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| <quiz display=simple> | | <quiz display=simple> |
| {[[उत्तर भारत]] के किस नगर को सर्वोत्तम रेशम उत्पादन केन्द्र माना जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-218,प्रश्न-762 | | {[[भारत]] और पश्चिम एशिया के मध्य मुख्यत: स्थल मार्ग कहाँ से गुजरता था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-219,प्रश्न-764 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[तक्षशिला]]
| | +[[खैबर दर्रा]] और [[काबुल]] |
| -[[पाटलिपुत्र]]
| | -[[खैबर दर्रा|खैबर]] और [[बोलन दर्रा]] |
| -[[कौशाम्बी]] | | -[[तक्षशिला]], [[पेशावर]] और [[काबुल]] |
| +[[वाराणसी]]
| | -काबुल और [[बामियान]] |
| ||[[वाराणसी]], बनारस या [[काशी]] भी कहलाता है। वाराणसी दक्षिण-पूर्वी [[उत्तर प्रदेश]] राज्य, उत्तरी-मध्य [[भारत]] में [[गंगा नदी]] के बाएँ तट पर स्थित है और [[हिन्दू|हिन्दुओं]] के [[सप्त पुरियां|सात पवित्र नगरों]] में से एक है। इसे मन्दिरों एवं घाटों का नगर भी कहा जाता है। वाराणसी का पुराना नाम काशी है। वाराणसी विश्व का प्राचीनतम बसा हुआ शहर है। यह गंगा नदी के किनारे बसा है और हज़ारों साल से उत्तर भारत का धार्मिक एवं सांस्कृतिक केन्द्र रहा है। दो नदियों [[वरुणा नदी|वरुणा]] और [[असी नदी|असि]] के मध्य बसा होने के कारण इसका नाम वाराणसी पड़ा। वाराणसी कला, हस्तशिल्प, संगीत और नृत्य का भी केन्द्र है। यह शहर रेशम, सोने व चाँदी के तारों वाले ज़री के काम, लकड़ी के खिलौनों, काँच की चूड़ियों, हाथी दाँत और पीतल के काम के लिए प्रसिद्ध है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[वाराणसी]]
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| {[[गुप्त काल]] को [[प्राचीन भारत]] का क्लासिकल युग क्यों कहा जाता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-947 | | {[[गुप्त काल]] का प्रसिद्ध खगोलशास्त्री कौन था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-230,प्रश्न-949 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -व्यापार में अभूतपूर्ण प्रगति के कारण | | -[[भास्कराचार्य]] |
| +[[कला]] एवं [[साहित्य]] के क्षेत्र के अपने चरमोत्कर्ष पर पहुँचने के कारण।
| | -[[वराहमिहिर]] |
| -प्रचुर मात्रा में स्वर्ण सिक्के चलाये जाने के कारण | | +[[आर्यभट्ट ]] |
| -उपर्युक्त सभी के कारण
| | -[[ब्रह्मगुप्त]] |
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| {निम्नलिखित में से कौन-सी रचना [[संगम युग|संगम-युगीन]] [[मदुरई|मदुरई नगर]] का सुन्दर वर्णन प्रस्तुत करती है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-864 | | {निम्नलिखित में से कौन-सा क्षेत्र [[राज्य]] की आय का एक स्रोत नहीं था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-225,प्रश्न-866 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[मणिमेखलै]]
| | -राजकीय सम्पत्ति तथा राजकोष |
| -[[शिलप्पादिकारम]] | | -राज्य व्यापार |
| -कुराल अथवा तिरुकुराल | | -मार्ग-शुल्क और सीमा-शुल्क |
| -पत्तप्पाट्टु | | +दीवानी मुक़दमों पर (स्टाम्प) न्याय-शुल्क |
| ||[[मणिमेखलै]] महाकाव्य की रचना [[मदुरा]] के एक [[बौद्ध धर्म]] को मानने वाले व्यापारी 'सीतलै सत्तनार' ने की थी। इस महाकाव्य की रचना '[[शिलप्पादिकारम]]' के बाद की गयी। ऐसी मान्यता है कि, जहाँ पर 'शिलप्पादिकारम' की कहानी ख़त्म होती है, वहीं से 'मणिमेखलै' की कहानी प्रारम्भ होती है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[मणिमेखलै]]
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| {तमिल काव्य में आगम वर्ग की कविताएँ हैं- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-918 | | {[[गुप्त वंश]] का संस्थापक कौन था? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-228,प्रश्न-920 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -प्रेम संबंधी | | -[[घटोत्कच गुप्त]] |
