प्रयोग:कविता बघेल 7
कविता बघेल 7
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पूरा नाम | राज खोसला |
जन्म | 31 मई, 1925 |
जन्म भूमि | पंजाब |
मृत्यु | 9 जून, 1991 |
कर्म भूमि | मुम्बई |
कर्म-क्षेत्र | भारतीय सिनेमा |
मुख्य फ़िल्में | 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'दो रास्ते' 'सोलहवां साल' 'काला पानी' 'एक मुसाफिर एक हसीना', 'चिराग', 'दासी' और 'सन्नी', 'वो कौन थी', 'मेरा साया' |
विषय | अंग्रेज़ी |
शिक्षा | स्नातक |
विद्यालय | एलिफोस्टन कॉलेज |
पुरस्कार-उपाधि | फ़िल्मफेयर सर्वश्रेष्ठ मूवी पुरस्कार |
प्रसिद्धि | निर्देशक और फ़िल्म निर्माण |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | अस्सी के दशक में राजखोसला की फ़िल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रही। इन फ़िल्मों में 'दासी' (1981), 'तेरी मांग सितारों से भर दूं', 'मेरा दोस्त मेरा दुश्मन' (1984) और 'माटी मांगे खून' शामिल है। हांलाकि वर्ष 1984 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सन्नी' ने बॉक्स ऑफ़िस पर और व्यापार किया। वर्ष 1989 में प्रदर्शित फ़िल्म 'नकाब' राज खोसला के सिने करियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई। |
राज खोसला (अंग्रेज़ी: Raj Khosla, जन्म: 31 मई, 1925, पंजाब; मृत्यु: 9 जून, 1991) 1950 से 1980 के दशक तक हिंदी फ़िल्मों में शीर्ष निर्देशक, निर्माणकर्ता और पटकथाकारों में से एक थे। उन्हें देव आनंद जैसे अभिनेताओं की सफलता के लिए श्रेय दिया जाता है। गुरु दत्त के तहत अपना कॅरियर शुरू करने के बाद, वह सी.आई.डी की की तरह हिट फ़िल्में बनाते रहे। (1956), 'वो कौन थी'? (1964), 'मेरा साया' (1966), 'दोस्ताना' (1980) और मुख्य फ़िल्म 'मैं तुलसी तेरे आंगन की' (1978) थी, जिसने उन्हें फ़िल्मफेयर का सर्वश्रेष्ठ मूवी पुरस्कार दिलाया था।
परिचय
राज खोसला का जन्म 31 मई, 1925 को पंजाब के लुधियाना शहर में हुआ था। उनका बचपन से ही गीत संगीत की ओर रूझान था और वे प्लेबैक सिंगर बनना चाहते थे। आकाशवाणी में बतौर उद्घोषक और पार्श्वगायक का काम करने के बाद राज खोसला 19 वर्ष की उम्र में अपने पिता के साथ पार्श्वगायक की तमन्ना लिए मुंबई आ गए। उनके चाचा देवानंद के पिता किशोरी आनंद के गहरे दोस्त थे। राज खोसला की प्रारंभिक शिक्षा अंजुमन इस्लामिक स्कूल में हुई। उन्होंने एलिफोस्टन कॉलेज से अंग्रेज़ी में स्नातक की उपाधि प्राप्त की।[1]
फ़िल्मी कॅरियर की शुरुआत
मुंबई आने के बाद राज खोसला ने रंजीत स्टूडियों में अपना स्वर परीक्षण कराया और इस कसौटी पर वह खरे भी उतरे लेकिन रंजीत स्टूडियों के मालिक सरदार चंदू लाल ने उन्हें बतौर पार्श्वगायक अपनी फ़िल्म में काम करने का मौका नहीं दिया। उन दिनों रंजीत स्टूडियो की स्थिती ठीक नही थी और सरदार चंदूलाल को नए पार्श्वगायक की अपेक्षा मुकेश पर ज़्यादा भरोसा था अतः उन्होंने अपनी फ़िल्म में मुकेश को ही पार्श्वगायन करने का मौका देना उचित समझा।
