"प्रयोग:कविता सा.-2": अवतरणों में अंतर
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{'[[संगीत नाटक अकादमी]]' का स्थापना वर्ष क्या हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-185,प्रश्न-26 | |||
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-1959 | -[[1959]] | ||
-1954 | -[[1954]] | ||
-1945 | -[[1945]] | ||
+1952 | +[[1952]] | ||
||[[31 मई]], 1952 को तत्कालीन शिक्षा मंत्री मौलाना अबुल कलाम आजाद के हस्ताक्षर से पारित प्रस्ताव द्वारा सबसे पहले नृत्य, नाटक और संगीत के लिए राष्ट्रीय अकादमी के रूप में संगीत नाटक अकादमी की स्थापना हुई। [[28 जनवरी]], 1953 को [[भारत]] के तत्कालीन राष्ट्रपति [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] ने [[संगीत नाटक अकादमी]] का विधिवत उद्घाटन किया। | ||[[31 मई]], [[1952]] को तत्कालीन शिक्षा मंत्री [[अबुल कलाम आज़ाद|मौलाना अबुल कलाम आजाद]] के हस्ताक्षर से पारित प्रस्ताव द्वारा सबसे पहले [[नृत्य]], [[नाटक]] और संगीत के लिए राष्ट्रीय अकादमी के रूप में [[संगीत नाटक अकादमी]] की स्थापना हुई। [[28 जनवरी]], 1953 को [[भारत]] के तत्कालीन राष्ट्रपति [[डॉ. राजेंद्र प्रसाद]] ने [[संगीत नाटक अकादमी]] का विधिवत उद्घाटन किया। | ||
{राघव कनेरिया को किस रूप में जाना जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-195,प्रश्न-76 | {राघव कनेरिया को किस रूप में जाना जाता है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-195,प्रश्न-76 | ||
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- | -फोटोग्राफ़र | ||
-ग्राफिक आर्टिस्ट | -ग्राफिक आर्टिस्ट | ||
+[[मूर्तिकार]] | +[[मूर्तिकार]] | ||
-[[चित्रकार]] | -[[चित्रकार]] | ||
|| | ||राघव कनेरिया को [[मूर्तिकार]] के रूप में जाना जाता है। इनका जन्म वर्ष [[1936]] में [[गुजरात]] में हुआ। इन्हें कला के क्षेत्र में योगदान देने के लिए [[ललित कला अकादमी]] का राष्ट्रीय पुरस्कार, बॉम्बे आर्ट सोसाइटी का राज्यपाल पदक, राष्ट्रपति सिल्वर पट्टिका पुरस्कार, कलारत्न पुरस्कार आदि प्रदान किया गया। | ||
{राजस्थान के प्रसिद्ध चित्र 'ढोलामारू' राजा व रानी किस पशु पर सवार चित्रित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-207,प्रश्न-167|type="()"} | {राजस्थान के प्रसिद्ध चित्र '[[ढोला मारू|ढोलामारू]]' राजा व रानी किस पशु पर सवार चित्रित हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-207,प्रश्न-167|type="()"} | ||
-[[हाथी]] | -[[हाथी]] | ||
+[[ऊंट]] | +[[ऊंट]] | ||
-[[घोड़ा]] | -[[घोड़ा]] | ||
-उपर्युक्त में से कोई नहीं | -उपर्युक्त में से कोई नहीं | ||
||[[ढोला मारू|ढोलामारू]] 11वीं शताब्दी में रचित एक लोक-भाषा काव्य है। मूलत: दोहों में रचित इस लोक काव्य को सत्रहवीं शताब्दी में कुशलराय वाचक ने कुछ चौपाइयां जोड़कर विस्तार दिया। इसमें नटवर के राजकुमार ढोला और राजकुमारी मारू की प्रेमकथा का वर्णन है। ढोलामारू का चित्र मेवाड़ क्षेत्र से संबंधित है जिस पर राजा और रानी को ऊंट पर | ||[[ढोला मारू|ढोलामारू]] 11वीं शताब्दी में रचित एक लोक-भाषा काव्य है। मूलत: दोहों में रचित इस लोक काव्य को सत्रहवीं शताब्दी में कुशलराय वाचक ने कुछ चौपाइयां जोड़कर विस्तार दिया। इसमें नटवर के राजकुमार ढोला और राजकुमारी मारू की प्रेमकथा का वर्णन है। ढोलामारू का चित्र [[मेवाड़]] क्षेत्र से संबंधित है जिस पर राजा और रानी को [[ऊंट]] पर सवार चित्रित किया गया है। | ||
{' | {'लाफ़िर' के अनुसार [[भारत]] में [[चित्रकला]] का जन्म हुआ? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-236,प्रश्न-374 | ||
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+दरबारों में | +दरबारों में | ||