| -राजाओं की प्रशंसा में | | -[[चंद्रगुप्त प्रथम]] |
| -[[प्रकृति]] की प्रशंसा
| | +[[श्रीगुप्त]] |
| +[[शिव|भगवान शिव]] की प्रशंसा में
| | -[[रामगुप्त]] |
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| {निम्नलिखित ग्रंथों में से किससे [[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] भू-राजस्व व्यवस्था पर प्रकाश नहीं पड़ता? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1005 | | {[[गुप्तोत्तर काल|गुप्तोत्तरकालीन]] करों के बारे में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन असत्य है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-234,प्रश्न-1007 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[हर्षचरित]] | | -परहीनक पशुओं द्वारा की गई हानि की क्षतिपूर्ति के रूप में लिया जाता था। |
| -अपराजितपृच्छा | | -राजकीय भूमि पर कृषि कर सीता कहलाता था। |
| -[[राजतरंगिणी]] | | -अवल्गक [[सेनाभक्त]] की तरह का ही एक कर था। |
| +काव्यादर्श | | +हलिराकर हलवाईयों पर लगने वाला कर था। |
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| {[[गुप्तोत्तर काल]] में भूमि का स्वामित्व अंतत: किसके पास था?(यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-239,प्रश्न-1077 | | {नगर प्रशासन के प्रसंग में नगर श्रेष्ठी एवं सार्थवाह का उल्लेख निम्नांकित स्थान से प्राप्त गुप्त अभिलेखों में हुआ है- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-239,प्रश्न-1079 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -कृषक | | -[[मध्य प्रदेश]] |
| -ग्राम सभा
| | +पुंड्रवर्धन |
| +राजा | | -[[अवंति]] |
| -[[संयुक्त परिवार]] | | -[[सौराष्ट्र]] |
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| {[[चोल]] के शासकों को निम्नलिखित में से प्राय: किससे जूझना पड़ा? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-243,प्रश्न-1129
| | {निम्नलिखित में से किस शासक को तमिल संरक्षक घोषित किया गया? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-242,प्रश्न-1118 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[मान्यखेट]] को [[राष्ट्रकूट वंश|राष्ट्रकूटों]] से | | -[[राजराज प्रथम]] |
| +[[कल्याणी कर्नाटक|कल्याणी]] के [[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] से
| | -राजराज द्वितीय |
| -[[मदुरै]] के [[पाण्ड्य राजवंश|पाण्ड्यों]] से | | -[[राजेंद्र प्रथम]] |
| -[[उड़ीसा]] के [[गंग वंश|गंगों]] से | | +[[कुलोत्तुंग प्रथम|कुलोत्तुंग]] |
| ||[[चालुक्य वंश|चालुक्यों]] की उत्पत्ति का विषय अत्यंत ही विवादास्पद है। [[वराहमिहिर]] की 'बृहत्संहिता' में इन्हें 'शूलिक' जाति का माना गया है, जबकि [[पृथ्वीराजरासो]] में इनकी उत्पति [[आबू पर्वत]] पर किये गये यज्ञ के अग्निकुण्ड से बतायी गयी है। 'विक्रमांकदेवचरित' में इस वंश की उत्पत्ति भगवान ब्रह्म के चुलुक से बताई गई है। इतिहासविद् 'विन्सेण्ट ए. स्मिथ' इन्हें विदेशी मानते हैं। 'एफ. फ्लीट' तथा 'के. ए. नीलकण्ठ शास्त्री' ने इस वंश का नाम 'चलक्य' बताया है। 'आर.जी. भण्डारकरे' ने इस वंश का प्रारम्भिक नाम 'चालुक्य' का उल्लेख किया है। [[ह्वेनसांग]] ने चालुक्य नरेश [[पुलकेशी द्वितीय]] को क्षत्रिय कहा है। इस प्रकार चालुक्य नरेशों की वंश एवं उत्पत्ति का कोई अभिलेखीय साक्ष्य नहीं मिलता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[चालुक्य वंश]]
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| {जिस समय [[महमूद गज़नवी]] ने आक्रमण किया, उस समय [[हिन्दू शाही वंश]] की राजधानी थी- (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1172 | | {[[सेन वंश]] के शासक [[लक्ष्मण सेन]] (1178-1205) के सन्दर्भ में निम्नलिखित में से कौन-सा कथन लागू होता है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-247,प्रश्न-1174 |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[उद्भांडपुर]]
