"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
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-नीति निर्धारित करने की शक्ति | -नीति निर्धारित करने की शक्ति | ||
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||वह आदेश, नियम तथा उपनियम, जो संसद की किसी विधि द्वारा प्रदत्त सत्ता के अंतर्गत कार्यपालिका अथवा प्रशासन के द्वारा जारी किए जाते हों, 'प्रत्यायोजित विधायन' कहलाते हैं। तीव्रगामी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों के कारण वर्तमान समय में प्रतिनिहित विधि निर्माण अपरिहार्य हो गया है। इसकी मात्रा में | ||वह आदेश, नियम तथा उपनियम, जो [[संसद]] की किसी विधि द्वारा प्रदत्त सत्ता के अंतर्गत कार्यपालिका अथवा प्रशासन के द्वारा जारी किए जाते हों, 'प्रत्यायोजित विधायन' कहलाते हैं। तीव्रगामी आर्थिक, सामाजिक तथा राजनीतिक परिवर्तनों के कारण वर्तमान समय में प्रतिनिहित विधि निर्माण अपरिहार्य हो गया है। इसकी मात्रा में दिनों-दिन वृद्धि हो रही है। वर्तमान समय में वित्त संबंधी शक्ति, नियम बनाने की शक्ति तथा नीति निर्धारित करने की शक्ति प्रत्यायोजित की जा रही है। लेकिन [[भारत]] में प्रतिनिहित विधायन के क्षेत्र में संसदीय नियंत्रण के साथ न्यायिक नियंत्रण की व्यवस्था भी उभरी है। | ||
{नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक पर बल देती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-5 | {नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा निम्नलिखित में से किस एक पर बल देती है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-5 | ||
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-पसंद की स्वतंत्रता | -पसंद की स्वतंत्रता | ||
||नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा हस्तक्षेप की अनुपस्थिति पर बल देती है। नकारात्मक स्वतंत्रता या औपचारिक स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ करना चाहता हो और कर भी सकता हो, तो उसे वैसा करने से रोका न जाए। | ||नकारात्मक स्वतंत्रता की अवधारणा हस्तक्षेप की अनुपस्थिति पर बल देती है। नकारात्मक स्वतंत्रता या औपचारिक स्वतंत्रता से अभिप्राय है कि यदि कोई व्यक्ति कुछ करना चाहता हो और कर भी सकता हो, तो उसे वैसा करने से रोका न जाए। | ||
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+गार्नर | +गार्नर | ||
-[[अरस्तू]] | -[[अरस्तू]] | ||
||गार्नर ने अपनी पुस्तक 'Political Science and Government' में राजनीति विज्ञान की 'प्रकृति एवं विषय क्षेत्र' के संबंध में कहा है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत है। इसका संबंध [[राज्य]] के सिद्धान्त, संगठन एवं व्यवहार से है। इसके साथ-साथ राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति का परीक्षण, राजनीतिक संस्थाओं की प्रकृति, [[इतिहास]] एवं राज्य के रूपों की जांच पड़ताल | ||गार्नर ने अपनी पुस्तक 'Political Science and Government' में राजनीति विज्ञान की 'प्रकृति एवं विषय क्षेत्र' के संबंध में कहा है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत है। इसका संबंध [[राज्य]] के सिद्धान्त, संगठन एवं व्यवहार से है। इसके साथ-साथ राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति का परीक्षण, राजनीतिक संस्थाओं की प्रकृति, [[इतिहास]] एवं राज्य के रूपों की जांच पड़ताल तथा जहां तक संभव हो राजनीतिक प्रगति एवं विकास के नियमों को निगमित करना इसके क्षेत्र में आते हैं। | ||
{[[राज्य]] की उत्पत्ति के संबंध में कौन-सा सिद्धांत सर्वमान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-16 | {[[राज्य]] की उत्पत्ति के संबंध में कौन-सा सिद्धांत सर्वमान्य है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-16 | ||