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-युद्धों में | -युद्धों में | ||
-वेदों में | -वेदों में | ||
||' | ||'लाफ़िर' के अनुसार [[भारत]] में [[चित्रकला]] का जन्म दरबारों में हुआ, पुजारियों के प्रभावस्वरूप नहीं। | ||
{[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका]], | {[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका]], लखनिया दरी, [[पंचमढ़ी]] प्रसिद्ध हैं- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-19,प्रश्न-12 | ||
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-बौद्ध स्तूप के लिए | -बौद्ध स्तूप के लिए | ||
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-विष्णु मंदिर के लिए | -विष्णु मंदिर के लिए | ||
-गुफ़ा के लिए | -गुफ़ा के लिए | ||
||[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका]], | ||[[भीमबेटका गुफ़ाएँ|भीमबेटका]], लखनिया दरी और [[पंचमढ़ी]] [[भारत]] के प्रागैतिहासिक चित्रों के केंद्र के रूप में प्रसिद्ध हैं। पंचमढ़ी के गुफाओं एवं शिलाश्रयों से जो प्रागैतिहासिक चित्र प्राप्त हुए हैं, उनमें मुख्य रूप से पशु तथा आखेट दृश्य के अतिरिक्त आदि-मानव के क्रिया-कलापों के चित्र मिलते हैं। | ||
{ | {सित्तनवासल, [[बाघ की गुफ़ाएँ|बाघ]] तथा मात्तनचेरी किसलिए प्रसिद्ध हैं? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-27,प्रश्न-34 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-स्थापत्य | -स्थापत्य | ||
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-[[टेराकोटा]] | -[[टेराकोटा]] | ||
-[[वास्तुकला]] | -[[वास्तुकला]] | ||
|| | ||सित्तनवासल, [[बाघ की गुफ़ाएँ|बाघ]] तथा मात्तनचेरी भित्तिचित्र के लिए प्रसिद्ध हैं। | ||
{सित्तनवासल | {सित्तनवासल गुफ़ा कहां है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-42,प्रश्न-20 | ||
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-[[केरल |केरल]] | -[[केरल |केरल]] | ||
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-[[आंध्र प्रदेश]] | -[[आंध्र प्रदेश]] | ||
-[[कर्नाटक]] | -[[कर्नाटक]] | ||
||सित्तनवासल | ||सित्तनवासल गुफ़ा [[जैन धर्म]] से संबंधित है। यह एक जैन मंदिर है, जिसे चट्टानों को काटकर बनाया गया है। यह सित्तनवासल गाँव, पुडुकोट्टई जिला, [[तमिलनाडु]] में अवस्थित है। | ||
{त्रिनाले आयोजित होती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-210,प्रश्न-186 | {त्रिनाले आयोजित होती है- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-210,प्रश्न-186 | ||
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||[[ललित कला अकादमी]] हर तीसरे वर्ष कला त्रैवार्षिकी (त्रिनाले इंडिया) का आयोजन [[दिल्ली]] में करता है जो अंतर्राष्ट्रीय [[चित्रकला]] प्रदर्शनी होती है। इसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष [[1968]] से ही हो रहा है। | ||[[ललित कला अकादमी]] हर तीसरे वर्ष कला त्रैवार्षिकी (त्रिनाले इंडिया) का आयोजन [[दिल्ली]] में करता है जो अंतर्राष्ट्रीय [[चित्रकला]] प्रदर्शनी होती है। इसका आयोजन संस्कृति मंत्रालय द्वारा वर्ष [[1968]] से ही हो रहा है। | ||
{दिलवाड़ा मंदिर है | {[[दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू|दिलवाड़ा मंदिर]] में कौन सी मूर्तिकला है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-224,प्रश्न-287 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
-[[टेराकोटा]] | -[[टेराकोटा]] | ||
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+संगमरमर मूर्तिकला | +संगमरमर मूर्तिकला | ||
-प्लास्टर मूर्तिकला | -प्लास्टर मूर्तिकला | ||
