"प्रयोग:कविता बघेल 9": अवतरणों में अंतर
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-समानता | -समानता | ||
-राष्ट्रवाद | -राष्ट्रवाद | ||
||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने | ||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरीर, मस्तिष्क और [[आत्मा]] पर व्यक्ति संप्रभु है।" उदारवाद का मूल तत्त्व वैयक्तिक स्वतंत्रता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण उदारवाद की मुख्य मान्यताएं निम्न हैं- (1) मनुष्य विवेकशील प्राणी है। (2) व्यक्ति के हित एवं सामान्य हित में कोई बुनियादी टकराव नहीं है। (3) व्यक्ति को कुछ प्राकृतिक अधिकार प्राप्त हैं। (4) नागरिक समाज एक कृत्रिम उपकरण है जिसका ध्येय मनुष्यों का हित साधन है। (5) उदारवाद केवल सांविधानिक शासन को ही मान्यता देता है। इसके अनुसार, व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई भी प्रतिबंध केवल इस आधार पर लगाया जा सकता है कि वह दूसरों को वैसी ही स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए आवश्यक हो। (7) उदारवाद अनुबंध की स्वतंत्रता में विश्वास करता है। इसके अनुसार, सार्वजनिक नीति व्यक्तियों और समूहों की स्वतंत्र सौदेबाज़ी का परिणाम होना चाहिए। इस प्रकार उदारवाद की संपूर्ण अवधारणा में वैयक्तिक स्वतंत्रता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। | ||
{"सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन अभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" यह किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-8 | {"सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन अभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" यह किसने कहा था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-8 | ||
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-लास्की | -लास्की | ||
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||अब्राहम लिंकन का कथन है कि "सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन सभी मनुष्यों को सदैव नहीं बनाया जा सकता।" वास्तव में लोकतंत्र ऐसी शासन पद्धति है जो सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के शासन प्रक्रिया में बराबर हिस्सा देती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||अब्राहम लिंकन का कथन है कि "सभी मनुष्यों को कुछ समय के लिए और कुछ मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख बनाया जा सकता है, लेकिन सभी मनुष्यों को सदैव के लिए मूर्ख नहीं बनाया जा सकता।" वास्तव में लोकतंत्र ऐसी शासन पद्धति है जो सभी लोगों को बिना किसी भेदभाव के शासन प्रक्रिया में बराबर हिस्सा देती है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) सीले-"लोकतंत्र वह शासन है जिसमें हर व्यक्ति भाग लेता है।" (2) अब्राहम लिंकन-"लोकतंत्र जनता के लिए, जनता द्वारा, जनता का शासन है।" (3) डायसी-"लोकतंत्र सरकार का ऐसा रूप है जिसमें जनता का एक बड़ा भाग शासन करता है।" | ||
{राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर किस विचारक का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-17 | {राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर किस विचारक का विश्वास था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-53,प्रश्न-17 | ||
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+[[कार्ल मार्क्स]] | +[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-जान लॉक | -जान लॉक | ||
||राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर [[कार्ल मार्क्स]] का विश्वास था, मार्क्स ने द्वंद्वात्मक पद्धति के माध्यम से 'समजवाद' को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। संपूर्ण इतिहास को 'वर्गहीन समाज' की स्थापना की ओर अग्रसर होते हुए दिखाया। | ||राज्यहीन, वर्गहीन समाज पर [[कार्ल मार्क्स]] का विश्वास था, मार्क्स ने द्वंद्वात्मक पद्धति के माध्यम से 'समजवाद' को वैज्ञानिक आधार प्रदान किया। संपूर्ण इतिहास को 'वर्गहीन समाज' की स्थापना की ओर अग्रसर होते हुए दिखाया। कार्ल मार्क्स राष्ट्रवाद का विरोधी था। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) कार्ल मार्क्स के सर्वाधिक प्रसिद्ध ग्रंथ 'दास कैपिटल' और 'कम्यूनिस्ट मेनीफेस्टी' आदि हैं। (2) दास कैपिटल को श्रमिकों का धार्मिक ग्रंथ तथा 'धनिकों का दिमाग ठंडा करने वाला नुस्खा' कहा जाता है। | ||
{इनमें से किसे 'वैज्ञानिक प्रबंध का' | {इनमें से किसे 'वैज्ञानिक प्रबंध का पिता' कहा जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-17 | ||
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-एल्टन मेयो | -एल्टन मेयो | ||
-बर्नार्ड | -बर्नार्ड | ||
-मैक्सवेबर | -मैक्सवेबर | ||
+एफ.डब्ल्यू. टेलर | +एफ. डब्ल्यू. टेलर | ||
||वैज्ञानिक प्रबंध में आयोजन, अनुसंधान, विश्लेषण, प्रयोग, विवेक, आदि बातों को अधिकतम महत्त्व दिया जाता है। वैज्ञानिक प्रबंध स्पष्टत: प्रबंध की वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा साधनों का आदर्शतम समंवय करके न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबंध का पिता अर्थात इसकी उत्पत्ति का श्रेय एफ.डब्ल्यू. टेलर को दिया जाता है। | ||वैज्ञानिक प्रबंध में आयोजन, अनुसंधान, विश्लेषण, प्रयोग, विवेक, आदि बातों को अधिकतम महत्त्व दिया जाता है। वैज्ञानिक प्रबंध स्पष्टत: प्रबंध की वैज्ञानिक विधि है जिसके द्वारा साधनों का आदर्शतम समंवय करके न्यूनतम लागत पर अधिकतम उत्पादन प्राप्त किया जा सकता है। वैज्ञानिक प्रबंध का पिता अर्थात इसकी उत्पत्ति का श्रेय एफ. डब्ल्यू. टेलर को दिया जाता है। | ||
{राजनीतिक चेतना का क्या अर्थ है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-96 | {राजनीतिक चेतना का क्या अर्थ है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-96 | ||
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-[[कार्ल मार्क्स]] | -[[कार्ल मार्क्स]] | ||
-जे.एस. मिल | -जे. एस. मिल | ||
+लास्की | +लास्की | ||
-जी.डी.एच. कोल | -जी. डी. एच. कोल | ||
||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||जी. डी. एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) लास्की के अनुसार, "मुझे स्वादिष्ट भोजन करने का अधिकार नहीं है यदि मेरे पड़ोसी को मेरे इस अधिकार के कारण सूखी रोटी से वंचित रहना पड़े।" (2) [[जवाहरलाल नेहरू]] ने कहा है, "भूखे व्यक्ति के लिए मत का कोई मूल्य नहीं होता।" (3) लास्की के अनुसार, "यदि [[राज्य]] संपत्ति को अधीन नहीं रखता, तो संपत्ति राज्य को वशीभूत कर लेगी।" (4) कोल की तरह लास्की ने भी कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता कभी भी वास्तविक नहीं हो सकती।" | ||
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+ऐतिहासिक सिद्धांत | +ऐतिहासिक सिद्धांत | ||
-सामाजिक समझौते का सिद्धांत | -सामाजिक समझौते का सिद्धांत | ||
||[[राज्य]] की उत्पत्ति का विकासवादी अथवा ऐतिहासिक सिद्धांत को काल्पनिक नहीं माना जाता | ||[[राज्य]] की उत्पत्ति का विकासवादी अथवा ऐतिहासिक सिद्धांत को काल्पनिक नहीं माना जाता है। इसमें राज्य को अन्य संस्थाओं की तरह ही सतत विकास का परिणाम माना जाता है। आधुनिक राज्य के विकास के मुख्य चरण- 1. स्वजन समूह, 2. संपत्ति, 3. रीति-रिवाज, 4. शक्ति, 5. नागरिकता हैं। ऐतिहासिक सिद्धान्त राज्य को न दैवीय संस्था मानता है, न ही बल प्रयोग द्वारा स्थापित तथा न ही लोगों के आपसी समझौते द्वारा स्थापित ही मानता है। यह केवल राज्य को सतत विकास का परिणाम मानता है। जबकि दैवीय सिद्धांत, शक्ति सिद्धांत तथा सामाजिक समझौता सिद्धांत सभी का आधार एक काल्पनिक स्थिति पर आधारित है। | ||