| | -उसने 60 वर्ष की अवस्था में [[जयचन्द]] पर आक्रमण कर उसे पराजित किया था। |
| -[[पेशावर]] | | -उसने [[बनारस]] तथा [[प्रयाग]] तक सैन्य अभियान किया। |
| -[[काबुल]]
| | -[[बख्तियार खिलजी|इख्तियारुद्दीन मुहम्मद बिन बख्तियार खिलजी]] के आक्रमण से भयभीत होकर [[पूर्वी बंगाल]] भाग गया। |
| -इनमें से कोई नहीं | | +उपर्युक्त सभी |
| ||[[उद्भांडपुर]] वर्तमान ओहिंद ([[पाकिस्तान]]) में है। प्राचीन समय में उत्तरी-पश्चिमी भाग में '[[हिन्दू शाही वंश]]' [[भारत]] का महत्त्वपूर्ण हिन्दू राज्य था। इसकी राजधानी उद्भांडपुर ही थी। यह राज्य [[मुस्लिम]] आक्रमण का प्रथम शिकार हुआ था। उद्भांडपुर [[सिंधु नदी]] के तट पर स्थित [[अटक]] से 16 मील उत्तर की ओर स्थित है। जब [[अलक्षेन्द्र]] ने भारत पर आक्रमण किया, तब उस समय 327 ई. पू. में [[तक्षशिला]] के नरेश [[आम्भि]] ने यवनराज के पास संधि की वार्ता करने के लिए जो दूत भेजा था, वह इसी स्थान पर अलक्षेन्द्र से मिला था।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[उद्भांडपुर]]
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| | {[[अजंता]] के भित्तिचित्रों का मूल धार्मिक विषय क्या है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-491 |
| {[[जातक कथा|जातक कथाएँ]] किस धर्म से सम्बंधित हैं? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-202,प्रश्न-489 | |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| +[[बौद्ध धर्म]]
| | -[[जैन धर्म|जैन]] |
| -[[जैन धर्म]] | | +[[बौद्ध धर्म|बौद्ध]] |
| -[[हिंदू धर्म]]
| | -[[वैष्णव]] |
| -[[पारसी धर्म]] | | -[[शैव]] |
| ||[[जातक कथा|जातक कथाएँ]] [[बुद्ध|भगवान बुद्ध]] के पूर्वजन्मों की बेहद लोकप्रिय [[कहानी|कहानियाँ]] हैं, जिन्हें [[बौद्ध धर्म]] के सभी मतों में संरक्षित किया गया है। कुछ जातक कहानियाँ [[पालि भाषा|पालि]] बौद्ध लेखों की विभिन्न शाखाओं में हैं। इनमें वे 35 कहानियाँ भी हैं, जिनका संकलन उपदेश देने के लिए किया गया था। इनकी रचना का समय तीसरी [[शताब्दी]] ई. पूर्व से पहले का माना जाता है।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[जातक कथा]]
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| | {[[चाणक्य]] के अर्थशास्त्र के अनुसार सेना में किस वर्ण के लोग सम्मिलित होने चाहिए? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-659 |
| {[[मौर्य साम्राज्य]] में दुर्भिक्ष काल में राहत कार्य के लिए कोष्ठागारों के अस्तित्व का प्रमाण निम्नांकित किससे ज्ञात हुआ है? (यूजीसी इतिहास,पृ.सं.-212,प्रश्न-657 | |
| |type="()"} | | |type="()"} |
| -[[गिरनार]] का [[शिलालेख]] द्वितीय | | -[[क्षत्रिय]] |
| -स्तम्भ लेख द्वितीय
| | -क्षत्रिय और [[शूद्र]] |
| -[[सासाराम]] का लघु शिलालेख | | -क्षत्रिय, शूद्र और [[वैश्य]] |
| +सोहगौरा पट्ट अभिलेख | | +[[क्षत्रिय |क्षत्रिय]], [[शूद्र]], वैश्य और [[ब्राह्मण]] |
| ||[[मौर्य वंश|मौर्य राजवंश]] (322-185 ईसा पूर्व) [[प्राचीन भारत]] का एक राजवंश था। ईसा पूर्व 326 में [[सिकन्दर]] की सेनाएँ [[पंजाब]] के विभिन्न राज्यों में विध्वंसक युद्धों में व्यस्त थीं। [[मध्य प्रदेश]] और [[बिहार]] में [[नंद वंश]] का राजा [[धनानंद|धननंद]] शासन कर रहा था। [[सिकन्दर]] के आक्रमण से देश के लिए संकट पैदा हो गया था। धननंद का सौभाग्य था कि वह इस आक्रमण से बच गया। यह कहना कठिन है कि देश की रक्षा का मौक़ा पड़ने पर नंद सम्राट यूनानियों को पीछे हटाने में समर्थ होता या नहीं।{{point}}:-'''अधिक जानकारी के लिए देखें''':-[[मौर्य काल]]
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