||दिलवाड़ा का जैन मंदिर | ||[[दिलवाड़ा जैन मंदिर माउंट आबू|दिलवाड़ा का जैन मंदिर माउंट आबू]] (सिरोही, राजस्तान) में स्थित है। इनमें सबसे प्रसिद्ध विमल वासाही मंदिर है। चालुक्य शासक भीमदेव प्रथम (1022-1064 ई.) के सामंत विमल शाह ने इसे बनवाया था। यहां के मंदिर संगमरमर (मकराना मार्बल) की नक्काशी से सुसज्जित हैं। | ||
{ | {हुमायूं का दरबारी [[चित्रकार]] कहां का रहने वाला था? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-65,प्रश्न-68 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[ईरान]] | +[[ईरान]] | ||
-[[काबुल]] | -[[काबुल]] | ||
-[[ | -[[अफ़गानिस्तान]] | ||
-[[ताशकंद]] | -[[ताशकंद]] | ||
|| | ||1544 ई. के लगभग जब हुमायूं काबुल लौट रहा था तो तबरेज में उसकी मुलाकात दो महान ईरानी चित्रकारों से हुई, वे थे-'ख्वाजा अब्दुस्समद शीराजी' और 'मीर सैयद अली'। 'अब्दुस्समद शीराजी' पशु चित्रण करने में पारंगत था और मीर सैयद अली 'ग्राम्य चित्रण करने में, बाद में दोनों कलाकार हुमायूं के दरबारी चित्रकार के रूप में नियुक्त हुए जिनकी अध्यक्षता में अकबर ने चित्रकारी की प्रारंभिक शिक्षा प्राप्त की, किंतु हिंदुस्तान की पुनर्विजय के बाद वह अधिक समय तक जीवित न रहा। [[अकबर]] ने गद्दी पर बैठने के बाद चित्रकला का एक नया विभाग खोल दिया। इसका अध्यक्ष अब्दुस्समद को बनाया गया। | ||
{[[पटना चित्रकला|पटना शैली]] चित्रों का दूसरा नाम क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-2 | {[[पटना चित्रकला|पटना शैली]] चित्रों का दूसरा नाम क्या है? (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-76,प्रश्न-2 | ||
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-मुगल-राजपूत शैली | -मुगल-राजपूत शैली | ||
-बिहार शैली | -बिहार शैली | ||
||[[पटना चित्रकला|पटना कला]] शैली का विकास यूरोपीय एवं भारतीय शैली के सम्मिश्रण से हुआ। इसका दूसरा नाम 'कंपनी शैली' भी है। अंग्रेजी प्रशासन तथा व्यापार का विशिष्ट केंद्र होने के कारण पटना में | ||[[पटना चित्रकला|पटना कला]] शैली का विकास यूरोपीय एवं भारतीय शैली के सम्मिश्रण से हुआ। इसका दूसरा नाम 'कंपनी शैली' भी है। अंग्रेजी प्रशासन तथा व्यापार का विशिष्ट केंद्र होने के कारण [[पटना]] में अंग्रेज़ व्यापारी, धनाढ्य तथा कंपनी के अधिकारी निवास करते थे। इनके आश्रय में अलाकार 'एंग्लो इंडियन स्टाइल' चित्रण करते थे। 'अर्द्ध-यूरोपीय ढंग' से पूर्व-पाश्चात्य मिश्रण के आधार पर पटना शैली में पशु-पक्षी, प्राकृतिक चित्र, लघु चित्र, भारतीय जनमानस तथा पारिवारिक चित्र बनाए गए। पटना शैली के कलाकारों ने अबरक (अभ्रक) के पत्रों पर अतिलघु चित्रों का निर्माण आरंभ किया। | ||
{[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] रचित '[[गीतांजलि]]' के लिए चित्रण-कार्य किया था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-83,प्रश्न-44 | {[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] रचित '[[गीतांजलि]]' के लिए चित्रण-कार्य किया था- (कला सामान्य ज्ञान,पृ.सं-83,प्रश्न-44 | ||
|type="()"} | |type="()"} | ||
+[[नंदलाल बोस]] | +[[नंदलाल बोस]] | ||
-गगनेन्द्रनाथ ठाकुर | -गगनेन्द्रनाथ ठाकुर | ||
-[[अवनीन्द्रनाथ ठाकुर]] | -[[अवनीन्द्रनाथ ठाकुर]] | ||
-[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] | -[[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] | ||
||[[नंदलाल बोस]] ने [[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] की साहित्यिक कृतियों के लिए चित्रण कार्य किया था, जिसमें [[गीतांजलि]] के लिए किया गया चित्रण महत्त्वपूर्ण है। | ||[[नंदलाल बोस]] ने [[रबीन्द्रनाथ टैगोर]] की साहित्यिक कृतियों के लिए चित्रण कार्य किया था, जिसमें [[गीतांजलि]] के लिए किया गया चित्रण महत्त्वपूर्ण है। | ||
12:22, 27 दिसम्बर 2017 का अवतरण
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