{निम्नलिखित में से किसने यह विचार व्यक्त किया है- "यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-8 | {निम्नलिखित में से किसने यह विचार व्यक्त किया है- "यदि न्याय व्यवस्था न हो तो राज्य लुटेरों की टोली बन जाता है"? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-29,प्रश्न-8 | ||
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+सेंट ऑगस्टाइन | +सेंट ऑगस्टाइन | ||
-जॉन लॉक | -जॉन लॉक | ||
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिकों के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास- प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
{किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18 | {किसने राजनीति शास्त्र को 'शक्ति के निर्माण एवं साझेदारी के अध्ययन' के रूप में परिभाषित किया है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-18 | ||
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-पंथ निरपेक्षता | -पंथ निरपेक्षता | ||
-समानता | -समानता | ||
||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरी, मस्तिष्क और [[आत्मा]] पर व्यक्ति संप्रभु है।" उदारवाद का मूल तत्त्व वैयक्तिक स्वतंत्रता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण उदारवाद की मुख्य मान्यताएं निम्न हैं- ( | ||उदारवाद व्यक्तिगत को सबसे महत्त्वपूर्ण मानता है। इसके अनुसार, व्यक्ति के उन कार्यों पर कोई प्रतिबंध नहीं होना चाहिए, जिनका संबंध केवल उसके ही अस्तित्व से हो। व्यक्तिवादी विचारकों ने इस स्वतंत्रता का समर्थन किया है। मिल ने व्यक्तिगत स्वतंत्रता का समर्थन करते हुए कहा है कि "मानव समाज को केवल आत्मरक्षा के उद्देश्य से ही, किसी व्यक्ति की स्वतंत्रता में व्यक्तिगत या सामूहिक रूप से हस्तक्षेप करने का अधिकार हो सकता है। अपने ऊपर, अपने शरी, मस्तिष्क और [[आत्मा]] पर व्यक्ति संप्रभु है।" उदारवाद का मूल तत्त्व वैयक्तिक स्वतंत्रता है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण उदारवाद की मुख्य मान्यताएं निम्न हैं- (1) मनुष्य विवेकशील प्राणी है। (2) व्यक्ति के हित एवं सामान्य हित में कोई बुनियादी टकराव नहीं है। (3) व्यक्ति को कुछ प्राकृतिक अधिकार प्राप्त हैं। (4) नागरिक समाज एक कृत्रिम उपकरण है जिसका ध्येय मनुष्यों का हित साधन है। (5) उदारवाद केवल सांविधानिक शासन को ही मान्यता देता है। इसके अनुसार, व्यक्ति की स्वतंत्रता पर कोई भी प्रतिबंध केवल इस आधार पर लगाया जा सकता है कि वह दूसरों को वैसी ही स्वतंत्रता प्रदान करने के लिए आवश्यक हो। (7) उदारवाद अनुबंध की स्वतंत्रता में विश्वास करता है। इसके अनुसार, सार्वजनिक नीति व्यक्तियों और समूहों की स्वतंत्र सौदेबाज़ी का परिणाम होना चाहिए। इस प्रकार उदारवाद की संपूर्ण अवधारणा में वैयक्तिक स्वतंत्रता का महत्त्वपूर्ण स्थान है। | ||
{'मतों को गिना नहीं, तौला जाना चाहिए"- यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-9 | {'मतों को गिना नहीं, तौला जाना चाहिए"- यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-9 | ||
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-ऑग | -ऑग | ||
-रेन | -रेन | ||
+जे.एस. मिल | +जे. एस. मिल | ||
-फाइनर | -फाइनर | ||
||जे.एस. मिल का कथन है कि "मतो को गिना नहीं तौला जाना चाहिए।" जे.एस. मिल का विचार है कि शिक्षित और योग्य व्यक्तियों को अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्तियों की तुलना में बहुलमत का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। ज्ञातव्य है कि इसी प्रकार का विचार सिजविक ने भी दिया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||जे. एस. मिल का कथन है कि "मतो को गिना नहीं तौला जाना चाहिए।" जे. एस. मिल का विचार है कि शिक्षित और योग्य व्यक्तियों को अज्ञानी एवं मूर्ख व्यक्तियों की तुलना में बहुलमत का अधिकार प्राप्त होना चाहिए। ज्ञातव्य है कि इसी प्रकार का विचार सिजविक ने भी दिया है। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) मिल ने लिंग के आधार पर भेदभाव को स्वीकार नहीं किया और महिला मताधिकार की वकालत की। (2) मिल के अनुसार मताधिकार उन्हीं को प्राप्त होना चाहिए जो निश्चित शैक्षणिक योग्यता रखते हों। (4) मिल ने गुप्त मतदान का विरोध किया तथा खुले मतदान को उचित ठहराया। (4) मिल के अनुसार संसद की तानाशाही प्रवृत्तियों पर अंकुश रखने के लिए द्विसदनीय संसद उपयोगी होती है। (4) ज्ञातव्य है कि बेंथम ''''एक व्यक्ति एक मत'''' का समर्थक था। | ||