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{"शक्ति की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति तथा दलीय राजनीति की प्रवृत्ति केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति का मुख्य कारण रहा है"- किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-16 | {"शक्ति की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति तथा दलीय राजनीति की प्रवृत्ति केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति का मुख्य कारण रहा है"- किसने कहा? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-16 | ||
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-प्रो.सी.एफ. स्ट्रांग | -प्रो. सी. एफ. स्ट्रांग | ||
+प्रो.के.सी ह्वीयर | +प्रो. के. सी ह्वीयर | ||
-प्रो. लास्की | -प्रो. लास्की | ||
-जेम्स वाइस | -जेम्स वाइस | ||
||प्रो.के.सी. ह्वीयर ने आधुनिक संघीय व्यवस्थाओं में केंद्र के शक्तिशाली होने एवं बढ़ती केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति के लिए 'शक्ति की राजनीति, आर्थिक मंदी की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति, एवं दलीय राजनीति' को मुख्य कारण माना है। | ||प्रो. के. सी. ह्वीयर ने आधुनिक संघीय व्यवस्थाओं में केंद्र के शक्तिशाली होने एवं बढ़ती केंद्रीयकरण की प्रवृत्ति के लिए 'शक्ति की राजनीति, आर्थिक मंदी की राजनीति, लोक कल्याण की राजनीति, तकनीकी राजनीति, एवं दलीय राजनीति' को मुख्य कारण माना है। | ||
{निम्नलिखित में से किसका उदारवाद से मेल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-6 | {निम्नलिखित में से किसका उदारवाद से मेल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-6 | ||
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-गैटेल | -गैटेल | ||
-गार्नर | -गार्नर | ||
||[[गिलक्राइस्ट]] ने कहा है कि "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं हैं"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||[[गिलक्राइस्ट]] ने कहा है कि "सार्वभौमिक वयस्क मताधिकार वास्तव में सार्वभौमिक नहीं हैं"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- विभिन्न देशों में वयस्क मताधिकार की आयु निम्नलिखित है- (1 ) [[भारत]] में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है। (2) [[फ़्राँस]] व [[जर्मनी]] में वयस्क मताधिकार की आयु 20 वर्ष है। (3) डेनमार्क व [[जापान]] में वयस्क मताधिकार की आयु 25 वर्ष है। (4) नॉर्वे में वयस्क मताधिकार की आयु 23 वर्ष है। | ||
विभिन्न देशों में वयस्क मताधिकार की आयु निम्नलिखित है- (1 ) [[भारत]] में वयस्क मताधिकार की आयु 18 वर्ष है। (2) [[ | |||
{लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-16 | {लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-16 | ||
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+पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। | +पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। | ||
-पूंजीवाद का समाजवाद में विलय है। | -पूंजीवाद का समाजवाद में विलय है। | ||
||लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। लेनिन ने इस अवस्था का विश्लेषण अपनी प्रसिद्ध कृति 'इंपीरियलिज्म: द हाइएस्ट स्टेज ऑफ़ कैपिटलिज्म' (साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था) में किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लेनिन साम्राज्यवाद को पूंजीवाद की अभिव्यक्ति मानते हैं। (2) लेनिन ने वर्ष [[1902]] में 'ह्वाट इज टु बि इन?' (अब | ||लेनिन के अनुसार साम्राज्यवाद पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था है। लेनिन ने इस अवस्था का विश्लेषण अपनी प्रसिद्ध कृति 'इंपीरियलिज्म: द हाइएस्ट स्टेज ऑफ़ कैपिटलिज्म' (साम्राज्यवाद: पूंजीवाद की उच्चतम अवस्था) में किया। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार है- (1) लेनिन साम्राज्यवाद को पूंजीवाद की अभिव्यक्ति मानते हैं। (2) लेनिन ने वर्ष [[1902]] में 'ह्वाट इज टु बि इन?' (अब हमें क्या करना है?) की रचना की। जिसमें अपने सैद्धांतिक विचारों का उल्लेख किया। | ||
{निम्नलिखित में से कौन आमण्ड के हित-अभिव्यक्त करने वाली संरचनाओं के वर्गीकरण में शामिल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-16 | {निम्नलिखित में से कौन आमण्ड के हित-अभिव्यक्त करने वाली संरचनाओं के वर्गीकरण में शामिल नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-66,प्रश्न-16 | ||
