजीपति व्यक्तियों का अधिकार बना रहता है। इसलिए मार्क्स राज्यविहीन समाज की स्थापना की वकालत करता है। | ||
{जॉन राल्स | {जॉन राल्स की न्याय की धारणा क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-28,प्रश्न-4 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-समाजवादी | -समाजवादी | ||
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-समुदायवादी | -समुदायवादी | ||
+उदारवादी | +उदारवादी | ||
||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, जॉन लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता | ||जॉन राल्स ([[1921]]-[[2002]]) 20वीं सदी के उदारवादी परम्परा के अमेरिकी विचारक हैं। इनकी पुस्तक (थ्योरी ऑफ़ जस्टिस) न्याय की अवधारणा के विकास में महत्त्वपूर्ण है। इसमें इन्होंने आज के उदारवादी समतावादी [[राज्य]] के अनुरूप न्याय का सिद्धांत प्रस्तुत किया। इनका न्याय सिद्धान्त हॉब्स, जॉन लॉक, रूसो की भांति सामाजिक समझौते पर आधारित है। इनके न्याय सिद्धान्त को शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय सिद्धांत कहा जाता है इनके अनुसार राज्य का कार्य केवल सामाजिक व्यवस्था की सुरक्षा करना नहीं है बल्कि सबसे अधिक ज़रुरतमंद लोगों की आवश्यकताओं को उच्चतम सामाजिक आदर्श बनाकर मूल पदार्थों (वेतन, संपत्ति, अवसर, अधिकार, स्वतंत्रता, तथा स्वास्थ्य, शक्ति, क्षमता) को पुनर्वितरण द्वारा उपलब्ध कराना है। राल्स के अनुसार न्याय पुरस्कार का सिद्धांत न होकर क्षतिपूर्ति का सिद्धांत है। | ||
{"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14 | {"राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" यह कथन निम्नलिखित में से किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-14 | ||
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||इतिहास में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते | ||[[इतिहास]] में व्यक्ति, समाज और [[राज्य]] के भूतकालीन जीवन का लेखा-जोखा होता है। राजनीति विज्ञान में राज्य के भूत, वर्तमान तथा भविष्य का अध्ययन। इन दोनों के बीच संबंधों को दर्शाते हुए सीले ने कहा है कि "राजनीति के बिना [[इतिहास]] निष्फल है, इतिहास के बिना राजनीति निर्मूल है।" सीले पुन: कहते हैं- "राजनीति उच्छृंखल हो जाती है, यदि इतिहास द्वारा उसे उदार नहीं बनाया जाता तथा इतिहास कोरा साहित्य रह जाता है, यदि राजनीति से उसका विच्छेद हो जाता है।" | ||
{संपत्ति के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4 | {संपत्ति के अधिकार की मांग किसने की? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-36,प्रश्न-4 | ||
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||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए [[राज्य]] की उत्पत्ति हुई और उसका अस्तित्त्व बना हुआ है। जॉन लॉक इन अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'संपत्ति के अधिकार' को मानता है। | ||उदारवाद के प्रणेता जॉन लॉक ने जीवन, स्वतंत्रता और संपत्ति के अधिकार को प्राकृतिक अधिकार माना और कहा कि इन्हीं अधिकारों की सुरक्षा के लिए [[राज्य]] की उत्पत्ति हुई और उसका अस्तित्त्व बना हुआ है। जॉन लॉक इन अधिकारों में सबसे महत्त्वपूर्ण 'संपत्ति के अधिकार' को मानता है। | ||
{निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन | {निम्न में से किसने लोकतंत्र को 'एक जीवन शैली' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-44,प्रश्न-5 | ||
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-[[एडम स्मिथ]] | -[[एडम स्मिथ]] | ||
-इ. बर्क | -इ. बर्क | ||
-हेरोल्ड लास्की | -हेरोल्ड लास्की | ||
+टी.वी. स्मिथ | +टी. वी. स्मिथ | ||
||टी.वी. स्मिथ 'लोकतंत्र को एक जीवन-शैली के रूप में' परिभाषित करते हैं। इसके अतिरिक्त मैकाइवर ने भी लोकतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित किया | ||टी. वी. स्मिथ 'लोकतंत्र को एक जीवन-शैली के रूप में' परिभाषित करते हैं। इसके अतिरिक्त मैकाइवर ने भी लोकतंत्र को एक जीवन पद्धति के रूप में परिभाषित किया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) ऑस्टिन, डायसी, लावेल, ब्राइस आदि विचारक लोकतंत्र को सरकार के निर्वाचन की पद्धति के रूप में देखते हैं। (2) मैक्फर्सन के अनुसार, "लोकतंत्र चयन की ऐसी प्रक्रिया है जिसके द्वारा लोक निर्णय लिए जाते हैं।" (3) लॉरेन्स लावेल के अनुसार, "लोकतंत्र में कोई यह शिकायत नहीं कर सकता कि उसे सुनवाई का मौका नहीं मिला।" (4) वाल्टर बेजहाट के अनुसार, "लोकतंत्र, लोकशक्ति को भ्रमित करने का सबसे बड़ा तरीक़ा है। यह भ्रम इसलिए स्थापित होता है क्योंकि लोकतंत्र में वाद-विवाद एवं सहिष्णुता के लक्षण हैं जो लोगों को अधिकारों के भ्रमजाल में फंसाते हैं।" | ||
{'लोक युद्ध' की संकल्पना विकसित करने का श्रेय किसको जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-14 | {'लोक युद्ध' की संकल्पना विकसित करने का श्रेय किसको जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-14 | ||
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-रूसो | -रूसो | ||
-ग्राम्सी | -ग्राम्सी | ||
+माओ से | +माओ से-तुंग | ||
||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओ से | ||'लोक युद्ध' का सिद्धांत माओ से-तुंग की अपनी विशिष्ट एवं मौलिक संकल्पना है। इसके अंतर्गत माओ से-तुंग ने सेना व हथियारों की तुलना में जनता को अधिक महत्त्व प्रदान किया। माओ से-तुंग के अनुसार, युद्ध में हथियारों का अपना महत्त्व है पर वे निर्णायक तत्त्व नहीं हैं। निर्णय मनुष्यों द्वारा किया जाना है, जड़ वस्तुओं के द्वारा नहीं। लोक युद्ध को सफल बनाने के लिए वह [[गुरिल्ला युद्ध]] या छापामार युद्ध पर अत्यधिक बल देता है। | ||
{मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14 | {मॉर्टन कैप्लन ने अंतर्राष्ट्रीय राज्यव्यवस्था के निम्न में से किस प्रतिमान की कल्पना नहीं की थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-14 |
13:01, 16 अप्रैल 2017 का अवतरण
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