{निम्न में विचारकों का कौन-सा युग्म वैज्ञानिक समाजवाद के संस्थापकों में माना जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-19 | {निम्न में विचारकों का कौन-सा युग्म वैज्ञानिक समाजवाद के संस्थापकों में माना जाता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-19 | ||
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||[[कार्ल मार्क्स]] एवं ऐंजिल्स को वैज्ञानिक समाजवाद का संस्थापक माना जाता है। इसके अतिरिक्त चार्ल्स फूरिये, सेंट साइमन, थामस मूर, राबर्ट ओवन आदि काल्पनिक समाजवाद के संस्थापक कहे जाते हैं। 'समाजवाद' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 'राबर्ट ओवन' ने किया था। | ||[[कार्ल मार्क्स]] एवं ऐंजिल्स को वैज्ञानिक समाजवाद का संस्थापक माना जाता है। इसके अतिरिक्त चार्ल्स फूरिये, सेंट साइमन, थामस मूर, राबर्ट ओवन आदि काल्पनिक समाजवाद के संस्थापक कहे जाते हैं। 'समाजवाद' शब्द का सर्वप्रथम प्रयोग 'राबर्ट ओवन' ने किया था। | ||
{इनमें से कौन यथार्थवादी नहीं था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-18 | {इनमें से कौन [[यथार्थवाद|यथार्थवादी]] नहीं था? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-18 | ||
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-हॉब्स | -हॉब्स | ||
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+इमानुएल कांट | +इमानुएल कांट | ||
-मैकियावेली | -मैकियावेली | ||
||इमानुएल कांट एक आदर्शवादी विचारक थे। आदर्शवाद या प्रत्ययवाद उन विचारों और मान्यताओं की समेकित विचारधारा है जिनके अनुसार, इस जगत की समस्त वस्तुएं विचार या चेतना की अभिव्यक्ति है। इसके विपरीत हॉब्स, थूसीडाइड्स तथा मैकियावेली यथार्थवादी विचारक हैं। ये राज्य के यंत्रीय सिद्धांत के समर्थक हैं। | ||इमानुएल कांट एक आदर्शवादी विचारक थे। आदर्शवाद या प्रत्ययवाद उन विचारों और मान्यताओं की समेकित विचारधारा है जिनके अनुसार, इस जगत की समस्त वस्तुएं विचार या चेतना की अभिव्यक्ति है। इसके विपरीत हॉब्स, थूसीडाइड्स तथा मैकियावेली [[यथार्थवाद|यथार्थवादी]] विचारक हैं। ये राज्य के यंत्रीय सिद्धांत के समर्थक हैं। | ||
{निम्न में से कौन अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-97 | {निम्न में से कौन अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-79,प्रश्न-97 | ||
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+बहुलवादी | +बहुलवादी | ||
-यथार्थवादी | -[[यथार्थवाद|यथार्थवादी]] | ||
-नव-यथार्थवादी | -नव-यथार्थवादी | ||
-संरचनात्मक यथार्थवादी | -संरचनात्मक यथार्थवादी | ||
||बहुलवादी विचारक अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं हैं। बहुलवादी मानते हैं कि राज्य विभिन्न संघ समूहों में विभाजित है जो | ||बहुलवादी विचारक अंतर्राष्ट्रीय संबंध में राज्य के केंद्रीय महत्त्व पर सहमत नहीं हैं। बहुलवादी मानते हैं कि राज्य विभिन्न संघ समूहों में विभाजित है जो ग़ैर-राज्य कर्त्ता (Non-State-Actors) के रूप में अंतर्राष्ट्रीय संबंधों में महत्त्वपूर्ण भूमिका निभाते हैं, जबकि नव-यथार्थवादी अथवा संरचात्मक यथार्थवादियों के अनुसार, संरचना के प्रभाव को राज्य के व्यवहार को समझाने के रूप में लिया जाना चाहिए। ये लोग राज्य की पारंपारिक सैन्य शक्ति के बजाय राज्य की संयुक्त क्षमताओं की प्रदर्शनात्मक शक्ति को महत्त्व प्रदान करते हैं। यथार्थवादी राष्ट्र/राज्य को अंतर्राष्ट्रीय संबंध में मुख्य अभिनेता मानते हैं। | ||