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+प्रजातीय संरचनाएं | +प्रजातीय संरचनाएं | ||
-प्रदर्शनात्मक संरचनाएं | -प्रदर्शनात्मक संरचनाएं | ||
||जी.ए. आमंड तथा पॉवेल ने अपनी पुस्तक 'Comparative Politics' में दबाव समूहों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है- | ||जी. ए. आमंड तथा पॉवेल ने अपनी पुस्तक 'Comparative Politics' में दबाव समूहों को चार श्रेणियों में विभक्त किया है- (1) संस्थात्मक दवाब समूह (Institutional Prassure Groups)- ये दबाव समूह राजनीतिज दलों, विधान मण्डलों, सेना, नौकरशाही इत्यादि में सक्रिय रहते हैं। (2) समुदायात्मक दबाव समूह (Associational Pressure Groups)- ये विशेषीकृत संघ होते हैं जो अपने विशिष्टहितों की पूर्ति करते हैं। (3) गैर समुदायात्मक दबाव समूह (Non Associational Pressure Groups)- ये संगठित संघ नहीं होते ये अनौपचारिक रूप से अपने हितों की अभिव्यक्ति करते हैं- जैसे- सांप्रदायिक और धार्मिक समुदाय, जातीय समुदाय आदि। (4) प्रदर्शनात्मक दबाव समूह (Anomic Pressure Groups)- ये अपनी मांगों को लेकर अवैधानिक उपायों का प्रयोग करते हैं जैसे- हिंसा, राजनैतिक हत्या, दंगे तथा अन्य आक्रामक रवैया अपनाते हैं। | ||
{'मूल्य तटस्थता' निम्न में से किसकी विशेषता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-95 | {'मूल्य तटस्थता' निम्न में से किसकी विशेषता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-95 | ||
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{"आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-6 | {"आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-6 | ||
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-ग्रीन | -ग्रीन | ||
-जे.एस. मिल | -जे. एस. मिल | ||
+जी.डी.एच. कोल | +जी. डी. एच. कोल | ||
-लास्की | -लास्की | ||
||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||जी. डी. एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) लास्की के अनुसार, "मुझे स्वादिष्ट भोजन करने का अधिकार नहीं है यदि मेरे पड़ोसी को मेरे इस अधिकार के कारण सूखी रोटी से वंचित रहना पड़े।" (2) [[जवाहरलाल नेहरू]] ने कहा है, "भूखे व्यक्ति के लिए मत का कोई मूल्य नहीं होता।" (3) लास्की के अनुसार, "यदि [[राज्य]] संपत्ति को अधीन नहीं रखता, तो संपत्ति राज्य को वशीभूत कर लेगी।" (4) कोल की तरह लास्की ने भी कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता कभी भी वास्तविक नहीं हो सकती।" | ||
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+गार्नर | +गार्नर | ||
-लास्की | -लास्की | ||
||गार्नर ने अपनी पुस्तक 'Political Science and Government' में राजनीति विज्ञान की 'प्रकृति एवं विषय क्षेत्र' के संबंध में कहा है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत है। इसका संबंध राज्य के सिद्धान्त, संगठन एवं व्यवहार से है। इसके साथ-साथ राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति का परीक्षण, राजनीतिक संस्थाओं की प्रकृति, इतिहास एवं राज्य के रूपों की जांच पड़ताल | ||गार्नर ने अपनी पुस्तक 'Political Science and Government' में राजनीति विज्ञान की 'प्रकृति एवं विषय क्षेत्र' के संबंध में कहा है कि राज्य ही राजनीति विज्ञान का आरंभ और अंत है। इसका संबंध राज्य के सिद्धान्त, संगठन एवं व्यवहार से है। इसके साथ-साथ राज्य की उत्पत्ति एवं प्रकृति का परीक्षण, राजनीतिक संस्थाओं की प्रकृति, इतिहास एवं राज्य के रूपों की जांच पड़ताल तथा जहां तक संभव हो राजनीतिक प्रगति एवं विकास के नियमों को निगमित करना इसके क्षेत्र में आते हैं। | ||
{राज्य की उत्पत्ति का सबसे सही सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-17 | {राज्य की उत्पत्ति का सबसे सही सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-17 | ||