निर्देशक के रूप में
राज खोसला 1948 के लगभग चेतन आनंद, देवानंद और विजय आनंद के साथ पाली हिल में एक साथ रहने लगे। उनका चेतन आनंद की पत्नी उमा आनंद से बेहद स्नेह था। इस बीच राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने के लिए संघर्ष करते रहे। उन्ही दिनों उनके पारिवारिक मित्र और अभिनेता देवानंद ने राज खोसला को अपनी फ़िल्म (बाजी) में गुरु दत्त के सहायक निर्देशक के तौर पर नियुक्त कर लिया। वर्ष 1954 में राज खोसला को स्वतंत्र निर्देशक के तौर पर फ़िल्म 'मिलाप' को निर्देशित करने का मौका मिला। देवानंद और गीताबाली अभिनीत फ़िल्म 'मिलाप' की सफलता के बाद बतौर निर्देशक राज खोसला फ़िल्म इंडस्ट्री में अपनी पहचान बनाने में कामयाब हो गए।
वर्ष 1956 में राज खोसला ने सी.आई.डी फ़िल्म निर्देशित की। जब फ़िल्म ने बॉक्स ऑफ़िस पर अपनी सिल्वर जुबली पूरी की तब गुरु दत्त इससे काफ़ी खुश हुए। उन्होंने राज खोसला को एक नई कार भेंट की और कहा कि यह कार आपकी है। सी.आई.डी की सफलता के बाद गुरु दत्त ने राज खोसला को अपनी एक अन्य फ़िल्म के निर्देशन की भी ज़िम्मेदारी सौंपनी चाही लेकिन राज खोसला ने उन्हें यह कह कर इंकार कर दिया कि एक बड़े पेड़ के नीच भला दूसरा पेड़ कैसे पनप सकता है। इस पर गुरु दत्त ने राज खोसला से कहा कि गुरु दत्त फ़िल्म पर जितना मेरा अधिकार है उतना तुम्हारा भी है। वर्ष 1958 में राज खोसला ने नवकेतन बैनर तले निर्मित फ़िल्म 'सोलहवां साल' निर्देशित की। देवानंद और वहीदा रहमान अभिनीत इस फ़िल्म को सेंसर का वयस्क प्रमाण पत्र मिलने के कारण फ़िल्म को देखने ज़्यादा दर्शक नहीं आ सके और अच्छी पटकथा और निर्देशन के बावजूद फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर कोई खास कमाल नही दिखा सकी। इसके बाद राज खोसला को नवकेतन के बैनर तले ही निर्मित फ़िल्म 'काला पानी' को निर्देशित करने का मौका मिला। यह बात कितनी दिलचस्प है कि जिस देवानंद की बदौलत राज खोसला को फ़िल्म इंडस्ट्री में काम करने का मौका मिला था उन्हीं की वजह से देवानंद को अपने फ़िल्मी कॅरियर का बतौर अभिनेता पहला फ़िल्मफेयर पुरस्कार प्राप्त हुआ।
फ़िल्म निर्माण के रूप में
राज खोसला ने 1960 में फ़िल्म निर्माण के क्षेत्र में भी कदम रख दिया और 'बंबई का बाबू का' फ़िल्म का निर्माण किया। फ़िल्म के जरिए राज खोसला ने अभिनेत्री सुचित्रा सेन को रूपहले पर्दे पर पेश किया। हांलाकि फ़िल्म दर्शको के बीच सराही गई लेकिन बॉक्स ऑफ़िस पर इसे अपेक्षित कामयाबी नही मिल पाई। फ़िल्म की असफलता से राज खोसला आर्थिक तंगी में फंस गए। नायक-नायिका के भाई-बहन दिखाए जाने को दर्शकों ने स्वीकार नहीं किया और फ़िल्म चली नहीं। इसके बाद राज खोसला को एस.मुखर्जी निर्मित फ़िल्म 'एक मुसाफिर एक हसीना' निर्देशित करने का मौका मिला। फ़िल्म की कहानी एक ऐसे फ़ौजी अफ़सर की जिंदगी पर आधारित थी जिसकी याददाश्त चली जाती है। फ़िल्म के निर्माण के समय एस.मुखर्जी ने राज खोसला को यह राय दी कि फ़िल्म की कहानी फ्लैशबैक से शुरू की जाए। एस. मुखर्जी की इस बात से राज खोसला सहमत नही थे। बाद में वर्ष 1962 में जब फ़िल्म प्रदर्शित हुई तो आरंभ में उसे दर्शको का अपेक्षित प्यार नही मिला और राज खोसला के कहने पर एस.मुखर्जी ने फ़िल्म का संपादन कराया और जब फ़िल्म को दुबारा प्रदर्शित किया तो फ़िल्म बॉक्स ऑफ़िस पर सुपरहिट साबित हुई।