{"आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-8 | {"आर्थिक स्वतंत्रता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता एक भ्रम है।" यह कथन किसका है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-83,प्रश्न-8 | ||
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-मेटरलैंड | -मेटरलैंड | ||
-बार्कर | -बार्कर | ||
||जी.डी.एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||जी. डी. एच. कोल ने कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता मिथक है।" दूसरे शब्दों में "आर्थिक समानता के अभाव में राजनीतिक स्वतंत्रता केवल एक भ्रम है।" राजनीतिक स्वतंत्रता के आधार के रूप में आर्थिक समानता कार्य करती है, एक व्यक्ति सार्वजनिक क्षेत्र के प्रति तभी रुचि ले सकता है जब उसके पास अपनी अनिवार्य आवश्यकताओं को पूरा करने के पर्याप्त साधन उपलब्ध हों। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) लास्की के अनुसार, "मुझे स्वादिष्ट भोजन करने का अधिकार नहीं है यदि मेरे पड़ोसी को मेरे इस अधिकार के कारण सूखी रोटी से वंचित रहना पड़े।" (2) [[जवाहरलाल नेहरू]] ने कहा है, "भूखे व्यक्ति के लिए मत का कोई मूल्य नहीं होता।" (3) लास्की के अनुसार, "यदि [[राज्य]] संपत्ति को अधीन नहीं रखता, तो संपत्ति राज्य को वशीभूत कर लेगी।" (4) कोल की तरह लास्की ने भी कहा है कि "आर्थिक समानता के बिना राजनीतिक स्वतंत्रता कभी भी वास्तविक नहीं हो सकती।" | ||
{राज्य शब्द का पहली बार प्रयोग किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-19 | {[[राज्य]] शब्द का पहली बार प्रयोग किसने किया? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-7,प्रश्न-19 | ||
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-[[प्लेटो]] | -[[प्लेटो]] | ||
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||राजनीतिक दर्शन के इतिहास में 'राज्य' शब्द के पर्याय 'State' की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द 'स्टेटो' से हुई जिसका सर्वप्रथम प्रयोग मैकियावेली मे अपनी पुस्तक 'द प्रिन्स' में किया था। इससे पूर्व यूनानी दार्शनिक [[अरस्तू]] ने 'राज्य' के अर्थ को व्यक्त करने के लिए 'नगर राज्य' का प्रयोग किया था। | ||राजनीतिक दर्शन के इतिहास में 'राज्य' शब्द के पर्याय 'State' की व्युत्पत्ति ग्रीक शब्द 'स्टेटो' से हुई जिसका सर्वप्रथम प्रयोग मैकियावेली मे अपनी पुस्तक 'द प्रिन्स' में किया था। इससे पूर्व यूनानी दार्शनिक [[अरस्तू]] ने 'राज्य' के अर्थ को व्यक्त करने के लिए 'नगर राज्य' का प्रयोग किया था। | ||
{निम्नलिखित में से कौन-सा राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-19 | {निम्नलिखित में से कौन-सा सिद्धांत राज्य की उत्पत्ति की सही व्याख्या करता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-19,प्रश्न-19 | ||
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-राज्य का दैवी सिद्धांत | -राज्य का दैवी सिद्धांत | ||
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-कांट | -कांट | ||
-बेंथम | -बेंथम | ||
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिकों के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास- प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
{आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19 | {आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना किसने दी थी? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-33,प्रश्न-19 | ||
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-लासवेल | -लासवेल | ||
+आर्थर बेंटलें | +आर्थर बेंटलें | ||
||आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना आर्थर बेंटले ने अपनी पुस्तक (The Process of Government) नामक पुस्तक में सुव्यवस्थित रूप से प्रस्तुत की। बेंटले परम्परागत राजनीति विज्ञान का कड़ा आलोचक था। वह उसे बंजर, औपचारिकतापूर्ण, प्राणहीन, बंधिया और स्थैतिक मानता था। क्योंकि उसमें प्रक्रिया के अध्ययन पर पर्याप्त | ||आधुनिक राजनीति विज्ञान में 'प्रक्रिया' की संकल्पना आर्थर बेंटले ने अपनी पुस्तक (The Process of Government) नामक पुस्तक में सुव्यवस्थित रूप से प्रस्तुत की। बेंटले परम्परागत राजनीति विज्ञान का कड़ा आलोचक था। वह उसे बंजर, औपचारिकतापूर्ण, प्राणहीन, बंधिया और स्थैतिक मानता था। क्योंकि उसमें प्रक्रिया के अध्ययन पर पर्याप्त ज़ोर नहीं दिया था। बेंटले के प्रयास से प्रक्रिया के अध्ययन को व्यवहारवादी राजनीति विज्ञान में अपना लिया गया। अब व्यवस्थापिका तथा न्याय प्रक्रियाएं, निर्णय-निर्माण प्रक्रिया तथा राजनीतिक प्रक्रिया के अध्ययन पर विशेष बल दिया गया। | ||
{उदारवाद किसका हित चाहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-10 | {उदारवाद किसका हित चाहता है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-37,प्रश्न-10 | ||
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+धनवानों का | +धनवानों का | ||
-निर्धनों का | -निर्धनों का | ||
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||उदारवाद के प्रेणेता जॉन लॉक ने व्यक्तियों के प्राकृतिक अधिकारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार 'संपत्ति के अधिकार' को माना। लॉक प्रारंभिक उदारवादी विचारक के रूप में संपत्ति का उत्पादन करने, संरक्षित करने, व्यापार- व्यवसाय करने का अधिकार व्यक्ति को देता है। उदारवाद की इस प्रवृत्ति से धनवानों का हित होता है क्योंकि लॉक के अनुसार, राज्य को व्यक्ति की 'सपत्ति के अधिकार' में आने वाली बाधाओं को खत्म करना चाहिए। | ||उदारवाद के प्रेणेता जॉन लॉक ने व्यक्तियों के प्राकृतिक अधिकारों में से सबसे महत्त्वपूर्ण अधिकार 'संपत्ति के अधिकार' को माना। लॉक प्रारंभिक उदारवादी विचारक के रूप में संपत्ति का उत्पादन करने, संरक्षित करने, व्यापार- व्यवसाय करने का अधिकार व्यक्ति को देता है। उदारवाद की इस प्रवृत्ति से धनवानों का हित होता है क्योंकि लॉक के अनुसार, राज्य को व्यक्ति की 'सपत्ति के अधिकार' में आने वाली बाधाओं को खत्म करना चाहिए। | ||
{किसने कहा "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक | {किसने कहा "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी होती है?" (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-45,प्रश्न-10 | ||
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-ब्राइस | -ब्राइस | ||
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+सीले | +सीले | ||
-डा. बेनी प्रसाद | -डा. बेनी प्रसाद | ||
||सीले के अनुसार, "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी होती है।" लोकतंत्र के विषय में सीले की यह परिभाषा डायसी की लोकतंत्र संबंधी परिभाषा से इस अर्थ में भिन्न है कि डायसी 'लोकतंत्र को बहुमत की भागीदारी के रूप में ''परिभाषित करते हैं जबकि सीले प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी को लोकतंत्र की विशेषता मानते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार | ||सीले के अनुसार, "प्रजातंत्र ऐसा शासन है जिसमें प्रत्येक व्यक्ति की हिस्सेदारी होती है।" लोकतंत्र के विषय में सीले की यह परिभाषा डायसी की लोकतंत्र संबंधी परिभाषा से इस अर्थ में भिन्न है कि डायसी 'लोकतंत्र को बहुमत की भागीदारी के रूप में ''परिभाषित करते हैं जबकि सीले प्रत्येक व्यक्ति की भागीदारी को लोकतंत्र की विशेषता मानते हैं। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) ब्राइस के अनुसार- "लोकतंत्र शासन का वह प्रकार है जिसमें राज्य के शासन की शक्ति किसी विशेष वर्गों के हाथ में निहित न होकर संपूर्ण जनसमुदाय में निहित होती है।" (2) डा. बेनी प्रसाद के अनुसार- "लोकतंत्र जीने का ढंग है। यह इस मान्यता पर आधारित है कि प्रत्येक व्यक्ति के सुख का महत्त्व उतना ही है जितना कि अन्य किसी के सुख का महत्त्व हो सकता है तथा किसी को भी अन्य किसी के सुख का साधन मात्र नहीं समझा जा सकता।'' | ||