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-न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है | -न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है | ||
-प्रक्रियात्मक न्याय की प्रधानता | -प्रक्रियात्मक न्याय की प्रधानता है | ||
-सामाजिक न्याय से सरोकार | -सामाजिक न्याय से सरोकार है | ||
+उपर्युक्त सभी | +उपर्युक्त सभी | ||
||राल्स के अनुसार, "न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है, यह प्रक्रियात्मक होता है एवं इसका सरोकर सामाजिक न्याय से होता है"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||राल्स के अनुसार, "न्याय समाज का प्रथम सद्गुण है, यह प्रक्रियात्मक होता है एवं इसका सरोकर सामाजिक न्याय से होता है"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) समकालीन उदारवादी चिंतक जॉन राल्स ने अपनी कृति 'ए थ्योरी ऑफ़ जस्टिस' (न्याय सिद्धांत) में तर्क दिया कि उत्तम समाज में अनेक सद्गुण अपेक्षित होते हैं, जिनमें न्याय का स्थान सर्वप्रथम है। न्याय उत्तम समाज की आवश्यक शर्त है किंतु यह उसके लिए पर्याप्त नहीं है। (2) राल्स के अनुसार, न्याय की समस्या प्राथमिक वस्तुओं के न्यायपूर्ण वितरण की समस्या है। ये प्राथमिक वस्तुएं हैं- अधिकार एवं स्वतंत्रताएं, शक्तियां एवं अवसर, आय और संपदा, तथा आत्म-सम्मान के साधन। (3) राल्स ने अपने न्याय सिद्धांत को 'शुद्ध प्रक्रियात्मक न्याय' की संज्ञा दी। इसका अर्थ है कि सर्वसम्मति से स्वीकार किए गए न्याय सिद्धांतों के प्रयोग से जो भी वितरण-व्यवस्था अस्तित्व में आएगी यह अनिवार्यत: न्यायपूर्ण होगी। (3) राल्स ने न्याय की सर्वसम्मत प्रक्रिया निर्धारित करने हेतु सामाजिक अनुबंध की तर्क प्रणाली अपनाई। (4) राल्स ने सामाजिक न्याय की स्थापना हेतु भेद-मूलक सिद्धांत स्वीकारा जिसके अनुसार, किसी व्यक्ति की असाधारण योग्यता और परिश्रम हेतु विशेष पुरस्कार तभी न्यायसंगत होगा जब उससे समाज के कमज़ोर वर्ग या व्यक्तियों को अधिकतम लाभ पहुंचे। इसके बाद प्रतिस्पर्धात्मक अर्थव्यवस्था के मानदंड को लागू किया जा सकता है। | ||
{"राजनीति विज्ञान शक्ति की रचना और भागीदारी का अध्ययन है।" यह परिभाषा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-17 | {"राजनीति विज्ञान शक्ति की रचना और भागीदारी का अध्ययन है।" यह परिभाषा किसने दी है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-17 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-आलमंड एंड पावेल | -आलमंड एंड पावेल | ||
+लासवेल व | +लासवेल व कैप्लान | ||
-राबर्ट ए. डहल | -राबर्ट ए. डहल | ||
-[[गिलक्राइस्ट]] | -[[गिलक्राइस्ट]] | ||
||राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यवहारवादी क्रांति ने इसकी परम्परागत अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन की पद्धति दोनों में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। इसकी परम्परागत धारणा में राज्य सरकार एवं संस्थाओं का अध्ययन किया जाता था। लेकिन व्यवहारवादी विचारक शक्ति, सत्ता एवं प्रभाव को अध्ययन का केन्द्र मानते हैं। ऐसे विचारकों में लासवेल, डहल, कैप्लान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लासवेल ने राजनीति | ||राजनीति विज्ञान के अध्ययन में व्यवहारवादी क्रांति ने इसकी परम्परागत अध्ययन क्षेत्र एवं अध्ययन की पद्धति दोनों में आमूलचूल परिवर्तन ला दिया। इसकी परम्परागत धारणा में राज्य सरकार एवं संस्थाओं का अध्ययन किया जाता था। लेकिन व्यवहारवादी विचारक शक्ति, सत्ता एवं प्रभाव को अध्ययन का केन्द्र मानते हैं। ऐसे विचारकों में लासवेल, डहल, कैप्लान आदि के नाम उल्लेखनीय हैं। लासवेल ने राजनीति शास्त्र की परिभाषा करते हुए लिखा है कि यह "शक्ति में सहभागी होने और उसका निरुपण (रचना) करने का अध्ययन है।" उनके अनुसार राजनीतिक क्रिया वह है जो शक्ति के परिप्रेक्ष्य में संपादित की जाए। | ||
{उदारवाद का मौलिक सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-7 | {उदारवाद का मौलिक सिद्धांत क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-7 |
12:53, 21 अप्रैल 2017 का अवतरण
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