वर्ष 1964 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'वह कौन थी' प्रदर्शित हुई। फ़िल्म 'वह कौन थी' के निर्माण के समय मनोज कुमार और अभिनेत्री के रूप में निम्मी का चयन किया गया था लेकिन राज खोसला ने निम्मी की जगह साधना का चयन किया। रहस्य और रोमांच से भरपूर इस फ़िल्म में साधना की रहस्यमयी मुस्कान के दर्शक दीवाने हो गए। साथ ही फ़िल्म की सफलता के बाद राज खोसला का निर्णय सही साबित हुआ। वर्ष 1967 में राज खोसला ने फ़िल्म अनिता' का निर्माण किया जो बॉक्स ऑफ़िस पर बुरी तरह नकार दी गई, जिससे उन्हें गहरा सदमा पहुंचा और उन्हें आर्थिक क्षति हुई। इससे राज खोसला टूट गए। इसके बाद उन्होंने अपनी मां के कहने पर वर्ष 1969 में फ़िल्म चिराग' का निर्माण किया जो सुपरहिट रही। वर्ष 1971 में राज खोसला की एक और सुपरहिट फ़िल्म 'मेरा गांव मेरा देश' प्रदर्शित हुई। इस फ़िल्म में विनोद खन्ना खलनायक की भूमिका में थे। फ़िल्म की कहानी उन दिनों एक अखबार में छपी कहानी पर आधारित थी। वर्ष 1978 में राज खोसला ने लीक से हटकर फ़िल्में बनाने का काम करना शुरू कर दिया और नूतन और विजय आनंद को लेकर मैं तुलसीतेरे आंगन की' का निर्माण किया। पारिवारिक पृष्ठभूमि पर बनी यह फ़िल्म दर्शको के बीच काफ़ी सराही गई। वर्ष 1980 में प्रदर्शित फ़िल्म 'दोस्ताना' राज खोसला के सिने करियर की अंतिम सुपरहिट फ़िल्म थी। फ़िल्म में अमिताभ बच्चन, शत्रुघ्न सिन्हा और जीनत अमान ने मुख्य भूमिका निभाई थी।[2]
मुख्य फ़िल्में
अस्सी के दशक में राजखोसला की फ़िल्में व्यावसायिक तौर पर सफल नहीं रही। इन फ़िल्मों में 'दासी' (1981), 'तेरी मांग सितारों से भर दूं', 'मेरा दोस्त मेरा दुश्मन' (1984) और 'माटी मांगे खून' शामिल है। हांलाकि वर्ष 1984 में प्रदर्शित फ़िल्म 'सन्नी' ने बॉक्स ऑफ़िस पर और व्यापार किया। वर्ष 1989 में प्रदर्शित फ़िल्म 'नकाब' राज खोसला के सिने करियर की अंतिम फ़िल्म साबित हुई। राज खोसला द्वारा निर्देशित अन्य फ़िल्मों में 'मैं तुलसी तेरे आंगन की', 'दो रास्ते' 'सोलहवां साल' 'काला पानी' 'एक मुसाफिर एक हसीना', 'चिराग', 'दासी' और 'सन्नी' प्रमुख हैं।
निधन
अपने दमदार निर्देशन से लगभग चार दशक तक सिनेप्रेमियों का भरपूर मनोरंजन करने वाले महान निर्माता निर्देशक राज खोसला 9 जून, 1991 को इस दुनिया अलविदा कह गए।
- ↑ 2017। राज खोसला- हिंदी सिनेमा के असली “हिचकॉक” (हिंदी) rgurbaxani.blogspot.in।
- ↑ उत्कृष्ठ निर्देशन से दर्शको पर राज किया राज खोसला ने (हिंदी) hindi.webdunia.com। अभिगमन तिथि: 9 जून, 2017।