{"हरेक से अपनी क्षमता के अनुसार, हरेक को अपनी आवश्यकता के अनुसार।" यह सूत्र किस व्यवस्था का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-20 | {"हरेक से अपनी क्षमता के अनुसार, हरेक को अपनी आवश्यकता के अनुसार।" यह सूत्र किस व्यवस्था का है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-54,प्रश्न-20 | ||
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+साम्यवादी | +साम्यवादी | ||
-राष्ट्रवादी | -राष्ट्रवादी | ||
||लेनिन ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'स्टेट एंड रिवोल्यूशन' (राज्य और क्रांति) के अंतर्गत ' | ||लेनिन ने अपनी प्रसिद्ध कृति 'स्टेट एंड रिवोल्यूशन' (राज्य और क्रांति) के अंतर्गत 'समाजवादी और साम्यवादी व्यवस्थाओं में अंतर करते हुए लिखा है: समाजवादी दौर में व्यक्तियों के अधिकार इस सूत्र से निर्धारित किए जाते हैं- "प्रत्येक से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार, प्रत्येक को अपने-अपने कार्य के अनुसार"। परंतु साम्यवाद के उन्नत दौर के अंतर्गत, जब उत्पादन की शक्तियां पूर्णत: विकसित हो जाती हैं, व्यक्तियों के अधिकार इस सूत्र से निर्धारित किए जाते है- "प्रत्येक से अपनी-अपनी क्षमता के अनुसार, प्रत्येक को अपनी-अपनी आवश्यकता के अनुसार"। इससे सम्बधित अन्य महत्त्वपूर्ण तथ्य निम्न प्रकार हैं- (1) साम्यवाद के दौर में सभी लोग कामगार होते हैं, इसलिए समाज वर्गहीन हो जाता है। (2) साम्यवाद के युग में उत्पादन की नीतियां। संपूर्ण समाज की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर बनाई जाती हैं, किसी वर्ग के निजी लाभ के लिए नहीं बनाई जातीं। (3) साम्यवाद के दौर में सब कामगारों की सारी आवश्यकताएं पूरी करना संभव हो जाता है, और प्रतिस्पर्धा की भावना बिल्कुल समाप्त हो जाती है। | ||
{इनमें से किसने कहा था कि 'ज्ञान शक्ति है'? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-19 | {इनमें से किसने कहा था कि 'ज्ञान शक्ति है'? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-67,प्रश्न-19 | ||
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-[[सुकरात]] | -[[सुकरात]] | ||
+सेंट ऑगस्टाइन | +सेंट ऑगस्टाइन | ||
||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त | ||सेंट ऑगस्टाइन (354-430) पांचवी शताब्दी के प्रारंभ का राजनीतिक दार्शनिक है। यह पहला राजनीतिक दार्शनिक है जिसने लौकिक और धार्मिक क्षेत्रों के बीच सीमा रेखा खींच कर राजनीतिक दर्शन की उपयुक्त सीमाओं की समस्या सामने रखी ये क्रमश: राज्य और चर्च के क्षेत्र थे। इनके अनुसार राज्य स्वतंत्र मनुष्यों पर स्वतंत्र मनुष्यों का शासन है। ऑगस्टाइन न्याय को राज्य का सर्व प्रमुख तत्त्व मानता है। इसके अनुसार जिन राज्यों में न्याय नहीं रह जाता वे डाकुओं के झुण्ड मात्र कहे जा सकते हैं। एक अन्य स्थान पर ये कहते है" न्याय एक व्यवस्थित और अनुशासित जीवन व्यतीत करने तथा उन कर्त्तव्यों का पालन करने में है जिनकी व्यवस्था मांग करती है। अन्य दार्शनिकों के अनुसार न्याय की परिभाषा- (1) 'थॉमस एक्वीनास- प्रत्येक व्यक्ति को उसके अपने अधिकार देने की निश्चित और सनातम इच्छा न्याय है। (2) प्लेटो-न्याय मानव आत्मा की उचित अवस्था और मानवीय स्वभाव की प्राकृतिक मांग है। | ||
{कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20 | {कैटलिन के अनुसार, राजनीति विज्ञान का विषय-क्षेत्र क्या है? (नागरिक शास्त्र ,पृ.सं-34,प्रश्न-20 |
13:10, 22 अप्रैल 2017 का अवतरण
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